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राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला (Hanumangarh district), जिसे ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, इन दिनों खेतों में हरियाली और किसानों की मेहनत की गाथा लिख रहा है। यहां धान (paddy) की रोपाई और बिजाई का काम जोरों पर है, लेकिन इस बार किसानों ने पारंपरिक तरीके को छोड़कर एक नई तकनीक अपनाई है, डायरेक्ट सीडेड राइस (Direct Seeded Rice) यानि DSR विधि। ये तकनीक न सिर्फ पानी की बचत (Direct Seeded Rice and Water Saving) कर रही है, बल्कि किसानों की मेहनत और लागत भी कम कर रही है।
पारंपरिक खेती से आगे बढ़ रहे किसान
पहले धान (paddy) की खेती में किसानों को नर्सरी तैयार करने, पौधे रोपने और खेतों में लगातार पानी भरने की जरूरत होती थी। इस प्रक्रिया में न सिर्फ समय और मेहनत ज्यादा लगती थी, बल्कि पानी की खपत भी बहुत अधिक होती थी। लेकिन अब DSR तकनीक ने इस समस्या का समाधान निकाला है। इस विधि में धान के बीजों को सीधे खेत में मशीन से बोया जाता है, जिससे नर्सरी तैयार करने और रोपाई की जरूरत नहीं पड़ती।
DSR तकनीक: कम पानी, कम लागत, ज्यादा फायदा
पानी की बचत:
धान की पारंपरिक खेती (traditional paddy cultivation) में खेत को लगातार पानी से भरकर रखना पड़ता है, जबकि DSR विधि में पानी की जरूरत कम होती है। यह तकनीक ‘वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान’ के अनुरूप है, जिसे राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने शुरू किया है।
मजदूरी की बचत:
रोपाई के लिए मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे किसानों की लागत कम हो जाती है।
समय की बचत:
इस विधि में बुवाई जल्दी हो जाती है और फसल भी समय पर तैयार होती है।
उत्पादन में बढ़ोत्तरी :
DSR तकनीक से बोए गए धान में जड़ें मजबूत होती हैं, जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उपज अच्छी होती है।
कैसे काम करती है DSR मशीन?
Step-1: खेत को लेजर लैंड लेवलर से समतल किया जाता है।
Step-3: DSR मशीन से बीज और खाद एक साथ डाली जाती है।
Step-3: मशीन खेत में पतली लाइन बनाती है, जिसमें बीज और खाद अलग-अलग गिरते हैं।
इस पूरे प्रोसेस में मानव श्रम (Human labor) की ज़रूरत कम होती है और काम तेजी से पूरा हो जाता है।
किसानों की आवाज़: ‘हमें भी मिले धान क्षेत्र का दर्जा!’
हनुमानगढ़ के किसान अब DSR तकनीक को अपना रहे हैं, लेकिन उनकी एक बड़ी मांग है कि ‘हमारे क्षेत्र को भी धान क्षेत्र घोषित किया जाए।’
बलजीत सिंह, एक स्थानीय किसान हैं, बताते हैं कि हमारा ये क्षेत्र धान की क्षेत्र है। यहां धान की जो वैराइटी लग रही है वो पीआर 114 है। इसके बाद जो वैरायटी जो शुरू होगी वो 1401 की वैरायटी है। इस बार डीआरएस भी अपने किसानों ने काफी अच्छे से किया है। ये जो वैरायटी है वो 160 दिन की है। वो कहते हैं कि धान के बुवाई के लिए ये अच्छा क्षेत्र है। जैसे हरियाणा और पंजाब में चावल का क्षेत्र घोषित है और वहां के किसानों को इसका फायदा मिल रहा है। हरियाणा और सरकार डीआरएस की वजह से किसानों को सब्सिडी देती है, हमारी भी मांग है कि इस क्षेत्र को भी धान क्षेत्र घोषित किया जाए जिससे यहां के किसानों को भी फायदा मिल सके।
रवजोत सिंह जोसन भी एक स्थानीय किसान हैं, वो अपने क्षेत्र के बारें में बताते हैं कि उनका क्षेत्र ना सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत में धान का कटोरा कहा जाता है। इसकी अपनी एक अलग पहचान है। वो बताते हैं कि चावल की फसल बहुत ही अच्छी क्वालिटी की होती है। इस बार यहां के किसानों ने 1401 वैरायटी को लगाया है। रवदोत सिंंह बताते हैं कि सरकार की ओर से जस संरक्षण के लिए बेहतरीन काम किया जा रहा है।
प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार का सीज़न
धान की रोपाई का समय प्रवासी मजदूरों के लिए भी रोजगार का मौसम लेकर आता है। मंगल कुमार, जो बिहार से यहां काम करने आते हैं, बताते हैं कि हर सीज़न में ‘हम लोग पूरे परिवार समेत यहां आते हैं और चावल की बुवाई का काम करते हैं। यहां उनको अच्छे पैसे मिल जाते हैं। एक से डेढ़ महीना पूरा काम यहां होता है। यहां के सारे काम पूरे करने के बाद बिहार वापस लौट जाते हैं।’
सरकार की पहल: जल संरक्षण और किसानों का साथ
राजस्थान सरकार का ‘वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान’ (vande gangaajal sanrakshan abhiyaan) किसानों को DSR तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है।
राजेंद्र बैनिवाल, कृषि अनुसंधान अधिकारी, हनुमानगढ़ ने बताया ‘अभी यहां धान की बिजाई का टाइम चल रहा है, यहां अभी 50 हजार हेक्टेयर में धान की बुवाई या बिजाई होनी है। जिसमें से अभी 20 हजार हेक्टेयर धान की बिजाई हो चुकी है। अभी जो धान की बुवाई में जो बीज चल रहा है, उसमे पीआर सीरीज़ का चल रहा है। पीआर 126, पीआर 114, पीआर 136 धान की नर्सरी से या डीएसआर विधि से धान की रोपाई का काम चल रहा है। आने वाले समय में पूसा बासमती, 692 पूसा, 509, 121 वगैरह की बुवाई होनी है।’
राजेंद्र बैनिवाल किसान भाईयों से अपील करते हैं कि ‘डीएसआर विधि (DSR Method) यानि मशीन से रोपाई करें ना कि नर्सरी बना कर। इससे सबसे ज़्यादा फायदा ये होता है कि जल की बचत होती है। सरकार के द्वारा भी ‘वंदे गंगाजल संरक्षण अभियान’ (vande gangaajal sanrakshan abhiyaan’) चलाया जा रहा है। जिसमें जल बचत को लेकर एक कार्यक्रम 5 जून से लेकर 20 जून तक चलाया गया है। किसान भाईयों को चाहिए कि डीएसआर विधि से बीजाई करके पानी की बचत करें और इससे उत्पादन की ज़्यादा होगा। ‘
इनोवेशन से बदल रही है धान की खेती
हनुमानगढ़ ज़िले के किसानों ने DSR तकनीक को अपनाकर एक नई मिसाल कायम की है। ये तकनीक न सिर्फ पानी बचा रही है, बल्कि किसानों की लागत घटाकर उनकी आमदनी बढ़ा रही है। अगर सरकार इस क्षेत्र को ‘धान क्षेत्र’ घोषित कर दे, तो यहां के किसानों को और भी फायदा मिल सकता है।
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