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कहानी शुरू होती है कर्नाटक के विजयपुर जिले के अर्खेरी गाँव की उस महिला से, जो कभी छोटी-सी ज़मीन पर सिर्फ अनाज उगाकर अपने बच्चों का पेट पालती थीं — डोंडुबाई हन्नू चव्हाण। आज वही डोंडुबाई अपने गाँव में नहीं, पूरे ज़िले में मिसाल बन चुकी हैं।
डोंडुबाई की आवाज़ में ठहराव और आत्मविश्वास दोनों है। जब वो हँसते हुए कहती हैं, “हमारे खेत को लोग अब खेत नहीं, स्कूल कहते हैं!”, तो साफ समझ आता है कि उन्होंने सिर्फ मिट्टी से नहीं, अपनी ज़िंदगी के दर्द और सपनों से खेती की है।
शुरुआत: आँसुओं से भरी ज़मीन
डोंडुबाई याद करती हैं,
“पहले सिर्फ बाजरा, मक्का उगाते थे। बारिश न हो तो सब कुछ खत्म। हाथ खाली, आँखों में आँसू, बच्चों को देखकर दिल बैठ जाता था।”
तब सालाना कमाई थी ₹53,800 — इतने में परिवार की ज़रूरतें पूरी करना मुश्किल था। उनके चार बच्चे, पति, और खेत की ज़िम्मेदारी सब उनके कंधों पर थी। “एक वक्त ऐसा आया कि लगा, अब खेती छोड़ दूँ। पर मन ने कहा — डोंडुबाई, अगर आज हार गई, तो फिर किससे उम्मीद रखेगी?”
मोड़: सीखने की आग
एक NGO ने उन्हें विजयपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) की ट्रेनिंग में भेजा। वहाँ पहली बार डोंडुबाई ने ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ का नाम सुना — यानी ऐसी खेती जिसमें खेती, पशुपालन, बागवानी, मत्स्य पालन सब कुछ शामिल हो।
“मुझे समझ आया कि सिर्फ एक फसल पर भरोसा रखोगे, तो भगवान के भरोसे हो जाओगे। अगर गाय, बकरी, मुर्गी, मछली, बागवानी सब जोड़ोगे, तो भगवान भी देखेगा — बहन, ये तो खुद मेहनत कर रही है!”
डोंडुबाई ने KVK की मदद से एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाई और नई नस्लों को अपने फार्म में जगह दी —
- मुर्गी पालन: 70 स्वर्णधारा नस्ल की मुर्गियाँ
- बकरी पालन: शिरोही और उस्मानाबादी नस्ल
- गाय पालन: मुर्रा और गिर नस्ल
- मछली पालन: फार्म तालाब में, KVK से मिले प्रशिक्षण के बाद
“नई टेक्नोलॉजी ज़्यादा नहीं अपनाई, लेकिन जो सीखा है, उसे सही तरीके से किया। एकीकृत कृषि प्रणाली की वजह से छोटे-छोटे बदलाव से बड़ा फर्क आया।”
बदलाव: खेत की धरती पर नई कहानी
आज डोंडुबाई के खेत की तस्वीर बदल चुकी है।
- मक्का, बाजरा जैसी फ़सलें
- अमरूद, अंजीर, पपीता, ड्रमस्टिक, करी पत्ता के बाग
- मुर्रा और गिर नस्ल की गायें
- शिरोही और उस्मानाबादी नस्ल की बकरियाँ
- 70 स्वर्णधारा नस्ल की मुर्गियाँ
- फार्म तालाब में मछली पालन
“अब लोग पूछते हैं, बहन, तुम्हारे यहाँ फार्म है या मेला!” — वो हँसकर बताती हैं।
हर दिन की जद्दोजहद
उनके पास बोरवेल और फार्म तालाब है, जिससे सिंचाई होती है। लेकिन यह सब आसान नहीं था।
“कोई लोन नहीं लिया, कोई सब्सिडी नहीं। मुर्गी-बकरी बेच-बेचकर पैसे जोड़े, फिर आगे का काम बढ़ाया। एकीकृत कृषि प्रणाली में मेहनत तो ज़्यादा है, लेकिन उसका फल भी मीठा है।”
कमाई की उछाल: आँसू से मुस्कान तक
2016-17 में ₹53,800 की सालाना कमाई से, 2020-21 में ₹3,64,200 तक पहुँचना आसान नहीं था।
“अब बच्चों की पढ़ाई, घर की जरूरतें, दवा-दारू, सब आराम से चल जाता है। और जब कभी हाथ में थोड़ा बचत आता है, तो लगता है — देख डोंडुबाई, तेरी मेहनत और एकीकृत कृषि प्रणाली रंग लाई!”
पुरस्कार और सम्मान
धारवाड़ कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ महिला किसान’ का अवार्ड दिया।
“जब अवार्ड मिला, गाँव के लोग बोले — बहन, अब तू टीवी में आएगी! मैंने हँसकर कहा, भाई, हमें टीवी नहीं, खेत में दिखना है!”
परिवार की ताकत
डोंडुबाई कहती हैं,
“हमारे घर में नौ लोग हैं। मैं और मेरे पति दोनों खेत में खटते हैं। बेटियाँ पढ़ रही हैं, बेटे खेत में हाथ बँटाते हैं। सबसे बड़ी बात — हम सब साथ हैं।”
उनके पति मार्केटिंग संभालते हैं, बाजार में जाकर दूध, अंडे, सब्ज़ियाँ और मछली बेचते हैं।
यह भी एकीकृत कृषि प्रणाली का ही हिस्सा है कि उत्पाद विविध हैं और आय के स्रोत कई।
दूसरे किसानों के लिए डोंडुबाई की बातें
- “सरकार का इंतज़ार मत करो। जो तुम्हारे पास है, उससे शुरू करो।”
- “NGO, कृषि विज्ञान केंद्र — इनसे सीखो। हम अनपढ़ हैं, पर सीखने की कोई उम्र नहीं होती।”
- “एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाओ — ये खेती को जोखिम से बचाती है।”
- “छोटे-छोटे कदम उठाओ, बड़े सपने खुद पूरे होने लगते हैं।”
सफलता के 5 मंत्र
डोंडुबाई का मंत्र | आपके लिए सीख |
“एक ही फसल मत उगाओ, नुकसान में डूब जाओगे।” | एकीकृत कृषि प्रणाली से विविधता लाओ। |
“सीखो, ट्रेनिंग लो, डर मत रखो।” | एकीकृत कृषि प्रणाली को समझो और अपनाओ। |
“अपने संसाधनों से शुरू करो, लोन का इंतज़ार मत करो।” | यही एकीकृत कृषि प्रणाली का मूल मंत्र है। |
“परिवार को साथ लाओ, मिलकर काम करो।” | एकीकृत कृषि प्रणाली में टीमवर्क ज़रूरी है। |
“छोटे-छोटे कदम उठाओ, बड़े सपने पूरे होते हैं।” | संतुलित और निरंतर प्रयास एकीकृत कृषि प्रणाली का आधार हैं। |
डोंडुबाई का दिल छू लेने वाला संदेश
“मेहनत छोड़ोगे, तो खेत खाली रह जाएगा। सीखोगे, मेहनत करोगे, तो वही खेत तुम्हें राजा बना देगा!”
वो बताती हैं,
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी कम ज़मीन से इतना कर पाऊँगी। लेकिन हर बार जब मुश्किल आई, मैंने अपने बच्चों को देखा, और मन में कहा — डोंडुबाई, हारने का हक नहीं है।”
अंत में… एक किसान की सच्ची जीत
डोंडुबाई हन्नू चव्हाण की कहानी आँसू, पसीने और हिम्मत की कहानी है। वो दिखाती हैं कि ज़िंदगी में संसाधन कम हों, पढ़ाई कम हो, सरकारी मदद न मिले — फिर भी अगर दिल में आग हो, सीखने की लगन हो और हाथ में मेहनत हो, तो कोई किसान पीछे नहीं रह सकता।
एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर डोंडुबाई ने सिर्फ अपनी ज़िंदगी नहीं बदली, बल्कि अपने गाँव के किसानों को भी प्रेरित किया।
तो किसान भाई-बहनों, अगर आप भी अपने खेतों को सिर्फ अनाज की मंडी तक सीमित रखते आए हैं, तो डोंडुबाई से सीखिए —
बकरी पालिए,
मुर्गी पालिए,
सब्ज़ियाँ उगाइए,
मछली पालिए,
और अपनी मेहनत से अपने सपनों को हकीकत में बदलिए!
“जो थोड़ा-थोड़ा बढ़ता है, वही राजा बनता है।” और जो एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाता है, वही हर मौसम में टिकता है।
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