प्राकृतिक खेती से कृष्णानन्द यादव को मिली नई पहचान जानिए उनकी कहानी

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से आत्मनिर्भर बने कृष्णानंद यादव, 1 एकड़ में उगा रहे हैं जैविक सब्जियां और अनाज।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

जिला बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) के कस्बा रिछौली गांव में रहने वाले किसान कृष्णानन्द कुमार यादव ने यह साबित कर दिया है कि अगर नीयत साफ हो और मेहनत सही दिशा में की जाए, तो प्राकृतिक खेती के ज़रिए न सिर्फ़ अच्छी और स्वस्थ उपज हासिल की जा सकती है, बल्कि इससे परिवार की सेहत सुधरती है और समाज में एक नई पहचान भी बनती है।

कृष्णानन्द ने प्राकृतिक तरीकों को अपनाया और अपने खेतों में जैविक खाद, गौमूत्र, और देसी बीजों का इस्तेमाल शुरू किया। इससे उनकी फ़सलें न केवल ज़्यादा सुरक्षित और पौष्टिक हुईं, बल्कि लागत भी कम हो गई। आज वे न सिर्फ़ अपने परिवार को शुद्ध अनाज उपलब्ध करा रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

खेती की शुरुआत और प्राकृतिक खेती की ओर रुझान (Beginning of farming and trend towards natural farming)

कृष्णानंद यादव पिछले करीब 12 वर्षों से खेती कर रहे हैं। शुरू में वे सामान्य तरीकों से खेती करते थे, जिसमें रासायनिक खाद और दवाइयों का इस्तेमाल होता था। लेकिन साल 2018 में पतंजलि से प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने खेती की दिशा बदलने का फैसला किया। उस प्रशिक्षण ने उन्हें प्राकृतिक खेती की ताकत और लाभ के बारे में जागरूक किया।

आज उनके पास कुल 2.5 एकड़ भूमि है, जिसमें से 1 एकड़ जमीन पर वे पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। शेष जमीन पर भी वे धीरे-धीरे यही तरीका अपनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती न केवल ज़मीन की उर्वरता बनाए रखती है, बल्कि इसमें लागत भी कम आती है और उपज ज़्यादा पौष्टिक होती है।

प्राकृतिक खेती में उगाई जा रही फ़सलें (Crops grown in natural farming)

अपने एक एकड़ खेत में कृष्णानंद जी ने कई तरह की फ़सलें उगाई हैं, जिनमें आलू, प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, धान, गेहूं और गन्ना शामिल हैं। ये सभी फ़सलें पूरी तरह रसायन-मुक्त यानी बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के उगाई जा रही हैं। वह सिर्फ़ देशी गाय और भैंस के गोबर से बनी खाद, जीवामृत और घरेलू जैविक उपायों का ही इस्तेमाल करते हैं। उनका कहना है कि इन देसी तरीकों से फ़सलें न केवल सुरक्षित होती हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरती है और पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता।

जैविक विधियों का पूरा उपयोग (full use of biological methods)

कृष्णानंद यादव प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत, घनजीवामृत, नीम तेल, दशपर्णी अर्क जैसी देसी तकनीकों का उपयोग करते हैं। बीजों की सुरक्षा के लिए बीजामृत का इस्तेमाल, पौधों को पोषण देने के लिए FYM (Farm Yard Manure), सरसों की खली और जीवामृत का उपयोग किया जाता है। कीट नियंत्रण के लिए नीम तेल और दशपर्णी अर्क का प्रयोग करते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए वे मजदूरों की मदद से हाथ से निराई करते हैं और मल्चिंग अपनाते हैं।

मवेशियों की भूमिका (The role of cattle)

उनके पास एक गाय और चार भैंसें हैं। यही मवेशी उनकी प्राकृतिक खेती की रीढ़ हैं। गाय और भैंस के गोबर और मूत्र से वे खाद और जीवामृत तैयार करते हैं। यह न केवल लागत को कम करता है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनाए रखता है।

स्वास्थ्य लाभ और पारिवारिक संतुलन (Health Benefits and Family Balance)

कृष्णानंद जी बताते हैं कि प्राकृतिक खेती शुरू करने के बाद उनके परिवार की सेहत बेहतर हुई है। अब परिवार में बीमारियां बहुत कम होती हैं क्योंकि घर का खाना रसायन मुक्त होता है। उनका कहना है कि खाने में जब केमिकल नहीं होंगे तो शरीर भी स्वस्थ रहेगा।

प्राकृतिक खेती से कृष्णानन्द यादव को मिली नई पहचान जानिए उनकी कहानी

गांव में जागरूकता का प्रचार (Spreading awareness in the village)

उन्होंने अपने आसपास के करीब 30 किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित किया है। कृष्णानंद जी का मानना है कि यदि सभी किसान इस ओर ध्यान दें, तो खेती की लागत घटाई जा सकती है और उपज भी बेहतर मिल सकती है। वह अब एक प्रेरणादायक किसान के रूप में जाने जाते हैं।

सरकारी योजनाओं का समर्थन और प्रमाणन (Support and certification of government schemes)

फिलहाल उन्हें किसी सरकारी योजना से सहायता नहीं मिली है और उनकी खेती का कोई आधिकारिक प्रमाणन भी नहीं है। लेकिन फिर भी, वे अपनी मेहनत और समर्पण से आगे बढ़ रहे हैं।

बाज़ार में उपज की बिक्री (selling produce in the market)

वह अपनी सब्जियों और अनाज को स्थानीय बाज़ार में सीधे बेचते हैं। इससे उन्हें उचित दाम भी मिलते हैं और ग्राहक भी रसायन मुक्त उत्पाद खरीदने में रुचि रखते हैं।

प्रमुख उपलब्धियां (Major Achievements)

प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षण लेने के बाद उनके आत्मविश्वास में भारी बढ़ोतरी हुई है। अब वह अपने गांव और क्षेत्र में एक प्रेरणास्त्रोत किसान के रूप में प्रसिद्ध हो गए हैं। आत्मनिर्भरता और स्वास्थ्य दोनों में सुधार आया है।

निष्कर्ष (Conclusion)

कृष्णानंद यादव जी की कहानी यह दर्शाती है कि अगर किसान प्राकृतिक खेती को अपनाएं, तो न सिर्फ उनका ख़र्च घटेगा, उपज अच्छी होगी, बल्कि परिवार का स्वास्थ्य और समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। प्राकृतिक खेती केवल एक तरीका नहीं, बल्कि एक सोच है — जो किसान, उपभोक्ता और प्रकृति तीनों के लिए फायदेमंद है।

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