सूरजमुखी ऐसी तिलहनी फ़सल है जिसकी खेती दुनिया में बड़े पैमाने पर होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सूरजमुखी में हरेक किस्म की मिट्टी और जलवायु में फलने-फूलने की क्षमता पायी जाती है। इसे सिंचाई के लिए कम पानी की ज़रूरत होती है, क्योंकि इसमें सूखा सहनशीलता का गुण होता है। सूरजमुखी की खेती को कम लागत में तथा आसानी से किया जा सकता है। सूरजमुखी के बीजों से उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य तेल प्राप्त होता है। इसीलिए बाज़ार में इसकी उपज बहुत आसानी से तथा अच्छे दाम पर बिकती है।
पूरे साल हो सकती है सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी का तेल ग्रामीण कोल्हू या घानी से भी आसानी से निकाला जा सकता है। लिहाज़ा, किसानों के पास सीधे इसका तेल निकालकर बेचने और ज़्यादा दाम पाने का विकल्प भी होता है। इसकी खेती पूरे साल यानी ख़रीफ़, रबी और जायद जैसे सभी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मौसम के हिसाब से इसकी फ़सल के पकने का समय अलग-अलग होता है। जैसे ख़रीफ़ वाली सूरजमुखी 80 से 90 दिनों में तैयार होती है तो रबी वाली 105 से 130 दिनों में और जायद वाली उपज 110-115 दिनों में मिलती है।
तिलहनी फ़सलों के लिहाज़ से दुनिया में सोयाबीन और मूँगफली के बाद तीसरा स्थान सूरजमुखी का ही है। लेकिन भारत में मूँगफली, सरसों और सोयाबीन के बाद सूरजमुखी को चौथा स्थान हासिल है। सूरजमुखी में 45 से 50 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसके तेल का रंग हल्का पीला और ख़ुशबूदार होता है। यह विटामिन ए, डी और ई का अच्छा स्रोत है। सूरजमुखी के दानों को कच्चा और भूनकर भी खाया जाता है।
![Sunflower farming सूरजमुखी की खेती](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2022-12-07T155340.312.jpg)
हृदय रोगियों के लिए सर्वोत्तम खाद्य तेल
सूरजमुखी के तेल में क़रीब 64 फ़ीसदी लिनोलिक अम्ल पाया जाता है, जो मनुष्य के हृदय में कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक होता है। इसीलिए हृदय रोगियों के लिए सूरजमुखी के तेल को उत्तम माना गया है। सूरजमुखी की खली में 40 से 44 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसीलिए इसे मुर्गियों और पशुओं के लिए भी उत्तम आहार माना जाता है। इस खाद्य तेल का इस्तेमाल ‘बेबी फूड’ और सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी होता है।
जलवायु
सूरजमुखी की फ़सल पर धूप का ख़ूब असर पड़ता है। इसके पौधों को जमाव के समय सर्दी जैसा तापमान, जमाव के बाद से लेकर पकने की अवस्था तक गर्मियों और भरपूर धूप वाले साफ़ मौसम की आवश्यकता होती है। पौधों में फूल आने के वक़्त यदि वातावरण में नमी ज़्यादा हो, या बारिश हो जाए या ज़्यादा वक़्त तक खेतों पर बादल छाये रहे तो सूरजमुखी के फूलों में दाना बनने प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ता है। इसी तरह, बीजों के पकने की अवस्था में यदि तापमान ज़्यादा रहने लगे तो बीजों में लिनोलिक अम्ल की मात्रा घट जाती है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे बढ़िया मिट्टी दोमट होती है। इसका pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए। उदासीन, गहरी, अच्छी जल निकासी वाली और सिंचाई की उत्तम सुविधा वाले खेतों में मूरजमुखी की शानदार पैदावार मिलती है। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 1 या 2 गहरी जुताई तथा दो जुताई हैरो से करके खेत को खरपतवार रहित बना लेना चाहिए। मध्यम और भारी मिट्टी वाले खेतों में बारिश के बाद हैरो से 2-3 जुताई करके खेत को समतल करने के बाद ही सूरजमुखी की बुआई के लायक मानना चाहिए।
बुआई का समय
सूरजमुखी की बुआई भले ही पूरे साल हो सकती है लेकिन ऐसे समय में बुआई नहीं करें जब फूल और दाने बनते समय ज़्यादा बारिश होने या तापमान भी 38° सेल्सियस से अधिक रहने की सम्भावना हो। इसीलिए ख़रीफ़ की फ़सल के लिए जून के आख़िरी हफ़्ते से लेकर जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुआई कर लेनी चाहिए। रबी की फ़सल के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक का वक़्त बुआई के लिए उपयुक्त होता है, तो जायद की फ़सल के लिए जनवरी के अन्तिम सप्ताह से लेकर फरवरी के आख़िरी हफ़्ते तक बुआई कर लेनी चाहिए।
![Sunflower farming सूरजमुखी की खेती](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2022-12-07T155857.798.jpg)
बीज की मात्रा और इसका चयन
सूरजमुखी की उत्तम खेती के लिए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों ने क़रीब दर्ज़न भर उन्नत बीजों के विकसित किया है। बीजों के इन प्रजातियों को संकुल और संकर किस्मों के रूप में बाँटा गया है और देश के अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नस्लों की सिफ़ारिश की है। किसानों के चाहिए कि सूरजमुखी की खेती में बढ़िया मुनाफ़ा पाने के लिए वो अपने इलाके लिए प्रस्तावित बीजों का ही चयन करें। रही बात बीज-दर की तो इसके बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि सूरजमुखी की संकुल किस्मों के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए क़रीब 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सूरजमुखी की संकुल और संकर प्रजातियाँ तथा उनके लिए प्रस्तावित इलाका | ||
प्रदेश | संकर प्रजातियाँ | संकुल प्रजातियाँ |
महाराष्ट्र | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, LSH 1, LSH 3, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 4, DRSH 1 और LSFH 35 | मॉडर्न, सूर्या, LS 11, DRSF 108, DRSF 113, TAS 82 और LS 8 |
कर्नाटक | ज्वालामुखी, सनजीन 85, MSFH 8, MLHFH 47, KBSH 44, DRSH 1, MSFH 17, PAC 36, PAC 1091 और DSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113, |
तमिलनाडु | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, TCSH 1, MLHFH 47, KBS 44 और SH 416 | मॉडर्न, NAUSUF 7, को 1, को 2, DRSF 108, DRSF 113 और KOSFV 5 |
आन्ध्र प्रदेश | APSH 11, MSHF 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85., PAC 36, PAC 1091, KBSH 44, SH 416, DRSH 1 और NDSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113 |
पंजाब | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PSFH 67, PSFH 118, KBSH 44 और DRSH 1 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
हरियाणा | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, KBSH 44, DRSH 1 और HSFH 848 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
गुजरात | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 44, SH 41 और DRSH 1 | GAUSUF 15, NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
अन्य राज्य | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, KBSH 44 और DRSH 1 | NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
सूरजमुखी का बीजोपचार और बुआई
खेत को तैयार करने और अपने इलाके के अनुरूप उपयुक्त बीजों की प्रजातियों का चयन करने के बाद पंक्तिबद्ध बुआई करनी चाहिए। लेकिन बुआई से पहले बीजोपचार भी बेहद ज़रूरी है। शीघ्र जमाव और सूखे से बचाव के लिए बुआई से पहले सूरजमुखी के बीजों को 12-14 घंटे साफ़ पानी में भिगोने के बाद छायादार जगह में सुखाना चाहिए। बीजजनित बीमारियों से बचाव के लिए थीरम या कैप्टॉन की 2-3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम के हिसाब से तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग से बचाव के लिए मेटालाक्सिल की 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। दीमक और अन्य कीटों से बचाव के लिए बुआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड की 5-6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुआई के वक़्त खेत में कतार से कतार के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए। ध्यान रहे कि कम अवधि में पकने वाली संकर प्रजातियों के लिए बुआई के वक़्त कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना ज़्यादा फ़ायदेमन्द साबित होता है। बुआई के बाद जब बीजों के अंकुरण होकर पौधों का जमाव होने लगे तो ध्यान रखना चाहिए कि पौधों की सघनता ज़्यादा नहीं हो। इससे पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि पौधों का जमाव ज़्यादा घना लगे तो 10-12 दिनों बाद उनके बीच की दूरी को समायोजित कर देना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खाद और उर्वरक
शीघ्र बढ़ने और ज़्यादा तेल का उत्पादन वाली तिलहनी फ़सल होने के कारण सूरजमुखी को पर्याप्त पोषक तत्व देना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए बुआई से 2-3 सप्ताह पहले खेत में 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 80-90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश भी देना आवश्यक है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुआई के 30 और 45 दिनों बाद समान मात्रा में प्रयोग करें।
![Sunflower farming सूरजमुखी की खेती](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2022-12-07T160331.210.jpg)
सूरजमुखी की खेती में सिंचाई
ख़रीफ़ मौसम वाली सूरजमुखी को सिंचाई की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं होती। लेकिन सूखा पड़ने की दशा में फूल आने और दाने बनने की अवस्था में सिंचाई का इन्तज़ाम अवश्य करें। रबी और जायद में बुआई से पहले पलेवा करें ताकि बीजों का अच्छा और समान मात्रा में जमाव हो सके। रबी की फ़सल में आमतौर पर तीन-चार बार सिंचाई का ज़रूरत पड़ती है, जबकि जायद की फ़सल में 10-15 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में परपरागण का महत्व
सूरजमुखी की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए सही वक़्त पर परपरागण होने का विशेष महत्व है। आमतौर पर परपरागण का काम भौरों और मधुमक्खियों के माध्यम से होता है। लेकिन जिस इलाके में प्रकृति के इन परपरागणकर्मियों की कमी हो, वहाँ किसानों के हाथ से परपरागण की क्रिया पूरी करनी चाहिए। इसके लिए किसानों को फूलों के अच्छी तरह से खिलने पर हाथों में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोयेंदार कपड़े को सूरजमुखी के फूल के मुंडक पर चारों ओर धीरे-धीरे घुमाना चाहिए। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर फिर बीच के भाग पर कृत्रिम परपरागण का ये काम सुबह 7:30 बजे तक कर लेना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खरपतवार नियंत्रण
सूरजमुखी की फ़सल को जमाव से 60 दिनों तक खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए बुआई के 18-20 दिनों बाद 15 दिनों के अन्तराल पर हाथ से निराई-गुड़ाई करें। फ़सल की लम्बाई जब 60-70 सेंटीमीटर हो जाए तो पौधों पर मिट्टी चढ़ाने का काम करना चाहिए। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालीन 1 किलोग्राम अथवा एलाक्लोर 1-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 1 से 2 दिन बाद छिड़काव करें।
सूरजमुखी की खेती में रोग और कीट प्रबन्धन
- रस्ट की समस्या: जल भराव की आशंका वाले खेतों में सूरजमुखी की फ़सल को लगाने से बचना चाहिए। फिर भी यदि किसी वजह से फ़सल में पानी लगने की समस्या देखें तो डाईथेन एम-45 अथवा डाईथेन जेड-78 प्रति 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें। इसके लिए बीजोपचार के वक़्त भी रस्ट की समस्या से रोकथाम की कोशिश की जाती है और कैप्टॉन अथवा थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है।
- अल्टरनेरिया ब्लाइटः इस रोग से बचाव के लिए रोगाणु मुक्त बीजों से बहुत फ़ायदा होता है। इसके अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फ़सल चक्र अपनाने से भी बहुत सुरक्षा मिलती है।
- डाउनी मिल्ड्यू: रोगरोधी संकर प्रजातियों की बुआई करें। बीजों को मेटालॉक्सिल 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बुआई करें।
सूरजमुखी की खेती में कीट नियंत्रण | |
कीट का प्रकार | प्रबन्धन |
कट वर्म | सिंचाई के साथ क्लोरोपाइरीफॉस का 3.75 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। |
केपिटूलम बोरर | इस कीट के अंडों और लार्वा को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। साइपरमेथ्रीन (0.005 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
टोबेको केटरपिलर | इस कीट के अंडों और लावों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए। |
बिहार हेयर केटरपिलर हरा सेमीलूपर | डाईक्लोरवास (0.05 प्रतिशत) अथवा फेनीट्रोथियान (0.05 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
लीफ हॉपर | खेत और मेड़ की साफ़-सफाई रखें। फास्फोमिडान (0.03 प्रतिशत) अथवा डाईमेथोएट (0.03 प्रतिशत) दवा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अथवा, मेलाथियोन (5 प्रतिशत) अथवा क्यूनालफॉस (5 प्रतिशत) की दर से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दवा का प्रयोग करें। |
सूरजमुखी की कटाई और मड़ाई
सूरजमुखी के बीजों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत अथवा मुंडकों का पिछला भाग पीला भूरा रंग का हो जाए तब मुंडकों की कटाई करनी चाहिए। काटने के पश्चात मुंडकों को छाया में सुखा लें। इसके बाद डंडे अथवा थ्रेसर से इसकी मड़ाई की जा सकती है। बीजों का भंडारण करते समय नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से कम रहनी आवश्यक है।
![Sunflower farming सूरजमुखी की खेती](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2022-12-07T161938.225.jpg)
सूरजमुखी की पैदावार
खेती की उन्नत तकनीकें अपनाकर यदि सूरजमुखी की खेती की जाए तो असिंचित इलाकों में इसकी पैदावार 12-15 क्विंटल तथा सिंचित इलाकों में 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की शानदार उपज प्राप्त होती है। इसीलिए सूरजमुखी को खेती को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाना किसानों के लिए बढ़िया मुनाफ़े का सौदा साबित होता है।
ये भी पढ़ें- फूलों की खेती: मारूफ़ आलम ख़ान ने गन्ना बेल्ट में उगा डाले रजनीगंधा और ग्लैडियोलस (Gladiolus) के फूल
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
![मंडी भाव की जानकारी](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/05/mandi728.webp)
ये भी पढ़ें:
- Equipments For Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों के बारे मेंहाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों (Hydroponic Farming Equipments) में ग्रो लाइट्स, पंप, नली, पीएच मीटर, पोषक तत्व समाधान, ग्रो बेड्स, और कंटेनर शामिल होते हैं।
- Poultry Health Management: पोल्ट्री की देखभाल और प्रबंधन कैसे करें? जानिए कुछ प्रभावी टिप्सपोल्ट्री स्वास्थ्य प्रबंधन (Poultry Health Management) रोगों से बचाव, उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आर्थिक नुकसान कम करने के लिए ज़रूरी है।
- Budget 2024: Agriculture Sector में सरकार की मुख्य घोषणाएं, कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरीइस साल कृषि क्षेत्र के लिए बजट (Budget 2024) को बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। जानिए आम बजट 2024 में कृषि क्षेत्र के लिए मुख्य ऐलान।
- National Mango Day 2024: मल्लिका, आम्रपाली और प्रतिभा समेत पूसा की उन्नत आम की किस्मेंहमारे देश में लगभग 1500 से अधिक आम की किस्में (Mango Varieties) पाई जाती हैं, जो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं।
- Sheep Farming Tips: भेड़ों की देखभाल और प्रबंधन के उन्नत तरीकेभेड़ पालन में सफलता के लिए साफ-सुथरा और सुरक्षित आवास, पोषक आहार और नियमित टीकाकरण, ज़रूरी है। यहां हम भेड़ पालन के टिप्स (Sheep Farming Tips) शेयर कर रहे हैं।
- Tuber Crops Cultivation: जानिए कंद फसलों की खेती से जुड़ी जानकारी और कमाएं मुनाफ़ाकंद फसलों की खेती (Tuber Crops Cultivation), जैसे आलू और शकरकंद, किसानों के लिए लाभकारी है। ये पौष्टिक, उच्च मूल्य वाली और कम पानी की आवश्यकता वाली होती हैं।
- Nutritional Balance In Livestock Feed: पशुओं के लिए संतुलित आहार कैसा हो?पशुओं की खुराक में पोषण संतुलन (Nutritional Balance In Livestock Feed) उनकी सेहत, उत्पादकता, रोग प्रतिरोधकता और पशुपालकों के आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है।
- Millet Business Ideas: FPO OTLO के मिलेट्स व्यवसाय से जुड़े 4 हज़ार किसान और महिलाओं को रोज़गारबहुत से FPO और कंपनियां मिलेट्स व्यवसाय में उतरी हैं। प्रोसेसिंग कर मिलेट्स से ढेर सारी हेल्दी चीज़ें बना रही हैं, ऐसा ही एक FPO गुजरात के डांग ज़िले में काम कर रहा है।
- Balanced Diet For Livestock: जन्म से लेकर गर्भावस्था तक क्यों ज़रूरी पशुओं के लिए संतुलित आहार? जानिए हरविंदर सिंह सेपशुओं के लिए संतुलित आहार (Balanced Diet For Livestock) से पशुपालक न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि दूध का भी बंपर उत्पादन भी ले सकते हैं।
- Fish farming Practices: तालाब बनाने से लेकर मछलियों के बीज और बाज़ार भाव पर विनीत सिंह से बातमछली पालन में उन्नत प्रबंधन (Advanced Management in Fisheries) शामिल करता है: स्वच्छ जल और आहार प्रबंधन, रोग नियंत्रण, प्रौद्योगिकी उपयोग, और सरकारी योजनाएं।
- Live Fish Packing: भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट! वंदना का मंत्र, अच्छा दाना और भरपूर ऑक्सीजनलाइव फ़िश पैकिंग तकनीक (Live Fish Packing Technique) मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।
- जैविक खेती के तरीके: बागपत के इस किसान ने Multilayer Farming का बेहतरीन मॉडल अपनायाविनीत चौहान ने 5 साल पहले बागवानी की शुरुआत की। वो पूरी तरह से जैविक खेती के तरीके (Organic Farming Techniques) अपनाते हुए ऑर्गेनिक उत्पादन लेते हैं।
- Dragon Fruit Farming: ड्रैगन फ़्रूट फ़ार्मिंग में कितनी लागत और क्या है बाज़ार? जानें किसान सुनील सेड्रैगन फ़्रूट की खेती में लागत और लाभ की बात करें तो किसानों को पहला उत्पादन तीन से चार लाख रुपये का मिलता है। एक एकड़ से 4 से 5 टन का उत्पादन मिल जाता है।
- Vegetable Nursery Guide: सब्ज़ियों की नर्सरी कैसे तैयार कर सकते हैं? जानिए नसीर अहमद सेकिसान नसीर अहमद पिछले करीब 5-6 सालों से सब्ज़ियों की नर्सरी (Vegetable Nursery Business) का बिज़नेस कर रहे हैं। सब्ज़ियों की नर्सरी से जुड़ी कई अहम बातें उन्होंने बताईं।
- Barley Cultivation Variety: जौ की उपज दोगुनी करने वाली नयी किस्म है DWRB-219भारतीय गेहूं और जौ अनुसन्धान संस्थान ने जौ की उपज की DWRB-219 किस्म ईज़ाद की है, जिसकी पैदावार परम्परागत किस्मों के मुक़ाबले दोगुनी है।
- Allelochemical Weed Management: कपास की खेती में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली से खरपतवार नियंत्रणकपास की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली (Intercropping System) की तकनीक बेहद उपयोगी और किफ़ायती साबित होती है।
- यहां से लें Pearl Farming की ट्रेनिंग, आवेदन करने की ये है आखिरी तारीख़ICAR- Central Institute Of Freshwater Aquaculture, Bhubaneswar (CIFA) मीठे पानी में मोती पालन (Pearl Farming) के राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।
- Drip Irrigation Technique: पानी और पैसा दोनों बचाएं ड्रिप इरिगेशन से, जानें टपक सिंचाई तकनीक के फ़ायदेड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation System) एक अत्याधुनिक सिंचाई तकनीक है जो पानी की बचत और फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
- Crop Rotation In Agriculture: जानिए क्यों अहम है खरीफ़ मौसम में उन्नत फ़सल चक्रखरीफ़ मौसम के दौरान कृषि में फ़सल चक्र (Crop rotation in agriculture) अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की परेशानियों से बचाते हैं।
- खरीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) में कितनी हुई बढ़ोतरी?भारत सरकार अपने बफ़र स्टॉक या सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बनाए रखने के लिए लगभग 23 फसलों के उपज को MSP पर खरीद करती है।