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भारत सरकार लगातार कृषि और बागवानी को बढ़ावा दे रही है। देश के युवा भी लगातार कृषि और बागवानी और इससे जुड़े अन्य व्यवसाय से जुड़ रहे हैं। Nursery Business से काफ़ी युवा जुड़ रहे हैं। इन्हीं में से एक युवा अनिल थडानी से किसान ऑफ़ ने बात की।
पौध नर्सरी से लाभ
अनिल राजस्थान के जयपुर के रहने वाले हैं। अनिल ने अपनी मास्टर डिग्री हॉर्टिकल्चर के क्षेत्र में हासिल की है। इसके साथ ही उन्होंने विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में एक साल काम किया है। नौकरी छोड़ने के बाद नर्सरी बिज़नेस ‘पौधशालम’ की शुरुआत की। अनिल ने शुरुआत घर की छत से नर्सरी का काम शुरू किया था। अनिल ने नर्सरी बिज़नेस का काम 2020 में चालू किया था। इसके साथ वो हाइड्रोपोनिक, वर्टिकल फ़ार्मिंग सिखाने के साथ-साथ, किसानों को जैविक खेती पर सलाह देने का भी काम कर रहे हैं। अनिल किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग भी देते हैं। अनिल के साथ लगभग 2500 किसान जुड़े हुए हैं।
छत पर पौध नर्सरी की शुरुआत कैसे करें?
नर्सरी की शुरुआत करने के लिए एक ग्रीन नेट की ज़रूरत होती है। नर्सरी वाला क्षेत्र नेट से कवर होना चाहिए। इससे कीट-पतंगे नर्सरी को नुकसान नहीं पहुंचाते। कोई नया अगर पौध नर्सरी बिज़नेस में आ रहा है तो उसे उन पौधों का चुनाव करना चाहिए, जिससे नुकसान होने की आशंका कम हो।
पौध नर्सरी बिज़नेस में लागत कितनी?
अनिल कहते हैं कि कोई नया किसान जब नर्सरी के बिज़नेस में आता है तो उसे सबसे पहले 25 फ़ीसदी रुपए रिसर्च के लिए रखने चाहिए। बाकी 50 फ़ीसदी रुपए पौधों पर इन्वेस्ट करने चाहिए।
नए किसान को ऐसे पौधे लेकर आने चाहिए, जिनकी बाज़ार में मांग तो ज़्यादा हो ही, लेकिन सप्लाई कम हो। इससे मुनाफ़ा बढ़ जाएगा। बीज की क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिए। इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री की क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कोकोपीट, वर्मीकम्पोस्ट, पैरालाईट, वर्मीवॉश आदि दवाइयों पर सही से इन्वेस्ट करना चाहिए। बाकी 25 फ़ीसदी रुपये उस वक़्त के लिए बचाकर रखो तब कोई नुकसान हो। अनिल सारा पैसा एक साथ लगाने की सलाह नहीं देते।
अनिल ने अपनी छत पर 1 लाख रुपये से नर्सरी का बिज़नेस चालू किया। अनिल बताते हैं कि अगर खुले में नर्सरी को चालू किया जाए तो लेबर कॉस्ट बढ़ती है। बड़ी नर्सरी में ज़्यादा पौधों की वैरायटी रखनी पड़ेगी।
पौध नर्सरी बिज़नेस में किन बातों का रखें ध्यान?
नर्सरी ग्रो करते समय सबसे पहले बीज में ही दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी बीज ग्रो ही नहीं हो पाता है। जिस पौधे का बीज डाला है तो उस पौधे के ग्रो होने के तापमान का भी पता होना चाहिए। अगर उदाहरण के लिए स्ट्रॉबेरी की बात की जाए तो इसकी जड़ों के ग्रो होने के लिए 26 डिग्री का तापमान होना चाहिए। इस तापमान को क्रिएट करने के लिए एक पॉलिथीन का शेड बनाना चाहिए। अगर आपको पौधे की ग्रोथ देखनी है तो रात में ही देखनी चाहिए। एक एयर थर्मामीटर लेना चाहिए, जिससे वायु की आद्रता नापी जा सके।
मौसम का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पाले से पौध नर्सरी का बचाव करना चाहिए। अनिल कहते हैं कि कीड़े, पक्षी और जानवर बीजों को नुकसान पहुंचाते हैं। पौधों में फंगस का ध्यान रखना चाहिए। पौधे की पत्ती का पीला हो जाना फंगस का लक्षण है। फंगस से बचने के लिए पानी का संतुलन रखना चाहिए।
मिट्टी की नमी का ध्यान रखना चाहिए। अगर मिट्टी उंगली से चिपक रही है तो पौधे को पानी की ज़रुरत नहीं है। पौधे की पत्ती का रंग बदले तो तुरंत दवा डालनी चाहिए। अगर पत्ती का रंग पीला और पर्पल होता है तो पोटासम, फॉस्फोरस की कमी है। प्लांट को एक जगह से दूसरी जगह शिफ़्ट करने में सावधानी बरतनी चाहिए। सबसे पहले पौधे को हार्ड करना चाहिए। पौधे को हार्ड करने के लिए शिफ्टिंग के चार दिन पहले उसमें पानी डालना बंद कर देना चाहिए।
पौध नर्सरी शुरु करते समय किन पौधों का चयन करें?
अनिल सुझाव देते हैं कि सदाबहार पौधा गुलाब को लिया जा सकता है। डबल चांदनी को भी लगा सकते हैं। अरेका पॉम, पॉर्टन, फिलोडेनड्रोन, आदि पौधों को लगाना चाहिए। इसके साथ ही औषधिय गुणों वाले पौधे लगा सकते हैं जैसे पैंक्रियाज, लेमन ग्रास, इंसुलिन, स्टीविया, आंवला, तुलसी। आजकल इन पौधों की लोगों के बीच डिमांड है।
पौध नर्सरी में हाइड्रोपोनिक का इस्तेमाल कैसे करें?
हाइड्रोपोनिक तकनीक में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस तकनीक में पानी का इस्तेमाल किया जाता है। पानी का पीएच लेवल 7 से 5.6 तक होना चाहिए। पीएच वेल्यू को संतुलित करने के लिए पानी को बार-बार फिल्टर करना चाहिए। इस तकनीक से धनिया, टमाटर और गाय का चारा भी लगा सकते हो। 320 रुपए स्क्वायर वर्ग फ़ीट का खर्चा आ जाता है। अनिल ने हाइड्रोपोनिक सेटअप 10 बाय 15 का लगाया था। इसमें कुल खर्च 90 हज़ार रुपये का आया। इस सेटअप की हाइट 8 फ़ीट है। इसका खर्चा तीन सीज़न में निकल जाता है। इस खर्चे में पाइप, मोटर और पौधे सभी आ जाते हैं। इसके अंदर फंगस और काई नहीं पनपनी चाहिए।
पौध नर्सरी को बिमारियों से कैसे बचाएं?
अनिल कहते हैं कि नर्सरी में हर पौधे की अलग-अलग बीमारी होती है। प्रमुख रूप से मिर्ची में सफेद मक्खी लग जाती है। इससे बचने के लिए एक मटकी को पीला रंग से पेंट कर दो। उसको एक बांस के डंडे पर टांग दो। फिर उसके बाद सफेद ग्रीस लगा देनी चाहिए। सफेद मक्खियां रात में लाइट की तरफ जाती हैं। वो मटकी के पास जाएंगी तो वो उससे चिपक जाएंगी।
अनिल बताते हैं कि अगर शुरुआती दिनों में पौधे खराब हो जाए तो उसको सही करने के लिए कच्चा दूध गाय का उसमें 20 ग्राम हल्दी और एक चुटकी हींग, एलोवेरा को भी मिला लें। 1/10 से पानी को मिला लेना चाहिए। इसके घोल से स्प्रे करना चाहिए।
अगर पौधे में कर्ली हो जाता है तो उसको दूर करने के लिए गोमूत्र, लहसुन, हरी मिर्च डालकर उबाल देना चाहिए। फंगस का इलाज सल्फर और कॉपर से करना चाहिए। लहसुन और कॉपर छाछ में डाल दें और चार-पांच दिन के लिए छाछ को रख देना चाहिए। छाछ का रंग हरा हो जाता है। उसके बाद दवा तैयार हो जाती है। इसे पौधे में डाल सकते हैं। फंगस सही नहीं हो जाए तब तक दवाइयां तीन दिन के अंतराल से डालनी चाहिए।
नर्सरी का बाज़ार कैसे बनाएं?
नर्सरी का बाज़ार डिमांड पर निर्भर करता है। अनिल किसानों को जैविक खेती की ओर रूख करने की सलाह देते हैं। साथ ही कहा कि किसानों को हाइटेक तरीके से काम करने की ज़रूरत है। सरकारी योजनाओं का फ़ायदा लेना चाहिए। लोगों की मांग के हिसाब से खेती और पौधों का चुनाव करना चाहिए। इससे किसानों को नुकसान का खतरा कम हो जाएगा।