Crop Rotation Strategies: खेती में फसल चक्र की कितनी अहम भूमिका? डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दिया IFS Model का उदाहरण

खेती से अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को इसकी कुछ बुनियादी नियमों के बारे में पता होना चाहिए। जैसे कि फसल चक्र। ये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज़रूरी है, मगर बहुत से किसान इस नियम को भूलकर लगातार एक ही फसल उगा रहे हैं जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है।

Crop Rotation Strategies खेती में फसल चक्र

फसल चक्र जिसे अंग्रेज़ी में क्रॉप रोटेशन (Crop Rotation) कहा जाता है, खेती के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पहले ज़माने में किसान मौसम के हिसाब से सब्ज़ियां और अनाज उगाते थे, मगर वो ऐसा अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करते थे इसके पीछे कोई वैज्ञानिक वजह नहीं थी। मगर कृषि वैज्ञानिकों ने जब अध्ययन किया तो पाया कि उनके ऐसा करने से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है। तभी तो पहले सिर्फ़ मौसम के अनुसार ही सब्ज़ियां और फल मिलते थे, मगर अब तो हर मौसम में सब कुछ मिल रहा है।

 

कई किसान लगातार अपने खेत में एक ही अनाज उगा रहे हैं जैसे कोई सिर्फ़ गेहूं ही उगा रहा है, तो कोई सिर्फ़ मक्का या धान की खेती कर रहा है। ऐसे करते रहने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है जिससे उत्पादन घटने लगता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए फसल चक्र ज़रूरी है।

क्या होता है फसल चक्र? (What Is Crop Rotation?)

किसी निश्चित ज़मीन या खेत में निश्चित समय में फसलों को अदल-बदलकर लगाना ही फसल चक्र कहलाता है। खेत में एक नियत अवधि में फसलों को इस क्रम में उगाया जाता है कि मिट्टी की उर्वरता को कम से कम नुकसान पहुंचे। फसल चक्र उस निश्चित क्षेत्र की भूमि, जलवायु और दूसरे वातावरणीय कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। यानि कि अगर किसी क्षेत्र विशेष में गेहूं के बाद आलू की फसल लगाना लाभदायक होता है तो कहीं दलहनी फसल लगाना। एक अच्छे फसल चक्र को अपनाकर किसान अधिक लाभ कमा सकता है।

क्यों ज़रूरी है फसल चक्र? (Importance Of Crop Rotation)

फसल चक्र निम्न कारणों से ज़रूरी है-

मिट्टी की उर्वरता- फसल बदल-बदलकर लगाने से किसान अपनी मिट्टी की उर्वरता को बनाए रख सकता है। अलग-अलग फसलों को अलग-अलग तरह के पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है। ऐसे में फसल चक्र से पोषक तत्व समान रूप से मिट्टी में मिल जाते हैं।

रोग और कीट पर नियंत्रण- अलग-अलग तरह की फसल लगाने से मिट्टी में कीट और बीमारियां जमा नहीं होती हैं। कुछ कीट और बीमारियां किसी ख़ास तरह की फसल में ही होती है, ऐसे में फसल चक्र अपनाने से कीट और बीमारियो को पनपने से रोका जा सकता है।

मिट्टी की सेहत- फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की सेहत भी अच्छी रहती है। इससे मृदा संरचना में सुधार होता है। मिट्टी के जैविक तत्व बढ़ते हैं और मृदा क्षरण को कम करने में मदद मिलती है।

उत्पादन में वृद्धि- फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, कीट व बीमारियां कम होती है और पोषक तत्व संतुलित मात्रा में मिलते हैं, जिससे फसल की पैदावर अच्छी होती है।

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फसल चक्र की अहमियत

आज के समय में अधिकांश किसान फसल के कम उत्पादन से परेशान हैं और इस समस्या की एक बड़ी वजह फसल चक्र को न अपनाना भी है, क्योंकि फसल चक्र को नहीं अपनाने से मिट्टी की उर्वरता घटने लगती है। जीवाश्म की मात्रा में कमी होती है। हानिकारक कीट व बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है। मिट्टी की जल धारण क्षमता कम होती है। खरपतवार की समस्या बढ़ने लगती है। इसके साथ ही कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल और भूमिगत जल के बढ़ते प्रदूषण का भी फसल के उत्पादन पर असर पड़ता है।

चूंकि भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है इसलिए अधिक फसल प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक मात्रा में खाद डालना पड़ता है, जिससे खेती की लागत बढ़ती है और फसल की पौष्टिकता भी कम होती है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए फसल चक्र को अपनाना ज़रूरी है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि फसल चक्र में दलहनी फसलों को जोड़ना बहुत ज़रूरी है इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने फसल चक्र को लेकर कई अहम बातें बताईं। उन्होंने एकीकृत कृषि प्रणाली का उदाहरण देते हुए फसल चक्र अपनाने की सही रणनीति (Crop Rotation Strategies) के बारे में बताया।

डॉ. राजीव ने बताया कि अगर कोई किसान एक हेक्टेयर क्षेत्र में IFS Model (Integrated Farming System) तकनीक अपनाता है, तो वो लगभग 0.7 हेक्टेयर में फसलों की खेती कर सकता है। इसके लिए उन्होंने कुछ ज़रूरी फसल चक्र के उदाहरण दिए। मसलन बरसीम-बेबी कॉर्न, मक्का-सरसों-सूरजमुखी, मल्टीकट ज्वार-आलु-प्याज, मक्का-गेहूँ-लोबिया, धान-गेहूँ-लोबिया, अरहर-गेहूँ-बेबी कॉर्न-बैगन-रैटुन बैगन-लोबिया, लौकी-गेंदा-मल्टीकट ज्वार, मक्का-टमाटर-भिंडी फसलों का उत्पादन ले सकते हैं। इस तरह से कम लागत आती है क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादक सामग्री, जैसे गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट की पूर्ति फ़ार्म से ही हो जाती है।

फसल चक्र के प्रमुख सिद्धांत (Principles Of Crop Rotation)

अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए फसल चक्र अपनाना ज़रूरी है, मगर इसके लिए किसानों को इसके कुछ आधारभूत सिद्धांत पता होना ज़रूरी है, जैसे-

  • पहले उस फसल को लगाए जिसमें अधिक खाद की ज़रूरत होती है। उसके बाद ऐसी फसल लगाएं जिसमें कम खाद की आवश्यकता होती है।
  • इसी तरह अधिक पानी की ज़रूरत वाली फसलों को पहले लगाएं और उसके बाद उस फसल को लगाएं जिसमें पानी की कम ज़रूरत पड़ती है।
  • पहले उथली जड़ वाली फसल लगाएं, उसके बाद गहरी जड़ वाली फसलों को उगाएं।
  • दलहनी फसल पहले लगाएं, बाद में दूसरी फसल लगाएं।
  • ऐसी फसल ही लगाएं जिनकी स्थानीय बाज़ार में मांग हो।
  • फलीदार फसलों को पहले और बिना फलीदार फसलों को बाद में उगाना चाहिए।

फसल चक्र अपनाने के फ़ायदे (Benefits Of Crop Rotation)

  • भूमि की संरचना में सुधार होता है।
  • फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • कृषि के लिये उपलब्ध संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग होता है।
  • मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और कार्बन-नाइट्रोजन का अनुपात भी बढ़ता है।
  • मिट्टी के पीएच मान और क्षारीयता में सुधार होता है।
  • बीमारियों व कीटों से फसल का बचाव होता है।
  • खाद व उर्वरक के अवशेषों का पूरी तरह से उपयोग हो जात है।
  • खरपतवारों की रोकथाम में मदद मिलती है।
  • किसानों को पूरे साल आमदनी होती रहती है।
  • सीमित सिंचाई सुविधाओं को पूरी तरह से उपयोग होता है।

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फसल चक्र के कुछ उदाहरण

फसल चक्र तो वैसे क्षेत्र विशेष की जलवायु और अन्य कारकों के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं, आइए, जानते हैं उत्तर प्रदेश में प्रचलित कुछ ख़ास फसल चक्र के बारे में यानि किस फसल के बाद कौन सी फसल उगाई जाती है।

हरी खाद पर आधारित फसल चक्र

इसमें फसल उगाने के लिए हरी खाद का उपयोग किया जाता है, जैसे हरी खाद-गेहूं, हरी खाद-धान, हरी खाद-केला, हरी खाद-आलू, हरी खाद-गन्ना आदि।

दलहनी फसलों पर आधारित फसल चक्र

मूंग-गेहूं, धान-चना, कपास-मटर-गेहूं, ज्वार-चना, बाजरा-चना, मूंगफली-अरहर, धान-मटर, धान-मटर-गन्ना, मूंगफली-अरहर-गन्ना, मसूर-मेंथा, मटर-मेंथा आदि।

अनाज फसलों पर आधारित फसल चक्र

मकका-गेहूं, धान-गेहूं, ज्वार-गेहूं, बाजरा-गेहूं, गन्ना-गेहूं, धान-गन्ना-पेडडी, मक्का-जौ, धान-बरसीम, चना-गेहूं, मक्का-उड़द-गेहूं आदि।

सब्ज़ी आधारित फसल चक्र

भिंडी-मटर, पालक-टमाटर, फूलगोभी+मूली-बंदगोभी+मूली, बैंगन+लौकी, टिंडा-आलू-मूली, करेला-भिंडी-मूली-गोभी-तरोई, घुईया-शलजम-भिंडी-गाजर, धान-आलू-टमाटर, धान-लहसुन-मिर्च, धान-आलू+लौकी आदि।

किसान अगर सही तरीके से फसल चक्र को अपनाते हैं, तो उनकी खेती की लागत कम और मुनाफ़ा अधिक होगा, मगर इसके लिए उन्हें अपने इलाके और बजट के हिसाब से फसल चक्र को अपनाना होगा। ऐसे में सलाहकार से संपर्क कर के ही अपने क्षेत्र के हिसाब से फसल चक्र का चुनाव करें।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुंचाएंगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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