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कहते हैं अगर इरादे मजबूत हों तो उम्र या हालात कुछ भी आड़े नहीं आते। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के चिरगांव ब्लॉक के सांडासू गांव के रहने वाले भगत सिंह राणा ने इसे सच कर दिखाया है। सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद जहां लोग आराम करने की सोचते हैं, वहीं भगत सिंह राणा ने अपनी ज़िंदगी का दूसरा पड़ाव शुरू किया — और वो भी प्राकृतिक खेती और सेब की खेती के साथ।
सरकारी नौकरी के बाद खेती की ओर वापसी (Return towards farming after government job)
भगत सिंह राणा हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड (HPSEBL) में जूनियर इंजीनियर के पद से 2017 में रिटायर हुए। लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने खाली बैठना पसंद नहीं किया। वे पहले से ही खेती से जुड़े थे और खेती में रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से हमेशा असहमत रहते थे।
सरकारी नौकरी के दौरान भी वे छोटे स्तर पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग करते रहे। उन्होंने इंटरनेट और पुस्तकों से ज्ञान हासिल किया और खेती को रसायन मुक्त बनाने की ठान ली थी।
प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण शिविर से मिली नई दिशा (Subhash Palekar got new direction from natural farming)
2018 में कृषि विभाग द्वारा कुफरी में आयोजित सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के 6 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में शामिल होकर भगत सिंह राणा ने प्राकृतिक खेती को सही मायनों में समझा। खुद सुभाष पालेकर जी ने किसानों को प्रशिक्षण दिया और भगत सिंह राणा की सोच को नई ऊर्जा दी।
भगत सिंह राणा बताते हैं कि वे हमेशा से ही रसायन मुक्त खेती करना चाहते थे क्योंकि रासायनिक खेती के चलते उनकी जमीन बेजान हो गई थी। उत्पादन भी कम होता जा रहा था और हर साल फ़सल में बीमारियां बढ़ती जा रही थीं।
सेब की खेती में किया बदलाव और मिली सफलता (Change and success in apple cultivation)
शिविर के बाद भगत सिंह राणा ने अपनी 25 बीघा ज़मीन को पूरी तरह से प्राकृतिक खेती में बदल दिया। उन्होंने न केवल सब्ज़ियां और अनाज बल्कि सेब की खेती में भी रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया।
उनकी बागवानी में सेब के विभिन्न प्रजातियाँ जैसे Red Super Chief, Royal Delicious, Red Chief और Oregon Spur के साथ-साथ नाशपाती, बेर, आलूबुखारा और आड़ू जैसे फल भी उगाए जाते हैं। इसके अलावा गेहूं, मक्का, कोड़ा, गोभी, मटर भी उगाए जाते हैं।
गाय के गोबर और गौमूत्र से तैयार प्राकृतिक इनपुट (Natural inputs prepared from cow dung and cow urine)
प्राकृतिक खेती में भगत सिंह राणा गाय के गोबर और गौमूत्र का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। वे हर फ़सल के लिए यही प्राकृतिक खाद तैयार करते हैं। रासायनिक खेती में जहाँ सालाना खर्च करीब 80,000 रुपये होता था और आय 1,20,000 रुपये होती थी, वहीं प्राकृतिक खेती में खर्च केवल 1000 रुपये रह गया और आय बढ़कर 1,50,000 रुपये तक पहुँच गई।
भगत सिंह राणा बताते हैं कि उनकी सेब की खेती में अब सेब का रंग, स्वाद और गुणवत्ता पहले से कहीं बेहतर हो चुकी है। छोटे पौधे भी तेजी से बढ़ रहे हैं और रासायनिक प्रभाव से जमीन जो बेजान हो गई थी, वह फिर से उपजाऊ हो चुकी है।
गौशाला और समाज सेवा की ओर कदम (Steps towards cowshed and social service)
भगत सिंह राणा सिर्फ़ अपनी खेती तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने एक गौशाला भी शुरू की है जिसमें 35 बेसहारा गायों को शरण दी है। वे अपनी प्राकृतिक खाद तैयार करने के बाद अतिरिक्त खाद को इच्छुक किसानों को मुफ्त में भी वितरित करते हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा किसान प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो सकें। उनका उद्देश्य अब यही है कि वे अधिक से अधिक किसानों को इस रसायन मुक्त खेती के फ़ायदे समझाएं और उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाएं।
सेब की खेती में क्यों करें प्राकृतिक खेती का चुनाव? (Why choose natural farming in apple cultivation?)
- बेहतर गुणवत्ता और स्वाद:
भगत सिंह राणा के अनुभव के अनुसार प्राकृतिक खेती से उगाए गए सेब की खेती में फल ज़्यादा चमकदार, स्वादिष्ट और ताजे रहते हैं। - कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा:
रासायनिक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती में लागत बहुत कम आती है और आय में बढ़ोतरी होती है। - स्वस्थ जीवनशैली:
भगत सिंह राणा बताते हैं कि देसी गाय के दूध और प्राकृतिक फलों के सेवन से उनके परिवार के स्वास्थ्य में भी सुधार आया है। - पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद:
प्राकृतिक खेती से न केवल जमीन की उर्वरता बढ़ती है बल्कि पर्यावरण भी स्वच्छ और सुरक्षित रहता है।
किसानों के लिए भगत सिंह राणा का संदेश (Bhagat Singh Rana’s message for farmers)
भगत सिंह राणा मानते हैं कि अब समय आ गया है जब किसानों को रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती अपनानी चाहिए। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है, बल्कि लोगों को भी रसायन मुक्त और स्वस्थ भोजन मिल सकता है। उनका मानना है कि यदि किसान सही दिशा में प्रयास करें तो सेब की खेती और अन्य फ़सलों में प्राकृतिक तरीकों से भी बेहतरीन परिणाम मिल सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
भगत सिंह राणा की कहानी बताती है कि अगर मन में ठान लें और सही मार्गदर्शन मिले तो प्राकृतिक खेती के ज़रिए हम अपनी भूमि, पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचा सकते हैं। भगत सिंह राणा ने सेब की खेती में बदलाव लाकर और प्राकृतिक विधियों को अपनाकर न केवल खुद का जीवन संवारा बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बने। ये कहानी हर उस किसान के लिए उम्मीद की किरण है जो खेती में नई सोच और बदलाव लाना चाहता है।
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