Table of Contents
सबई घास एक प्राकृतिक फाइबर है जिससे ओडिशा के कलाकर रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आने वाले कई उत्पाद बना रहे है। ओडिशा की सबई घास से बनी दस्तकारी ने दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसके उत्पाद बनाकर कलाकार ओडिशा की संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। पंकज कुमार ऐसे ही एक कलाकार हैं जो सबई घास से कई तरह के घरेलू सामान बनाकर राज्य की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इस नेचुरल फाइबर से वो कौन-कौन सी चीज़े बनाते हैं इस बारे में उन्होंने विस्तार से बात की किसान ऑफ इंडिया से।
पहले सिर्फ़ पेपर बनता था (Earlier only paper was made)
सबई घास से भले ही ओडिशा में दस्तकारी का पर्याय बन चुका है, मगर ये घास यहां से नहीं है। पंकज कुमार का कहना है कि इस घास को 1870 में यहां के राजा अफ्रीका से लेकर आए थे और पहले इसका उपयोग सिर्फ़ पेपर बनाने के लिए किया जाता था। मगर धीरे-धीरे इस नेचुरल फाइबर की उपयोगिता के बारे में पता चला तो इससे फ्लावर बास्केट, रस्सी और घरेलू उपयोग में आने वाले तरह-तरह के सामान बनाए जा रहे हैं। आज के समय में ओडिशा के 2-3 जिलों में इसे उगाया जा रहा है।
प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प (Excellent alternative to plastic)
आज के समय में जब प्लास्टिक की वजह से पर्यावरण को बहुत हानि पहुंच रही है, ऐसे में सबई घास से बनी चीज़ें प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प बन रही हैं। इससे बने बर्तन, डिब्बे आदि न सिर्फ़ इको फ्रेंडली है, बल्कि टिकाऊ भी होते हैं और इससे हमारी सेहत को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है। पकंज बताते हैं कि पहले सबई घास के बारे में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं थी, मगर पिछले 6 सालों से वो इससे ढेरों उत्पाद बना रहे हैं और सोशल मीडिया के ज़रिए उन्होंने अपने उत्पादों को लोगों तक पहुंचाया।
ग्राहकों से मिलती है प्रेरणा (Inspiration comes from customers)
पंकज अपने उत्पादों को जब एग्जीबिशन में ले जाते हैं, तो इसे देखकर हैरान रह जाते हैं और पूछते हैं कि ये किस चीज़ से बने हैं। पंकज का कहना है कि उनके उत्पाद में सबई घास के साथ ही खजूर के पत्तों का भी इस्तेमाल होता है। जहां तक प्रोडक्ट के डिज़ाइन की बात है तो कुछ डिज़ाइन तो वो खुद बनाते हैं और कुछ ग्राहकों की डिमांड के हिसाब से बनाते हैं। ग्राहक की ज़रूरत और पसंद के हिसाब से उन्हें नए आइडिया आते हैं और वो डिज़ाइन बनाते हैं।
बनाए हैं 350 से अधिक उत्पाद (More than 350 products have been created)
पंकज बताते हैं कि उनके पास 350 से भी अधिक उत्पाद हैं जिसमें पेन स्टैंड, रोटी बॉक्स, ईयररिंग बॉक्स, वॉल डेकोरेशन, लॉन्ड्री बास्केट, प्लांटर होल्डर, मैट्स और भी बहुत कुछ शामिल है। इन उत्पादों की एक सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि पानी से गीला होने पर इसे सुखाकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। ये जितना सूखा रहेगा उतना ही लंबा चलेगा।
अगर कभी ये खराब हो जाए तो आप इसे फेंक सकते हैं, मगर प्लास्टिक की तरह इसका पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। आगे वो बताते हैं कि कोविड के पहले तक सीमित लोगों तक ही इसकी पहुंच थी, लेकिन अब ज़्यादा लोगों को सबई के बारे में पता है, इसलिए इससे बने उत्पादों की मांग बढ़ी है।
कितनी है कीमत (how much is the price)
पंकज कहते हैं कि इसकी कीमत उत्पाद के ऊपर निर्भर करती है। उनका कहना है कि जिस उत्पाद को बनाने में ज़्यादा मेहनत और समय लगता है उसकी कीमत अधिक होती है। उनके पास जो उत्पाद है उसकी कीमत 40 रुपए से शुरू होकर 5000 रुपए तक है। लॉन्ड्री बास्केट 500 रुपए में भी मिलते है और कुछ खास तरह के डिज़ाइन की कीमत 2000 रुपए तक है। कई उत्पाद ऐसे हैं जिन्हें लोग अपनी सुविधानुसार अलग-अलग काम क लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे रोटी रखन वाले बॉक्स को स्टोरेस बॉक्स की तरह भी उपयोग किया जा सकता है।
क्या है सबई घास? (What is Sabai grass?)
सबई घास एक गुच्छेदार घास है, जिसकी खेती पूरे साल की जा सकती है। इसका वानस्पतिक नाम यूलालियोप्सिस है। इसकी खेती पश्चिम बंगाल और ओडिशा में की जाती है। खास बात ये है कि इसे कम उपजाऊ और ऊंचे इलाकों में भी उगाया जा सकता है और इसके लिए दूसरी फ़सलों की तुलना में पानी की भी कम ज़रूरत पड़ती है। सबई घास को प्राकृतिक फाइबर भी कहते हैं।
इसलिए इसका इस्तेमाल रस्सी बनाने में होता है। इसकी बनी रस्सी बहुत मुलायम होती है। इससे बनी रस्सी को अलग-अलग रंगों से रंगा जा सकता है। इतना ही नहीं रस्सी के अलावा इससे कागज, डिस्पोजल बर्तन, चटाई, वॉल डेकोरेशन, स्टोरेज बॉक्स, सजावटी सामान के अलावा और भी बहुत सी चीज़े बनाई जा सकती है। इसके बहु उपयोग की वजह से ही सबई घास की मांग बढ़ रही है, ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है।
सबई घास की खेती (Cultivation of Sabai Grass)
इसे आमतौर पर बीज से या जड़ समूह को चीरकर उगाया जाता है। इसकी कटाई साल में कई बार की जाती है और काटने के बाद घास दोबारा बढ़ जाती है। सावधानीपूर्वक इसकी कटाई करने के बाद इसे सुखकार प्रसंस्करण के ज़रिए इससे रेश को निकाला जाता है। इसकी खेती से किसानों को आर्थिक लाभ तो होता ही है साथ ही उद्योग के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है, मगर इन सबके साथ ही इससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है और ये मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ ही एक स्वस्थ पर्यावरण बनाने में भी मददगार है। इसकी खेती से पारिस्थितिक संतुलन को बना रहता है।
सबई घास ग्रामीण अर्थव्यवसथा का अहम हिस्सा है, इससे रोज़गार सृजन में मदद लती है और पर्यावरण संरक्षण भी होता है, इसलिए इसकी खेती को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। सबई घास की दस्तकारी से बंगाल और ओडिशा की पारंपरिक कला को जिंदा रखने और उसे पूरी दुनिया में पहचान दिलाने में मदद मिल रही है।
इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी है कि सरकार की ओर से किसानों की मदद की जाए ताकि उन्हें अपनी उपज की सही कीमत मिल सके। साथ ही वर्तमान समय में जहां हमेशा प्लास्टिक बैन की मांग उठती रहती है, मगर इसे पूरी तरह से बैन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्लास्टिक का कोई ठोस विकल्प नहीं मिला है। ऐसे में सबई घास से बनी चीज़ों को बढ़ावा देकर प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम किया जा सकता है।
ये भी पढ़ें : पिता-पुत्री की ये जोड़ी अंजीर और स्ट्रॉबेरी की खेती से बदल रही है बुंदेलखंड की तकदीर
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।