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जब बात खेती को आत्मनिर्भरता, पर्यावरण के संरक्षण और स्वास्थ्य की ओर ले जाने की हो, तो जैविक खेती सबसे कारगर और टिकाऊ विकल्प बनकर सामने आती है। आज जब ज़्यादातर किसान रासायनिक खेती से उपजे नुकसान से परेशान हैं, वहीं मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के विट्ठल नारायण पाटिल यानी ‘विट्ठल गुरुजी’ ने जैविक खेती को अपनाकर मिसाल कायम की है। शिक्षक की नौकरी छोड़कर उन्होंने पूरी निष्ठा से खेती को अपनाया और आज करोड़ों में कमाने वाले किसान बन चुके हैं।
नौकरी छोड़कर खेती की राह चुनी (He left his job and chose the path of farming)
विट्ठल गुरुजी ने सालों पहले एक बड़ा फैसला लिया। अर्थशास्त्र में एम.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी शुरू की, लेकिन 1986 में नौकरी छोड़कर अपने पुश्तैनी काम यानी खेती की ओर लौट आए। शुरुआत में खेती कठिन लगी, जमीन भी सीमित थी, अनुभव कम था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने ठान लिया था कि अब कुछ नया और टिकाऊ करना है — और यही रास्ता उन्हें जैविक खेती की ओर ले गया।
जैविक खेती से शुरू हुआ बदलाव (Change started with organic farming)
गांव दापोरा शाहपुरा के अपने खेतों में विट्ठल गुरुजी ने रासायनिक उर्वरकों को पूरी तरह छोड़कर जैविक खेती शुरू की। शुरुआत में उत्पादन कम हुआ, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा। धीरे-धीरे जैविक तरीके से उपज बढ़ी और मुनाफ़ा भी बढ़ा। खास बात यह रही कि उन्होंने खेतों में देसी बीज लगाए, कीटनाशक खुद अपने खेत में तैयार किए — जिनमें गोमूत्र, नीम की पत्तियां, पपीते और सीताफल के पत्तों का काढ़ा शामिल है।
उनकी जैविक उपज में केला, कपास, गन्ना, हल्दी, गेहूं, तुअर दाल, मक्का, बाजरा, ज्वार जैसी कई फ़सलें शामिल हैं। इन फ़सलों को उन्होंने टिश्यू कल्चर तकनीक और कंप्यूटर ऑटोमेशन के ज़रिए नई ऊंचाई पर पहुंचाया।
तकनीक का साथ और आत्मनिर्भरता (Self-reliance and support of technology)
विट्ठल गुरुजी ने तीन साल पहले अपने सात एकड़ खेत में 35 लाख रुपए खर्च कर ऑटोमेटेड सिंचाई सिस्टम लगाया, जिसमें पाइपलाइन और कंट्रोल रूम शामिल हैं। यह पानी और जैविक खाद की सप्लाई एकदम नियंत्रित तरीके से करता है। इससे पानी की बचत होती है और फ़सलों को सही मात्रा में पोषण मिलता है। यह आधुनिक सिस्टम आज किसानों के लिए एक जीवंत मॉडल बन चुका है।
विदेशों तक पहुंचा जैविक केला (Organic banana reached abroad)
जैविक खेती से उपजे फलों की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि विट्ठल गुरुजी द्वारा उगाया गया केला खाड़ी देशों तक एक्सपोर्ट होता है। वहां इसे बेहतर दाम मिलते हैं, जिससे उनकी आय में कई गुना इज़ाफा हुआ है। अब उन्हें खेती के लिए किसी ऋण की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे आर्थिक रूप से पूरी तरह सशक्त हो चुके हैं।
सरकार से मिला सम्मान और समर्थन (Respect and support from the government)
विट्ठल गुरुजी की मेहनत और सफलता को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट 2013 में सम्मानित किया था। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने उन्हें योजना के तहत जर्मनी भी भेजा, ताकि वे और बेहतर तकनीकों को समझ सकें और दूसरों तक पहुंचा सकें। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी उन्हें सम्मानित किया।
महिलाओं और किसानों के लिए प्रेरणा (Inspiration for women and farmers)
विट्ठल गुरुजी मानते हैं कि जैविक खेती से न केवल किसान की आय बढ़ती है, बल्कि यह समाज को भी स्वस्थ और आत्मनिर्भर बनाती है। अब वे जिले के अन्य किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दे रहे हैं। खास बात यह है कि कई महिलाएं भी उनकी प्रेरणा से खेती से जुड़ रही हैं और आज आत्मनिर्भर बन रही हैं। उनका मॉडल ना केवल खेती को बदल रहा है, बल्कि गांवों की सामाजिक संरचना को भी नया आकार दे रहा है।
जैविक खेती के फ़ायदे (Advantages of organic farming)
जैविक खेती केवल एक तरीका नहीं बल्कि एक सोच है, जो मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारती है, भूजल को सुरक्षित रखती है और पर्यावरण के अनुकूल होती है। इस पद्धति में रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे उपजा अन्न और सब्जियां ज़्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। इसका स्वाद और पोषण भी पारंपरिक खेती से बेहतर होता है।
जैविक खेती में लागत कम होती है क्योंकि इसमें न तो महंगे खादों की ज़रूरत होती है, न ही महंगे कीटनाशकों की। इसके विपरीत इसमें उपयोग होने वाली सारी सामग्री खेत या गांव में ही उपलब्ध हो जाती है। यह खेती प्रणाली युवाओं को स्वरोजगार का अवसर देती है और ग्रामीण क्षेत्रों में नए रोजगार भी पैदा करती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
विट्ठल गुरुजी की कहानी यह साबित करती है कि अगर सोच बदली जाए और मेहनत की जाए तो जैविक खेती किसानों के लिए सिर्फ़ विकल्प नहीं बल्कि क्रांति बन सकती है। आज जब रासायनिक खेती से किसान परेशान हैं, मुनाफ़ा कम हो रहा है और स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है — ऐसे में जैविक खेती ही वह रास्ता है जो टिकाऊ भी है और लाभकारी भी। विट्ठल गुरुजी की तरह अगर अन्य किसान भी यह पहल करें, तो सिर्फ़ उनका भविष्य ही नहीं, बल्कि अगली पीढ़ियों का स्वास्थ्य और पर्यावरण भी सुरक्षित होगा।
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