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हरा चारा पशुओं के लिए बहुत पौष्टिक होता है और इससे गुणवत्ता पूर्ण मांस और दूध प्राप्त होता है, लेकिन हरे चारे के साथ मिक्स खरपतवार (Weed) न सिर्फ़ दूध और मांस के स्वाद और पोषण को प्रभावित करते हैं, बल्कि इसकी वजह से पशुओं को कई तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं। कुछ खरपतवार में एल्कलॉइड, टैनिन, ऑक्सालेट ग्लूकोसाइट या नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है, जो पशुओं के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
ज़रूरी है कि पशुओं को खरपतवार मुक्त हरा चारा दिया जाए। पशुपालकों को पता होना चाहिए कि खरपतवार युक्त चारा (Weed Fodder) खाने से पशुओं पर क्या असर हो सकता है।
चारा खरपतवार से पशुओं को नुकसान
ICAR ने कुछ खरपतवारों की जानकारी दी है, जिनके सेवन से पशुओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। कौन-कौन से खरपतवार पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, आइए जानते हैं:
- लैंटाना (लैंटाना कैमरा) की पत्तियों में लैंट्रेडीन नाम का ज़हरीला केमिकल होता है जिसकी वजह से पशुओं में तेज़ प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है या पीलिया भी हो सकता है।
- गाजरग्रास (पार्थेनियम हिस्टेमफोरस) के संपर्क में अगर पशु आते हैं, तो उन्हें त्वचा की खुजली व सूजन होने का खतरा हो सकता है। इसकी वजह से पशुओं को एलर्जी की समस्या हो सकती है।
- कॉकलेबर या छोटा धतूरा या जैन्थियम स्पेसिस में कार्बोक्सीअट्रैक्टीलोसिड नाम का ज़हरीला ग्लाइकोसाइड होता है। इस पौधे के बीज के साथ ही दूसरे हिस्से भी ज़हरीले होते हैं। छोटे पशुओं पर इसका ज़्यादा घातक असर होता है। इसे खाने पर लीवर ज़हरीले केमिकल से बहुत प्रभावित होता है। लीवर तेज़ी से गलने लगता है, जिससे पीलिया भी हो सकता है। ज़हरीले केमिकल की वजह से पशुओं को क्रोनिक हैपेटाइटिस भी हो जाता है। इसके अलावा दूसरे पैथोलॉजिकल लक्षण भी दिख सकते हैं, जिसमें शामिल हैं गैस्ट्रोएंटेराइटिस।

- आगेरटम स्पेसिस हिमालय नीलगिरी के इलाकों में बड़ी मात्रा में मिलते हैं। ये खरपतवार भी पशुओं के लिए हानिकारक होते हैं।
- पंक्चरवाइन (ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस) शुष्क भूमि में उगने वाला खरपतवार है। इसे खाने से भेड़ों में तेज़ रोशनी के प्रति संवेदनशीलता पैदा होती है। इसके साथ ही कांटेदार फल चरने वाले पशुओं के खुरों में ये घाव कर देता है। इसके सेवन से पशुओं को पेट की समस्या भी हो सकती है।
- जैंथियम स्ट्रैमारियम, अचिरांथस एस्पेरा, सेक्रस सेटिगेरस, सिरसियस अर्वेन्स और सेक्रस इंसर्टस के कांटेदार फल पशुओं के मुंह, पूंछ और शरीर पर चिपककर उन्हें परेशान कर देते हैं।
- हेलोगेटन खरपतवार शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों में पाया जाता है। इसमें ऑक्सालेट की मात्रा ज़्यादा होती है।
- राजस्थान में एस्ट्रगलास और ऑक्सीट्रोपिस प्रजातियों के खरपतवार तेज़ी से फैलते हैं, जो भेड़ और बकरियों के लिए ज़हरीले होते हैं। इसे खाने से भेड़ और दूसरे पशुओं में गर्भपात हो सकता है। इस तरह के खरपतवारों में ज़हरीला अल्कॉइड स्वेनसोनाइन होता है।
- पत्तेदार स्परेज (यूफोर्बिया एसुला) के सेवन से पशुओं को दस्त और कमज़ोरी हो सकती है और भेड़ों के लिए भी ये घातक होता है।
- क्रोटोलारिया चूज़े के लिए घातक होता है। स्वीटक्लोवर (मेलिलोटस अल्बा) में एक डाइक्यूमरिन होता है, जो पशुओं में एक एंटीब्लड-कौयगुलांट के रूप में काम करता है।
खरपतवार का रेशा उत्पादन पर असर
भेड़ के अलावा बकरी और याक से भी ऊन प्राप्त होता है। दुनिया का सबसे मशहूर रेशा माना जाने वाला ‘पश्मीना’ कश्मीर और तिब्बत में पाई जाने वाली पश्मीना बकरियों से मिलता है। ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस, सेंकरस सिल्लिएरिस, जैन्थियम स्पेसिस खरपतवार पशु द्वारा उत्पादित रेशे की गुणवत्ता में कमी लाते हैं।
पशु उत्पादित रेशे में खरपतवारों का प्रबंधन
ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस, सेंकरस सिल्लिएरिस, जैन्थियम स्पेसिस-यह पशु उत्पादित रेशों की गुणता में कमी लाता है। अतः सर्वप्रथम इस प्रकार के पौधे उगे हुए स्थानों पर पशुओं को चराने से बचना चाहिए।
रेशे उत्पादित पशुओं को ऐसी जगह में चराने से बचे जहां खर-पतवार हों। अगर खरपतवार के कांटेदार भाग पशुओं के रेशों से चिपक जाएं, तब जल्द ही उन्हें निकाल दें। इसके लिए ज़रूरी है कि पशुओं की निगरानी में लापरवाही न बरतें। जो रेशे खर-पतवार से प्रभावित हो गए हैं, उनको जल्द से जल्द निकाल देना चाहिए, जिससे कि आगे का रेशे का उत्पादन प्रभावित न हो।
चारा उत्पादन के समय खर-पतवार प्रबंधन
चारा फसल उगाने से पहले ही चारागह में खरपतवारों का प्रबंधन शुरू कर देना चाहिए। दरअसल, ये चारागाहों के लिए गंभीर समस्या है इसलिए उन्हें पहले से खत्म करना ज़रूरी है। ख़ासतौर पर बारहमासी चौड़ी पत्तियां और घास चारा फसल लगाने से पहले प्रबंधन करना ज़रूरी है। इसके अलावा, चारा फसल लगाने से पहले द्विवार्षिक खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए, क्योंकि अगर इन्हें चारा फसल के बीज लगाने से पहले नहीं हटाया जाता है, तो ये कई सालों तक उगते रहेंगे।
खर-पतवार नियंत्रण के उपाय
- बीज क्यारियों को ठीक से तैयार करना
- सही तरीके से खाद डालना
- सही समय पर रोपाई या बुवाई
- उच्च घनत्व पर रोपाई
- बुवाई की सही दर
- अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का चुनाव
- रासायनिक व जैविक खरपतवार नियंत्रण विधियों का इस्तेमाल।