शुष्क इलाके का शानदार चारा है झरबेरी की खेती

झरबेरी की खेती से हरी और सूखी पत्तियां पशुधन के लिए उत्तम चारा प्रदान करती हैं। यह बकरियों का प्रमुख चारा है और शुष्क मौसम में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

झरबेरी की खेती Jharaberee Farming

झरबेरी की हरी और सूखी पत्तियां पशुधन और आजीविका के लिए अच्छा स्रोत हैं। ये बकरियों का मुख्य और पारंपरिक चारा है। चारागाहों में यदि इन्हें पनपने के लिए पर्याप्त स्थान मिले तो जहां हरे चारे की आपूर्ति होती है, वहीं शुष्क अवधि में भेड़-बकरियों को खिलाने के लिए झरबेरी की सूखी पत्तियों को भी बहुत आसानी से भविष्य के चारे के रूप में सहेजा जा सकता है।

झरबेरी का वैज्ञानिक नाम व क्षेत्र 

झरबेरी या बोर्डी का वैज्ञानिक नाम ‘जिजीपफ़स न्यूमुलेरिया’ है। यह ‘रेहमनेसी’ परिवार से संबंधित एक सूखा प्रतिरोधी पौधा है। यह शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों की रेतीली मिट्टी में बहुतायत से पनपने वाली प्रमुख और बहुवर्षीय झाड़ी है। इसकी ऊंचाई अधिक तथा आकार झाड़ीनुमा होता है। इसकी टहनियां नुकीली और कांटेदार होती हैं। पत्तियां सामान्यतः गोल और बीच की सतह पर ज़रा रोमदार होती हैं। ये देश के शुष्क इलाकों के चारागाहों में चरने वाले पशुओं जैसे- भेड़, बकरी, ऊंट और गधा आदि के लिए आसानी से उपलब्ध होने वाले चारे की भूमिका निभाती हैं।

झरबेरी की खेती का उत्पत्ति स्थान

झरबेरी की खेती का मूल उत्पत्ति स्थान भारत में थार रेगिस्तान, दक्षिणी पाकिस्तान और दक्षिणी ईरान को माना गया है। यह शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक या जंगली अवस्था में पाई जाती है। झरबेरी की हरी और सूखी पत्तियां बकरियों का मुख्य और पारंपरिक चारा है। इसे चारागाह में पर्याप्त स्थान मिलने पर, जहां हरे चारे की आपूर्ति होती है, वहीं शुष्क दिनों में भेड़-बकरियों को खिलाने के लिए इसकी सूखी पत्तियों को भी भविष्य के चारे के रूप में आसानी से सहेजा जा सकता है।

चारा की समस्या का निवारण

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, टोंक, राजस्थान के वैज्ञानिक के अनुसार, झरबेरी की खेती और इसके सुरक्षित विकास के लिए सबसे पहले चारागाह को क्षति पहुंचाने वाले विलायती कींकर, लेंटाना या जरायन, गाजरघास जैसे खतरनाक पौधों को हटाना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि इन पौधों से होने वाले हानिकारक रसायनों के स्राव से झरबेरी की खेती पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये सभी खतरनाक पौधे बहुत जल्दी चारागाह की ज़्यादातर ज़मीन पर अपना अवैध क़ब्ज़ा जमा लेते हैं, जिससे पशु चारे के लिए उपयोगी अन्य घास और पौधे पनप नहीं पाते।

झरबेरी का वैज्ञानिक उत्पादन

हानिकारक पौधों के सफ़ाये के बाद झरबेरी की खेती को पनपने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है। यहां इसे वैज्ञानिक तरीके से उगाया जा सकता है। चारा आपूर्ति के लिए झरबेरी की खेती में पर्याप्त सिंचाई, सुरक्षा, पोषण, रोगग्रस्त शाखाओं को अलग करना, अल्प विकसित पौधों का अवांछनीय चराई से बचाव और पौधों की बढ़वार के लिए अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध करवाना जैसे काम करना बेहद ज़रूरी है।

सूखा और अकाल की स्थिति में झरबेरी

पशु आहार और चारा प्रदान करने के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में आँधी-तूफ़ान से होने वाली मिट्टी की उपजाऊ सतह के क्षरण (erosion) को रोकने में भी झरबेरी की खेती के पौधे बहुत उपयोगी साबित होते हैं। इन्हें पनपने के लिए बहुत कम पानी की ज़रूरत होती है। इसीलिए अकाल या सूखा की दशा में भी झरबेरी की खेती अपनी बढ़वार को कायम रख पाती है।

झरबेरी से प्राप्त पोषण

झरबेरी की खेती से प्राप्त पत्तियों में 14 प्रतिशत कच्चा प्रोटीन, 3 प्रतिशत ईथर अर्क, 17 प्रतिशत क्रूड फाइबर, 56 प्रतिशत नाइट्रोजन मुक्त अर्क, 73 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 10 प्रतिशत राख, 2.8 प्रतिशत कैल्शियम और 0.14 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है। इसके अतिरिक्त, पत्तियों में ऑयरन, मैंगनीज़, जस्ता और ताम्बा जैसे पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं, जो पशुओं की ज़रूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

झरबेरी को सूखा चारा बनाने की विधि

झरबेरी की खेती से सूखा चारा बनाने के लिए इसकी सूखी पत्तियों और मुलायम टहनियों को पौधे से काटकर जमा कर लिया जाता है। फिर इसे धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद टहनियों को डंडे से पीटकर पत्तियों को अलग कर लिया जाता है। इन सूखी पत्तियों को ‘पाला’ भी कहते हैं। वर्षा ऋतु में झरबेरी की खेती में नये पत्ते अंकुरित होते हैं। सितंबर-अक्टूबर में इनमें फूल भी उगते हैं और जल्द ही फल बन जाते हैं। इसे कृषि वानिकी के तहत फ़सलों के बीच में भी उगा सकते हैं।

ग्रामीण इलाकों में झरबेरी की खेती

ग्रामीण इलाकों में किसान अपने खेत की बाड़ों पर अथवा आसपास पाई जाने वाली झाड़ियों को नवम्बर-दिसम्बर में कटाई-छंटाई करके उनसे पत्तियां प्राप्त कर सकते हैं। इन्हें सुखाकर चारे की कमी में पशुओं को खिलाने के काम में लिया जा सकता है। झरबेरी की खेती से एक झाड़ी से साल भर में 2 से 5 किलोग्राम तक हरे पत्तों वाला चारा प्राप्त हो जाता है। एक हेक्टेयर में इससे 10 क्विंटल तक सूखी पत्तियां एकत्रित की जा सकती हैं। इसे ही सूखा चारा की तरह पशुओं को खिलाया जाता है।

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