गुना का गुलाब अब महकेगा पेरिस और लंदन तक – गुलाब की खेती से किसानों को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार
गुलाब की खेती से गुना के किसान अब पेरिस और लंदन में गुलाब भेजने को तैयार हैं। गुना का गुलाब देगा अंतरराष्ट्रीय पहचान।
गुलाब की खेती से गुना के किसान अब पेरिस और लंदन में गुलाब भेजने को तैयार हैं। गुना का गुलाब देगा अंतरराष्ट्रीय पहचान।
अगर आप भी गेंदे की खेती (Subsidy On Marigold Cultivation) करके अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है, आइए, जानते हैं कि कैसे मिलेगा इस स्कीम का लाभ और क्या हैं गेंदे की खेती से होने वाले फायदे।
चाइना एस्टर जिसका वैज्ञानिक नाम Callistephus chinensis है, एक एक बेहद सुंदर और लोकप्रिय पुष्पीय पौधा है, जिसे इसकी अलग-अलग रंगों की बहार और लंबे वक्त तक खिलने के लिए उगाया जाता है। ये फूल ख़ास तौर से सजावट, गुलदस्ते और फूलों के व्यापार के लिए उगाया जाता है। चाइना एस्टर की वैज्ञानिक खेती (Scientific farming of China Aster:) से उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ भी होता है।
सजावटी केल (Ornamental Kale) बहुत ही ख़ूबसूरत पत्तेदार पौधा है, जिसे ख़ासतौर से से बगीचों, पार्कों और घर के डिजाइनों को अट्रैकटिव बनाने के लिए उगाया जाता है। ये पौधा न सिर्फ अपनी घुंघराली, चमकीली और रंगीन पत्तियों के कारण फेमस है, बल्कि इसकी खेती भी एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकती है। इसकी मांग नर्सरी, होटल, रिसॉर्ट, बागवानी एक्सपर्ट और लैंड स्केप डिजाइनरों के बीच ज़्यादा होती है। इसके अलावा, केल पोषण से भरपूर होने के कारण स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक है। सजावटी केल (Ornamental Kale) ठंडे मौसम में अच्छी तरह से बढ़ता है।
जरबेरा एक बहुवर्षीय, शाकीय पौधा है जो 12 से 18 इंच लंबा और 12 से 15 इंच चौड़ा हो सकता है। इसके आकर्षक फूल विभिन्न रंगों में आते हैं, जैसे – पीला, नारंगी, लाल, गुलाबी, सफेद और लैवेंडर। इसकी मूल उत्पत्ति अफ्रीका मानी जाती है, लेकिन अब यह दुनिया के कई देशों में उगाया जाता है। इसकी बढ़ती मांग के कारण किसान भी अब इसकी व्यावसायिक खेती करने लगे हैं।
उत्तराखंड के तुलसी प्रकाश ने औषधीय पौधों की खेती से अपनी तक़दीर बदली। जानें उनके अनुभव और इस व्यवसाय के फ़ायदे।
गुलखैरा को अंग्रेजी में हॉलीहॉक कहते हैं लेकिन इसका वैज्ञानिक नाम एल्सिया रसिया है। ये गर्मियों में ऊंचे स्पाइक्स पर खिलते हैं। ये अपना जीवनकाल दो सालों में पूरा कर लेते हैं। इस फूल को वसंत ऋतु में और सर्दियों में घर के अंदर लगाया जाता है। गुलखैरा या हॉलीहॉक एशिया समेत यूरोप तक में उगाया जाता है, इसकी खेती (Gulkhaira Farming) की जाती है।
फूलों की सुंदरता भला किसे आकर्षित नहीं करती, मगर हर कोई इसे घर में उगा नहीं पाता है। क्योंकि इसमें मेहनत लगती है, मगर झांसी के अनिल शर्मा ने अपने शौक को पूरा करने के लिए एक दो नहीं, बल्कि छत पर 700 गमले लगाए हुए हैं। जानिए उनसे गुलाब की किस्मों से लेकर Terrace Gardening के टिप्स।
पारंपरिक फसलों की तुलना में औषधीय गुणों वाले पौधों की खेती ज़्यादा मुनाफ़ा देती है। ऐसी ही है गुलखैरा फूल की खेती। यही नहीं इससे मिट्टी भी अधिक उपजाऊ बनती है। यही वजह है कि धीरे-धीरे किसानों की रुचि ऐसे पौधों की खेती में बढ़ी है। औषधीय गुणों वाला पौधा गुलखैरा उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है। जानिए गुलखैरा फूल की खेती के बारे में।
रवि शर्मा ने अपने गांव आने के बाद फूलों की खेती को चुना। इसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया हुआ है। वो पॉलीहाउस में फूलों की खेती करते हैं।
फूलों की खेती करके किसान कम लागत में लंबे समय तक मुनाफ़ा अर्जित कर सकते हैं, क्योंकि एक बार इन्हें लगाने के बाद बार-बार फूल तोड़कर बेचा जा सकता है। फूलों की खेती इसलिए भी फाफ़ायदेमंद है क्योंकि फूलों की मांग लगातार बढ़ रही है। अन्य फूलों के साथ ही स्टेटिस फूल भी बहुत लोकप्रिय हो रहा है।
मिशन का मक़सद किसानों की आय बढ़ाना और व्यावसायिक स्तर पर लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देना है। साथ ही लैवेंडर का तेल बनाना है जो 10,000 रुपये प्रति लीटर में बिकता है। अन्य लोकप्रिय उत्पादों में दवाएं, अगरबत्ती, साबुन और एयर फ्रेशनर शामिल हैं।
लैवेंडर की खेती बहुत फ़ायदेमंद होती है। लैवेंडर अपने गुणों के कारण इत्र, साबुन और व्यक्तिगत देखभाल के लिए इस्तेमाल होने वाली चीज़ें बनाने में काम आता है। लैवेंडर से बनने वाले तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे भारत जैसे देशों में लैवेंडर की खेती में वृद्धि हुई है।
दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत, जंगली गेंदे के तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में फ़िलहाल, जंगली गेंदे के तेल का कुल सालाना उत्पादन क़रीब 5 टन है। बीते दशकों में उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के तराई के इलाकों में जंगली गेंदे की व्यावसायिक खेती की लोकप्रियता बढ़ी है।
जरबेरा फूल ने उड़ीसा के गंजम ज़िले की महिला किसानों की ज़िंदगी किस तरह से बदल दी और उन्हें आजीविका का साधन दिया, जानिए इस लेख में।
सूरजमुखी की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए सही वक़्त पर परपरागण होने का विशेष महत्व है। आमतौर पर परपरागण का काम भौरों और मधुमक्खियों के माध्यम से होता है। लेकिन जिस इलाके में प्रकृति के इन परपरागणकर्मियों की कमी हो, वहाँ किसानों के हाथ से परपरागण की क्रिया पूरी करनी चाहिए।
शामली में 62 बीघा ज़मीन पर फूलों की खेती करने वाले मारूफ़, बुआई-निराई-गुड़ाई और सिंचाई से लेकर फूलों को तोड़ने और उनके बंडल बनाकर मंडी में भेजने तक के सारे काम के लिए 25 से 30 लोगों को रोज़गार भी देते हैं।
नगालैंड की रहने वाली अमेनला भी अपने घर के पीछे लिलियम की खेती कर रही हैं। अमेनला को बचपन से ही फूलों से लगाव रहा है। फूलों के प्रति इसी प्यार ने उन्हें बागवानी के लिए प्रेरित किया।
प्रगतिशील किसान मोइनुद्दीन ने लखनऊ से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती को अपने व्यवसाय के रुप में चुना। कुछ साल परंपरागत खेती करने के बाद विदेशी फूलों की खेती उन्होंने शुरू कर दी।
सुशील कुमार कहते हैं कि आप गेंदे के फूल की खेती का कुछ इस तरह से प्रबंधन करें कि साल के 365 दिनों के लिए आपके पास फूल उपलब्ध हों। वह उन्नत तकनीक के इस्तेमाल से गेंदे के फूल की खेती करते हैं। गेंदे के फूल की खेती पर सुशील कुमार से विशेष बातचीत।