जलवायु परिवर्तन, गिरते भूजल स्तर और सिंचाई के सीमित साधनों की वजह से धान की खेती बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। इससे निपटने के लिए पटना स्थित ICAR के पूर्वी अनुसन्धान परिसर ने फिलीपींस के अन्तरराष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान के साथ मिलकर एरोबिक (हवा से नमी लेने वाली) धान की एक ऐसी उन्नत किस्म विकसित की है जो न सिर्फ़ सूखा सहिष्णु है, बल्कि अन्य प्रचलित किस्मों की तुलना में पैदावार भी ज़्यादा देती है। एरोबिक धान की इस किस्म का नाम ‘स्वर्ण शक्ति धान’ है।
धान की खेती के लिए ‘स्वर्ण शक्ति धान’ की विशेषताएँ
भारत सरकार ने ‘स्वर्ण शक्ति धान’ को बिहार, झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त घोषित किया है। इस अर्धबौनी किस्म की रोपाई के लिए कीचड़-कादो और जल-जमाव की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिए इसकी खेती सीधी बुआई के ज़रिये सूखाग्रस्त और उथली ज़मीन पर भी हो सकती है।
ये सूखा, रोग और कीट जैसी प्रतिकूल दशाओं को सहन में भी सक्षम है। इसकी फ़सल 115-120 दिन की कम अवधि में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 4.5-5.5 टन धान की पैदावार मिलती है। एरोबिक परिस्थिति में धान की यह प्रजाति 5.0 टन प्रति हेक्टेयर की औसत उपज देती है। मध्यम से गम्भीर सूखे की दशा में इस प्रजाति से 2.5-3.5 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिल जाती है। ये गुणवत्ता और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भी भरपूर है। इसमें 23.5 पीपीएम (Part per million) ज़िंक और 15.1 पीपीएम लोहा पाया जाता है।
![धान की खेती paddy cultivation](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/09/Untitled-design-2022-09-02T181634.202.jpg)
‘स्वर्ण शक्ति धान’ की अहमियत
इस बेहद उन्नत किस्म की अहमियत को समझने के लिए इस तथ्य पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि धान, भारत की प्रमुख ख़रीफ़ फ़सल है। इसे किसी भी फ़सल के मुक़ाबले ज़्यादा पानी की ज़रूरत पड़ती है। धान की परम्परागत खेती से 1 किलोग्राम चावल के उत्पादन में 3 से 5 हज़ार लीटर पानी की ख़पत होती है। इसीलिए यदि मानसून गड़बड़ा जाए तो सिंचित इलाकों में भी इतना ज़्यादा पानी जुटाना किसानों के लिए बेहद ख़र्चीला और मुश्किल होता है, जबकि असिंचित इलाकों में या तो सही वक़्त पर धान की रोपाई नहीं हो पाती या फिर पानी की कमी की वजह से परम्परागत धान की खड़ी फ़सल चौपट हो जाती है।
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‘स्वर्ण शक्ति धान’ की उत्पादन तकनीक
खेत की तैयारी: ‘स्वर्ण शक्ति धान’ की बुआई से पहले यथा सम्भव गर्मी के मौसम में ही खेत की एक गहरी जुताई करना चाहिए। इससे खरपतवार, कीट और रोगों के प्रबन्धन में मदद मिलती है। इस किस्म की सीधी बुआई करने के लिए एक बार मोल्ड बोल्ड हल की मदद से जुताई करके फिर डिस्क हैरो और रोटावेटर चलाना चाहिए। इससे पूरे खेत में बीजों का एकसमान अंकुरण, जड़ों का सही विकास और सिंचाई के जल का एकसमान वितरण होगा। नतीज़तन, पौधों का विकास बहुत अच्छा होगा और अच्छी उपज भी हासिल होगी।
बीजों का चयन और उपचार: बीजों के एकसमान और स्वस्थ अंकुरण के लिए आनुवंशिक रूप से शुद्ध और स्वस्थ बीजों का उपयोग करें। बीजजनित रोगों से बचाव के लिए बुआई से पहले 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लूसेंस प्रति किलोग्राम अथवा 2 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करना चाहिए।
‘स्वर्ण शक्ति धान’ की बुआई: इसकी बुआई का सर्वोत्तम समय जून के दूसरे सप्ताह से लेकर चौथे सप्ताह तक है। इस धान की सीधी बुआई हाथ से अथवा बीज-सह-उर्वरक ड्रिल मशीन के ज़रिये 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की बीज दर के साथ 3-5 सेंटीमीटर गहरी हल-रेखाओं में 20 सेंटीमीटर की दूरी पर पक्तियों में करनी चाहिए।
![धान की खेती paddy cultivation](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/09/Untitled-design-2022-09-02T181758.207.jpg)
‘स्वर्ण शक्ति धान’ के लिए जल प्रबन्धन
यदि फ़सल अवधि के दौरान वर्षा सामान्य और सही रूप से वितरित हो तो ‘स्वर्ण शक्ति धान’ को ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। हालाँकि सूखे की दशा में फ़सल को विकास की महत्वपूर्ण अवस्थाओं जैसे बुआई के बाद, कल्ले आते समय, गाभा फूटते समय, फूल लगते समय और दाना बनते वक़्त खेत में पर्याप्त नमी को बनाये रखना चाहिए।
‘स्वर्ण शक्ति धान’ के लिए खाद प्रबन्धन: ‘स्वर्ण शक्ति धान’ के पौधों के उचित विकास के लिए प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की ज़रूरत होती है। इसमें से बुआई के लिए भूमि की अन्तिम तैयारी के समय फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक और नाइट्रोजन उर्वरक की एक तिहाई मात्रा को खेत में मिला देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बाँटकर, एक भाग को कल्ले (टिलर) आने के समय (बुआई के 40-45 दिनों बाद) तथा दूसरे भाग को बाली आने के समय (बुआई के 55-60 दिनों बाद) देना चाहिए।
खरपतवार प्रबन्धन: ‘स्वर्ण शक्ति धान’ की सीधी बुआई करने पर खेतों में खरपतवार का प्रकोप काफ़ी बढ़ जाता है। इसमें मुख्यतः मोथा, दूब, जंगली घास, सावां, सामी इत्यादि हैं। इन सभी खरपतवारों के उचित नियंत्रण के लिए बुआई के 1-2 दिनों के अन्दर ही पेंडीमेथलीन का 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके 18-20 दिनों के बाद बिस्पैरिबक सोडियम का 25 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद यदि ज़रूरी लगे तो बुआई के 40 दिन और 60 दिन बाद हाथों अथवा मशीन से निराई करनी चाहिए।
रोग और कीट प्रबन्धन: ‘स्वर्ण शक्ति धान’ की किस्म पर्णच्छद अंगमारी, आभासी कंड, झोंका, जीवाणु पर्ण झुलसा, ब्लास्ट, टुंगरू रोग, भूरी चित्ती और पर्णच्छद गलन जैसे प्रमुख रोगों और तनाछेदक, माहूं और पत्ती लपेटक जैसे प्रमुख कीटों के प्रति सहिष्णु होती है। फिर भी यदि कभी इनका प्रकोप नज़र आये तो निम्न उपाय अपनाने चाहिए।
- भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए बुआई से पहले 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बाविस्टिन अथवा कार्बेन्डाजिम के साथ बीज का उपचार करें।
- झोंका रोग की रोकथाम के लिए कासुगामायसीन 3 एसएल का 5 मिलीमीटर प्रति लीटर की दर से पानी का घोल बनाकर फ़सल पर छिड़काव करना चाहिए।
- पर्णच्छद अंगमारी रोग को नियंत्रित करने के लिए वैलिडामाइसीन 3 एल का 2 मिलीमीटर प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
- भूरा माहूं लगने की स्थिति में क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. का 5 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 0.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
- अगर तनाछेदक खेत में दिखाई दे तो थियोक्लोप्रिड 7 एससी का 500 मिलीमीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव अथवा कार्टाप 50 डब्ल्यूपी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।
- पत्ती लपेटक की रोकथाम के लिए खेत में क्विनालफॉस 25 ई.सी. का 6 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
- दीमक की रोकथाम के लिए बीजों का क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. के साथ 75 लीटर प्रति 100 किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।
तस्वीर साभार: ICAR Research Complex for Eastern Region (ICAR-RCER)
स्वर्ण शक्ति धान की मुख्य विशेषताएँ | |||
पौधे की ऊँचाई | 105-110 सेमी | दाने की लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात | 2.35:1.0 |
पौधे का प्रकार | अर्ध बौना | दाने का प्रकार | छोटा पुष्ट |
प्रति पौधा कल्ले | 8-10 | कुटाई से प्राप्त चावल की मात्रा | 76.3 प्रतिशत |
प्रति वर्ग मीटर बालियाँ | 250-280 | साबुत चावल | 63.2 प्रतिशत |
फूल आने की अवधि | 83-85 दिन | क्षारीय प्रसार मूल्य | 4.0 |
1000 दानों का वजन | 23.8 ग्राम | एमिलोज की मात्रा | 22.52 प्रतिशत |
दाने का रूप-रंग | सफ़ेद | अनाज की चाकता | कभी-कभी |
दाने की लम्बाई | 5.59 मिमी | ज़िंक की मात्रा | 23.5 पीपीएम |
दाने की चौड़ाई | 2.37 मिमी | आयरन की मात्रा | 15.1 पीपीएम |
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