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पूरी प्रकृति में मधुमक्खियों का बहुत अहम योगदान है, दुनिया के खाद्य उत्पादन का एक-तिहाई हिस्सा मधुमक्खियों पर ही निर्भर करता है। किसानों के लिए मधुमक्खी पालन (Beekeeping) अतिरिक्त कमाई का बेहतरीन ज़रिया बन सकता है, बशर्ते वो इसे सही तरीके से करें। मधुमक्खी पालन (Beekeeping) को सफल व्यवसाय में कैसे तब्दील किया जा सकता है, मधुमक्खियां कैसे समूह में अपना काम करती हैं और शहद बनाती है, इन सभी मुद्दों पर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार जाट ने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
मधुमक्खियों की हज़ारों प्रजातियां
अगर कोई मधुमक्खी पालन (Beekeeping) की सोच रहा है, तो उसे उनकी प्रजातियों की जानकारी होनी चाहिए। हैं। प्रोफेसर मनोज कुमार कहते हैं कि धरती पर मधुक्खियों की क़रीब 20 हजार प्रजातियां हैं, जिसमें से कुछ प्रजातियां ही शहद उत्पादन और परागण का काम करती हैं। कुछ प्रजातियां ऐसी होती हैं जो शहद का उत्पादन नहीं करतीं, लेकिन फ़सलों पर जाकर परागण का काम करती हैं। वो बताते हैं कि भारत में मधुमक्खियों की 7 प्रजातियां जो शहद उत्पादन करती हैं और हरियाणा की बात करें तो यहां शहद उत्पादन करने वाली 4 प्रजातियां हैं। पहली प्रजाति है यूरोपीय मधुमक्खी (Apis Mellifera), इसे ही बीहाइव में रखकर पालन करते हैं।
दूसरी प्रजाति है एशियाटिक मधुमक्खी (Apis Cerana)। इसके अलावा दो प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हें पाला नहीं जा सकता, लेकिन परागण में उनका योगदान होता है, ये हैं पहाड़ी मधुमक्खी (Apis Dorsata) और बौनी मधुमक्खी (Apis Florea)। मधुमक्खी की एक प्रजाति ऐसी भी है जिसमें डंक नहीं होता है, इसे स्टिंगलेस बी (stingless bee) कहते हैं। प्रोफेसर मनोज कहते हैं कि मधुमक्खी पालन (Beekeeping) में मधुमक्खियों का प्राथमिक काम होता है फ़सलों पर परागकण करना। धरती पर जितनी भी फ़सलें हैं उसमें 70-80 प्रतिशत फ़सलों के परागण में मधुमक्खियों का योगदान है।
यूरोपीय मधुमक्खी से ले सकते हैं 5-6 उत्पाद
प्रोफेसर मनोज बताते हैं कि हिसार जिले में जिस यूरोपीय मधुमक्खी का मधुमक्खी पालन (Beekeeping) किया जाता है उससे शहद के उत्पादन के साथ ही पराग भी मिलता है। पराग नेचुरल प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसके अलावा इससे वैक्स निकलता है जिसका इस्तेमाल कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में क्रीम और लिप बाम आदि बनाने में किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला एक अन्य उत्पाद है बी वेनम यानी मधुमक्खी का ज़हर। चीन और यूरोप के बज़ारों में इसकी अच्छी मांग है और हमारे देश में भी इसका बाज़ार धीरे-धीरे उभर रहा है।
पांचवा उत्पाद है प्रोपोलिस, जब मधुमक्खियां फूलों के ऊपर भोजन जुटाने जाती हैं यानी फूलो का रस और पारग लेने जाती है, तो वो आवश्यकतानुसार प्रोपोलिस भी लेकर आती है। जिसका इस्तेमाल अपने मौनबॉक्स के अंदर के किनारों में कुछ दरार भरने में करती है। प्रोपोलिस में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल गुण होते हैं, इसलिए टूथपेस्ट में भी इसका उपयोग किया जाता है और कहीं कटने आदि पर भी इसे लगाया जा सकता है। मधुमक्खियों का एक और अहम उत्पाद है रॉयल जेली, जो मखुमक्खियों का भोजन है, इसे सुपर फूड भी कहा जाता है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसका बहुत कीमत है।
3 किलोमीटर तक जाती हैं काम करने
डॉ. मनोज कुमार जाट बताते हैं कि ये मधुमक्खियां अपना काम करने यानी नेक्टर एकत्र करने के लिए 3 किलोमीटर तक दूर जाती है, अगर उसे आसपास फल वाली कोई फ़सल न मिले तो। यदि 50-100 मीटर पर फूल वाली फ़सल है तो वो पहले वहां जाएगी, अगर वहां फ़सल नहीं है तो आगे 3 किलोमीटर तक जा सकती है पराग और नेक्टर इकट्ठा करने। वो बताते हैं कि सभी मधुमक्खियों के नीचे स्टैंड रखा जाता है ताकि बीहाइव के अंदर पानी या चीटियां न जाएं।
बेस्ट क्वालिटी का शहद कैसे निकाले?
प्रोफेसर मनोज कुमार बताते हैं कि मधुमक्खी पालन (Beekeeping) में बेस्ट क्वालिटी के शहद के लिए सुपर का इस्तेमाल करना चाहिए। वो कहते हैं कि जब भी सीजन हो और आसपास में अच्छा बी फ्लोरा हो, उस समय सुपर का इस्तेमाल करके शहद निकालने से उनकी गुणवत्ता अच्छी होती है और इसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी अधिक कीमत होती है।
बीहाइव में अलग-अलग सेगमेंट बने होते हैं सबसे पहले हाइव स्टैंड (hive stand) होता है, उसके ऊपर बॉटम (bottom board), फिर ब्रूड चेंबर (brood chamber) जिसमें मधुमक्खियों के अंडे, लार्वा और प्यूपा रहते हैं, होता है। उसके ऊपर होता है सुपर ब्रूड (super brood)। सरसों के सजीन में जब अच्छी फ्लावरिगं थी तो सुपर लगाकर बेस्ट क्वालिटी का शहद प्राप्त कर सकते हैं। मधुक्खी के बक्से में सबसे ऊपर होता है टॉप कवर, जो इसलिए लगाया जाता है ताकि बारिश होने पर पानी हाइव के अंदर न जाए।
कैसे काम करती हैं मधुमक्खियां?
डॉ. मनोज बताते हैं कि मधुमक्खियों के लिए आदर्श तापमान 35-36 डिग्री सेल्सियस होता है और इसी तापमान के हिसाब से रानी मधुमक्खी अंडे देने का कम करती है। वो आगे बताते हैं कि बॉक्स के सुपर चैंबर में फ्रेम के ऊपर बहुत सी मधुमक्खियां रहती हैं, ये सब वर्कर है जो फूलों पर जाकर पराग लेकर आती है और हाइव मे आकर एकत्र करती हैं।
इसमें चमीकले रंग का तरल पदार्थ होता है जिसे नेक्टर कहते है। नेक्टर में पानी की मात्रा अधिक है, तो मधुमक्खियां 10-15 दिनों तक अपने पंख से हवा देकर नेक्टर (फूलों का रस) में पानी की मात्रा कम कर देती है और जैसे ही उन्हें लगता है की पानी की मात्रा 18-20 प्रतिशत है तो उसे अपने वैक्स से सील कर देती हैं।
शहद निकालने के लिए इस सील को अनशिल्ड करके हनी एक्सट्रैक्टर में मधुमक्खी के फ्रेम को लगाकर शहद निकाला जाता है। फ्रेम को पहले झटकर देखना पड़ता है कि नेक्टर ड्रॉप बनकर गिर तो नहीं रहा, जब वो नहीं गिरता है, तो मतलब हनी तैयार है और उसे हार्वेस्ट किया जा सकता है। वो आगे बताते हैं कि इस तरह के पके हुए शहद की सेल्फ लाइफ कच्चे शहद से ज़्यादा होती है।
मधुमक्खी पालन में अलग-अलग प्रकार के शहद
फ्लवारिंग फ़सल के आधार पर शहद के प्रकार अलग-अलग होते हैं। डॉ. मनोज बताते हैं जहां सिर्फ़ सरसों के फूल से नेक्टर लाकर मधुमक्खियां जो शहद बना रही है उसे मस्टर्ड हनी कहते हैं। इसी तरह अगर कहीं सिर्फ़ अजवाइन की फूल है और मधुमक्खियां उनसे शहद बनाती है तो उसे अजवाइन हनी कहते है। कहीं सिर्फ़ सेब के फूलों से शहद बनाती है तो उसे एप्पल हनी कहते हैं।
मतलब ये कि बड़े पैमाने पर अगर कोई फ़सल है और मधुमक्खियां सिर्फ़ उससे नेक्टर लाकर हनी बनाती है तो शहद का नाम उस फ़सल के नाम पर ही जाना जाता है, लेकिन किसी क्षेत्र में अगर एक साथ एक से अधिक फ़सलों पर फूल आते हैं और मधुक्खियां उन सबसे नेक्टर लाकर शहद बनाती है तो उसे मल्टी फ्लोरा शहद कहा जाता है।
आर्टिफिशियल फूड देने की ज़रूरत
प्रोफेसर मनोज कहते हैं कि बरसात या बसंत ऋतु के बाद के 3-4 महीने जब किसी भी फ़सल पर फूल नहीं आते हैं तब मधुमक्खियों को आर्टिफिशियल भोजन देना होता है। ऑफ सीज़न में शुगर सॉल्यूशन देते हैं। जिसे एक भाग चीनी और एक भाग पानी को मिलाकर बनाया जाता है।
फ़सल उत्पादन में अहम योगदान
प्रोफेसर मनोज कुमार जाट का कहना है कि मधुमक्खियों का सबसे बड़ा रोल धरती पर फ़सलों के परागण में है। क्रॉस-पॉलीनेशन में भी मधुमक्खियों का अहम रोल है। पॉलीनेशन से फ़सलों का उत्पादन बढ़ता है, साथ ही गुणवत्ता में भी सुधार होता है। जिससे किसानों को बाज़ार में फ़सल की अच्छी कीमत मिलती है। सब्ज़ी, फल और तिलहनी फ़सलों के उत्पादन में मधुमक्खियों की अहम भूमिका होती है।
कैसे कर सकते हैं शुरुआत?
अतिरिक्त कमाई के लिए किसान मधुमक्खी पालन (Beekeeping) का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। इस बारे में डॉ. मनोज किसानों को सलाह देते हैं कि उन्हें किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से 7 या 10 की ट्रेनिंग लेने के बाद ही काम शुरू करना चाहिए। वो कम से कम 20-25 बीहाइव के साथ काम शुरू कर सकते हैं। मधुमक्खी पालन (Beekeeping) की शुरुआत का सबसे अच्छा समय है अक्टूबर और फरवरी। जहां तक लागत की बात है तो औसतन मधुमक्खी के बक्से की कीमत 4000-4700 रुपए होती है जिसके साथ छोटे-मोटे उपकरण भी मिल जाते हैं। वो बताते हैं कि हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय में भी मधुमक्खी पालन (Beekeeping) का प्रशिक्षण दिया जाता है।
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