भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। हमारे देश में दलहन की खेती 232 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। दलहनी फसलों में अरहर, कई प्रकार के हानिकारक कीटों से प्रभावित होती है, जिससे उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। खरीफ़ दलहनी अरहर फसलों में लगने वाले कीट की पहचान और रोकथाम के लिए एकीकृत प्रबंधन अपनाना बेहद ज़रूरी है। इसपर किसान ऑफ़ इंडिया कृषि विज्ञान केन्द्र पश्चिम चंपारण के प्रमुख और पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. सिंह से ख़ास बात की।
अरहर के लीफ़ फ़ोल्डर कीट के रोकथाम उपाय
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. सिंह ने हानिकारक कीटों के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि अरहर में पत्ती मोड़क कीट, लीफ़ फ़ोल्डर की सुंडी, अरहर की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों में से एक है। इस कीट का पतंगा छोटा और गहरे भूरे रंग का होता है। इसकी सुंडी छोटी हल्के पीले रंग की होती है। यह कीट जुलाई से अगस्त में सर्वाधिक सक्रिय रहता है। पौधे की निचली सतह की पत्ती पर इसका प्रभाव अधिक होता है। इसकी सुंडी पत्तियों को मोड़कर एक लूप जैसा बना लेती है और उसी को खाती रहती है। इस प्रकार क्षतिग्रस्त पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
प्रभावित पौधे में बहुत कम पत्तियां आती हैं। पौध विशेषज्ञ ने बताया कि इसके नियंत्रण के लिए किसान नीम के तेल 1500 पीपीएम नीम फार्मुलेशन और पांच प्रतिशत नीम के अर्क का उपयोग कर सकते हैं। 5 मिलीलीटर नीम का तेल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नीम का अर्क बनाने के लिए 25 किलो नीम के पत्तों को अच्छी तरह पीसकर 50 लीटर पानी में तब तक उबालें, जब तक कि एक लीटर में 20-25 प्रतिशत पानी न रह जाए। बाद में पानी को छान लें। रासायनिक नियंत्रण के लिए क्यूनलफास 25 प्रतिशत ईसी 600 मिलीलीटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

फली भेदक कीट का समेकित नियंत्रण का तरीका
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ आर.पी. सिंह बताते हैं कि अरहर में सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में फली भेदक कीट पॉड बोरर भी है। इसके मादा कीट अरहर के फूल-फलियों, कोमल फलियों एवं कभी तने के आगे वाले भाग में एक-एक करके अंडे देती है। सुंडिया अंडे से रात को निकलकर करीब चार से पांच दिनों तक फलियों के ऊपरी भाग को खुरचकर खाने लगती हैं। इसके बाद सुंडिया फलियों में गोलाकार छेद बनाकर विकसित हो रहे दानों को खा जाती हैं। इसके व्यस्क कीट हल्के भूरे रंग के होते हैं। उन्होंने इनके रोकथाम के लिए बताया कि जब अरहर की फसल 60 से 65 दिन यानी सितम्ब-अक्टूबर में एक वर्ग मीटर में 10 फली हो जाए, तब फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करना चाहिए। एक से दूसरे फेरोमोन ट्रैप की दूरी 30 मीटर होनी चाहिए। फसल से एक से दो फ़ीट की ऊंचाई पर फेरोमोन ट्रैप को लगाना चाहिए। 14 दिन के अन्तराल पर ल्योर ज़रूरत के अनुसार बदलते रहना चाहिए और उसपर फंसे नर व्यस्क कीट को नष्ट कर देना चाहिए।
जैविक नियंत्रण के लिए एक पौधे पर फली भेदक कीट के 5-6 अंडे या एक-दो सुंडी से अधिक दिखाई देने पर नीम बीज पाउडर के 5 प्रतिशत घोल को 1 प्रतिशत साबून के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। फली भेदक कीट की हानि आर्थिक क्षति स्तर पर पहुंचने पर 15 दिनों के अन्तराल पर एच.एन.पी.वी. की 250 लार्वा समतुल्यांक मात्रा/हेक्टेयर की दर से 3 बार छिड़काव करना चाहिए। इस घोल को प्रभावी बनाने के लिए 0.5 प्रतिशत गुड़ व 0.1 प्रतिशत साबुन या टिपॉल का घोल मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
अगर कीट का नियंत्रण सही तरीके से नहीं हो पा रहा हो तो रासायनिक कीटनाशी जैसे- इण्डाक्साकार्व 15.8 प्रतिशचत ई.सी. की एक मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी या स्पाइनोसैड 45 प्रतिशत एस.पी. की 1 मिलीलीटर दवा का 2लीटर पानी की दर से 50 प्रतिशत फूल आने तथा 50 प्रतिशत फली आने पर छिड़काव करना चाहिए।

फल मक्खी कीट की पहचान और नियंत्रण उपाय
डॉ आर.पी. सिंह ने बताया कि अक्टूबर से अप्रैल के मध्य अरहर की फलियों पर मक्खी का प्रकोप अत्यधिक रहता है। फली के अंदर रहकर ही ये कीट अंडा, गिडार एवं प्यूपा जैसी अपनी जीवनकाल की अवस्थाओं से गुजरता है। अंडों से निकलने के बाद सुंडियां विकसित दानों की बाहरी पर्त को कुछ समय तक खाती हैं। इसके दानों में छेद कर प्रवेश कर जाती हैं और भीतर ही भीतर दानों को खाकर क्षति पहुंचाती हैं। पूर्ण विकसित गिडार दाने पर नालीनुमा स्थान बनाकर दाने से बाहर आ जाता है। इस कीट से 50 से लेकर 80 फ़ीसदी तक अरहर की उपज को नुकसान पहुंचता है। इसके अंडे दिखाई देने पर नीम के तेल का 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए। जैविक नियंत्रण के लिए बैसिलस थुरिंजिनेसिस सेरोवर कुर्स्टाकी (3ए,3बी,3सी) 5% डब्ल्यूपी 1000-1250 ग्राम का प्रति हेक्टेयर दर छिड़काव करें। रासायनिक डाइमेथोएट 30% ईसी 1237 मिली दवा को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे।
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ आर.पी. सिंह ने बताया कि हानिकारक कीटों की रोकथाम के लिए किसानो को गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए। बीजों को उपचारित करके बुआई करना चाहिए। चिड़ियों को बैठने के लिए खेत में आश्रय देना चाहिए क्योकि चिड़िया उनपर बैठकर कीटों का प्राकृतिक रूप से नियंत्रण करती हैं।
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