मोइनुद्दीन सिद्दीकी ने चुनी विदेशी फूलों की खेती, वकालत छोड़ आज बने किसानों के रोल मॉडल
विदेशी फूलों की खेती से लाखों का टर्नओवर
प्रगतिशील किसान मोइनुद्दीन ने लखनऊ से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती को अपने व्यवसाय के रुप में चुना। कुछ साल परंपरागत खेती करने के बाद विदेशी फूलों की खेती उन्होंने शुरू कर दी।
यूपी के किसान मोइनुद्दीन सिद्दीकी विदेशी फूलों की खेती के कारण किसानों के बीच लोकप्रिय हैं। बाराबंकी ज़िले के रहने वाले मोइनुद्दीन के फूल लखनऊ की सड़क से लेकर दिल्ली के बाज़ार की शान बने हुए हैं। मोइनुद्दीन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी सम्मान मिल चुका है। प्रगतिशील किसान मोइनुद्दीन से किसान ऑफ़ इंडिया ने विशेष बातचीत की। आइए जानते हैं इस कार्यक्रम में उन्होंने क्या कुछ कहा।
वकालत छोड़कर कैसे शुरु की फूलों की खेती?
प्रगतिशील किसान मोइनुद्दीन ने बताया कि उन्हें अपने पुश्तैनी गाँव दफेदार से काफ़ी लगाव है। उन्होंने लखनऊ से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती को अपने व्यवसाय के रुप में चुना। उन्होंने सबसे पहले परंपरागत खेती शुरु की थी, लेकिन खेती में उनको कुछ ज़्यादा फ़ायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने परम्परागत खेती छोड़ फूलों की खेती शुरु कर दी।
विदेशी फूलों की खेती में कितनी लगती है लागत?
मोइनुद्दीन ने बताया कि नए किसान को छोटी जगह से शुरुआत करनी चाहिए। उन्होंने फूलों की खेती की शुरुआत 1 एकड़ ज़मीन से की थी। सबसे पहले ग्लेडियोलस फूल की खेती से शुरुआत की। उस समय उन्हें लगभग डेढ़ लाख रुपये तक का खर्चा आया था। यह खर्च किसान को सिर्फ़ एक बार आता है, जैसे-जैसे हम फूलों की खेती चालू करते हैं तो हमारे पास बीज आता-जाता है। हर साल हमारे पास बीज की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए खर्चा कम हो जाता है। इस फसल में तीन महीने का समय लगता है।
विदेशी फूलों की खेती में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
ग्लेडियोलस एक सीज़नल फूल है। इन फूलों की बुआई का सही समय 15 अगस्त से 15 नवंबर तक रहता है। हम इस बात का ध्यान रखें कि जब हमारा फूल निकले तब शादियों का समय चल रहा हो, जिससे हमारा फूल आसानी से बाज़ार में बिक जाए। खेत की जुताई अच्छे तरीके से करनी चाहिए। जुताई होने के बाद बैड बनाना जरुरी होता है। 15 दिन के बाद पौधा निकल आता है तो अच्छे से निराई करनी चाहिए। मोइनुद्दीन ने आगे बताया कि 10 से 12 दिन में सिंचाई करनी चाहिए।
पौधा निकलता है तो हमको एक महीने के अंदर एक बार पंजीसाइट का इस्तेमाल करना चाहिए। पंजीसाइट 15-15 दिन पर करते रहना चाहिए, जिससे पौधों में कोई बीमारी नहीं होती। फूल सुंदर और स्वस्थ निकलता है। हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि पौधों में कोई बीमारी लगी हो तो उसका इलाज जल्दी करें। जरबेरा की खेती के लिए दोमट मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए।
विदेशी फूलों को बाज़ार में कीमत कितनी मिलता है?
मोइनुद्दीन ने फूलों के बाज़ार के बारे में बताया कि शादियों के सीज़न में एक ग्लेडियोलस फूल की कीमत 8 से 10 रुपये रहती है। वहीं, जरबेरा फूल की कीमत 10 से 15 रुपये के बीच रहती है। जब शादियां नहीं होती हैं तो यह फूल 3 से 4 रुपये का बिकने लगता है।
कई हज़ार किसानों को लिया साथ
मोइनुद्दीन ने बातचीत के दौरान आगे कहा कि जब उन्होंने विदेशी फूलों की खेती की शुरुआत की, तब वो पूरे बाराबंकी ज़िले में अकेले किसान थे। कुछ समय बाद किसान उनसे जुड़ना शुरू हुए। देखते-देखते सिर्फ़ बाराबंकी के 2000 से 2500 तक किसान उनसे जुड़ गए। वो किसान पहले खेती में पैसा नहीं बचा पा रहा थे, आज वो किसान लाखों में रुपए बचा पा रहे हैं।
मोइनुद्दीन ने लगाया यूपी का पहला पॉली हाउस
मोइनुद्दीन ने बताया कि हॉलैंड के विदेशी फूल जरबेरा की खेती करने के लिए 2009 में प्रदेश का पहला पॉलीहाउस लगाया था। मोइनुद्दीन ने आगे बाताया कि वो देश के अलग-अलग राज्यों से आने वाले किसानों को पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने की ट्रेनिंग भी देते हैं। उनके पास देश के अलग-अलग राज्यों से किसान ट्रेनिंग लेने आते हैं। उनमें से सबसे ज़्यादा किसान बिहार राज्य के होते हैं।
पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने में मदद करती है सरकार
जब हम पॉलीहाउस में जरबेरा की खेती करते हैं तो एक एकड़ पॉलीहाउस में लगभग 60 लाख रुपये तक का खर्चा आता है। सरकार की तरफ से 50 फ़ीसदीअनुदान मिलता है। इस लागत में फूल के बीज और पौधों का खर्चा भी शामिल होता है। इस कारण छोटा किसान ग्लेडियोलस के फूलों की खेती से शुरुआत कर सकता है।
छोटे किसान विदेशी फुलों की खेती कैसे शुरू करें?
छोटे किसानों को ग्लेडियोलस के फूलों की खेती से शुरुआत करनी चाहिए। यह फूल खुले खेत में भी हो जाते हैं। इस कारण किसान को इन से ही शुरुआत करनी चाहिए। इन फूलों से रुपये कमाकर पॉलीहाउस की तरफ बढ़ना चाहिए।
फूलों की खेती के कारण बने गांव के प्रधान
मोइनुद्दीन ने बाताया कि जब पूरा गाँव फूलों की खेती करने लगा था, सब लोग मिल जुलकर काम रहे थे। गाँव वालों के आग्रह पर उन्होंने 10 साल गांव का प्रधान के रूप में काम भी किया।
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