खेती के साथ ही ग्रामीण इलाकों में युवाओं और किसानों को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने मे मधुमक्खी पालन की अहम भूमिका है। इस व्यवसाय में आजकल नई-नई तकनीक अपनाकर किसान अच्छी आमदनी कर रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में ये स्वरोज़गार का बेहतरीन विकल्प बन सकता है, क्योंकि यहां का मौसम मधुमक्खी पालन के लिए अच्छा रहता है।
इसे देखते हुए सरकार की तरफ़ से पहाड़ी क्षेत्रों में मौन पालन को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी के साथ ही तरह-तरह की योजनाएं भी बनाई गई है, ताकि इस व्यवसाय को बढ़ावा मिले। योजनाओं और सब्सिडी से किसानों और युवाओं को कितना फ़ायदा हो रहा है और किसान कैसे इससे अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, इन सब मु्द्दों राजकीय मौन पालन केंद्र, ज्योलीकोट के सीनियर रिसर्च असिस्टेंट पूरन सिंह से बात की किसान और इंडिया की संवाददाता दीपिका जोशी ने।
उत्तराखंड में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा
राजकीय मौन पालन केंद्र, ज्योलीकोट के सीनियर रिसर्च असिस्टेंट पूरन सिंह ने बताया कि उनका संस्थान उद्यान विभाग के अंतर्गत आता है, जो उत्तराखंड के विभाग की एक ब्रांच है, जहां किसान और युवाओं को मधुमक्खी पालन से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें बीहाइव्स, बी कॉलोनी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे वो अपने इलाके में मधुमक्खी पालन की शुरुआत कर सकें।
आपको बता दें कि राजकीय मौन पालन केंद्र, ज्योलीकोट उत्तर भारत का सबसे पुराना संस्थान हैं जहां मधुमक्खी पालन की तकनीकी जानकारी देने के साथ ही इसे व्यवसाय से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
किसानों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग
पूरन सिंह ने आगे बताया कि उनके क्षेत्र में तीन, पांच और सात दिन के अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन वर्कशॉप का मकसद यहां के लोगों को इस नए व्यवसाय से जुड़ी बेसिक ट्रेनिंग देना है। ट्रेनिंग के बाद कोई भी शख्स कम से कम 10 बॉक्स के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकता है। वहीं बड़े स्तर पर व्यवसायिक करना चाहते हैं तो इसे 100-150 बॉक्स के साथ शुरू कर सकते हैं।
इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसे दोनों स्तरों पर किया जा सकता है। इसे व्यवसायिक स्तर पर और सहायक व्यवसाय के रूप में शुरू किया जा सकता है, क्योंकि इसके लिए अलग से कुछ साधन की ज़रूरत नहीं होती। इसे कम साधन और कम पूंजी में शुरू किया जा सकता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में अतिरिक्त आमदनी का ये अच्छा विकल्प है। मधुमक्खियां फूलों से परागकण लाकर खुद ही शहद बनाती हैं, जिसे बेचकर किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है। शहद 500 से 1000 रुपए किलो की दर से बिकता है।
मधुमक्खी पालन से युवाओं को जोड़ना
सीनियर रिसर्च असिस्टेंट पूरन सिंह आगे बताते हैं कि उनका संस्थान लोगों को पहले मौन पालन के प्रति जागरूक करता है और गांव-गांव जाकर प्रचार-प्रसार करके लोगों को प्रशिक्षण के लिए प्रेरित करता है। हर कोई हमारे संस्थान में आकर मधुमक्खी पालन से जुड़ा प्रशिक्षण ले सकता है। सूबे के हर जनपथ में मौन पालन के कर्मचारी रहते हैं, जिनसे संपर्क करके वो जानकारी पा सकते हैं। वहीं ज़िले में मुख्य उद्यान अधिकारी से भी इससे जुड़ी जानकारी विस्तार से पा सकते हैं।
मधुमक्खी पालन से जुड़ी योजनाएं
मधुमक्खी पालन के लिए कई तरह की योजनाएं हैं, जिनके ज़रिए मौन पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। हर एक योजना के तहत 7 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है और फिर इच्छुक युवाओं को मधुमक्खी पालन के लिए 40 फ़ीसदी की सब्सिडी दी जाती है।
जो लोग ये व्यवसाय शुरू कर चुके हैं उनके लिए पर-परागण योजना है। इस योजना के तहत 35000 रूपये तक की मदद की जाती है।
मधुग्राम योजना में 80 फ़ीसदी सब्सिडी दी जाती है, और किसानों को अपनी ओर से सिर्फ़ 20 फ़ीसदी ही खर्च करना होता है। इस योजना के तहत एक ग्राम पंचायत में 500 मौन बक्से दिए जाते हैं, जिससे कई लोगों को एक साथ स्वरोज़गार का मौका मिलता है। इससे उस क्षेत्र की और उसके शहद की भी अलग पहचान बनती हैं।
अलग-अलग तरह के शहद
पूरन सिंह अलग-अलग तरह के शहद के बारे में भी बताते हैं कि मधुमक्खियां जिस भी फूल पर जाती हैं उसका शहद इकट्ठा कर लेती हैं। आम के बगीचे में बक्सों को रखा जाए तो उसका शहद एकत्र करती है, लीची के बाग में रखा तो लीची का शहद इकट्ठा करती है, इसी प्रकार अगर सरसों के खेत में रहने पर उसका शहद जमा करती हैं। इलाके में जो भी अलग-अलग फूल होते हैं उनका शहद मधुमक्खियां इकट्ठा करती हैं। इन सभी में अलग-अलग तरह की ख़ासियतें होती हैं और उस ख़ास शहद को उस फूल के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी इलाकों में मिलने वाले शहद पूरी तरह ऑर्गेनिक होते हैं। चूंकि मधुमक्खियां अलग-अलग तरह की वनस्पतियों से परागण लेती हैं तो उसके गुण भी शहद में आ जाने से वो ज़्यादा फ़ायदेमंद हो जाते हैं।
मधुमक्खी पालन और बाज़ार
बाज़ार की समस्या के बारे में पूरन सिंह कहते हैं कि मार्केट की थोड़ी दिक्क़त है, लेकिन इसके लिए सरकार की तरफ़ से कोशिशें की जा रही हैं ताकि किसानों के शहद को अपने यहां प्रोसेस करके ब्रांड का नाम देकर बेचा जा सके।
पूरन सिंह जानकारी देते हैं कि वैसे तो पहाड़ी क्षेत्रों के शहद वहीं बिक जाते हैं, लेकिन अगर किसी का शहद नहीं बिकता है तो वो इनके संस्थान से मदद ले सकते हैं। उनका कहना है कि मधुमक्खी पालन से किसान शहद के अलावा भी बहुत कुछ ले सकते हैं। शहद मधुमक्खियों का सबसे सस्ता उत्पाद है। इसके अलावा मोम, प्रोपॉलिश, रॉयल जेली, पराग, मौन विश वगैरह का उत्पादन भी मौन पालक करते हैं। इसकी वजह से इनकी कीमत शहद से कहीं ज़्यादा होती है।
शहद उत्पादन बाकी रोज़गार की तुलना में आसान और सस्ता है और जहां मधुमक्खी पालन किया जाता हैं, वहां फसलों का उत्पादन भी बढ़ता है। रोज़गार की कमी की वजह जो युवा पहाड़ी इलाकों से पलायन कर जाते हैं, उनके लिए मौन पालन रोज़गार का अच्छा अवसर साबित हो सकता है। इस व्यवसाय को अपनाकर वो अपने ही सूबे में अच्छी आमदनी कर सकते हैं।
मधुमक्खी पालन से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें
- शहद उत्पादन से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि तिलहन, सब्जी, नींबू, माल्टा, लीची और दूसरी फसलों का उत्पादन भी बढ़ता है।
- इन फसलों का उत्पादन 15 से 30 फ़ीसदी तक बढ़ सकता है, क्योंकि 80 फीसदी पौधे क्रॉस परागण करते हैं और मधुमक्खियों की इसमें ख़ास भूमिका होती है।
- मधुमक्खी पालन के लिए ऐसी जगह चुनें जहां नमी हो, साथ ही जगह सूखी हो और आसपास पानी भी साफ़ हो। इसके लिए हवा अच्छी होनी चाहिए और हराभरा वातावरण होना चाहिए जो मधुमक्खियों को पराग उपलब्ध करवाएं।
- मधुमक्खी पालन के दौरान मौन बॉक्स को खेत के पास रखना चाहिए ताकि मधुमक्खियों की ताकत बची रहे। बॉक्स के आसपास कम से कम दस फ़ीसदी पौधे में फूल होने चाहिए।
- मधुमक्खियों में होने वाली बीमारी से बचाव के लिए स्थानीय कृषि विभाग से सलाह लेते रहें।
- फूलों का मौसम बीत जाने के बाद उत्पाद निकालना शुरू करना चाहिए।
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