सूरजमुखी ऐसी तिलहनी फ़सल है जिसकी खेती दुनिया में बड़े पैमाने पर होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सूरजमुखी में हरेक किस्म की मिट्टी और जलवायु में फलने-फूलने की क्षमता पायी जाती है। इसे सिंचाई के लिए कम पानी की ज़रूरत होती है, क्योंकि इसमें सूखा सहनशीलता का गुण होता है। सूरजमुखी की खेती को कम लागत में तथा आसानी से किया जा सकता है। सूरजमुखी के बीजों से उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य तेल प्राप्त होता है। इसीलिए बाज़ार में इसकी उपज बहुत आसानी से तथा अच्छे दाम पर बिकती है।
पूरे साल हो सकती है सूरजमुखी की खेती
सूरजमुखी का तेल ग्रामीण कोल्हू या घानी से भी आसानी से निकाला जा सकता है। लिहाज़ा, किसानों के पास सीधे इसका तेल निकालकर बेचने और ज़्यादा दाम पाने का विकल्प भी होता है। इसकी खेती पूरे साल यानी ख़रीफ़, रबी और जायद जैसे सभी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मौसम के हिसाब से इसकी फ़सल के पकने का समय अलग-अलग होता है। जैसे ख़रीफ़ वाली सूरजमुखी 80 से 90 दिनों में तैयार होती है तो रबी वाली 105 से 130 दिनों में और जायद वाली उपज 110-115 दिनों में मिलती है।
तिलहनी फ़सलों के लिहाज़ से दुनिया में सोयाबीन और मूँगफली के बाद तीसरा स्थान सूरजमुखी का ही है। लेकिन भारत में मूँगफली, सरसों और सोयाबीन के बाद सूरजमुखी को चौथा स्थान हासिल है। सूरजमुखी में 45 से 50 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसके तेल का रंग हल्का पीला और ख़ुशबूदार होता है। यह विटामिन ए, डी और ई का अच्छा स्रोत है। सूरजमुखी के दानों को कच्चा और भूनकर भी खाया जाता है।
हृदय रोगियों के लिए सर्वोत्तम खाद्य तेल
सूरजमुखी के तेल में क़रीब 64 फ़ीसदी लिनोलिक अम्ल पाया जाता है, जो मनुष्य के हृदय में कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक होता है। इसीलिए हृदय रोगियों के लिए सूरजमुखी के तेल को उत्तम माना गया है। सूरजमुखी की खली में 40 से 44 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसीलिए इसे मुर्गियों और पशुओं के लिए भी उत्तम आहार माना जाता है। इस खाद्य तेल का इस्तेमाल ‘बेबी फूड’ और सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी होता है।
जलवायु
सूरजमुखी की फ़सल पर धूप का ख़ूब असर पड़ता है। इसके पौधों को जमाव के समय सर्दी जैसा तापमान, जमाव के बाद से लेकर पकने की अवस्था तक गर्मियों और भरपूर धूप वाले साफ़ मौसम की आवश्यकता होती है। पौधों में फूल आने के वक़्त यदि वातावरण में नमी ज़्यादा हो, या बारिश हो जाए या ज़्यादा वक़्त तक खेतों पर बादल छाये रहे तो सूरजमुखी के फूलों में दाना बनने प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ता है। इसी तरह, बीजों के पकने की अवस्था में यदि तापमान ज़्यादा रहने लगे तो बीजों में लिनोलिक अम्ल की मात्रा घट जाती है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे बढ़िया मिट्टी दोमट होती है। इसका pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए। उदासीन, गहरी, अच्छी जल निकासी वाली और सिंचाई की उत्तम सुविधा वाले खेतों में मूरजमुखी की शानदार पैदावार मिलती है। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 1 या 2 गहरी जुताई तथा दो जुताई हैरो से करके खेत को खरपतवार रहित बना लेना चाहिए। मध्यम और भारी मिट्टी वाले खेतों में बारिश के बाद हैरो से 2-3 जुताई करके खेत को समतल करने के बाद ही सूरजमुखी की बुआई के लायक मानना चाहिए।
बुआई का समय
सूरजमुखी की बुआई भले ही पूरे साल हो सकती है लेकिन ऐसे समय में बुआई नहीं करें जब फूल और दाने बनते समय ज़्यादा बारिश होने या तापमान भी 38° सेल्सियस से अधिक रहने की सम्भावना हो। इसीलिए ख़रीफ़ की फ़सल के लिए जून के आख़िरी हफ़्ते से लेकर जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक बुआई कर लेनी चाहिए। रबी की फ़सल के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक का वक़्त बुआई के लिए उपयुक्त होता है, तो जायद की फ़सल के लिए जनवरी के अन्तिम सप्ताह से लेकर फरवरी के आख़िरी हफ़्ते तक बुआई कर लेनी चाहिए।
बीज की मात्रा और इसका चयन
सूरजमुखी की उत्तम खेती के लिए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों ने क़रीब दर्ज़न भर उन्नत बीजों के विकसित किया है। बीजों के इन प्रजातियों को संकुल और संकर किस्मों के रूप में बाँटा गया है और देश के अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नस्लों की सिफ़ारिश की है। किसानों के चाहिए कि सूरजमुखी की खेती में बढ़िया मुनाफ़ा पाने के लिए वो अपने इलाके लिए प्रस्तावित बीजों का ही चयन करें। रही बात बीज-दर की तो इसके बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि सूरजमुखी की संकुल किस्मों के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए क़रीब 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सूरजमुखी की संकुल और संकर प्रजातियाँ तथा उनके लिए प्रस्तावित इलाका | ||
प्रदेश | संकर प्रजातियाँ | संकुल प्रजातियाँ |
महाराष्ट्र | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, LSH 1, LSH 3, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 4, DRSH 1 और LSFH 35 | मॉडर्न, सूर्या, LS 11, DRSF 108, DRSF 113, TAS 82 और LS 8 |
कर्नाटक | ज्वालामुखी, सनजीन 85, MSFH 8, MLHFH 47, KBSH 44, DRSH 1, MSFH 17, PAC 36, PAC 1091 और DSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113, |
तमिलनाडु | MSFH 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, TCSH 1, MLHFH 47, KBS 44 और SH 416 | मॉडर्न, NAUSUF 7, को 1, को 2, DRSF 108, DRSF 113 और KOSFV 5 |
आन्ध्र प्रदेश | APSH 11, MSHF 8, KBSH 1, MSFH 17, ज्वालामुखी, सनजीन 85., PAC 36, PAC 1091, KBSH 44, SH 416, DRSH 1 और NDSH 1 | मॉडर्न, NAUSUF 7, DRSF 108 और DRSF 113 |
पंजाब | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PSFH 67, PSFH 118, KBSH 44 और DRSH 1 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
हरियाणा | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, KBSH 44, DRSH 1 और HSFH 848 | मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
गुजरात | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, MLHFH 47, KBSH 44, SH 41 और DRSH 1 | GAUSUF 15, NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
अन्य राज्य | KBSH 1, ज्वालामुखी, सनजीन 85, PAC 36, PAC 1091, KBSH 44 और DRSH 1 | NAUSUF 7, मॉडर्न, DRSF 108 और DRSF 113 |
सूरजमुखी का बीजोपचार और बुआई
खेत को तैयार करने और अपने इलाके के अनुरूप उपयुक्त बीजों की प्रजातियों का चयन करने के बाद पंक्तिबद्ध बुआई करनी चाहिए। लेकिन बुआई से पहले बीजोपचार भी बेहद ज़रूरी है। शीघ्र जमाव और सूखे से बचाव के लिए बुआई से पहले सूरजमुखी के बीजों को 12-14 घंटे साफ़ पानी में भिगोने के बाद छायादार जगह में सुखाना चाहिए। बीजजनित बीमारियों से बचाव के लिए थीरम या कैप्टॉन की 2-3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम के हिसाब से तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग से बचाव के लिए मेटालाक्सिल की 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। दीमक और अन्य कीटों से बचाव के लिए बुआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड की 5-6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुआई के वक़्त खेत में कतार से कतार के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए। ध्यान रहे कि कम अवधि में पकने वाली संकर प्रजातियों के लिए बुआई के वक़्त कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखना ज़्यादा फ़ायदेमन्द साबित होता है। बुआई के बाद जब बीजों के अंकुरण होकर पौधों का जमाव होने लगे तो ध्यान रखना चाहिए कि पौधों की सघनता ज़्यादा नहीं हो। इससे पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि पौधों का जमाव ज़्यादा घना लगे तो 10-12 दिनों बाद उनके बीच की दूरी को समायोजित कर देना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खाद और उर्वरक
शीघ्र बढ़ने और ज़्यादा तेल का उत्पादन वाली तिलहनी फ़सल होने के कारण सूरजमुखी को पर्याप्त पोषक तत्व देना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए बुआई से 2-3 सप्ताह पहले खेत में 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 80-90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश भी देना आवश्यक है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुआई के 30 और 45 दिनों बाद समान मात्रा में प्रयोग करें।
सूरजमुखी की खेती में सिंचाई
ख़रीफ़ मौसम वाली सूरजमुखी को सिंचाई की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं होती। लेकिन सूखा पड़ने की दशा में फूल आने और दाने बनने की अवस्था में सिंचाई का इन्तज़ाम अवश्य करें। रबी और जायद में बुआई से पहले पलेवा करें ताकि बीजों का अच्छा और समान मात्रा में जमाव हो सके। रबी की फ़सल में आमतौर पर तीन-चार बार सिंचाई का ज़रूरत पड़ती है, जबकि जायद की फ़सल में 10-15 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में परपरागण का महत्व
सूरजमुखी की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए सही वक़्त पर परपरागण होने का विशेष महत्व है। आमतौर पर परपरागण का काम भौरों और मधुमक्खियों के माध्यम से होता है। लेकिन जिस इलाके में प्रकृति के इन परपरागणकर्मियों की कमी हो, वहाँ किसानों के हाथ से परपरागण की क्रिया पूरी करनी चाहिए। इसके लिए किसानों को फूलों के अच्छी तरह से खिलने पर हाथों में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोयेंदार कपड़े को सूरजमुखी के फूल के मुंडक पर चारों ओर धीरे-धीरे घुमाना चाहिए। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर फिर बीच के भाग पर कृत्रिम परपरागण का ये काम सुबह 7:30 बजे तक कर लेना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती में खरपतवार नियंत्रण
सूरजमुखी की फ़सल को जमाव से 60 दिनों तक खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए बुआई के 18-20 दिनों बाद 15 दिनों के अन्तराल पर हाथ से निराई-गुड़ाई करें। फ़सल की लम्बाई जब 60-70 सेंटीमीटर हो जाए तो पौधों पर मिट्टी चढ़ाने का काम करना चाहिए। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालीन 1 किलोग्राम अथवा एलाक्लोर 1-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 1 से 2 दिन बाद छिड़काव करें।
सूरजमुखी की खेती में रोग और कीट प्रबन्धन
- रस्ट की समस्या: जल भराव की आशंका वाले खेतों में सूरजमुखी की फ़सल को लगाने से बचना चाहिए। फिर भी यदि किसी वजह से फ़सल में पानी लगने की समस्या देखें तो डाईथेन एम-45 अथवा डाईथेन जेड-78 प्रति 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें। इसके लिए बीजोपचार के वक़्त भी रस्ट की समस्या से रोकथाम की कोशिश की जाती है और कैप्टॉन अथवा थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है।
- अल्टरनेरिया ब्लाइटः इस रोग से बचाव के लिए रोगाणु मुक्त बीजों से बहुत फ़ायदा होता है। इसके अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फ़सल चक्र अपनाने से भी बहुत सुरक्षा मिलती है।
- डाउनी मिल्ड्यू: रोगरोधी संकर प्रजातियों की बुआई करें। बीजों को मेटालॉक्सिल 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बुआई करें।
सूरजमुखी की खेती में कीट नियंत्रण | |
कीट का प्रकार | प्रबन्धन |
कट वर्म | सिंचाई के साथ क्लोरोपाइरीफॉस का 3.75 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। |
केपिटूलम बोरर | इस कीट के अंडों और लार्वा को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए। साइपरमेथ्रीन (0.005 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
टोबेको केटरपिलर | इस कीट के अंडों और लावों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए। |
बिहार हेयर केटरपिलर हरा सेमीलूपर | डाईक्लोरवास (0.05 प्रतिशत) अथवा फेनीट्रोथियान (0.05 प्रतिशत) दवा का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
लीफ हॉपर | खेत और मेड़ की साफ़-सफाई रखें। फास्फोमिडान (0.03 प्रतिशत) अथवा डाईमेथोएट (0.03 प्रतिशत) दवा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अथवा, मेलाथियोन (5 प्रतिशत) अथवा क्यूनालफॉस (5 प्रतिशत) की दर से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दवा का प्रयोग करें। |
सूरजमुखी की कटाई और मड़ाई
सूरजमुखी के बीजों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत अथवा मुंडकों का पिछला भाग पीला भूरा रंग का हो जाए तब मुंडकों की कटाई करनी चाहिए। काटने के पश्चात मुंडकों को छाया में सुखा लें। इसके बाद डंडे अथवा थ्रेसर से इसकी मड़ाई की जा सकती है। बीजों का भंडारण करते समय नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से कम रहनी आवश्यक है।
सूरजमुखी की पैदावार
खेती की उन्नत तकनीकें अपनाकर यदि सूरजमुखी की खेती की जाए तो असिंचित इलाकों में इसकी पैदावार 12-15 क्विंटल तथा सिंचित इलाकों में 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की शानदार उपज प्राप्त होती है। इसीलिए सूरजमुखी को खेती को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाना किसानों के लिए बढ़िया मुनाफ़े का सौदा साबित होता है।
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