Agri-Waste से खड़ा किया सफल Agri-Business, जानिए आरुषि मित्तल ने कैसे बदल दिया है पराली का भविष्य

आरुषि मित्तल ने Agri-Waste से निपटने के लिए "Parali by Aarushi" स्टार्टअप शुरू किया, जहां पराली को रिसाइकिल कर घर की सजावटी वस्तुएं बनाई जाती हैं।

Agri-Waste Agri-Business

धान और गेहूं की फ़सल कटने के बाद जो हिस्सा बचता है, उसे ही पराली (stubble) कहा जाता है। हमारे देश में कई राज्यों में पराली जलाई जाती है जिससे न सिर्फ़ पर्यावरण और मिट्टी को नुक़सान पहुंचता है, बल्कि ये मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। इस Agri-Waste समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने पराली के कई इस्तेमाल सुझाए हैं। हरियाणा के पानीपत की रहने वाली आरुषि मित्तल का प्रयास भी पराली जलाने से होने वाले नुक़सान को रोकना है और वो ये काम कर रही हैं अपनी टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग के हुनर के ज़रिए।

आरुषि मित्तल ने यूके से टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में मास्टर डिग्री पूरी की और उसके बाद Agri-Business “Parali by Aarushi” की शुरुआत की। उनका ये स्टार्टअप हरियाणा के पानीपत में है, जहां वो किसानों से पराली (stubble) खरीदकर उसे रिसाइकिल करके उससे घर के लिए कई ज़रूरी और सजावटी वस्तुएं बनाती हैं। इस इनोवेटिव एग्री बिज़नेस से न सिर्फ़ पर्यावरण को फ़ायदा हो रहा है, बल्कि स्थानीय महिलाओं को रोज़गार भी मिल रहा है। आइए, जानते हैं कैसे आरुषि ने पराली जैसे वेस्ट को बेस्ट टेक्सटाइल मटीरियल में तब्दील करके भविष्य के लिए एक नई राह दिखाई है।

पराली पर की रिसर्च (Research on stubble)

पंजाब और हरियाणा के किसानों की सबसे बड़ी समस्या है पराली। जिसे जलाने का असर पड़ोसी राज्य दिल्ली तक पड़ता है, मगर मशीनों से धान की कटाई के कारण किसानों के खेत में पराली बहुत अधिक इकट्ठा हो जाती है, ऐसे में दूसरी फ़सल की जल्द बुवाई के लिए किसानों को मज़बूरी में इसे जलाना पड़ता है। ऐसे में आरुषि जैसे इनोवेटिव युवा आगे आकर न सिर्फ़ इस समस्या को कम करके किसानों की मदद कर रहे हैं, बल्कि Agri-Waste जैसे बेकार पदार्थ से बेहतरीन उत्पाद तैयार करके रोजगार की नई राह भी दिखा रहे हैं। 

पानीपत, हरियाणा की रहने वाली आरुषि मित्तल ने पर्ल इंस्टीट्यूट के दिल्ली कैंपस से टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में ग्रैज्युएशन की है और उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ द आर्ट्स लंदन से टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में मास्टर्स किया है। जहां उन्होंने पराली (stubble) के ऊपर रिसर्च किया। चूंकि वो पानीपत से हैं, तो उन्होंने अपने आसपास देखा था कि किसान जो पराली जलाते हैं, उससे काफी प्रदूषण फैलता है। तो अपनी रिसर्च में उन्होंने ये पता लगाने की कोशिश की कि ऐसा क्यों होता है, इसके कारण क्या है और इस प्रदूषण को कम करने में एक टेक्सटाइल डिज़ाइनर के रूप में वो अपना क्या योगदान दे सकती हैं।

पराली से नया मटीरियल (New material from straw)

आरुषि बताती हैं कि अपनी रिसर्च में उन्होंने पाया कि Agri-Waste पराली से एक बहुत ही नया मटीरियल बनाया जा सकता है, जिसे टेक्सटाइल इंडस्ट्री में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और इस मटीरियल से कुछ भी बनाया जा सकता है।

30 तरह के घरेलू उत्पाद (30 types of household products)

आरुषि अपने स्टार्टअप Agri-Business “Parali by Aarushi” के तहत पराली से तैयार मटीरियल से 30 तरह के उत्पाद बनाती हैं, जिसमें टेबल कवरिंग, दीवार को ढंकने के लिए पर्दे, फर्श को ढंकने के लिए रग्स, रनर, मेडिटेशन मैट आदि शामिल हैं। पराली से एक साफ टेक्सटाइल मटीरियल बनाने की प्रक्रिया के बारे में वो बताती हैं कि सबसे पहले तो वो लोग किसानों से पराली खरीदते हैं और उसे फैक्ट्री में पहुंचाते हैं, जो कि पानीपत में खेतों के पास ही बनी है। फैक्ट्री में पराली की छंटाई की जाती है और फिर उसे साफ किया जाता है। 

5-6 स्टेप के बाद पराली (stubble) एकदम साफ हो जाती है और फिर उसका इस्तेमाल आगे मटीरियल बनाने में किया जाता है। पराली से जब ये नया मटीरियल तैयार होता है तो बिल्कुल साफ और चमकदार बन जाता है, जिससे कुछ भी बनाया जा सकता है और उसमें किसी तरह की गंध भी नहीं रहती है। आरुषि ने इससे बास्केट, टेबल मैट तो बनाए ही हैं, साथ ही इस मटीरियल की थिकनेस यानी मोटाई अलग-अलग रहती है, जिससे इसे कुशन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, साथ ही परदे के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है क्योंकि ये लाइट वेट होता है।

कुछ भी बर्बाद नहीं होता है (Nothing goes to waste)

आरुषि बताती हैं कि उनका ब्रांड Agri-Waste पराली मटीरियल से वॉल डेकोरेशन आइटम्स भी बनाता है। दरअसल, दूसरे उत्पाद बनाने में जो भी वेस्ट निकलता है, उससे वॉल डेकोरेशन के लिए अलग-अलग चीज़ें बनाई जाती हैं। यही नहीं, जो बिल्कुल ही चूरा मटीरियल निकलता है, जिसे देखकर लगता है कि इससे तो कुछ नहीं बन सकता, उससे भी आरुषि ने गणेश जी की मूर्ति, बास्केट आदि बनाई है।

उनका कहना है कि उनके यहां पराली का कोई भी टुकड़ा बर्बाद नहीं होता है, यहां तक कि जो भी पत्ता झड़ता है, उसे भी रिसाइकिल करके अपने प्रोडक्ट में वो इस्तेमाल करती हैं। इस Agri-Business में कोई भी वेस्ट बेकार नहीं जाता, और हर टुकड़ा नए उत्पाद में तब्दील हो जाता है।

दानी-नानी से मिली क्रिएटिविटी (Creativity got from Dani-Nani)

आरुषि बताती हैं कि उन्हें क्रिएटिविटी उनकी दादी-नानी से विरासत में मिली है। वो बताती हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी दादी-नानी को कढ़ाई-बुनाई करते, अचार आदि बनाते देखा है, जिससे उनके अंदर भी क्रिएटिविटी के गुण आ गए। यही नहीं, वो बताती हैं कि उनके माता-पिता ने भी हमेशा आगे बढ़ने में उनकी मदद की है।

वो दूसरे पैरेंट्स को भी सलाह देती हैं कि वो अपने बच्चों की काबिलियत पर भरोसा रखें और उनका आत्मविश्वास बढ़ाएं, क्योंकि ऐसा करने पर ही वो अपने काम में सफल हो सकते हैं। इसके साथ ही, आरुषि ने अपने Agri-Business “Parali by Aarushi” के जरिए पराली जैसे Agri-Waste को इस्तेमाल में लाकर एक नई दिशा दिखाई है, जिससे उन्होंने अपनी क्रिएटिविटी को और भी बढ़ाया है।

पानीपत को टेक्सटाइल वेस्ट और पॉल्यूशन फ्री बनाना (Making Panipat textile waste and pollution free)

आरुषि बताती हैं कि उनके पास कुल 30 उत्पाद हैं जो 90 से 99 प्रतिशत तक पराली (stubble) से बने हैं। इसके अलावा उनके पास पर्यावरण से संबंधित 2-3 प्रोजेक्ट हैं जिन पर काम करना है। आरुषि कहती हैं कि उनका मकसद है पानीपत को टेक्सटाइल वेस्ट और पॉल्यूशन फ्री बनाना। वो महिलाओं को सलाह देती हैं कि आप जो भी करना चाहती हैं, सोचिए मत बस करिए। वो कहती हैं कि महिलाओं के लिए फायनांशियली इंडिपेंडेंस बहुत ज़रूरी है, क्योंकि जब हाथ में पैसे आएंगे तभी समझ आएगा कि उसे खर्च कैसे करना है।

अपने Agri-Business के ज़रिए वो पर्यावरण को बचाने का प्रयास कर ही रही हैं, साथ ही महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं। आरुषि के पास विकल्प था कि वो यूके में ही कोई अच्छी जॉब कर लेती, मगर उन्होंने इसकी बजाय अपने शहर और वहां के लोगों के लिए काम करना चुना। Agri-Waste पर आधारित उनके इस स्टार्टअप से पर्यावरण की सुरक्षा को भी बढ़ावा मिल रहा है, और यह एक सामाजिक बदलाव का हिस्सा बन रहा है। पर्यावरण बचाने की दिशा में उनकी ये पहल वाकई सराहनीय हैं, क्योंकि पराली जलाना हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है।

पराली जलाने से होने वाली समस्याएं (Problems caused by stubble burning)

पराली (stubble) जलाने के दौरान जो धुंआ निकलता है, उससे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं होती हैं। इसके अलावा जानकारों का कहना है कि Agri-Waste पराली की राख से मिट्टी में पाए जाने वाले राइजोबिया बैक्टीरिया पर बुरा असर पड़ता है, जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होने लगती है। पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य हानिकारक गैस निकलती हैं। इससे मिट्टी में नमी का स्तर भी कम हो जाता है। पराली जलाने से मिट्टी में रहने वाले जीवों को भी नुक़सान पहुंचता है। इन समस्याओं के समाधान के लिए Agri-Business के तहत पराली के सही उपयोग पर जोर दिया जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण बच सके, बल्कि किसानों को भी लाभ मिल सके।

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