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विकास दास, असम के बिस्वनाथ जिले के थालिपुखुरी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने साल 2008 में खेती में एक बड़ा बदलाव करते हुए रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया। उनका मानना है कि खेती सिर्फ़ एक व्यवसाय नहीं बल्कि प्रकृति से जुड़ाव का माध्यम है।
विकास दास की सोच में यह बदलाव तब आया जब उन्होंने पतंजलि योग समिति के साथ काम करना शुरू किया और एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाया। इसके साथ ही उन्होंने कृषि में भी स्वास्थ्य और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाने का निर्णय लिया। आज वे अपने गांव में जैविक और प्राकृतिक खेती के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।
सरकारी योजनाओं और प्रशिक्षण का लाभ (Benefits of government schemes and training)
विकास दास ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के तहत ऑर्गेनिक ग्रोवर और ग्रुप फार्मिंग की ट्रेनिंग ली। इस प्रशिक्षण के बाद उन्होंने ना सिर्फ़ अपने खेतों में प्राकृतिक खेती शुरू की, बल्कि अन्य किसानों को भी प्रशिक्षित किया। वे बिस्वनाथ कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर और ATMA जैसी संस्थाओं से भी जुड़े हैं और नियमित रूप से तकनीकी सलाह व सहयोग प्राप्त करते हैं।
प्राकृतिक खेती से उत्पादन और मुनाफ़े में इज़ाफा (Increase in production and profit through natural farming)
विकास दास पहले रासायनिक खेती करते थे, जिसमें एक एकड़ पर उन्हें लगभग ₹58,000 खर्च आता था और मुनाफ़ा सीमित था। लेकिन जब उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाया, तो उनकी लागत घटकर ₹30,000 रह गई और आमदनी में भी वृद्धि हुई।
उनकी खेती में शामिल हैं:
- धान (काला नमक वैरायटी)
- आलू
- तिल
- मशरूम
- मौसमी सब्जियां
इसके अलावा वे आंवला, पपीता और नींबू जैसे फलों की खेती भी करते हैं। उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती से फ़सलों का स्वाद, गुणवत्ता और पोषण मूल्य बेहतर हुआ है।
पशुपालन और समग्र प्राकृतिक मॉडल (Animal husbandry and the holistic natural model)
विकास दास के पास 2 गाय, 12 बकरियां, 15 मुर्गियां और मधुमक्खियों के चार बॉक्स हैं। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती केवल फ़सलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र कृषि मॉडल है जिसमें पशुपालन, मधुमक्खी पालन और जैविक खाद निर्माण भी शामिल है। गाय का गोबर और गोमूत्र वे जीवामृत, घनजीवामृत और कीट नाशक तैयार करने में प्रयोग करते हैं। इससे खेती की लागत घटती है और पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर होता है।
कीट प्रबंधन के देसी तरीके (Indigenous methods of pest management)
प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर वे देसी विधियां अपनाते हैं:
- नींबू का रस
- मिर्च और लहसुन का घोल
- गोमूत्र और तंबाकू की पत्तियां
इन उपायों से फ़सलें सुरक्षित रहती हैं और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।
ऊर्जा के लिए सौर प्रणाली (solar system for energy)
विकास दास ने सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा आधारित पंप का उपयोग शुरू किया है। इससे न केवल बिजली की बचत होती है, बल्कि जल संरक्षण भी संभव होता है। यह तकनीक उन्होंने कृषि विभाग की मदद से अपनाई है।
किसानों को प्रेरित करने वाले बदलाव (Changes that inspired farmers)
आज विकास दास केवल एक सफल किसान नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक प्रशिक्षक भी हैं। उन्होंने अब तक 60 से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षित किया है। वे अपने खेतों में नियमित रूप से भ्रमण करवाते हैं ताकि अन्य किसान भी इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित हों। वे स्वास्थ्य शिविरों, योग कार्यक्रमों और जैविक उत्पादों की प्रदर्शनी के जरिए अपने सामाजिक योगदान को भी आगे बढ़ा रहे हैं।
बाज़ार में पहचान और ब्रांडिंग (Market identity and branding)
विकास दास अपने उत्पादों की स्थानीय बाज़ार में सीधी बिक्री करते हैं। उनके उत्पादों की शुद्धता और गुणवत्ता के कारण मांग बढ़ती जा रही है। वे सुपरमार्केट, मंडियों और किसानों के मेलों में भाग लेकर अपने उत्पाद बेचते हैं। उनका मानना है कि अगर कोई किसान प्राकृतिक खेती को सही जानकारी और समर्पण के साथ अपनाए तो उसे बाज़ार में अपने लिए स्थायी स्थान मिल सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
विकास दास की कहानी यह बताती है कि प्राकृतिक खेती अपनाकर कोई भी किसान आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य के स्तर पर समृद्धि प्राप्त कर सकता है। यह खेती का एक ऐसा रूप है जो न केवल पर्यावरण को सुरक्षित करता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी रास्ता तैयार करता है। यदि आप भी खेती में बदलाव लाना चाहते हैं और प्रकृति के साथ सामंजस्य में काम करना चाहते हैं, तो प्राकृतिक खेती आपके लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है।
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