Gulkhaira Farming: औषधीय गुणों से भरपूर गुलखैरा फूल की खेती क्यों किसानों के लिए फ़ायदेमंद?

पारंपरिक फसलों की तुलना में औषधीय गुणों वाले पौधों की खेती ज़्यादा मुनाफ़ा देती है। ऐसी ही है गुलखैरा फूल की खेती। यही नहीं इससे मिट्टी भी अधिक उपजाऊ बनती है। यही वजह है कि धीरे-धीरे किसानों की रुचि ऐसे पौधों की खेती में बढ़ी है। औषधीय गुणों वाला पौधा गुलखैरा उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है। जानिए गुलखैरा फूल की खेती के बारे में।

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गेहूं, धान और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से इत्तर भी किसान अन्य पौधों की खेती की ओर रूख कर रहे हैं। इन्हीं में से है औषधीय पौधों की खेती। ऐसी ही है गुलखैरा फूल की खेती। जानिए इस फूल की खेती के बारे में ज़रूरी बातें।

जानकारों का ये भी कहना है कि लगातार खेत में एक जैसी ही फसल लगाने से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है। ऐसे में अगर धान या गेहूं की कटाई के बाद जब खेत खाली हो, तो उसमें औषधीय गुणों वाले पौधे लगा देने चाहिए। इसके दो फ़ायदे हैं, एक तो मिट्टी की उपर्वरता बढ़ेगी और किसानों को अतिरिक्त आय भी होगी।

औषधीय गुणों वाला ही पौधा है गुलखैरा जिसके सफेद, गुलाबी और बैंगनी फूल बेहद खूबसूरत होने के साथ ही औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं। गुलखैरा फूल की खेती पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में बड़े पैमाने पर की जाती है। अब इसके स्वास्थ्य लाभ और मुनाफ़े को देखते हुए धीरे-धीरे भारत में भी इसकी खेती शुरू हो चुकी है। ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश में गुलखैरा फूल की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है।

गुलखैरा के फूलों का इस्तेमाल

गुलखैरा के फूलों का इस्तेमाल सजावट के लिए तो किया ही जा सकता है, क्योंकि ये बेहद सुंदर होते हैं, लेकिन इसके अलावा गुलखैरा के फूल, पत्तियों, तने वगैरह का इस्तेमाल यूनानी दवा बनाने में भी किया जाता है। खांसी, बुखार और अन्य रोगों के इलाज में भी गुलखैरा के फूलों से बनी औषधि उपयुक्त मानी जाती है।

गुलखैरा फूल की खेती में कब की जाती है बुवाई?

  • खूबसूरत फूल वाले इस पौधे के बीजों को नवंबर महीने में बोया जाता है और अप्रैल-मई तक फसल तैयार हो जाती है।
  • बुवाई से पहले खरपतवार निकालकर खेत को साफ़ कर लेना चाहिए।
  • जब गुलखैरा की फसल पक जाती है तो इसकी पत्तियां और तने सूखकर खेत में गिर जाते हैं। फिर उन्हें एकत्र कर लिया जाता है।
  • इसकी ख़ासियत ये है कि ये जल्दी खराब नहीं होते हैं, तो सुखाकर इन्हें कई सालों तक रखा जा सकता है।
  • एक बार गुलखैरा की फसल प्राप्त कर लेने के बाद किसानों को दोबारा बीज नहीं खरीदने पड़ते, क्योंकि पौधों से बीज बन जाते हैं।

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गुलखैरा फूल की खेती के लिए जलवायु

गुलखैरा का पौधा कई जलवायु परिस्थितियों में उग सकता है। हालांकि, ये मध्यम बारिश और धूप के साथ समशीतोष्ण जलवायु पसंद करता है। गुलखैरा फूल की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 15°C से 25°C के बीच माना जाता है। गुलखैरा कई तरह की मिट्टी में उग सकता है, लेकिन 6.5 से 7.5 पीएच के बीच अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी इसके  विकास के लिए अच्छी मानी जाती है।

गुलखैरा फूल की खेती के लिए बीज

गुलखैरा की खेती के लिए अनुशंसित बीज दर 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। फंगल संक्रमण को रोकने के लिए बुआई से पहले बीजों को 2 ग्राम/किलो बीज की दर से कैप्टान या थीरम जैसे फफूंदनाशकों से उपचारित करने की सलाह दी जाती है।

गुलखैरा फूल की खेती में बीज बोने की विधि

बीजों को पंक्तियों या क्यारियों में 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर छिटकवा या ड्रिलिंग विधि से बोना चाहिए। प्रसारण विधि में तैयार भूमि पर समान रूप से बीज बिखेरने चाहिए। ड्रिलिंग विधि में मिट्टी में नाली या चैनल बनाना और उनके साथ नियमित अंतराल पर बीज डालने चाहिए।

गुलखैरा की खेती के लिए पौधों और पंक्तियों के बीच क्रमश 30 सेंटीमीटर बाय 30 सेंटीमीटर का अंतर होना सही माना जाता है। ये दूरी पौधों के विकास, सूर्य के प्रकाश के प्रवेश, वायु परिसंचरण और खरपतवार नियंत्रण के लिए बेहतर माना जाता है। लाइन बुआई में 30 सेंटीमीटर से 45 सेंटीमीटर की दूरी के साथ पंक्तियां बनाना और पंक्तियों के भीतर 15 सेंटीमीटर से 20 सेंटीमीटर की दूरी के साथ 1 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर की गहराई तक बीज बोना उपयुक्त होता है।

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गुलखैरा फूल की खेती में सिंचाई

गुलखैरा एक सूखा-सहिष्णु पौधा है जिसमें ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये ज़रूर है कि अंकुरण, फूल आने और बीज बनने जैसे महत्वपूर्ण चरणों में पर्याप्त पानी पौधों को दिया जाना ज़रूरी होता है। सिंचाई और जल प्रबंधन के कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

  • पानी बचाने और खरपतवार को रोकने के लिए ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग करें।
  • मिट्टी की नमी और मौसम की स्थिति के आधार पर, 10-15 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करें।
  • जलभराव और ज़्यादा पानी भरने से बचें, क्योंकि ये जड़ सड़न और फंगल रोगों का कारण बन सकते हैं।
  • पूरे फसल चक्र के दौरान मिट्टी में नमी का स्तर 60-70 फ़ीसदी बनाए रखें।

गुलखैरा क बाज़ार 

गुलखैरा फूल की दवा कंपनियों में अच्छी मांग है। कभी-कभी डीलर इस औषधीय पौधे गुलखैरा फूल की खेती के लिए किसानों के साथ फसल पूर्व मूल्य समझौता भी करते हैं।

इसकी खेती में ज़्यादा लागत भी नहीं आती, इसलिए ये किसानों के लिए हर तरह से फ़ायदे का सौदा है। किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ गुलखैरा फूल की खेती कर सकते हैं।

गुलखैरा के फूलों से कमाई

औषधीय गुणों के कारण ही इसके फूलों की बहुत मांग है। आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि इसके एक क्विंटल फूल की बाज़ार में कीमत 10 हज़ार रुपए तक है और एक एकड़ में खेती से 15 क्विंटल तक फूल निकल जाते हैं। यानि एक एकड़ में खेती करके किसान सिर्फ़ फूलों से ही 1.5 लाख रुपये तक का मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इसके अलावा, बीज, पत्ते और तने को बेचकर अतिरिक्त कमाई की जा सकती है। गुलखैरा के पौधों को दूसरी फसल के साथ भी लगाया जा सकता है।

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