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खेती के लिए जितनी अहमियत मिट्टी, जलवायु, बीज, खाद, देखरेख आदि की है, उससे कहीं ज़्यादा सिंचाई के पानी के गुणवत्ता की भी है। इसीलिए किसानों को मिट्टी की जाँच की तरह ही अपने खेतों को मिलने वाले सिंचाई के पानी की भी जाँच करवाते रहना चाहिए। क्योंकि पानी की गुणवत्ता का भी खेती से होने वाली कमाई पर सीधा प्रभाव पड़ता है। सिंचाई के जल स्रोत का सही-सही मूल्यांकन और उपयुक्त उपचार नहीं होने का दुष्परिणाम यह होता है कि किसान अपने पानी के गुणों के अनुरूप फ़सलों का चयन नहीं कर पाते और फ़सल को पर्याप्त मात्रा में खाद-उर्वरक देने के बावजूद उन्हें अच्छी पैदावार नहीं मिलती।
इसीलिए ये बहुत ज़रूरी है कि किसान, अपने खेतों की मिट्टी की तरह पानी की भी जाँच करवाकर ही बीजाई और बाग़वानी की दिशा में क़दम बढ़ाएँ। वो मिट्टी की तरह पानी का भी स्वास्थ्य कार्ड बनवाएँ और उसके गुणों का ध्यान रखकर उपयुक्त फ़सलें बोयें। सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से पता चलेगा कि उसकी तासीर लवणीय है या क्षारीय? क्योंकि यदि पानी लवणीय है तो खेत की मिट्टी को भी लवणीय बना देगा और यदि क्षारीय है तो यही गुण मिट्टी में पैदा करेगा।
सिंचाई के पानी की जाँच का महत्व
पानी की गुणवत्ता की जाँच और उपचार के कई पैमाने हैं। जैसे – पीएच मान, विद्युत चालकता, पानी की कठोरता या मृदुलता अथवा लवणीय या क्षारीय होने का स्तर। पीएच (pH) मान से पता चलता है कि पानी की प्रकृति अम्लीय है या क्षारीय। दरअसल, पानी का सबसे शुद्ध स्वरूप भले ही H2O कहलाता है जो हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन के एक परमाणु का यौगिक पदार्थ है। ये कहीं अपने शुद्ध स्वरूप में नहीं मिलता। शुद्ध पानी सिर्फ़ प्रयोगशाला या फैक्ट्री में बनाया जाता है। शुद्ध पानी को पीया भी नहीं जाता, क्योंकि इसकी शरीर की आवश्यक खनिजों की ज़रूरत पूरी नहीं हो सकती।
पानी में हमेशा कुछ खनिज और लवण घुले होते हैं। इनकी सामान्य मात्रा की ज़रूरत जीव जगत से लेकर वनस्पतियों तक, सभी प्राणियों को होती है। लेकिन इन्हीं खनिज और लवण की असामान्य मात्रा को प्रदूषण माना जाता है जो मानव निर्मित और कुदरती, दोनों हो सकते हैं। सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से उसकी सेहत का पता चलता है। जाँच से पानी में मौजूद हरेक खनिज और लवण की मात्रा का पता लगता है।
विद्युत चालकता की महिमा
सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से ही पानी की विद्युत चालकता या Electrical Conductivity (EC) का स्तर मापा जाता है। विद्युत चालकता को मापने की इकाई डेसीसीमेन्स प्रति मीटर या ‘dS/m’ कहलाती है। इसके उच्च मान का मतलब है – विद्युत संचालन की उच्च क्षमता यानी ज़्यादा विद्युत चालकता। इससे मिट्टी या पानी में घुले हुए खनिज और लवणों की मात्रा और सान्द्रता या गाढ़ेपन का पता चलता है। खनिज धातुओं में चाँदी की विद्युत चालकता सबसे ज़्यादा है। इसके बाद ताम्बा, एल्यूमिनियम और लोहे का स्थान है। शुद्ध जल की विद्युत चालकता सबसे कम है। जबकि काँच, लकड़ी, रबड़, प्लास्टिक आदि तो विद्युत के कुचालक हैं।
विद्युत चालकता के आधार पर पानी का वर्गीकरण | ||
विद्युत चालकता (dS/m) | पानी की गुणवत्ता | उपयुक्त फ़सलें |
1.5 से कम | साफ़, अच्छी गुणवत्ता | सभी फ़सलें |
1.5-3 | हल्का लवणीय, अच्छा | चावल, गेहूँ, ज्वार, मक्का, आलू, प्याज़ |
3-5 | ख़ारा, मध्यम लवणीय | गेहूँ, गाजर, मटर, मक्का |
5-10 | लवणीय, ख़राब, कम गुणवत्ता | जौ, चुकन्दर, कपास, बेर, गन्ना, पालक |
10-15 | अधिक लवणीय, बहुत ख़राब | कोई फ़सल नहीं |
खेत में वर्षा जल की रोकथाम
किसी भी खेत या फ़सल के लिए वर्षा जल से उत्तम, और कुछ नहीं है। हालाँकि, वायु प्रदूषण के स्तर से बारिश का पानी भी प्रदूषित होता है, लेकिन फिर भी किसान के लिए प्रकृति से मिलने वाला यही अधिकतम साफ़ पानी है। इस पानी में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है और नाइट्रोजन ही किसी भी मिट्टी का सबसे अहम पोषक तत्व है। इसीलिए कृषि विज्ञानी वर्षा जल का अधिकतम उपयोग करने की सिफ़ारिश करते हैं। किसानों के लिए वर्षा जल को यथा सम्भव खेत से बाहर नहीं जाने देने के उपाय अपनाना बेहद ज़रूरी है।
खेत में पानी रोकने के लिए वर्षा ऋतु से पहले जुताई करके ज़मीन को समतल करें और छोटी-छोटी क्यारियों में बाँट लें। इन क्यारियों में जमा होने वाला पानी के लिए सीधे बह जाना मुश्किल होगा और वो अपेक्षाकृत ज़्यादा आसानी से ज़मीन में रिस जाएगा। मिट्टी में नमी ज़्यादा होगी तो कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ेगी।
इससे फ़सल की लागत घटेगी और कमाई बढ़ेगी। यदि खेत की ज़मीन ही ढलान वाली है तो डोलबन्दी या मेड़ों के ज़रिये पानी के बह निकलने में अवरोध पैदा करना चाहिए। यानी, यथा सम्भव ढलान को ख़त्म करना चाहिए। क्योंकि वर्षा जल अपने साथ खेत में मौजूद लवणों और पोषक तत्वों को भी बहाकर ले जाता है। इससे मिट्टी का उपजाऊपन घटता चला जाता है।
सिंचाई के पानी की जाँच
बारिश का पानी तो हमेशा सुलभ होता नहीं, इसीलिए किसान को सिंचाई के लिए वैसा पानी ही इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसा सिंचाई का ज़रिया उसके पास सुलभ होता है। इसीलिए सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) पर ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है। क्योंकि दुनिया भर में साफ़ पानी की कमी की वजह से शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों में निम्न गुणवत्ता वाले यानी ख़ारे पानी का उपयोग बढ़ता जा रहा है।
ख़ारे पानी से प्रत्येक सिंचाई का दुष्प्रभाव ये होता है कि इसमें मौजूद नमक या लवण की कुछ मात्रा मिट्टी में जमा हो जाती है। यदि इस लवण का समुचित उपचार नहीं होगा तो धीरे-धीरे मिट्टी के जड़ मंडल में इतना नमक इकट्ठा हो जाता है कि उपज घटने लगती है।
मिट्टी के जड़ मंडल की सुरक्षा के उपाय
जिस वर्ष सामान्य यानी 400 मिलीमीटर से कम वर्षा हो उस साल अगली फ़सल की बुआई से पहले ख़ारे पानी से खेत की भारी सिंचाई करें, ताकि खेत का ज़्यादातर लवण घुलकर और रिसकर जड़ मंडल से नीचे चला जाए। यही सिंचाई यदि बहाव या फ्लडिंग विधि से करनी हो तो भी ज़मीन को यथा सम्भव समतल ही होना चाहिए। इससे अपेक्षाकृत कम पानी के उपयोग से पर्याप्त सिंचाई हो जाएगी।
बीजाई के वक़्त जहाँ तक सम्भव हो, सूखे खेत को ही चुने और बीजाई के बाद सिंचाई करें, क्योंकि अंकुरण और पौधों के अच्छी तरह जमने तक खेत के ऊपरी सतह पर पर्याप्त नमी होना ज़रूरी है। यदि सिंचाई को नाली विधि से करना हो तो डोल को यथा सम्भव पूरब से पश्चिम में प्रवाह वाली दिशा में बनाना चाहिए और बीजारोपण तथा पौधारोपण के लिए उत्तर से दक्षिण की ओर जाना चाहिए। ख़ासकर तब, जबकि सभी नालियों में पानी जाने लगे।
ख़ारे पानी से जुड़ी सावधानी
यदि सिंचाई के लिए ख़ारे पानी के इस्तेमाल की मज़बूरी हो तो यथा सम्भव टपक विधि को अपनाना चाहिए। इससे फ़सल पर ख़ारे पाने के लवणों का असर कम होता है। ध्यान रखें कि लवणीय-क्षारीय पानी का इस्तेमाल यदि फुहारा विधि की सिंचाई में किया जाएगा तो पत्तियों का इसका ज़्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है। इस दुष्प्रभाव को कम करने के लिए फुहारा विधि वाली सिंचाई रात में करना ज़्यादा उपयोगी साबित होता है।
दिन की धूप में जब लवणीय-क्षारीय पानी पत्तियों पर गिरेगा तो इससे उनकी प्रकाश संश्लेषण यानी फ़ोटो सिन्थेसिस की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सभी पौधे प्रकाश संश्लेषण से ही अपना भोजन तैयार करते हैं। लवणीय-क्षारीय पानी से उनके भोजन बनाने की प्रक्रिया का ज़ायक़ा ख़राब हो जाता है।
मीठे और ख़ारे पानी का मिश्रण
मीठा पानी भी ज़मीन और फ़सल के लिए हानिकारक हो सकता है। इसीलिए सभी बोरिंग के पानी की साल में दो बार जाँच करवाने की सिफ़ारिश की जाती है। यदि किसान के पास एक ही स्थान पर मीठा और ख़ारा पानी, दोनों के सीमित इस्तेमाल का विकल्प हो तो उसका मिश्रण ज़्यादा लाभकारी होगा। लेकिन ये सुनिश्चित होना चाहिए कि मिश्रित पानी की विद्युत चालकता उचित सीमा से ज़्यादा नहीं हो।
सम्भव हो तो मिश्रित पानी का चक्रीय विधि यानी बारी-बारी से मीठा और ख़ारा का इस्तेमाल करना चाहिए। चक्रीय विधि में मीठे पानी को फ़सलों की बढ़वार की प्रारम्भिक अवस्थाओं जैसे बीज का अंकुरण और कल्ले फूटने वाली अवस्था के वक़्त होना चाहिए। जबकि बाद की अवस्थाओं वाली सिंचाई के वक़्त यदि ख़ारे पानी का इस्तेमाल होगा तो फ़सल उत्पादन ज़्यादा प्रभावित नहीं होगा।
फ़सलों के चयन का महत्व
ऐसे किसानों को अपनी फ़सल का चयन बहुत सूझ-बूझ से करना चाहिए जो ख़राब या लवणीय-क्षारीय पानी के इस्तेमाल के लिए मज़बूर हैं। किसानों को कृषि विशेषज्ञों या नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करके ऐसी किस्मों का चुनाव करना चाहिए जिन्हें अपेक्षाकृत कम सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है या फिर जो किस्में लवणीय-क्षारीय मिट्टी-पानी के प्रति सहिष्णु हों।
सिंचाई जल के उपचार की तकनीकें
जिप्सम का उपयोग: सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से यदि ये पता चले कि समस्या क्षारीय जल की है तो इससे उबरने में जिप्सम का उपयोग बहुत फ़ायदेमन्द साबित होता है। इसके लिए सिंचाई के पानी के बहाव के रास्ते पर जिप्सम का बेड बनाना चाहिए या पानी की नालियों में जिप्सम के कट्टे रख दें। इससे थोड़ा-थोड़ा जिप्सम पानी में घुलता रहेगा और उसकी गुणवत्ता में सुधार होता रहेगा। यही काम पानी की क्षारीयता के स्तर के अनुसार खेत में जिप्सम डालने से भी किया जा सकता है।
ज़्यादा विद्युत चालकता की दशा में पानी में यदि घुलनशील लवण की मात्रा अधिक नहीं हो तभी उसका इस्तेमाल हल्की सिंचाई में करें। यदि इसका उच्च स्तर तो ऐसे जल का प्रयोग नहीं करें। यदि चुनौती कैल्शियम-मैग्नीशियम की प्रचुर मात्रा वाले पानी की हो तो इसका कुछ सीमा तक रेतीली दोमट मिट्टी में उपयोग हो सकता है। लेकिन बेहतर होगा कि इस पानी का उपयोग अच्छी गुणवत्ता वाले पानी के मिश्रण के साथ ही किया जाए।
यदि समस्या पानी में ज़्यादा सोडियम कार्बोनेट की हो तो इसका उपयोग करने से परहेज़ करें और यदि परहेज़ करना मुमकिन नहीं हो तो इसे खेत में जिप्सम डालकर ही करना चाहिए। यदि खेत की मिट्टी क्षारीय हो तब ऐसे पानी के उपयोग के वक़्त जिप्सम की अधिक मात्रा की ज़रूरत पड़ेगी। ज़्यादा सोडियम वाले पानी के मामले में अच्छी गुणवत्ता वाले जल के मिश्रण से फ़ायदा होता है।
जिस तरह जिप्सम के प्रयोग से क्षारीय पानी को उपयोग के लायक बनाया जा सकता है, वैसे ही गोबर की खाद के उपयोग से लवणीय पानी के प्रकोप से मिट्टी की प्रकृति को सन्तुलित रखने में बहुत मदद मिलती है। ख़ारे पानी में यदि नाइट्रेट की मात्रा ज़्यादा हो तो नाइट्रोजन आधारित उर्वरक की मात्रा को कम करने से फ़ायदा होता है।
सिंचाई के लिए वर्जित जल
यदि उपरोक्त तीनों समस्याएँ यानी विद्युत चालकता, कैल्शियम-मैग्नीशियम और सोडियम कार्बोनेट एक साथ हों तो वैज्ञानिक परामर्श लेना बेहद ज़रूरी है। अन्यथा, फ़सल तो ख़राब होगी ही, खेत भी चौपट होने लगेगा। ख़राब पानी से जूझ रहे खेतों को रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से भी नुकसान पहुँचता है। इसलिए खेत में ज़्यादा से ज़्यादा गोबर की सड़ी खाद, कम्पोस्ट और केंचुआ खाद आदि जैविक खेती के उपायों को अपनाना चाहिए।
ख़राब पानी से जूझने के लिए खेत में पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति की दूरी कुछ घटा दें और बीज की मात्रा 20-25 प्रतिशत बढ़ा दें। साथ ही निराई-गुड़ाई पर पूरा ध्यान दें। हो सके तो खेत की ज़मीनी सतह पर मल्च का प्रयोग करें। इससे पानी का वाष्पीकरण कम होगा और मिट्टी की सतह पर अपेक्षाकृत कम लवण इकट्ठा होंगे।
सिंचाई जल का नमूना लेने की विधि
- ट्यूबवेल के सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) साल में दो बार यानी रबी और खरीफ में अवश्य करवाएँ। इसे दो-तीन घंटे चलाने के बाद ही जाँच के लिए आधा लीटर पानी का नमूना प्लास्टिक या काँच की साफ़ बोतल में इकट्ठा करें।
- नमूना लेते वक़्त उसी पानी से बोतल को 3-4 बार ढंग से धो लें। बोतल धोने के लिए साबुन या डिटर्जेंट का इस्तेमाल नहीं करें। किसी भी धातु की बोतल या पात्र या दवा की बोतल में नमूना नहीं लें।
नमूने की बोतल पर अपना नाम-पता और यदि पानी के गुण को लेकर कोई समस्या हो तो उसके बारे में साफ़-साफ़ लिखें। इसे यथा शीघ्र मिट्टी और जल परीक्षण प्रयोगशाला में भेजें तथा पानी की रिपोर्ट के आधार पर ही फ़सल के चयन से लेकर सिंचाई की प्रक्रिया को अपनाएँ।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।