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पत्थरों की ठोस चट्टानों के बीच हरियाली उगाने का ख़्वाब देखना और उसे साकार कर दिखाना। ये कहानी है प्रणाली प्रदीप मराठे (Pranali Pradeep Marathe) की, जिन्होंने अपने जुनून और मेहनत से जैविक खेती (Organic Farming) की नई मिसाल कायम की है। 56 साल की प्रणाली जो महाराष्ट्र के देवगढ़ ज़िले के सिंधुदुर्ग (Sindhudurg in Devgadh district of Maharashtra) में रहती हैं, शादी के बाद खेती को शौक के तौर पर शुरू किया, लेकिन आज वह न सिर्फ अपने परिवार को शुद्ध आहार (Cleanse Diet) दे रही हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरित कर रही हैं।
पत्थरों में उगाई हरियाली
प्रणाली की ज़मीन पूरी तरह से पत्थरों से ढकी हुई थी, जहां मिट्टी का नामोनिशान तक नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पत्थरों में छेद करके गड्ढे बनाए, उनमें मिट्टी भरी और धीरे-धीरे अपने घर के आसपास 0.2 एकड़ जमीन पर जैविक खेती (Organic Farming) शुरू की। 2011 में रामदेव बाबा और आचार्य बालकृष्ण के प्रवचनों से प्रेरित होकर उन्होंने प्राकृतिक खेती (Natural Farming) का रास्ता चुना। शुरुआत में उन्होंने मूंगफली, हल्दी और लौकी की खेती की, और आज उनका छोटा सा बगीचा अनानास, सीताफल, चीकू, पपीता, अमरूद, नींबू, नारियल, आंवला, बैंगन, मिर्च, भिंडी, ग्वार और हल्दी (Pineapple, Custard Apple, Chiku, Papaya, Guava, Lemon, Coconut, Amla, Brinjal, Chillies, Okra, Cluster Bean and Turmeric) जैसी फसलों से लहलहा रहा है।
जैविक खेती का अनोखा तरीका
प्रणाली ने खेती के लिए पूरी तरह प्राकृतिक तरीकों को अपनाया है:
मल्चिंग: खरपतवार, सूखी पत्तियां और पिछली फसल के डंठल का इस्तेमाल करती हैं।
बीज उपचार: बीजामृत से बीजों को तैयार करती हैं।
केंचुआ खाद: सालाना 300-400 किलो वर्मीकम्पोस्ट तैयार करती हैं, जिसका इस्तेमाल अपने बगीचे में करती हैं।
फसल चक्र: हल्दी और मूंगफली की फसल को बारी-बारी से उगाती हैं।
उनकी मेहनत का नतीजा है कि उनके प्रोडक्ट्स का स्वाद और पोषण बढ़ गया है, साथ ही फल-सब्जियों की शेल्फ लाइफ भी बढ़ी है।
समाज से जुड़ाव: स्कूली बच्चों को प्रकृति की सीख
प्रणाली सिर्फ एक किसान नहीं, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। वो देवगढ़ तहसील के 9 स्कूलों में केंद्र प्रमुख के रूप में काम करती हैं और बच्चों को प्रकृति और जैविक खेती (Nature and organic farming) के बारे में जागरूक करती हैं। उनका मानना है कि अगर नई पीढ़ी को प्रकृति से जोड़ा जाए, तो भविष्य में पर्यावरण संरक्षण का संदेश आसानी से फैलाया जा सकता है।
खेती मेरा शौक, शुद्ध आहार मेरी प्राथमिकता
प्रणाली अपनी उपज को बाजार में बेचने के बजाय परिवार, पड़ोसियों और रिश्तेदारों में बांट देती हैं। वो नारियल का तेल भी निकालती हैं, जिसका इस्तेमाल घर में करने के साथ-साथ दूसरों को भी देती हैं। वो मानती हैं कि शुद्ध, जैविक भोजन ने उनके परिवार की सेहत को काफी बेहतर बनाया है।
उनके बेटे का डॉक्टर बनना भी परिवार के लिए गर्व की बात है, लेकिन प्रणाली के लिए असली खुशी तब मिलती है जब वह अपने हाथों उगाए फल-सब्जियों को अपने लोगों, रिश्तेदारों को देती हैं।
पत्थरों में भी हरियाली उगाई जा सकती- प्रणाली प्रदीप मराठे
प्रणाली मराठे की कहानी साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो पत्थरों में भी हरियाली उगाई जा सकती है। उनका जीवन संदेश देता है कि प्रकृति के साथ रहकर ही सच्चा सुख छुपा है। आज के दौर में, जब केमिकल से भरी खेती स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बन रही है, प्रणाली जैसे लोग समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।