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स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है जो ठंडी जलवायु में ही उगाया जाता है, मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि 44 डिग्री तापमान वाले बुंदेलखंड जैसे गरम इलाके में भी अब इसकी खूब खेती हो रही है, और ये कमाल संभव हो पाया है युवा किसान गुरलीन चावला और उनके पिता हरजीत सिंह चावला की बदौलत। जो खेती को एक व्यवसाय की तरह कर रहे हैं और हमेशा कुछ नया एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं।
बुंदेलखंड के झांसी की युवा किसान गुरलीन चावला के स्ट्रॉबेरी की खेती (strawberry cultivation) की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में भी कर चुके हैं। किसान ऑफ इंडिया से बातचीत में गुरलीन के पिता जी हरजीत सिंह चावला ने बुंदेलखंड में स्ट्रॉबेरी, सेब, बेर और अंजीर की खेती पर विस्तार से चर्चा की।
पहला व्यवसाय थी खेती (The first occupation was farming)
गुरलीन चावला के पिता हरजीत सिंह चावला को बचपन से ही खेती से लगाव था, वो कहते हैं कि 19 साल की उम्र में उन्होंने पहला व्यवसाय जो शुरू किया वो खेती ही थी। वो बताते हैं कि झांसी से बहुत दूर एक जगह है डंगरवा, वहां जंगल में उन्होंने 500 रुपए एकड़ में ज़मीन खरीदकर खेती शुरू की जो बहुत सफल रही। उन्होंने ग्रास लैंड के मार्गदर्शन में काम किया, जो उस वक़्त झांसी में नया-नया ही स्थापित हुआ था और उस समय सुबबुल, युकेलिप्टस और पोपलर बहुत लोकप्रिय थे, तो उन्होंने इन्हीं की खेती की थी। उसके बाद फिर वो अपने दूसरे बिज़नेस में व्यस्त हो गए।
घर की छत से दोबारा खेती की शुरुआत (Farming started again from the roof of the house)
हरजीत सिंह कहते हैं कि 2015-16 में उन्होंने अपने घर की छत से दोबारा खेती शुरू कर दी। छत पर उन्होंने सारी सब्ज़ियां उगाकर एक्सपेरिमेंट किया, साथ में स्ट्रॉबेरी भी उगाई। फिर उनकी बेटी गुरलीन की भी खेती में दिलचस्पी बढ़ी। कोरोना टाइम में ही उसकी लॉ की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, तो उसने में खेती करने की इच्छा जताई और कहा कि क्यों ने अपने 7 एकड़ के फार्म में ही स्ट्रॉबेरी की खेती (strawberry cultivation) की जाए। इस तरह से स्ट्रॉबेरी की खेती (strawberry cultivation) की शुरुआत हुई और अब वो बहुत अच्छी चल रही है। हरजीत कहते हैं कि उनके खेती की स्ट्रॉबेरी का स्वाद बहुत बढ़िया होता है।
बुंदेलखंड में चंदन की खेती (Sandalwood cultivation in Bundelkhand)
हरजीत सिंह खेती को एक व्यवसाय की तरह करते हैं और हमेशा नए प्रयोग करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए उन्होंने चंदन की खेती भी शुरू कर दी है। वो कहते हैं कि इसमें 20-25 साल का समय लगता है, लेकिन पौधे अच्छी तरह विकसित हो रहे हैं। दो साल पहले लगाए पौधे उनकी हाइट तक बढ़ गए हैं। हरजीत सिंह बताते हैं कि चंदन के लिए मिट्टी सख्ती होनी चाहिए और यहां की लाल मिट्टी चंदन के लिए उपयुक्त है, बस यहां पानी अधिक देना होता है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू की जलवायु में नमी अधिक होती है, जो यहां नहीं है, तो हरजीत सिंह ने आर्टिफिशियली नमी बढ़ाने की कोशिश की है जिससे पौधों का विकास अच्छी तरह हो सके। उन्होंने इसके बीज कर्नाटक से मंगाकर अपनी ही नर्सरी में पौध तैयार की है।
हर तरह की सब्ज़ियां और फल (All kinds of vegetables and fruits)
स्ट्रॉबेरी और चंदन की खेती के साथ ही हरजीत सिंह सभी तरह की सब्ज़ियां भी उगा रहे हैं। वो कहते हैं कि वो सभी तरह की सब्ज़ियां और फल यहां उगा रहे हैं। अमरूद, अंजीर, पीच की खेती अच्छी वो रही है और उन्होंने एवाकाडो भी लगाए हुए हैं जिसमें अगले साल से फल आने लगेंगे। आमतौर पर इसे फल देने में 4 साल का समय लगता है। उनके बगीचे में जो अमरूद लगे हैं वो बहुत ही स्वादिष्ट है।
हैरानी की बात ये है कि उन्होंने कश्मीर और हिमाचल में उगाए जाने वाला सेब भी लगाया हुआ है, मगर वो कहते हैं कि यहां वो हिमाचल वाला क्लाइमेट नहीं दे पाए इसलिए सेब का साइज़ छोटा है, मगर खाने में स्वाद अच्छा है।
स्ट्रॉबेरी की खेती (strawberry cultivation)
हरजीत सिंह बताते हैं कि वो स्ट्रॉबेरी के पौधे पुणे से लाते हैं और अक्टूबर में जब तापमान 32-33 डिग्री के आसपास हो जाता है तो पौधों की रोपाई कर देते हैं। वो कहते हैं कि स्ट्रॉबेरी में फ्लड सिंचाई इसमें नहीं चलेगा इससे पौधे मर जाएंग, इसलिए इसमें ड्रिप इरिगेशन लगाया हुआ है। वो थोड़ा-बहुत पेस्टिसाइड डालते हैं, मगर कोशिश करते हैं कि ज़्यादा ऑर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल किया जाए।
स्ट्रॉबेरी के पौधों की क्यारियों में एक मीटर की दूरी रखते हैं। क्योंकि बहुत ज्यादा खरपतवार बीच में आ जाए तो फ़सल को नुकसान पहुंच सकता है। जबकि पौधे से पौधे के बीच 25 सेमी की दूरी रखते हैं, हालांकि कुछ लोग 20-30 सेमी की दूरी भी रखते हैं, मगर स्ट्रॉबेरी को बहुत ज़्यादा घना नहीं लगाना चाहिए, इससे फलों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
बच्चे की तरह देखभाल है ज़रूरी (It is important to take care of yourself like a child)
स्ट्रॉबेरी के पौधों की देखभाल के बारे में हरजीत सिंह का कहना है कि बाकी पौधे तो थोड़ा आगे-पीछे हो सकते हैं, मगर स्ट्रॉबेरी में समय देना होता है। साथ ही तापमान और नमी की रोज ही गणना करनी पड़ती है, इसी के आधार पर पानी, खाद और पेस्टिसाइड डालना होता है। एक छोटे बच्चे की तरह इसकी ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत पड़ती है।
मल्टीक्रॉपिंग है बेस्ट (multi cropping is best)
मल्टीक्रॉपिंग आज के समय की ज़रूरत है, इससे किसानों को खेती से नुकसान की संभावना बहुत कम हो जाती है, क्योंकि एक फ़सल अगर खराब होती भी है, तो दूसरी से लागत निकल जाती है। हरजीत सिंह ने भी स्ट्रॉबेरी के साथ दूसरी फ़सल भी लगा रखी है। वो कहते हैं कि स्ट्रॉबेरी के साथ लहसुन, अदरक भी लगाया हुआ है, इसके अलावा हरी मिर्च भी लगा सकते हैं, मगर वो कहते हैं कि इसके साथ करेला, लौकी, तुरई जैसी सब्ज़ियां नहीं लगा सकते, क्योंकि वो फैलती है।
यानी स्ट्रॉबेरी के साथ आप दूसरी फ़सल लगा सकते हैं, मगर आपको ये भी देखना होगा कि वो बहुत अधिक फैलने वाली न हो। इसके अलावा उन्होंने बेर, अंजीर, अमरूद के पेड़ भी लगाए हुए हैं। इसके बारे में उनका कहना है कि इन पेड़ों की छांव में जो स्ट्रॉबेरी का पौधा है उसमें फल ज़्यादा अच्छे लगते हैं। साथ ही इन पेड़ों को अलग से कुछ देखभाल की ज़रूरत नहीं पड़ती है जो भी खाद पानी स्ट्रॉबेरी में डालते हैं वो दूसरे पेड़ को भी मिलता रहता है।
अमरूद और बेर की खेती है फ़ायदेमंद (Cultivation of guava and plum is beneficial)
हरजीत सिंह का कहना है कि बुंदेलखंड के किसानों के लिए अमरूद की खेती फ़ायदेमंद है, क्योंकि यहां इसकी फ़सल अच्छी होती है। उनके पास रायपुर के अमरूद की एक वैरायटी है जो बहुत लोकप्रिय है, इसमें 7 महीनों तक फल लगता है और एक छोटे से पेड़ से भी 20-25 किलो तक फल मिल जाता है। उन्होंने अंजीर भी लगाया हुआ है, मगर अभी ट्रायल बेसिस पर चल रही है।
इसके अलावा वो कहते हैं कि इस क्षेत्र के किसान एप्पल बेर की खेती भी कर सकते हैं, क्योंकि इसकी फ़सल अच्छी होती है। उन्हें एक बेर के पेड़ 100 किलो तक बेर मिल जाती है। अगर मंडी का औसत रेट कम से कम 20 रुपए किलो भी मिले तो किसानों को नुकसान नहीं होगा, जहां तो उनका सवाल है तो वो तो 100 रुपए किलो बेर बेचते हैं। वो कहते हैं कि उनका 200 ग्राम अंजीर का डिब्बा भी 200 रुपए में बिकता है।
बाजार की समस्या नहीं (not a market problem)
हरजीत सिंह को बाज़ार की समस्या नहीं है, वो कहते हैं कि वो सब्ज़ियों को रेलवे के ज़रिए दिल्ली और इंदौर की मंडियों तक भेजते हैं। छोटे किसानो के लिए रेलवे से बुकिंग आसान होती है मंडी तक पहुंचाने के लिए। आगे वो बताते हैं कि जिनके पास 2 से 5 क्विंटल तक की फ़सल हो वो रेलवे से उसे भेज सकते हैं, रेलवे कृषि उत्पादों को प्राथमिकता पर लेता है, बस जहां आप इसे भेज रहे हैं वहां आपका आदमी होना चाहिए जो वहां आपकी फ़सल उतारकर बाजार में उसे बेच दे।
हरजीत सिंह और उनकी बेटी गुरलीन चावला की बदौलत ही अब बुंदेलखंड के बाज़ारों में स्ट्रॉबेरी की भरमार है, वरना कुछ साल पहले तक तो यहां के लोग इस फल से बिल्कुल अनजान ही थे। हरजीत सिंह का कहना है कि आने वाले समय में वो बड़ी ज़मीन पर मल्टीक्रॉपिंग करने की योजना बना रहे है जिससे नियमित इनकम हो सके। साथ ही वो किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर फलों की खेती करने की सलाह देते हैं।
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