कोरना काल में ‘प्राकृतिक खेती’ बनी वरदान – हिमाचल के किसान प्रदीप वर्मा की कहानी

कोरना काल में हिमाचल के प्रदीप वर्मा ने प्राकृतिक खेती से कम लागत में बेहतर मुनाफ़ा कमाकर किसानों को दी नई दिशा।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के ठियोग ब्लॉक के एक छोटे से गांव उलगा में रहने वाले किसान प्रदीप वर्मा ने कोविड-19 के कठिन समय में भी हार नहीं मानी। जब देशभर के लाखों किसान कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक तंगी और नुकसान से जूझ रहे थे, तब प्रदीप जी ने अपनी मेहनत और प्राकृतिक खेती के भरोसे न केवल संकट का सामना किया, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बने।

प्रदीप जी ने रासायनिक खेती की बजाय प्राकृतिक तरीके से खेती करना चुना। इस पद्धति से उनकी लागत कम हुई और उत्पाद की गुणवत्ता भी बेहतर रही। यही कारण रहा कि लॉकडाउन और बाज़ार की चुनौतियों के बावजूद उन्होंने लाखों रुपये की आमदनी की। आज वे अपने गांव और आसपास के इलाकों के किसानों के लिए एक नई राह दिखा रहे हैं, जो खेती को सिर्फ़ गुज़ारे का जरिया नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक व्यवसाय मानते हैं।

रासायनिक खेती से हटकर ‘प्राकृतिक खेती’ की ओर पहला कदम (The first step away from chemical farming towards ‘natural farming’)

प्रदीप वर्मा ने एक समय तक करीब डेढ़ दशक तक रासायनिक खेती की। उन्हें इसके लिए जिला स्तर पर कई पुरस्कार भी मिले। लेकिन जैसे-जैसे बाज़ार में रसायनों पर निर्भरता बढ़ी, प्रदीप जी को लगने लगा कि यह तरीका लंबे समय तक सही नहीं है। उन्होंने इंटरनेट से प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी जुटाई और फिर ATMA (एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी) से संपर्क किया। अक्टूबर 2018 में उन्होंने सुभाष पालेकर द्वारा आयोजित 6 दिवसीय प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने अपने 1.4 बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती की शुरुआत की।

शुरुआत में लोगों ने किया हतोत्साहित, लेकिन… (People discouraged me in the beginning, but)

जब प्रदीप वर्मा ने अपने गांव के अन्य किसानों से प्राकृतिक खेती करने की बात कही, तो ज़्यादातर लोगों ने उन्हें निरुत्साहित किया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनका कहना था,
“मैं अपने प्लान पर डटा रहा। जैसे-जैसे नतीजे आने लगे, मैंने एक के बाद एक नई फ़सलें उगानी शुरू कीं।” आज वे अपने 5 बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और एक साल में एक ही फ़सल से तीन-चार बार उत्पादन कर लेते हैं।

कोविड काल में भी हुई बंपर कमाई (Bumper earnings were made even during the Covid period)

कोविड लॉकडाउन के समय जब पूरा देश ठहर सा गया था और ज़्यादातर कामकाज बंद हो गए थे, तब भी प्रदीप वर्मा जी की मेहनत रंग लाई। उन्होंने अपने खेत में एक साथ कई तरह की फ़सलें उगाईं और प्राकृतिक खेती से शानदार आमदनी हासिल की। उन्होंने अपने खेतों में 18 क्विंटल ब्रोकोली, 1.5 क्विंटल मटर, और 12 क्विंटल कद्दू उगाकर बाज़ार में बेचा, जिससे उन्हें करीब ₹2 लाख की कमाई हुई। इतना ही नहीं, लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही उन्होंने ₹50,000 की बिक्री कर ली थी, जिससे उन्हें शुरू में ही आर्थिक सहारा मिल गया।

प्रदीप जी मानते हैं कि कोविड के समय लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी, और इसी कारण प्राकृतिक खेती से तैयार उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ी। लोग अब रासायनिक खाद से उगाई फ़सलों की जगह शुद्ध और सेहतमंद विकल्प तलाशने लगे हैं, और यही वजह है कि उनकी फ़सलें अच्छे दामों पर बिक सकीं।

कोरना काल में 'प्राकृतिक खेती' बनी वरदान – हिमाचल के किसान प्रदीप वर्मा की कहानी

मेरी सब्जियां अब हॉट केक की तरह बिकती हैं (My vegetables now sell like hot cakes)

प्रदीप वर्मा कहते हैं,
“जब से मैंने प्राकृतिक खेती शुरू की है, मेरी सब्जियां स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के कारण हॉट केक की तरह बिक रही हैं।” अब वे फ्रेंच बीन्स, मक्का, जुगनी, मटर, ब्रोकली और गेंदा फूल जैसी कई फ़सलें उगाते हैं, वह भी बिना किसी रसायन के।

अब बना रहे हैं ‘ज़हरमुक्त खेती’ का मॉडल (Now they are creating a model of ‘poison free farming’)

प्रदीप जी की सफलता देखकर आसपास के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। उन्होंने एक समूह बनाया है – ‘ज़हरमुक्त खेती उत्पाद समूह’ – जो प्राकृतिक उत्पादों की मार्केटिंग का काम करता है। उनका अगला सपना है एक कोल्ड स्टोर खोलना ताकि सब्जियों को सही तापमान में संरक्षित रखा जा सके। इसके साथ ही वे सेब और नाशपाती की बागवानी में भी प्राकृतिक खेती के मॉडल को विकसित करना चाहते हैं।

‘पहाड़ी गाय’ को लौटाई पहचान (Identity returned to ‘Pahari Cow’)

उनका कहना है कि पहले गांव में लोग ‘जर्सी गाय’ पालते थे, लेकिन अब प्राकृतिक खेती बढ़ने से फिर से ‘पहाड़ी गाय’ की मांग बढ़ गई है। ये स्थानीय नस्लें कम खर्च में ज़्यादा लाभ देती हैं और मिट्टी व पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती हैं।

रासायनिक बनाम प्राकृतिक खेती (Chemical vs. Natural Farming)

खेती का प्रकार खर्च
रासायनिक खेती ₹10,000
प्राकृतिक खेती ₹2,500

इन आंकड़ों से साफ है कि कम लागत और अधिक लाभ वाली प्राकृतिक खेती ही भविष्य की राह है।

पुरस्कार और पहचान (Awards and recognition)

प्रदीप वर्मा को 2019 में ‘शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज’ द्वारा ‘बेस्ट फार्मर’ अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें प्राकृतिक खेती और जैविक सब्जियों के उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिला।

निष्कर्ष (Conclusion)

प्रदीप वर्मा की कहानी यह दिखाती है कि अगर सोच सकारात्मक हो, तो प्राकृतिक खेती जैसे पर्यावरण हितैषी विकल्प अपनाकर कोई भी किसान न सिर्फ़ अच्छी आमदनी कमा सकता है बल्कि समाज को भी एक नई दिशा दे सकता है।उनका सफर उन लाखों किसानों के लिए प्रेरणा है जो रसायनों के जाल से बाहर निकलकर एक नई और टिकाऊ खेती की राह चुनना चाहते हैं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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