Maize Cultivation: मक्के की खेती का उन्नत तरीक़ा क्या है, जानिए प्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार से

प्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार मक्के की खेती (Maize cultivation) में उन्नत तकनीकों से उच्च उत्पादन ले रहे हैं और आलू बीज उत्पादन में भी सराहे गए हैं।

मक्के की खेती Maize cultivation

खेती-किसानी में भी अलग जमकर नए एक्सपेरिमेंट हो रहे हैं और इसी का नतीजा है कि कई किसान अधिक उत्पादन करने में समक्ष हुए है। ऐसे प्रगतिशील किसानों से दूसरे किसानों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के ब्रजेश कुमार भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान है जो मक्के की खेती (Maize cultivation) में उन्नत तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसके साथ ही वो आलू का बीज उत्पादन कर रहे हैं जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। ब्रजेश कुमार मक्के की किन किस्मों का उत्पादन कर रहे हैं और किस तरीके से करते हैं इसकी बुवाई, इन सब मुद्दों पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

प्रशिक्षण के बाद शुरू किया मक्के की खेती का काम

ब्रजेश कुमार एक किसान परिवार से आते हैं और उनके पिता भी मक्के की खेती (Maize cultivation) करते थे। मगर उन्हें पिता के खेती करने का तरीक़ा पसंद नहीं था, तो उन्होंने अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद 2010 में खेती को पेशा बनाने की सोची। मगर इससे पहले की वो मक्के की खेती (Maize cultivation) शुरू करते उन्होंने नई-नई तकनीकों के बारे में जानकारी जुटाई। ब्रजेश कहते हैं कि वो कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली गए।

पूसा कृषि मेले में भी गए और वहां देखा की कई किसानों को अच्छी खेती के लिए सम्मानित किया जा रहा है, कई किसानों ने अपना स्टॉल लगाया हुआ है। फिर कृषि विज्ञान केंद्र में ही उन्होंने कई तरह का प्रशिक्षण लिया, जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन, मशरूम उत्पादन, आलू का बीज उत्पादन आदि। प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने खेती को पारंपरिक खेती की बजाय एक स्टार्टअप के रूप में शुरू किया।

गर्मियों में मक्के की खेती 

ब्रजेश कुमार बताते हैं कि वो जायद में मक्के की बुवाई करते हैं और उनके इलाके में बड़े पैमाने पर किसान इसी समय बुवाई करते हैं, दरअसल, वो आलू की फ़सल कटने के बाद मक्के की खेती (Maize cultivation) करते हैं। वो बताते हैं कि गर्मियों के मौसम में कुछ खेत को खाली छोड़ देते हैं और बाकी में मक्के की खेती (Maize cultivation) करते हैं। अपने इस्तेमाल के लिए वो थोड़ी-बहुत सब्ज़ियां भी उगाते हैं। ब्रजेश 30 एकड़ में मक्का लगाते हैं और इसकी बुवाई 25 फरवरी के बाद बुवाई शुरू हो जाती है।

मक्के की 3-4 किस्में

ब्रजेश कुमार बताते हैं कि उनके पास मक्के की 3-4 किस्में हैं। 9108 है, जिसे सबसे ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं यानी सबसे ज़्यादा इसी वैरायटी को लगाते हैं। इसके अलावा 9208, 9248 भी लगाते हैं। उनके पास पायनियर की 1899 किस्म भी है। हालांकि वो बताते हैं कि पहली पसंद 9108 ही है, जिसे वो पहले से ही लगाते आ रहे हैं, बाकी वैरायटी को लगाकर देखते हैं कि उसका परिणाम कैसा है। अगर अच्छा उत्पादन होता है तो उसे आगे लगाते हैं।

मक्के की खेती चारे के लिए

ब्रजेश का कहना है कि जब शुरू में भुट्टा तोड़कर वो मंडी में भेजते हैं, तो बाकि बचे पौधों को हरे चारे के रूप में गौशाला भेज देते हैं। इसके अलावा कुछ मक्का को पकाकर भुट्टा तोड़ लेने के बाद में पौधे को खेत में ही नष्ट कर देते हैं यानी उसे खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। पहले भुट्टा तोड़ा जाता है फिर खेत में मल्चर चला दिया जाता है।

इसके बाद पूसा का वेस्ट डीकंपोज़र बनाकर खेत में छिड़काव कर देते है, फिर इसे 3-4 दिन बाद जुताई करके मिट्टी में दबा देते हैं। डी कंपोजर कैप्सूल के रूप में मिलता है, एक पैकेट को 20 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव का मिश्रण तैयार किया जाता है। एक पैकेट सिर्फ़ 20 रुपए का आता है।

मक्के की खेती में पौधों के बीच दूरी

ब्रजेश कुमार मक्के की खेती (Maize cultivation) में बुवाई दो तरीके से करते हैं एक तो वो ट्रैक्टर से बेड बनाकर इसकी बुवाई करते हैं। उनका कहना है कि जिस मिट्टी चढ़ाकर आलू की बुवाई की जाती है, वैसे ही वो मक्के की बुवाई करते हैं। बेड विधि में पौधे से पौधे के बीच 8 इंच की दूरी और बेड से बेड के बीच 22 इंच की दूरी होती है। उनका कहना है कि इस विधि में मेड़ बनाया जाता है जिससे पानी की बचत होती है और पौधे का अच्छा विकास होता है। इसके अलावा इस विधि में पौधे की जड़ों में पानी नहीं जमता है जिससे पौधों की जड़ों के सड़ने का खतरा नहीं रह जाता है।

इसके अलावा ब्रजेश कहा कहना कि वो चीन से आई मैनुअली यानी हाथ से चलने वाली मशीन से भी मक्के की बुवाई करते हैं। इसमें लाइन से लाइन की दूरी 18 इंच होती है और पौध से पौध के बीच 9 इंच की दूरी होती है। दोनों विधियों से बुवाई करने पर उत्पादन तो एक ही समय पर होता है, मगर बेड विधि में पानी की 50 फीसदी बचत होने के साथ ही अच्छी गुणवत्ता वाली फ़सल तैयार होती है।

मक्के की खेती में बीज और खाद

ब्रजेश कुमार बताते हैं कि एक एकड़ में मक्के की खेती (Maize cultivation) के लिए 9 किलो बीज लगता है और प्रति एकड़ करीब 18000 रुपए की लागत आती है। जबकि एक एकड़ से 40-45 क्विंटल का उत्पादन हो जाता है। जहां तक खाद का सवाल है, तो वो कहते हैं कि मिट्टी की जांच के बाद ही खेतों में खाद डाली जाती है। अगर किसी खेत में डीएपी कम हो, तो वो डालेंगे, किसी में पोटाश कम है तो वो देंगे।

यानी मिट्टी की ज़रूरत के हिसाब से खाद डाला जाता है न कि सब खेत में एक समान खाद। साथ ही पौधों को पानी भी ज़रूरत के हिसाब से ही दिया जाता है। उनका कहना है कि किसान पौधों को देकखर समझ जाते हैं कि पौधों को पानी चाहिए या नहीं।

Maize Cultivation: मक्के की खेती का उन्नत तरीक़ा क्या है, जानिए प्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार से

किसान हो रहे है डिजिटल

अब छोटे शहरों और गांव के किसान भी डिजिटल हो रहे हैं। ब्रजेश कुमार का कहना है कि किसानों को मोबाइल से मौसम की जानकारी मिल जाती है, जिससे वो पहले से तैयारी कर लेते हैं। जैसे बारिश आने वाली है तो खेत में पानी नहीं डालता है, अगर फ़सल बाहर पड़ी है तो उसे अंदर रख लेते हैं। उनका मानना है कि इससे किसानों को बहुत मदद मिलती है, साथ ही वो कहते है कि मॉनसून में मौसम विभाग द्वारा दी गई जानकारी 80 प्रतिशत सटीक रहती है। जबकि सर्दियों के मौसम में दी गई जानकारी 100 फीसदी सही रहती है। किसान फोन पर मौसम की जानकारी हासिल करके उस हिसाब से अपनी खेती की योजना बनाता है।

आलू बीज उत्पादन के लिए अवॉर्ड

ब्रजेश कुमार को मक्के की खेती (Maize cultivation) और आलू बीज उत्पादन के लिए कई सारे अवॉर्ज मिल चुके हैं। वो बताते है कि कृषि विज्ञान केंद्र, बुलंदशहर से 2018 में उन्हें पहला अवॉर्ड आलू बीज उत्पादन के लिए मिला था। इसके अलावा 17-18 अवॉर्ड मिल चुके हैं, मगर वो कहते हैं उनके लिए एक अवॉर्ड बहुत खास है और वो है IARI का नवोन्मेषी पुरस्कार। इस तरह के सम्मान से हमेशा कुछ नया करते रहने की प्रेरणा मिलती है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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