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हिमाचल प्रदेश के चायल के रहने वाले युवा प्रगतिशील किसान रवि शर्मा ने किसान ऑफ़ इंडिया से फूलों की खेती पर बात की। वो कई सालों से पॉलीहाउस में फूलों की खेती और इसके कारोबार से जुड़े हुए हैं। रवि शर्मा इससे पहले एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाने वाली कंपनी में काम करते थे।
रवि ने बताया शुरू में उन्होंने एक साल सब्जी की खेती की। फिर अपने गांव बांजनी आ गए और फूलों की खेती की शुरुआत की। रवि कहते हैं कि परंपरागत खेती की तुलना में इससे अच्छी कमाई की जा सकती है, इस कारण उन्होंने फूलों की खेती को चुना। रवि बतातें हैं कि उनके आस-पास के क्षेत्र में करीब 150 से 200 किसान फूलों की खेती पर काम कर रहे हैं।
फूलों की किन किस्मों की खेती?
रवि शर्मा ने इस सवाल के जवाब में कहा कि हम बहुत से फूलों पर काम करते हैं। लगभग सारे कट फ्लावर उगाते हैं। मुख्य रूप से कार्नेशन फूल का काम करते हैं। इसके अलावा, डेसी, गेलोडस, ऑर्नामेंटल केल, लिमोनियम जैसे कई फूलों की खेती कर रहे हैं।
कार्नेशन फूल की खेती का सही समय
अगर कोई पारंपरिक खेती से हटकर कुछ करना चाहता है तो कार्नेशन के फूलों की खेती अच्छा विकल्प हो सकती है। रवि शर्मा कहते हैं-
हम हिमाचल की जलवायु में कार्नेशन फूल की खेती कर रहे हैं। ये फूल यहां की जलवायु के अनुकूल है। इस फूल की खेती का करने का सही तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस है।
प्राकृतिक तरीके से फूलों की खेती
रवि ने बताया कि जब वो नौकरी छोड़कर हिमाचल आए थे। तो उनको खेती का ज़्यादा पता नहीं था। कुछ साल तो मिट्टी सुधारने में लग गए। बिना केमिकल के खेती करनी थी। इस कारण पद्मश्री सम्मानित किसान सुभाष पालेकर से जुड़े। उनके कैंप में ट्रेनिंग ली।
पहाड़ी और मैदानी इलाकों में फूलों की खेती
रवि कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती यहां का मौसम है। हमारे पास पानी की उपलब्धता बहुत कम है। हमको भूमिगत जल से काम चलाना होता है। हमको लैंडस्लाइड का भी सामना करना पड़ता है। बिना पानी के फूलों की खेती करना बड़ा मुश्किल काम है। मैदानी क्षेत्रों की बात की जाए तो बरसात खत्म होने के बाद और गर्मी आने से पहले वाले समय ही फूलों की खेती हो पाती है। खेत में पानी के भराव को रोकना चाहिए। मैदानी इलाकों में लंबे समय की फूलों की खेती नहीं हो पाती है। इसका एक कारण मौसम में बदलाव है। गर्मी में ग्रीन नेट लगाकर फूलों की खेती की जा सकती है।
कार्नेशन फूलों की खेती में किन बातों का रखें ध्यान?
कार्नेशन का फूल उत्पादन देने में 5 से 6 महीने लगाता है। सुभाष पालेकर का जैविक खेती का मॉडल इस्तेमाल कर सकते हैं। जैविक तरीके से स्यूडोमोनास और ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल करके मिट्टी की सेहत को सुधार सकते हैं।
फूलों की खेती में कितनी लागत?
कार्नेशन फूल की खेती में पॉलीहाउस का सेटअप लगाना पड़ता है। फूलों के बीज और पौधे लगाने के लिए बड़ा इन्वेस्टमेंट करना पड़ता है। अभी कार्नेशन का एक प्लांट 11 रुपये का आ रहा है। छोटे किसानों को नुकसान से बचने के लिए लगभग 15000 पौधें तो लगाने चाहिए। इसके साथ ही 800-900 स्क्वायर मीटर का एरिया पॉलीहाउस लगाने के लिए चाहिए।
फूलों की खेती में कितना मुनाफ़ा?
रवि ने बताया कि वो बीज और पौधे बाहर से मंगवाते हैं। कार्नेशन के प्लांट पुणे और बेंगलुरु से आते हैं। इम्पोर्टेड सीड जापान, अमेरिका से आता है। पॉलीहाउस का एरिया साढ़े चार हज़ार स्क्वायर मीटर है। उनका सालाना टर्नओवर 30-35 लाख रुपये आता है।
कार्नेशन फूल में रोग और इलाज
कारनेशन फूल में कॉलर रॉट, रूट रॉट, फ्यूजेरियम की बीमारियां आती हैं। इन सब से बचने के लिए प्राकृतिक खेती के साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आप इन सब चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते तो केमिकल के अलग-अलग फंगीसाइड इस्तेमाल किए जाते हैं।
बीमारियों के लक्षण जानने के लिए पौधों में आने वाले परिवर्तन दिखने लगते हैं। पौधे की पत्तियां, तना और जड़ों में परिवर्तन आने लगता है। फ्यूजेरियम में पत्ते मुरझाने लगते हैं। रुट रॉट में तना सही नहीं होगा, पत्तियां मुरझा जाएंगी और जड़ें सड़ जाएंगी। कॉलर रॉट में तना सही रहेगा लेकिन ऊपर का हिस्सा मुरझा जाएगा।
फूलों की मार्केट कैसे खोजें?
फूलों के बाज़ार की तलाश को लेकर रवि शर्मा ने कई अहम जानकारियां दीं। उन्होंने कहा-
हम जिन फूलों की खेती कर रहे हैं, वो दिल्ली की गाजीपुर मंडी में जाता है। अगर आपके फूल का उत्पादन अच्छा होता है तो वो विदेश में भी भेजा जाता है। दिल्ली के बाद फूल मुंबई और हैदराबाद जाता है। निजी स्तर पर आपको बाज़ार देखने पड़ेंगे। अगर छोटे किसान अन्य किसानों के साथ मिलकर बड़ी मंडी में माल भेज सकें तो ज्यादा मुनाफ़ा मिलता है। किसान पहले लोकल मार्केट की स्टडी करें। हम लोग आगे के 10 साल का अनुमान लगा कर प्लांटेशन करते हैं।
कार्नेशन फूल से जुड़ी अहम बातें
- कार्नेशन फूल एक सजावटी फूल है।
- इस फूल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल डेकोरेशन और गुलदस्तों में होता है।
- भारत में मुख्य तौर पर इन फूलों की खेती उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में की जाती है।
- ये लोकल मार्केट के साथ साथ विदेशी बाज़ार में भी अच्छी कीमत पर बिकता है।
- अक्टूबर से नवंबर के बीच कार्नेशन फूल की खेती की जाती है।
फूलों की कटाई
जब ये फूल बड़े हो जाते हैं तो इनकी कटाई के लिए चाकू और कैंची का इस्तेमाल किया जाता है। इनके फूलों को सावधानी से काटना होता है। इन फूलों की क्वालिटी जितनी अच्छी होगी, मांग भी उतनी ही ज़्यादा रहेगी और दाम भी अच्छा मिलेगा।