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प्राकृतिक खेती आज सिर्फ़ एक विकल्प नहीं, बल्कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और ग्रामीण आत्मनिर्भरता की ओर लौटने का रास्ता बन चुकी है। बुरहानपुर जिले में इसी दिशा में एक प्रेरणादायक कदम उठाया गया है, जहां राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत महिला किसानों को ‘कृषि सखियों’ के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह पहल न केवल महिलाओं को सशक्त बना रही है, बल्कि गांव-गांव में टिकाऊ खेती के संदेश को भी फैलाने का माध्यम बन रही है।
महिला किसानों के लिए एक नई पहल (A new initiative for women farmers)
बुरहानपुर जिले में आयोजित राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत कृषि विज्ञान केंद्र में विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। इस शिविर में कृषि सखियों को प्राकृतिक खेती की विधियों और उनसे जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी दी गई। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य था कि महिलाएं खुद सक्षम बनें और अन्य किसानों को भी प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक कर सकें।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमोल देशमुख और डॉ. संदीप सिंह ने सत्रों का संचालन किया और प्राकृतिक खेती की आवश्यकता, इसके फ़ायदे और व्यावहारिक तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया। उप परियोजना संचालक श्री आर.एस. निगवाल ने एमपी किसान पोर्टल और योजना से संबंधित तकनीकी जानकारी साझा की।
क्यों ज़रूरी है राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन? (Why is the National Natural Farming Mission important?)
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का उद्देश्य केवल रासायनिक खेती से हटकर खेती करना नहीं है, बल्कि यह किसानों को कम लागत में अधिक लाभ, स्वास्थ्यवर्धक उत्पादन और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने का अवसर देता है। इस मिशन के अंतर्गत खेती को पर्यावरण अनुकूल बनाना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और टिकाऊ कृषि प्रणाली को बढ़ावा देना प्रमुख लक्ष्य हैं।
इस मिशन की सबसे खास बात यह है कि इसके केंद्र में महिलाएं यानी कृषि सखियां हैं, जो प्रशिक्षण के बाद अपने-अपने गांवों में प्राकृतिक खेती की ब्रांड एंबेसडर की तरह कार्य करेंगी।
कृषि सखियों को क्या सिखाया जा रहा है? (What is being taught to Krishi Sakhis?)
कृषि सखियां वह महिलाएं हैं जिन्हें प्राकृतिक खेती की बारीकियों में प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्हें खेत की तैयारी से लेकर जैविक कीटनाशक, फ़सल चक्र, मृदा स्वास्थ्य, बीज संरक्षण, पशुपालन, बायो-इनपुट की तैयारी और कृषि संचार कौशल तक के अलग-अलग मॉड्यूल में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
यह सखियां DAY-NRLM और MANAGE के तहत होने वाले प्रशिक्षण के बाद दक्षता परीक्षा देंगी। सफल सखियां “पैरा-विस्तार कार्यकर्ता” के रूप में प्रमाणित की जाएंगी और वे किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में योगदान देंगी।
जीवामृत और बीजामृत: जैविक खेती की रीढ़ (Jeevamrut and Bijamrit: the backbone of organic farming)
प्राकृतिक खेती में जीवामृत और बीजामृत दो अहम स्तंभ माने जाते हैं। प्रशिक्षण के दौरान इन दोनों जैविक घोलों को बनाना और प्रयोग करना सिखाया गया।जीवामृत एक पोषक जैविक घोल है जो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या को बढ़ाता है और पौधों को रोगों से बचाता है। इसके लिए देसी गाय का गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन और खेत की मिट्टी का उपयोग किया जाता है।
वहीं बीजामृत बीजों को सुरक्षित और फफूंद रहित बनाता है। इससे पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और बीज अंकुरण दर बेहतर होती है। इसके लिए गोबर, गोमूत्र, बुझा हुआ चूना और मिट्टी का उपयोग होता है।
महिला सशक्तिकरण के साथ खेती का नवाचार (Farming innovation with women empowerment)
बुरहानपुर में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत हो रहे इस प्रशिक्षण का सबसे बड़ा असर यह है कि अब महिलाएं खेती के क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। कृषि सखियां अब केवल खेतों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समुदाय में ज्ञान और बदलाव की वाहक बन रही हैं। प्रशिक्षण में शामिल महिलाओं ने साझा किया कि उन्होंने पहली बार इतने व्यावहारिक और ज्ञानवर्धक तरीके से खेती को समझा। अब वे न केवल अपने खेत में प्राकृतिक खेती अपनाएंगी, बल्कि अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगी।
प्राकृतिक खेती का भविष्य और संभावनाएं (Future and possibilities of natural farming)
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के ज़रिए सरकार किसानों को एक ऐसा रास्ता दिखा रही है, जो कम लागत, बेहतर उत्पादन और पर्यावरण संतुलन तीनों को साथ लेकर चलता है। टिकाऊ खेती, जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य और ग्रामीण आजीविका जैसे मुद्दों पर यह मिशन सीधा असर डाल रहा है।
विशेष रूप से महिलाओं को इससे जोड़ना इस योजना को और प्रभावशाली बना देता है, क्योंकि जब एक महिला किसान सशक्त होती है, तो उसका पूरा परिवार और समुदाय उससे लाभ उठाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन बुरहानपुर जैसे जिलों में न सिर्फ़ खेतों की दिशा बदल रहा है, बल्कि समाज की सोच को भी प्रभावित कर रहा है। कृषि सखियां इस बदलाव की केंद्रबिंदु हैं, जो न केवल जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं बल्कि महिलाओं को खेती के क्षेत्र में नेतृत्व भी दिला रही हैं।
अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले समय में प्राकृतिक खेती एक नई क्रांति बन सकती है — जहां महिला किसान नायक होंगी, खेती रसायन मुक्त होगी, और पर्यावरण फिर से सांस ले पाएगा।
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