Statice Flower: स्टेटिस फूल की खेती कैसे फ़ायदेमंद? लगातार बढ़ रही है मांग

फूलों की खेती करके किसान कम लागत में लंबे समय तक मुनाफ़ा अर्जित कर सकते हैं, क्योंकि एक बार इन्हें लगाने के बाद बार-बार फूल तोड़कर बेचा जा सकता है। फूलों की खेती इसलिए भी फाफ़ायदेमंद है क्योंकि फूलों की मांग लगातार बढ़ रही है। अन्य फूलों के साथ ही स्टेटिस फूल भी बहुत लोकप्रिय हो रहा है।

Statice Flower स्टेटिस फूल की खेती

स्टेटिस फूल (Statice Flower): बाज़ार में जब आप कभी बुके (गुलदस्ता) लेते होंगे तो आपने देखा होगा कि एक गुलदस्ते को सजाने के लिए दूसरे फूलों के साथ ही बैंगनी या नीले रंग के छोटे-छोटे कई फूल फिलर के रूप में लगे होते हैं, जिनका डंठल लंबा होता है। दरअसल, यही स्टेटिस फूल (Statice Flower) होते हैं। इनका इस्तेमाल बगीचे को सजाने के साथ ही कृत्रिम सजावट के लिए भी किया जाता है, क्योंकि ये फूल लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं।

स्टेटिस के फूल (Statice Flower) काफ़ी लोकप्रिय हो चुके हैं, ऐसे में किसानों के लिए स्टेटिस फूल कीखेती फ़ायदेमंद साबित ही सकती है।

मिट्टी और जलवायु

स्टेटिस के फूल हर तरह की मिट्टी में उगाए जा सकते हैं। वैसे इसके लिए अच्छी तरह से सूखी रेतीली बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। वैसे इसे सूखी पत्थरीली मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है। फूलों की अच्छी उपज के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। पौधों की अच्छी बढ़ोतरी के लिए दिन का तापमान 24 और रात का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

बीज से पौधे उगाना

स्टेटिस फूल के पौधे बीज से उगाए जा सकते हैं। स्टेटिस के बीज आकार में छोटे होते हैं। इसे अंकुरित होने के लिए 13 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। बीज को अंकुरित होने में 10-15 दिन का समय लगता है। इस दौरान नर्सरी में नाइट्रोजन की कम मात्रा डाली जाती है। पौधे जब 4-5 सेन्टीमीटर के हो जाएं तो इन्हें नर्सरी से निकालकर खेत में लगाया जाता है। वैसे बीज के अलावा, कटिंग से भी इसके पौधे उगाए जा सकते हैं।

रोपाई का सही समय

स्टेटिस की रोपाई अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर की जाती है, जैसे समतल क्षेत्रों में अगस्त से सितंबर और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अप्रैल के बीच रोपाई की जाती है। स्टेटिस के पौधों को 30 सेन्टीमीटर की दूर पर रोपा जान चाहिए।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

इसकी नियमित सिंचाई ज़रूरी है। विकास के सभी चरणों और फूल आने की अवस्था में मिट्टी में नमी का होना ज़रूरी है। वरना पौधों के विकास और फूलों पर नकारात्मक असर पड़ता है। अच्छी फसल के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करना भी ज़रूरी है।

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खाद व उर्वरक

अच्छी उपज के लिए खाद व उर्वरकों की संतुलित मात्रा भी ज़रूरी है। इसके लिए रोपाई से 10-15 दिन पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद 5 किलो/मीटर की दर से डालें। पौधों के उचित विकास और ज़्यादा फूलों के लिए प्रति 100 वर्ग मीटर में एक किलो NPK का उपयोग करें। नाइट्रोजन का आधा हिस्सा, फॉस्फोरस और पोटैशियम की पूरी मात्रा को रोपाई से 3-4 दिन पहले खेत में डाले। बाकी बचे नाइट्रोजन को एक महीने बाद डाल दें।

फूलों को सुखाना

स्टेटिस फूल का इस्तेमाल फूलों के बगीचे को सजाने, रॉक गार्डन, पॉट प्लांट्स, बुके आदि के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही इसके फूलों को सुखाकर भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके फूल आमतौर पर नीले और बैंगनी रंग के होते हैं, लेकिन अब पीले, सफेद, गुलाबी, नारंगी आदि रंगों में भी ये मिलने लगे हैं। फूलों को सुखाकर एक साल या उससे भी अधिक समय के लिए रखा जा सकता है। सुखाने के लिए फूलों को पूरी तरह से खिले बिना ही लंबे डंठल के साथ काटकर हवादार जगह में नीचे की ओर झुका दिया जाता है या 1-2 हफ्ते तक कंटेनरों में खड़ा करके रखा जाता है। इसके लिए 10 डंडियों का एक गु्च्छा बनाया जाता है।

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रोग व कीट से बचाव

अधिक पैदावार और अच्छी गुणवत्ता वाली उपज के लिए पौधों को कुछ रोगों व कीट से बचाना ज़रूरी है।

कटवर्म- पौधों को ज़मीनी स्तर पर प्रभावित करने वाले इस कीट से बचाने के लिए पौधों पर 0.05% एंडोसल्फॉन स्प्रे करें।

एफिड, माइट, मिलीबग और थ्रिप्स- ये कीट पत्तियों, कोमल टहनियों और फूलों की कलियों से रस चूस लेता है। इससे पत्ते और फूल विकृत हो जाते हैं। इससे बचाव के लिए @0.03% डाइमेथोएट का इस्तेमाल करें।

डैम्पिंग ऑफ- यह रोग नर्सरी के पौधों में लगता है। इससे पौधे अचानक मर जाते हैं। इसके लिए 50 डिग्री सेल्सियस पर आधे घंटे तक पानी गर्म करके उपाचर करें या 0.1% बाविस्टिन का इस्तेमाल करें।

एंथ्रेक्नोज- इस रोग में पत्तियों, तनों और फूलों पर नेक्रोटिक धब्बे हो जाते हैं। इसके उपचार के लिए @0.1% बाविस्टिन और डाइथेनएम-45 @0.2% का स्प्रे करें।

लीफ स्पॉट- इस रोग में पत्तियों पर धब्बे दिखते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए क्लोरोथालोनिल 75% स्प्रे का उपयोग करें।

स्टोरी साभार: ICAR

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