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मिट्टी के नीचे से खेती की एक नई शुरुआत
जैसे-जैसे देश और दुनिया के कई हिस्सों में पानी की कमी गंभीर होती जा रही है – ख़ासकर सूखे और कम बारिश वाले इलाकों में – किसान और वैज्ञानिक मिलकर खेती के ऐसे तरीके खोज रहे हैं, जो पानी की बचत के साथ फ़सल भी अच्छी दें। ऐसे समय में भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation – SDI) एक बेहतरीन तकनीक के रूप में सामने आई है। इसमें पानी को सीधे पौधे की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, वह भी मिट्टी के नीचे से।
जब इस तकनीक को जड़ क्षेत्र में लगे नमी सेंसरों के साथ जोड़ा जाता है, तो यह खेती को और भी स्मार्ट और सटीक बना देता है। यह नई तकनीक सिर्फ़ पानी की बचत नहीं कर रही, बल्कि फ़सल की पैदावार बढ़ा रही है और मिट्टी को भी स्वस्थ बनाए रखती है। आइए जानते हैं कि भूमिगत खेती कैसे खेती की तस्वीर बदल रही है।
भूमिगत ड्रिप सिंचाई (SDI) क्या होती है?
भूमिगत ड्रिप सिंचाई (SDI) एक ऐसा आधुनिक तरीका है जिसमें पानी देने वाली पाइपें या टेपें मिट्टी की सतह के नीचे डाली जाती हैं। इसका मकसद है कि पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचे। परंपरागत सिंचाई जैसे नहर, बौछार (sprinkler) या सतही ड्रिप में पानी का काफी हिस्सा हवा में उड़ जाता है या बह जाता है। लेकिन भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) में ये नुकसान न के बराबर होते हैं क्योंकि पानी सीधा नीचे, पौधे की जड़ों तक जाता है।
पाइपों को कितनी गहराई में डाला जाता है?
आमतौर पर ये पाइपें 10 से 50 सेंटीमीटर की गहराई में लगाई जाती हैं। यह इस पर निर्भर करता है:
- फ़सल की जड़ें कितनी गहरी जाती हैं
- मिट्टी किस प्रकार की है – रेतीली, दोमट या चिकनी
- खेती अल्पकालिक (छोटे समय की) है या दीर्घकालिक (लंबे समय की)
इस तकनीक से खेती बहुत कुशल और पानी की बचत करने वाली हो जाती है – ख़ासकर सूखाग्रस्त और कम पानी वाले इलाकों में।
भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) सिस्टम के मुख्य भाग
अब जानते हैं कि एक पूरा भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) सिस्टम किन हिस्सों से बनता है:
- भूमिगत ड्रिप लाइनें
यह लचीली प्लास्टिक की पाइपें होती हैं जो हर फ़सल की कतार के साथ मिट्टी के नीचे बिछाई जाती हैं। इन पाइपों में छोटे-छोटे छेद (एमिटर) लगे होते हैं, जिनसे पानी धीरे-धीरे रिसता है और जड़ों तक पहुंचता है।
- एमिटर (Emitter)
एमिटर एक ख़ास किस्म का छोटा हिस्सा होता है जो हर पौधे को बराबर मात्रा में पानी देता है, चाहे खेत ऊँचा-नीचा हो या पाइप लंबी हो। इससे हर पौधे को उचित नमी मिलती है।
- फिल्टर यूनिट (निस्पंदन इकाई)
क्योंकि पाइपें ज़मीन के नीचे होती हैं और इनके छेद छोटे होते हैं, अगर पानी में गंदगी या मिट्टी हो तो ये छेद बंद हो सकते हैं। इसलिए पानी को साफ करने के लिए फ़िल्टर (जैसे स्क्रीन, रेत या डिस्क फ़िल्टर) लगाए जाते हैं।
- रूट-ज़ोन नमी सेंसर
ये इलेक्ट्रॉनिक या मैन्युअल उपकरण होते हैं जिन्हें पौधों की जड़ों के पास लगाया जाता है। ये सेंसर यह बताते हैं कि मिट्टी में कितनी नमी बची है। इससे मदद मिलती है:
- कब पानी देना है, इसका सही निर्णय लेने में
- ज़्यादा या कम पानी से बचाव करने में
- बिजली और पानी दोनों की बचत करने में
कुछ सेंसर मोबाइल ऐप या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ते हैं, जिससे खेत को रिमोट से भी मॉनिटर किया जा सकता है।
- ऑटोमेशन कंट्रोल (स्वचालित नियंत्रण)
आजकल के भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) सिस्टम में ऑटोमेटिक वाल्व और टाइमर भी जोड़े जाते हैं, जो सेंसर या मौसम की जानकारी के अनुसार खुद तय करते हैं कि कब और कितना पानी देना है। इससे:
- फ़सलों की ज़रूरत के अनुसार पानी दिया जाता है
- सूखा पड़ने पर तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सकती है
- खाद और पानी एक साथ जड़ों तक पहुंचाए जा सकते हैं (फर्टिगेशन)
भूमिगत ड्रिप सिंचाई क्यों है ख़ास?
पानी को सीधे जड़ों तक पहुँचाने से:
- गर्म इलाकों में पानी उड़ने (वाष्पीकरण) की समस्या कम हो जाती है
- खरपतवार (अवांछित घास) कम उगते हैं क्योंकि सतह पर नमी नहीं होती
- परंपरागत सिंचाई की तुलना में 40 से 60% तक पानी की बचत होती है
- पौधे की जड़ें गहराई में जाती हैं और पौधे ज़्यादा स्वस्थ बनते हैं
जड़-क्षेत्र नमी सेंसर का विज्ञान
जड़ क्षेत्र में लगाए गए ये सेंसर मिट्टी में कितना पानी मौजूद है, इसका वास्तविक समय (real-time) डाटा देते हैं। ये सेंसर तीन प्रकार के हो सकते हैं:
- प्रतिरोधक (resistive)
- कैपेसिटिव (capacitive)
- टेंसियोमेट्रिक (tensiometric)
इस डेटा को कंप्यूटर या मोबाइल ऐप में भेजा जाता है, जिससे किसान तय कर सकता है कि कब पानी देना है और कितनी मात्रा में।
उन्नत सिस्टम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ये सेंसर और भी स्मार्ट बन जाते हैं – ये अलग-अलग खेत के हिस्सों का डेटा लेकर खुद तय करते हैं कि कौन से हिस्से में कब और कितना पानी चाहिए।
यह रहा वही लेख, सरल और साफ हिंदी में, शब्दों की संख्या या जानकारी में कोई कमी किए बिना—ताकि आम किसान और पाठक इसे आसानी से समझ सकें:
भारत के सूखे इलाकों के लिए यह क्यों है गेम-चेंजर
भारत के सूखे और कम बारिश वाले इलाके—जो पूरे देश के लगभग 40% हिस्से में फैले हैं—पानी की कमी की सबसे बड़ी मार झेल रहे हैं। यहां भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है और बारिश भी अनियमित होती जा रही है। ऐसे में राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में भूमिगत ड्रिप सिंचाई (SDI) किसानों के लिए एक नई उम्मीद बनकर सामने आई है, क्योंकि पुराने सिंचाई के तरीके अब उतने कारगर नहीं रह गए हैं।
केस स्टडी 1: जलगांव, महाराष्ट्र – केले की खेती में बड़ा बदलाव
जलगांव, जिसे ‘भारत का केला शहर’ कहा जाता है, वहाँ पहले किसान पारंपरिक तरीके से खेतों में बाढ़ की तरह पानी छोड़ते थे। इस तरीके में पानी का 50% तक नुकसान हो जाता था – या तो ज़मीन में नीचे चला जाता था या गर्मी में उड़ जाता था।
जब किसानों ने 20–25 सेंटीमीटर गहराई पर भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) सिस्टम लगाया, तो नतीजे कुछ ऐसे रहे:
- पानी की बचत 40–50% तक हुई
- उपज 25–30% तक बढ़ी
- एक जैसी सिंचाई से मिट्टी की लवणता कम हुई
- फलों का वजन बढ़ा और फ़सल जल्दी तैयार हुई
यह एक पायलट योजना का हिस्सा था, जिसे जैन इरिगेशन कंपनी ने शुरू किया था। यह कंपनी किसानों को भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) के रख-रखाव और खाद देने की तकनीक (फर्टिगेशन) भी सिखाती है।
केस स्टडी 2: तुमकुर, कर्नाटक – टमाटर और मिर्च उगाने वालों को फायदा
तुमकुर जिला जो अक्सर सूखे से जूझता है, वहाँ राज्य सरकार की ‘कृषि भाग्य योजना’ के तहत छोटे किसानों ने भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) अपनाया। इन खेतों में जड़ों के पास सेंसर भी लगाए गए जो यह बताने लगे कि मिट्टी में कितनी नमी है।
बागवानी विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक:
- पानी की उपयोग क्षमता 60% तक बढ़ी
- टमाटर की उपज में 28% का इज़ाफा हुआ
- सिंचाई ऑटोमैटिक हो गई, इसलिए मज़दूरी का खर्च कम हुआ
- चूंकि ऊपर पानी नहीं था, घास-फूस कम उगे और कीटनाशकों की ज़रूरत भी कम पड़ी
अब वहाँ के कई किसान सिर्फ़ तभी पानी देते हैं जब सेंसर से संकेत मिलता है कि मिट्टी में नमी कम हो गई है – जिससे अटकलबाज़ी की जगह सटीकता आ गई है।
केस स्टडी 3: जोधपुर, राजस्थान – बाजरा और मूंग की खेती में प्रयोग
राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित सीएजेडआरआई (CAZRI – केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान) ने तीन मौसमों तक बाजरा और मूंग की फ़सलों पर भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) का प्रयोग किया।
नतीजे चौकाने वाले थे:
- सतही सिंचाई के मुकाबले 47% कम पानी की ज़रूरत पड़ी
- बाजरे की उपज में 22% और मूंग में 30% तक बढ़ोतरी हुई
- जड़ों के पास नमी बराबर बनी रहने से जड़ें अच्छी बढ़ीं
- भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) से खाद देने पर पौधों ने ज़्यादा पोषक तत्वों को ग्रहण किया
इन परिणामों को बाद में राज्य की नीति में शामिल करने की सिफारिश की गई, ताकि रेगिस्तानी इलाकों में भी यह तकनीक अपनाई जा सके।
मुख्य फ़ायदे
- पारंपरिक तरीकों की तुलना में 40–60% पानी की बचत
- जड़ों में बराबर नमी मिलने से उपज 15–30% तक ज़्यादा
- सतह पर पानी न होने से घास-फूस (खरपतवार) कम उगती है
- नमक ऊपर नहीं आता, इसलिए मिट्टी की लवणता नहीं बढ़ती
- खाद को सीधा जड़ों तक पहुँचाने से उर्वरक की बचत और असर ज़्यादा
चुनौतियां और सीमाएं
यह तकनीक जितनी फ़ायदेमंद है, उतनी ही सावधानी भी मांगती है:
- शुरुआती खर्च ज़्यादा है: एक हेक्टेयर के लिए ₹80,000 से ₹1,50,000 तक का खर्च आ सकता है
- लाइनें जाम हो सकती हैं, इसलिए पानी को फ़िल्टर करना ज़रूरी है
- जड़ें पाइपों में घुस सकती हैं, जिससे पाइप खराब हो सकते हैं
- पाइप ज़मीन में दबे होते हैं, इसलिए मरम्मत करना मुश्किल होता है – इसमें विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है
फिर भी, जैसे-जैसे तकनीक सस्ती और आसान हो रही है, और सरकार सब्सिडी दे रही है, यह तकनीक छोटे और सीमांत किसानों तक भी पहुँचने लगी है।
नीतियां और बाज़ार का रुझान
- भारत की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) पर सब्सिडी दी जा रही है
- FAO और विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ भी इसे जलवायु-संवेदनशील खेती का हिस्सा मान रही हैं
- अब कई एग्रीटेक कंपनियां SDI, सेंसर और किसान मदद को एक साथ पैकेज में पेश कर रही हैं
भारत में सूक्ष्म सिंचाई का बाज़ार हर साल 15% की दर से बढ़ रहा है, और भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) इसकी बड़ी हिस्सेदारी लेता जा रहा है क्योंकि यह सस्टेनेबल (टिकाऊ) तरीका है।
भूमिगत खेती का भविष्य
भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) जब स्मार्ट खेती प्लेटफॉर्म और AI आधारित सलाह से जुड़ेगा, तब यह और भी ज़्यादा असरदार बन जाएगा। इसका उपयोग इन क्षेत्रों में बढ़ेगा:
- जलवायु के हिसाब से स्मार्ट खेती
- जैविक खेती (जहाँ पत्तों पर सिंचाई नहीं चाहिए)
- संरक्षित खेती जैसे नेट हाउस और पॉलीहाउस
इस पर भी रिसर्च चल रही है कि बायोडिग्रेडेबल ड्रिप लाइन, नैनो फ़िल्टर, और एक साथ कई फ़सलें चलाने वाली भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) डिज़ाइन कैसे बनें – जिससे इसका उपयोग और बढ़े।
भविष्य के लिए नई राह
आज जब पानी के स्रोत घटते जा रहे हैं और मौसम का मिजाज बदल रहा है, तब भूमिगत ड्रिप सिंचाई (Subsurface Drip Irrigation) एक ऐसी तकनीक है जो खेती को भविष्य के लिए तैयार करती है। यह केवल पानी बचाने की बात नहीं है, यह बात है पानी को सही तरीके से, सही जगह, और सही समय पर पहुँचाने की।
अब भूमिगत खेती कोई कल्पना नहीं – यह आज की सच्चाई है। और जैसे-जैसे किसान इसे अपनाते जा रहे हैं, एक नई क्रांति चुपचाप ज़मीन के नीचे आकार ले रही है।
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