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धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों से कैसे पाएं निजात? जानिए पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से

धान की फसल में वक़्त रहते उपचार किया जाए तो बड़े नुकसान से बचा जा सकता है

धान की फसल जूलाई से लेकर अक्टूबर तक कई तरह के कवक और जीवाणु रोगजनकों से प्रभावित होती है। कैसे धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों से किसान छुटकारा पा सकते हैं? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया की उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केंद्र आजमगढ़ के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से ख़ास बातचीत।

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देश में भोजन वाली मुख्य अनाज फसलों में धान का स्थान पहले नंबर पर आता है। आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि धान की खेती कितने बड़े पैमाने पर की जाती है। धान की खेती  में धान की नर्सरी से लेकर दाना बनने तक कई तरह के कीट-बीमारियों के लगने का खतरा होता है। धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के तरीकों के बारे में आप इस लेख में जानेंगे।

जानकारी के अभाव में कहीं फसल बर्बाद ना हो जाए, इसलिए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों की पहचान और बचने के उपाय जानना ज़रूरी है। इस विषय पर किसान ऑफ़ इंडिया ने उत्तर प्रदेश स्थित कृषि विज्ञान केंद्र आजमगढ़ में पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के पद पर कार्यरत डॉ. रूद्र प्रताप सिंह से ख़ास बातचीत की। धान की फसल मे लगने वाले रोगों पर चर्चा करते हुए उन्होंने रोगों की पहचान, लक्षण और इसके रोकथाम के तरीके बताए।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों paddy farming pests

डॉ. रूद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि खरीफ़ में बोई गई धान की फसल जूलाई से लेकर अक्टूबर तक कई तरह के कवक और जीवाणु रोगजनकों से प्रभावित होती है। बरसात का मौसम इन रोगजनकों के लिए बेहद अनुकुल होता है।

ब्लास्ट रोग का कैसे करें नियंत्रण?

डॉ रूद्र प्रताप सिंह ने बताया कि जुलाई से लेकर सितंबर महीने में धान में झोंका रोग यानी ब्लास्ट रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण पौधों की पत्तियों, तना, गांठों व बालियों पर दिखाई देते हैं।

इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति अथवा सर्पिलाकार (Spiral) धब्बे दिखाई देते हैं, जो बीच में राख के रंग के और किनारों पर गहरे भूरे रंग के होते हैं। तने की गांठो तथा पेनिफल का भाग आंशिक और पूरा काला पड़ जाता है। तना सिकुड़ कर गिर जाता है, जिससे फसल को ज़्यादा नुकसान होता है।

इस रोग के नियंत्रण के लिए सबसे पहले नर्सरी डालते समय ट्राईसाइक्लेजोल 2 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के लगाएं। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर बाली निकलने के दौरान आवश्यकतानुसार 10–12 दिन के अन्तराल पर कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत की 2 ग्राम दवा को एक लीटर पानी के अनुपात में घोल बना कर छिडकाव करें। रोग के शुरूआती अवस्था में हेक्साकोनोजोल दवा का प्रयोग अच्छे परिणाम देते हैं।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों paddy farming pests

शीथ ब्लाईट रोग के लक्षण और बचाव उपाय 

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह ने बताया कि धान में फंगस से फैलने वाले शीथ ब्लाईट रोग से धान की फसल को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है। उन्होंने बताया कि धान  की फसल के 40 से 80 दिन तक शीत ब्लाईट व रोग होने का खतरा होता है। उन्होंने कहा कि यह शीत ब्लाईट रोग मुख्य रूप से फसल के आसपास मेड़ पर होने वाली धूब घास से फसल में आता है। इस रोग में कचुंल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे दिखने लगते हैं। रोग का पहला प्रकोप धान के पौधे के तने पर होता है। लंबे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो पौधे की एक-एक पत्ती को सुखा देते हैं, जिससे पौधा मर जाता है।

जिन क्षेत्रों में लगातार बाढ़ और पानी ज़्यादा रहता है, वहाँ शीथ ब्लाइट रोग का खतरा अधिक होता है। इसके रोकथाम के लिए फसल के आसपास हो रही दूब घास को नष्ट कर दें। नियंत्रण के लिए किसान कार्बेडाजिम दवा 2 से 2.5 प्रति ग्राम को प्रति लीटर अनुपात में  घोलकर फसलों पर छिडकाव करें।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों paddy farming pests
शीथ ब्लाईट रोग से प्रभावित धान की फसल

बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट रोग से फसल को कैसे बचाएं

डॉ. सिंह ने आगे बताते हैं कि बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट धान का बहुत घातक रोग है। अगर  समय रहते इसका रोकथाम नहीं किया जाए तो धान की फसल को काफी नुकसान होता है। जीवाणु द्वारा फैलने वाले इस रोग में सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग में हरे, पीले एवं भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह धब्बे धारियों में बदल जाते हैं। रोग बढ़ने पर धारियों का रंग पीला या कत्थई हो जाता है। प्रभावित पत्तियां सूखने व मुरझाने लगती हैं। देखते ही देखते पूरी की पूरी फसल चौपट हो जाती है।

इसके रोकथाम के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का आवश्यकता से अधिक प्रयोग ना करें। प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें। इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकाल दें। पोटाश के छिड़काव के 3-4 दिनों बाद तक खेत में पानी नहीं भरना चाहिए। बुवाई से पहले स्ट्रेप्टोसाईक्लिन से बीज को उपचारित करें। फसल में रोग लगने पर प्रति एकड़ जमीन में 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन और 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों paddy farming pests
बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट रोग से प्रभावित धान की फसल

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जिंक की कमी से होता है धान का खैरा रोग

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. रूद्र प्रताप सिंह के अनुसार, खैरा रोग मिट्टी में जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर हल्के पीले रंग धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे फुटाव रुक जाता है। इससे पौधों की जड़ों का विकास रुक जाता है। धीरे-धीरे पत्ते भूरे से लाल रंग के होकर सूख जाते हैं। यह रोग बार-बार उन्हीं खेतों में होता है, जहां जिंक की कमी होती है।

खैरा रोग नियंत्रण के उपचार को लेकर डॉ. रूद्र प्रताप सिंह सुझाते हैं कि 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत प्रति एकड़ या 500 ग्राम जिंक सल्फेट ढ़ाई किलोग्राम यूरिया के साथ 100 लीटर पानी में अलग-अलग घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 7 से 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों paddy farming pests
खैरा रोग से प्रभावित धान की फसल

इस तरह से धान की फसल में रोगों की रोकथाम कर धान से अच्छी उपज ले सकते हैं और धान की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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