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केसर की खेती ठंडी जलवायु में होती है। भारत में केसर की खेती के लिए कश्मीर का नाम शीर्ष पर आता है। केसर को लाल सोना भी कहा जाता है। आज हम आपको एक ऐसे किसान के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने नोएडा में केसर की खेती करने का कारनामा करके दिखाया है। नोएडा के एक छोटे से कमरे में 65 साल के रमेश गेरा केसर उगा रहे हैं।
रमेश गेरा (Ramesh Gera) ने अपनी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई 1980 में NIT कुरुक्षेत्र से की। इसके साथ ही रमेश गेरा ने कई मल्टीनेशनल कंपनियों में जॉब भी की। नौकरी के दौरान उन्हें दुनिया के बहुत सारे देशों में जाने का मौका मिला। बाहर के देशों में उन्हें कृषि के नए-नए तरीके देखने को मिलें। रमेश गेरा बतातें हैं कि मल्टीलेवल ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग, हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग, एरोपोनिक फ़ार्मिंग तकनीक विदेश में देखने को मिलीं।
एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती
रमेश एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है। इस तकनीक में चिलिंग डिवाइस, ह्यूमिडिटी फ़ायर जैसे डिवाइस का इस्तेमाल होता है। इससे हम कश्मीर के वातावरण को बंद कमरे में ला देते हैं। इसमें तापमान, आर्द्रता, हवा की गती और लाइट को नियंत्रण करते हैं।
समय के साथ-साथ वातावरण में परिवर्तन लाते हैं। इसके बाद बीजों को लकड़ी की ट्रे में रखा जाता है। बीजों को रखने से पहले उनकी गुणवत्ता को जांच लेते हैं। इसका गो प्रोसेस अगस्त महीने के बीच में होता है। इस समय कश्मीर के वातावरण की नकल करते हैं। समय के साथ-साथ वातावरण के पैरामीटर बदलते रहते हैं।
बंद कमरे में केसर की खेती करने के फ़ायदे
रमेश गेरा (Ramesh Gera) बताते हैं कि बंद कमरे में केसर की खेती करने से उपज अच्छी होती है। इसमें नुकसान होन की आशंका कम होती है। खुले में खेती करने में वातावरण के बार-बार बदलाव के कारण नुकसान का खतरा बढ़ जाता है। बंद कमरे में नुकसान की आशंकाएं कम हो जाती हैं।
खुले वातावरण में प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग का भी असर देखने को मिलता है। बंद कमरे में ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण का असर कम हो जाता है। इसके साथ ही मिट्टी से लगने वाले रोगों से भी केसर की फसल सुरक्षित रहती है। इस कारण केसर पूरी तरह ऑर्गेनिक होती है।इस कारण बंद कमरे की खेती में केसर की गुणवत्ता अच्छी होती है।
केसर की खेती की उन्नत तकनीक
रमेश गेरा बताते हैं कि उन्होंने नोएडा में 100 स्क्वायर फ़ीट के कमरे में केसर उगा रखा है। उन्होंने कहा-
इसमें दो तरह के खर्चे आते हैं। एक सेटअप कॉस्ट, जिसमें मेरा साढ़े 4 लाख रुपये का खर्चा आया। दूसरा खर्चा करीब ढाई लाख रुपये का, जो बीज में आता है। इन दोनों का खर्चा मिलाकर करीब 7 लाख रुपये आता है। फिर लेबर कॉस्ट आती है।
केसर की खेती में किन बातों का रखें ध्यान?
केसर की खेती में बीज की गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए। बीज को कश्मीर से ही लेना चाहिए। केसर की खेती के दौरान बिजली की लगातार उपलब्धता होनी चाहिए। एरोपोनिक तकनीक बिजली के भरोसे पर रहती है। इस कारण हर जगह इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। किसान को एडवांस में हॉमवर्क कर लेना चाहिए। उसे इस तकनीक में आने वाली ज़रूरतों को ध्यान में रखना चाहिए। किसान साथियों को इस तकनीक के साथ नियमित ज़रूरत के अनुसार कमरे के वातावरण में बदलाव करते रहना चाहिए। अगर इन बातों का ध्यान रखें तो केसर का उत्पादन बहुत अच्छा आता है।
किसानों को केसर की खेती की ट्रेनिंग
रमेश ने खेती के क्षेत्र में कई प्रयोग किए हैं। इनमें से कई सफल रहे हैं। वो एरोपोनिक तकनीक को लेकर किसानों को ट्रेनिंग देते हैं। नवंबर 2022 से वो ट्रेनिंग दे रहे हैं। अब तक 350 लोगों को वो केसर की खेती की ट्रेनिंग दे चुके हैं। इसके साथ ही विदेश से भी किसान जुड़ते हैं।
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केसर की खेती में कितना मुनाफ़ा?
रमेश किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत करते हुए बताते हैं कि एरोपोनिक तकनीक से जो किसान कमर्शियल तौर पर केसर की खेती करना चाहते हैं वो कम से कम 400 स्क्वायर फ़ीट की जगह से इसकी शुरुआत करें। इससे कम करने से घाटा भी हो सकता है। 400 स्क्वायर फ़ीट के कमरे से डेढ़ किलो केसर निकलता है। इसका होलसेल रेट साढ़े तीन लाख रुपये प्रति किलोग्राम है। रिटेल में साढ़े चार लाख रुपये प्रति किलोग्राम से शुरुआत होती है। इसकी कीमत इससे ज़्यादा भी हो सकती है, वो बेचने वाले के ऊपर निर्भर करता है।
केसर की फसल के लिए बाज़ार कैसे तलाशें?
रमेश बताते हैं कि केसर का बाज़ार भारत में बहुत बड़ा है। केसर की डिमांड लगभग 70 मीट्रिक टन प्रति साल है। कश्मीर से सिर्फ़ 20 मीट्रिक टन लगभग की पूर्ति हो पाती है। बाकी 50 मीट्रिक टन केसर ईरान से आयात किया जाता है। भारत में लोगों की खरीदारी की क्षमता बढ़ रही है। किसान सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के ज़रिए केसर की मार्केटिंग कर सकते हैं।
केसर की खेती को GI Tag
भारत केसर के उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारत के मशहूर कश्मीरी केसर को GI Tag मिला हुआ है। कश्मीरी केसर की गुणवत्ता के चलते निर्यात भी बढ़ा है। साल 2021-2022 में भारत से 21,057 किलोग्राम केसर का निर्यात हुआ है।
इस बार कश्मीर के पंपोर के किसानों के चेहरों पर खुशी दिख रही है। कश्मीर में केसर की खेती (Saffron Production in Kashmir) लगभग 3700 हेक्टेयर में होती है। इस साल केसर के उत्पादन ने पिछले 10 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है।
AAP ka prayas sarahaniya hai.Iske liye mai aabhari hu.
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