Trichoderma fungicide: जानिए, क्यों खेती का सबसे शानदार जैविक दोस्त है ट्राइकोडर्मा फफूँद?

प्राकृतिक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) से कीटनाशकों की निर्भरता घटाएं, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं – किसान इसे घर पर आसानी से बना सकते हैं।

Trichoderma ट्राइकोडर्मा

ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) ऐसा अद्भुत फफूँद है जिसे कृषि विज्ञानियों ने खेती की दीर्घकालिक उत्पादकता का अनिवार्य और टिकाऊ घटक माना गया है। ये किसानों के बेहतरीन दोस्त और मिट्टी के कार्बनिक अवशेषों का परजीवी तथा पौधों के जड़-तंत्र में सक्रिय रहने वाले सूक्ष्म जीव हैं। ट्राइकोडर्मा की दो प्रसिद्ध प्रजातियाँ हैं – विरिडी और हर्जिनियम। प्राकृतिक रूप से पनपने वाले ये कवक या फंगस, फ़सलों के रोग और कीट नियंत्रण से लेकर जैविक खाद तक की भूमिका निभाते हैं।

खेती में ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) के इस्तेमाल से रासायनिक दवाओं और कीटनाशकों पर निर्भरता कम होती है। मिट्टी के पोषक तत्वों में भी सुधार होता है और वो उपजाऊ बनती है। ट्राइकोडर्मा, हर तरह से पर्यावरण हितैषी है। इसे घरेलू स्तर पर भी किसान बेहद आसानी से पैदा कर सकते हैं।

ट्राइकोडर्मा से रोग नियंत्रण

ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) ऐसे एंजाइम पैदा करते हैं जो बीजों और पौधों के अलावा खेत की मिट्टी की भी रोग प्रतिरोधकता, पोषक तत्वों के अवशोषण और एँटीऑक्सीडेंट गतिविधियों की क्षमता को बढ़ाते हैं। ये मिट्टी में पाये जाने वाले सूत्रकृमि और रोगाणुओं, जैसे – फाइटोफ्थोरा, पाइथियम, फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, सोलन मैक्रोफोनिया, फेसियोलिना, स्क्लेराशियम आदि की वृद्धि को रोककर अथवा उन्हें मारकर पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

इससे पौधों की सतत वृद्धि सुनिश्चित होती है। ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) के विपरीत रासायनिक खाद और कीटनाशकों से सेवन से जहाँ फ़सल के लिए लाभदायक जीवाणुओं को भारी नुकसान पहुँचता है, वहीं इसके ज़हरीले तत्वों से पैदावार से लेकर भोजन तक प्रदूषित होता है, जो आहार चक्र के माध्यम से प्राणी जगत के लिए अनेक दुष्प्रभाव पैदा करते हैं।

ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल से नियंत्रित रोग
रोग का नाम प्रभावित फ़सल
विल्ट केला, खीरा, कपास, टमाटर, बैंगन आम, लीची
राइजोम रॉट अदरक, हल्दी, प्याज
शीथ रॉट और शीथ व्हाइट धान
रूट रॉट चाय, शिमला मिर्च, काली मिर्च
कॉलर रॉट बैंगन, चाय, जिमीकन्द/ ओल
डेमपिंग ऑफ़ स्ट्रॉबेरी, टमाटर, आलू, फूलगोभी, मटर, अदरक, हल्दी, सोयाबीन

कैसे करें ट्राइकोडर्मा का घरेलू उत्पादन?

उत्पादन विधि: एक क्विंटन या 100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट या नीम की खली को किसी छायादार शेड में फैलाकर रखें। इसके ऊपर एक किलोग्राम व्यावसायिक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का छिड़काव करके इसे कुदाल या फाबड़े से अच्छी तरह मिला दें।

यदि ये मिश्रण ज़्यादा सूखा हुआ लगे तो हल्के पानी के छीटों से उसकी नमी बढ़ा दें। अब पूरे मिश्रण को पॉलीथीन या गीले बोरे से ढककर छोड़ दें, ताकि ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) फफूँद के पर्याप्त बीजाणुओं का अच्छी तरह अंकुरण  हो सके। इसके बाद अगले तीन हफ़्तों तक हर सप्ताह में एक बार मिश्रण को फाबड़े से मिलाते रहें और फिर ढककर छोड़ दें। इस तरह तीन हफ़्ते यानी 20-21 दिन बाद पूरा मिश्रण ‘सम्वर्धित ट्राइकोडर्मा’ के रूप में उपयोग के लिए तैयार हो जाएगा।  

अतिरिक्त आमदानी: ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का घरेलू उत्पादन करने के लिए किसान को पहली बार तो इसके व्यावसायिक उत्पाद की छोटी मात्रा का बीज तरह इस्तेमाल करना होगा। लेकिन इसी मात्रा से वो अपनी ज़रूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में ट्राइकोडर्मा का उत्पादन करके उसे न सिर्फ़ अपने बड़े से बड़े खेतों में इस्तेमाल कर सकते हैं, बल्कि चाहें तो अधिक उत्पादन करके आसपास के अन्य किसानों को भी ट्राइकोडर्मा बेचा सकता है। इससे कुछ अतिरिक्त आमदनी भी सम्भव है।

ट्राइकोडर्मा से जुड़ी सावधानियाँ

ट्राइकोडर्मा उत्पादन के लिए ख़रीदे जाने वाले फ़ॉर्मूलेशन को प्रमाणित संस्था अथवा कम्पनी से ही ख़रीदें। इसका दाम प्रति किलोग्राम 250 से 400 रुपये के बीच हो सकता है। इसे 6 महीने से ज़्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) से बीजों या पौधों का उपचार करने का काम सूखी और छायादार जगह पर ही करें। ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल के बाद 4-5 दिनों तक किसी भी अन्य रासायनिक फंगीसाइड का प्रयोग नहीं करें।

सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग नहीं करें क्योंकि इसे विकसित होने और जीवित रहने के लिए नमी की आवश्यकता पड़ती है। ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीजों पर सीधे धूप नहीं पड़ने दें। कार्बनिक खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाने के बाद बने मिश्रण को यथा शीघ्र इस्तेमाल करें और लम्बे समय के लिए नहीं रखें।

भंडारण में सावधानी: ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) की गुणवत्ता में आम तौर पर छायादार सामान्य तापमान में तीन-चार महीने तक कोई ख़ास कमी नहीं आती। इसीलिए इसे उत्पादन के 6 महीने के भीतर इस्तेमाल कर लेने की सलाह दी जाती है। सामान्य तापमान पर रखे गये 6 महीने से ज़्यादा पुराने ट्राइकोडर्मा  चाहिए। इससे ज़्यादा वक़्त के लिए यदि ट्राइकोडर्मा का भंडारण करना ज़रूरी हो तो इसकी गुणवत्ता को दो लाख जीवाणु प्रति ग्राम या मिलीलीटर के स्तर पर कायम रखना मुश्किल हो सकता है।

इसीलिए यदि ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) के भंडारण को यदि लम्बे वक़्त के लिए करना हो तो इसके पैकेट को फ़्रिज में 8 से 10 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखना ज़रूरी हो जाता है ताकि इसमें पैकेट में 8 प्रतिशत नमी और पीएच मान 7 को क़ायम रखा जा सके।

वर्जित प्रयोग: ट्राइकोडर्मा, बुनियादी तौर पर एक जैविक या कार्बनिक खाद है। इसीलिए इसका इस्तेमाल अन्य जैविक खाद जैसे – राइजोबियम, एजोस्पिरिलम, बैसिलस सबटिलिस और फॉस्फोबैक्टरिया आदि के साथ भी निःसंकोच किया जा सकता है। इसे ‘मेटालैक्जिल और थीरम’ जैसे रासायनिक फंगीसाइड से उपचारित बीजों के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन अन्य किसी भी रासायनिक फंगीसाइड के साथ ट्राइकोडर्मा का उपयोग कतई नहीं करना चाहिए।

Trichoderma fungicide: जानिए, क्यों खेती का सबसे शानदार जैविक दोस्त है ट्राइकोडर्मा फफूँद?

ट्राइकोडर्मा की कार्य प्रक्रिया

यह रोगकारक जीवाणुओं को मारकर पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इससे रासायनिक दवाईयों, विशेषकर फंगीसाइड्स पर निर्भरता ख़त्म होती है। ट्राइकोडर्मा, मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की रफ़्तार को तेज़ करता है। ये इसकी जैव उर्वरक वाली भूमिका है। इसके इस्तेमाल से पौधों में एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि बढ़ती है। इसके फ़सल में पोषक तत्व और खनिजों की मात्रा बेहतर होती है। यह फॉस्फेट और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है। इससे पौधों की जड़ों में सूखारोधी क्षमता बढ़ती है। ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) में ऑर्गेनोक्लोरीन, ऑर्गेनोफॉस्फेट और कार्बामेट समूह के कीटनाशकों को नष्ट करने की भी क्षमता होती है। इस तरह ये मिट्टी के प्रदूषणकारी तत्वों का भी जैविक उपचार करते हैं।

ट्राइकोडर्मा की उपयोग विधि

जैविक खाद के रूप में: ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) के घरेलू उत्पादन की ऊपर बतायी गयी विधि से तैयार हुए ‘सम्वर्धित ट्राइकोडर्मा’ का उपयोग खेत में जैविक खाद डालने के रूप में करना चाहिए। ऐसे ‘सम्वर्धित ट्राइकोडर्मा’ का तीन हफ़्ते पुराना मिश्रण खेत में छिड़काव के लिए सबसे बढ़िया होता है। बाग़वानी पौधों जैसे आम, लीची आदि में जड़ और तने के बीच रिंग बेसिन बनाकर भी ‘सम्वर्धित ट्राइकोडर्मा’ खाद को डालने से उत्पादन में वृद्धि होती है।

मिट्टी का रोग उपचार: बुआई या रोपाई से पहले खेत की मिट्टी को रोग मुक्त करने के लिए एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर गीले बोरे से ढककर रखना चाहिए। ताकि उसमें ट्राइकोडर्मा (Trichoderma)  के पर्याप्त बीजाणु अंकुरित हो जाएँ। फिर इस कम्पोस्ट को एक एकड़ खेत की मिट्टी में मिला दें और बुआई या रोपाई करें।

बीज उपचार या ‘सीड प्राइमिंग’: बुआई से पहले बीजों को किसी ख़ास घोल में भिगोकर छाँव में सुखाने की प्रक्रिया को ‘सीड प्राइमिंग’ कहते हैं। इसके लिए ट्राइकोडर्मा के उसी पाउडर फ़ॉर्मूलेशन का इस्तेमाल करना चाहिए जिसे प्रमाणित संस्था अथवा कम्पनी से ही ख़रीदा गया हो। ट्राइकोडर्मा से ‘सीड प्राइमिंग’ करने के लिए सबसे पहले गाय के गोबर का गाढ़ा घोल या स्लरी बनाएँ। प्रति लीटर स्लरी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) पाउडर मिलाएँ। इसमें क़रीब एक किलोग्राम बीज को थोड़ी देर डुबोकर रखें। फिर बीजों को बाहर निकालकर छाया में थोड़ी देर सूखने दें। अब ये बीज बुआई के लिए तैयार हैं।

अनाज, दलहन और तिलहन फ़सलों की बुआई से पहले ‘सीड प्राइमिंग’ करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। क्योंकि ‘सीड प्राइमिंग’ से ट्राइकोडर्मा, बीज की सतह पर अपना उपनिवेश बना लेता है, जो न सिर्फ़ बीज में मौजूद रोगाणुओं को नष्ट करता है, बल्कि बुआई के बाद मिट्टीजनित रोगों से भी पौधों को सुरक्षा प्रदान करता रहता है।

कन्द उपचार: एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर फ़ॉर्मूलेशन का घोल बना लें। इस घोल में आधे घंटे तक कन्द को डुबोकर रखें। इसके बाद घोल से कन्द को निकालकर आधे घंटे तक छाया में रखने के बाद बुआई के लिए इस्तेमाल करें।

नर्सरी उपचार: बुआई से पहले 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) पाउडर फ़ॉर्मूलेशन को एक लीटर पानी में घोलकर नर्सरी की क्यारी को भिगोएँ।

कलम और अंकुरित पौधों का जड़ शोधन: एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर फ़ॉर्मूलेशन को घोलकर उसमें कलम और अंकुरित पौधों की जड़ों को 10 मिनट के लिए डुबोकर रखें। फिर इनका रोपण करें।

पौधों पर छिड़कावः कुछ खास तरह के रोगों जैसे-पर्ण चित्ती, झुलसा आदि की रोकथाम के लिए पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5-10 ग्राम ट्राइकोडमा पाउडर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

Trichoderma fungicide: जानिए, क्यों खेती का सबसे शानदार जैविक दोस्त है ट्राइकोडर्मा फफूँद?

ट्राइकोडर्मा विरिडी की प्रयोगशाला में वृद्धि (चित्र साभार: खेती पत्रिका)

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