Lavender Farming: लैवेंडर की खेती किसानों को आर्थिक रूप से बेहतर बनाने में कैसे मदद करती है?

लैवेंडर की खेती बहुत फ़ायदेमंद होती है। लैवेंडर अपने गुणों के कारण इत्र, साबुन और व्यक्तिगत देखभाल के लिए इस्तेमाल होने वाली चीज़ें बनाने में काम आता है। लैवेंडर से बनने वाले तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे भारत जैसे देशों में लैवेंडर की खेती में वृद्धि हुई है।

लैवेंडर की खेती lavender farming

सुगंध उद्योग को हमेशा उच्च गुणवत्ता वाले तेलों की ज़रूरत होती है, जिसकी वजह से लैवेंडर की खेती एक आकर्षक व्यवसाय बन जाती है। उचित देखभाल और खेती की तकनीकों के साथ, लैवेंडर के पौधे 15 साल या उससे ज़्यादा समय तक तेलों का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे ये किसानों के लिए एक स्थायी और लाभदायक फसल बन जाती है। जैसे-जैसे सुगंध उद्योग फल-फूल रहा है, लैवेंडर की खेती किसानों के लिए एक बढ़िया विकल्प बन रही है। 

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (CSIR-IIIM) जम्मू में प्लांट साइंसेज एंड एग्रोटेक्नोलॉजी डिवीजन (PSA) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुमीत गैरोला भारत में लैवेंडर की शुरूआत के बारे में बताते हैं। वो कहते हैं कि लैवेंडर को भारत में पहली बार 1940 के दशक की शुरुआत में कश्मीर में कर्नल सर रामनाथ चोपड़ा ने पेश किया था।

लैवेंडर की खेती lavender farming

लैवेंडर की गुणवत्ता यूरोपीय मानकों के बराबर पाई गई। बाद में 1960 के दशक में डॉ. अख्तर हुसैन बुल्गारिया से लैवेंडर के कुछ और पौधे लाए। दशकों के वैज्ञानिक शोध के बाद, काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (CSIR-IIIM) जम्मू के वैज्ञानिकों ने लैवेंडर की एक किस्म विकसित की, जिसे “RRL12” के रूप में जाना जाता है।kisan of india twitter

ये जम्मू-कश्मीर और हिमालय के दूसरे हिस्सों की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए बेहतरीन माना जाती है। वर्तमान में केवल इस किस्म को जम्मू और कश्मीर के साथ-साथ उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों सहित देश के अन्य हिस्सों में उगाया जा रहा है। 

लैवेंडर की किस्म आरआरएल 12

लैवेंडर की किस्म RRL12 को इसकी उच्च आवश्यक तेल सामग्री, बेहतर सुगंध और भारतीय जलवायु परिस्थितियों के लिए बेहतर अनुकूलन क्षमता के लिए विकसित किया गया है। आरआरएल 12 से लैवेंडर तेल उत्पादन की उपज और गुणवत्ता में वृद्धि करके भारत में लैवेंडर तेल उद्योग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू की शोध टीम ने लैवेंडर की इस नई किस्म को विकसित करने के लिए आधुनिक प्रजनन तकनीकों और जीनोमिक्स उपकरणों का इस्तेमाल किया। उम्मीद है कि आरआरएल 12 लैवेंडर तेल की खेती और प्रसंस्करण में शामिल छोटे पैमाने के किसानों और उद्यमियों की आजीविका को बढ़ावा देगा।

Lavender Farming लैवेंडर की खेतीkisan of india instagram

व्यावसायिक खेती में उछाल है 

लैवेंडर की खेती किसानों को वित्तीय रूप से आगे बढ़ने में मदद कर सकती है। ये एक ऐसी फसल है जिसकी दुनिया भर में मांग बढ़ रही है। कुल मिलाकर, लैवेंडर की खेती किसानों को अपनी आय में विविधता लाने और अपना लाभ बढ़ाने का मौक़ा देती है। इसके अलावा लैवेंडर की फसल पर्यावरण के अनुकूल है, जो इसे स्थायी कृषि पद्धतियों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है। यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे लैवेंडर की खेती किसानों को आर्थिक रूप से फ़ायदा पहुंचाती है।

1. अधिक उपज देने वाली फसल: लैवेंडर प्रति हेक्टेयर 5 से 8 टन सूखे फूलों का उत्पादन कर सकता है। इसका मतलब है कि किसान कम जमीन से अच्छी आय पा सकते हैं।

2. उच्चमूल्य वाली फसल: लैवेंडर एक ऐसी फसल है जिसकी बाजार में अच्छी क़ीमत मिल सकती है। लैवेंडर के फूलों से निकाले गए ज़रूरी तेल की दुनिया भर में मांग है, जिससे ये किसानों के लिए एक लाभदायक फसल बन जाती है। 

3. उच्च लाभ मार्जिन: लैवेंडर कम लागत में उच्च मूल्य वाली फसल है। लैवेंडर का तेल और सूखे फूल अच्छी कीमत पर बेचे जा सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप किसानों के लिए उच्च लाभ का मौका होता है। 

4. सतत खेती: लैवेंडर एक सूखा प्रतिरोधी फसल है जिसे दूसरी फसलों की तुलना में कम पानी की ज़रूरत होती है, जिससे ये एक टिकाऊ खेती का विकल्प बन जाता है। किसान पानी बचा सकते हैं और अपने खर्च को कम कर सकते हैं, जिससे उन्हें ज़्यादा लाभ होता है। 

5. कम रखरखाव: लैवेंडर को न्यूनतम रखरखाव की ज़रूरत होती है। ये कई वर्षों तक बढ़ सकता है। इससे किसानों की श्रम लागत में कमी आती है। 

5. मूल्य वर्धित उत्पाद: लैवेंडर के फूल और आवश्यक तेल बेचने के अलावा, किसान मूल्य वर्धित उत्पाद जैसे साबुन, लोशन और दूसरे कॉस्मेटिक उत्पाद भी बना सकते हैं। ये किसानों को आय के कई स्रोत प्रदान करता है। इस तरह ये एक उत्पाद पर निर्भर होने के जोखिम को कम करता है। उत्पाद बाजार में ज़्यादा कीमत पर बिक सकते हैं, जिससे किसान का मुनाफा बढ़ सकता है।  

6. बाजार की मांग: वैश्विक स्तर पर लैवेंडर उत्पादों की काफी मांग है। ये किसानों को उनकी उपज के लिए एक तैयार बाजार देता है, जिससे आय का स्त्रोत बना रहता है। 

7. पर्यटन: लैवेंडर फार्म भी पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। ये किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत हो सकता है। कई लैवेंडर फ़ार्म पर्यटन की पेशकश करते हैं और आने वालों को लैवेंडर उत्पाद बेचते हैं। इससे किसानों के लिए एक नया ज़रिया बनता है। 

लैवेंडर की खेती lavender farming

लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिशों से कई किसानों को अपनी फसल में विविधता लाने और ज़्यादा आय पाने में मदद मिली है। भारत सरकार किसानों के बीच लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने और उन्हें सहायता देने के लिए कई पहल कर रही है।

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इसके अलावा, सरकार ने किसानों को लैवेंडर की खेती, इसके लाभ और इसकी बाज़ार क्षमता के बारे में शिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण और विस्तार कार्यक्रम भी शुरु किए हैं। सरकार कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं और परिवहन में मदद करके लैवेंडर उपज के व्यापार की सुविधा भी देती है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों को लैवेंडर की खेती के लिए प्रोत्साहित करने और उन्हें तकनीकी और वित्तीय सहायता देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।

1. राष्ट्रीय बागवानी मिशन: ये सरकारी योजना किसानों को लैवेंडर सहित नए बागों और पेड़ लगाने के साथ ही फसलों के लिए वित्तीय सहायता देती है। सरकार ने किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक सब्सिडी योजना भी शुरू की है। इसमें लैवेंडर की अच्छी उपज वाली किस्मों और उन्नत फसल प्रबंधन तकनीकों का इस्तेमाल शामिल है। 

2. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण: प्राधिकरण निर्यात के लिए कृषि और बागवानी फसलों के विकास के लिए किसानों को वित्तीय सहायता देता है।

3. नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट): बैंक लैवेंडर की खेती और संबंधित गतिविधियों के लिए किसानों को ऋण सुविधा देता है।

4. आरकेवीवाई (राष्ट्रीय कृषि विकास योजना): इस योजना का उद्देश्य लैवेंडर की खेती को समर्थन और बढ़ावा देना और किसानों को वित्तीय सहायता देना है। 

5. राज्य कृषि विभाग: कई राज्य कृषि विभाग लैवेंडर की खेती सहित कृषि और बागवानी फसलों के लिए सब्सिडी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। 

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इन विकल्पों के अलावा, किसान दूसरे निजी वित्त पोषण विकल्पों और बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से मिलने वाले ऋण का भी पता लगा सकते हैं। वित्तीय सहायता के विकल्प चुनने से पहले अच्छी तरह जाँच पड़ताल करने की सिफारिश की जाती है।  

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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