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खेती में अगर पारंपरिक ज्ञान का उपयोग आधुनिक सोच के साथ किया जाए तो ये किसानों को अच्छा मुनाफ़ा देती है और इस बात की जीती-जागती मिसाल है दिल्ली के दरियापुर गांव के प्रगतिशील किसान सत्यवान। जो गौ आधारित जैविक खेती (Organic Farming) के मॉडल को अपनाकर न सिर्फ़ गन्ने और प्याज की इंटरक्रॉपिंग करते हैं, बल्कि धान की उन्नत किस्मों की नर्सरी भी तैयार करके दूसरे किसानों को बेचते हैं। अपने इस सफल खेती मॉडल के बारे में उन्होंने विस्तार से बात की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
एक एकड़ से जैविक खेती की शुरुआत (Start of organic farming from one acre)
दिल्ली के प्रगतिशील किसान सत्यवान कहते हैं कि उन्होंने 2012 में एक एकड़ भूमि से जैविक खेती (Organic Farming) की शुरुआत की थी और ये बढ़कर अब 5 एकड़ हो चुका है। उन्होंने गाय को खेत के पास ही रखा है और यही गोबर गैस प्लांट भी बनाया है। सत्यवान कहते हैं कि वो सब्ज़ियों से लेकर गन्ना, प्याज़, धान, गेहूं, चना, हल्दी सबकुछ लगाते हैं ताकि ग्राहक की सारी ज़रूरतें पूरी हो जाए।
खेती का अहम हिस्सा है पशुपालन (Animal husbandry is an important part of agriculture)
सत्यवान गाय आधारित खेती करते हैं। वो बताते हैं कि उनके पास छोटी-बड़ी कुल 8-9 गाए हैं जिसमें से दूध देने वाली 4 गाय हैं। वो कहते हैं कि जैविक खेती (Organic Farming) का आधार गाय हैं। जब तक किसान खेती के साथ पशुपालन नहीं करेंगे तब तक यह खेती घाटे का सौदा ही रहेगी। कृषि और गौपालन साथ-साथ चलने चाहिए, क्योंकि दोनों ही कमाई का अच्छा ज़रिया है। प्राचीन काल में भी खेती और पशुपालन को धनोपार्जन का साधन माना जाता था।
बीज से बाज़ार तक का सारा काम खुद करते हैं (do everything ourselves from seed to market)
सत्यवान न सिर्फ़ जैविक खेती (Organic Farming) करते हैं, बल्कि वो पूरी तरह से आत्मनिर्भर किसान है जिन्हें अपनी फ़सल बेचने के लिए वो बिचौलियों पर निर्भर नहीं हैं। वो बीज उगाने से लेकर फ़सल को बाज़ार तक पहुंचाने का काम खुद ही करते हैं। बीज भी उनका अपना होता है, नर्सरी भी वो खुद बनाते हैं और फ़सल को सीधे खेत से ही बेचते हैं।
गोबर गैस भी बनाते हैं (They also produce cow dung gas)
सत्यवान के खेती के मॉडल को इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम बोल सकते हैं। क्योंकि वो पूरी तरह से गौ आधारित कृषि करते हैं। उन्होंने खेत में ही गोबर गैस प्लांट लगाया हुआ है जिससे बनने वाली गैस से ही गाय के लिए दलिया और उनके मजदूरों का खाना सब बन जाता है। इसके साथ ही गोबर गैस की स्लरी को वो खेतों में बहा देते हैं जो ग्रोथ प्रमोटर का काम करता है यानी पौधों के विकास में सहायक होता है।
वो बताते हैं कि किसान 800-900 रुपए लीटर जो ग्रोथ प्रमोटर खरीदते हैं उसके सारे गुण तो गोबर में ही है। इसमें फॉलिक एसिड, अमिनो एसिड सब होता है जो पौधों के विकास में सहायक है। सत्यवान कहते हैं कि जब खेत में जैविक कार्बन होगा तो फ़सल भी अच्छी होगी और जब फ़सल अच्छी होगी तभी किसान धनवान होगा।
बनाते हैं धान की नर्सरी (Make rice nursery)
सत्यवान दूसरे किसानों को धान की नर्सरी भी तैयार करके देते हैं। वो कहते हैं कि 3 एकड़ में धान की नर्सरी वो बना चुके हैं और 5 एकड़ में बनाने की योजना है। इतना ही नहीं उन्हें 80 एकड़ की नर्सरी की बुकिंग हो चुकी है। वो बताते हैं कि 1 महीने में नर्सरी से अच्छी कमाई हो जाती है। धान के बीज भी वो खुद ही तैयार करते हैं तो वो अच्छी किस्म के होते हैं। वो पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1885, पूसा बासमीत 1509, पूसा बासमती 1692 और पूसा बासमती 1718 उगाते हैं। इसमें दो नई वैरायटी आई है, पूसा बसमती 1985, 1979, जो सीधी बुवाई के लिए अच्छी मानी जाती है।
वो बताते हैं कि धान की सीधी बुवाई से कई फ़ायदे होते हैं, एक तो 30-35 प्रतिशत पानी की बचत होती है, दूसरे श्रम की समस्या से निजात मिलती है और एक हफ्ते पहले फ़सल भी तैयार हो जाती है। इसके अलावा जब पानी के अंदर ज़मीन की जुताई की जाती है तो मिथेल और कई हानिकारक गैस निकलती है, जिससे पर्यावरण को हानि होती थी, तो सीधी बुवाई करने से स समस्या से भी छुटाकार मिल जाता है जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग से बचाव होता है। धान की नर्सरी लगाते समय पौधों को 8-9 इंच की दूरी पर लगाया जाता है, क्योंकि ज़्यादा नज़दीक लगाने पर पैदावार ठीक नहीं होती है।
गन्ने के साथ प्याज की खेती (Cultivation of onion along with sugarcane)
सत्यवान एक प्रगतिशील किसान हैं जो खेती के पुराने तरीकों में नहीं, बल्कि नए प्रयोग में विश्वास करते हैं। वो बताते हैं कि जिस खेत में वो धान लगाते हैं, उसकी कटाई के बाद उसी में चारा लगाते हैं, फिर जनवरी में प्याज़ और फरवरी में गन्ना लगाते हैं। प्याज़ पहले तैयार हो जाता है तो उसकी कटाई करके बेच देते हैं।
उनका कहना है कि प्याज उनके खेत से ही बिक जाते हैं। गन्ने के साथ प्याज की खेती करने के लिए वो गन्ने के पौधों की दो क्यारियों के बीच 5 फीट का गैप रखते हैं। गन्ने की जड़ों को मज़बूत करने के लिए पंक्तियों में दोनों तरफ से मिट्टी लगा देते हैं जिससे गन्ना गिरता नही है और नाली में पानी डालते हैं, जिससे जड़ों का अच्छा विकास होगा।
कितनी होती है कमाई? (How much is the earning?)
सत्यवान के समाने बाज़ार की कोई समस्या नहीं है। वो बताते हैं कि प्याज का अपना मार्केट है और उनके खेत से ही ये बिक जाता है। एक एकड़ में गन्ने के साथ प्याज की खेती से करीब 6 लाख की कमाई हो जाती है। इसके अलावा वो गन्ने से सिरका बनाकर भी बेचते हैं। एक क्विंटल गन्ने से 40-42 लीटर सिरका बनाते हैं और एक क्विंटल गन्ने से 45-50 लीटर रस निकलता है।
वो गन्ने की जिस 119 किस्म को उगाते हैं वो जूस के लिए बहुत अच्छा होता है। 20 मिनट तक इसका जूस काला नहीं पड़ता है। वो कहते हैं कि अगर गन्ने के उत्पादन के बाद उसे सीधे किसी मिल में अगर वो बेचें तो सिर्फ़ 1-1.25 लाख रुपए तक की ही कमाई होती, मगर उसे जूस के लिए बेचने पर 2.5 से 3 लाख रुपए की कमाई हो जाती है। इसके साथ ही सिरका बनाकर बेचने पर भी अतिरिक्त आमदनी होती है।
जैविक खाद का इस्तेमाल (Use of organic fertilizer)
सत्यवान कहते हैं कि वो अपने खेतों में गोबर और बायोगैस से तैयार खाद का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही जीवामृत, घनजीवामृत का भी उपयोग करते हैं। वो बताते हैं कि जैविक खेती (Organic Farming) के कारण उनकी मिट्टी में सूक्ष्मजीवाणु काफी अच्छे हैं और समय-समय पर वो मिट्टी की जांच कराते हैं। उनके खेत की मिट्टी में जैविक कार्बन भी काफी अच्छा है।
जो किसान उनकी तरह ही खेती के इस मॉडल को अपनाना चाहते हैं उन्हें एक बीघे से ही शुरुआत करनी चाहिए। पहले थोड़ी नर्सरी बनाएं, फिर बाज़ार की चाल को समझकर ही खेती को आगे बढ़ाएं।
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