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इस समय देश में रबी की फसल खेत में खड़ी है और किसान भाई अपनी फसलों के रखरखाव पर पूरा ध्यान दे रहे हैं, लेकिन इस दौरान किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनमें से एक है पाले की समस्या। पाला किसानों की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इससे फसल का उत्पादन कम हो जाता है।
अगर कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को सही वक़्त पर और ठीक तरीके से अमल में लाया जाए तो पाले के प्रकोप से बचा जा सकता है और उसे बड़ी समस्या बनने से रोका जा सकता है।
पाले से किसान फसल को कैसे बचाएं? पाले से बचाव के लिए आसान तरीके क्या हैं? पाले के प्रभाव को कम कैसे करें? इन्हीं सभी सवालों का जवाब Datia KVK के वैज्ञानिक राजीव चौहान ने विस्तार से दिया। राजीव चौहान ने पाले से बचने के लिए किसान ऑफ़ इंडिया के विशेष कार्यक्रम कृषि टॉक शो में ख़ास उपाए बताए। किसान साथियों आइए जानते हैं कि इस विशेष बातचीत में Frost Management के कुछ ख़ास बिंदु।
कैसे पड़ता है पाला?
रबी सीज़न में सर्दी अपने चरम पर होती है और सर्दी के मौसम में किसानों के सामने जो एक बड़ी दिक्कत सामने आती है वो है पाले की समस्या। किसान अपने स्तर से इसका बचाव करते हैं। किसान साथियों चलिये जानते है कि पाला कब और कैसे पड़ता है। जब मौसम साफ हो और हवाएं नहीं चल रही हों, साथ ही तापमान 0 डिग्री से 4 डिग्री हो जाने पर पाला पड़ता है। ओस की बूंदे जमने लगती हैं, इसको पाला कहते हैं। पाला की स्थिति उत्तर भारत में लगभग दिसंबर के आखिरी हफ्ते से जनवरी के माह के तीसरे सप्ताह तक आशंका बनी रहती है।
पाला फसलों को कैसे नुकसान पहुंचाता है?
उत्तर भारत में जब पश्चिमी हवाएं चलती हैं और जब तापमान 0 से 4 डिग्री पर पहुंच जाता है, उस वक्त ओस की बूंदें बर्फ में बदलने लगती हैं। पेड़ के ऊतक और कोशिकाओं के अंदर पानी की मात्रा बर्फ में बदल जाती है। अगर इन बूंदों को पौधे से नहीं हटाया गया तो पौधे की कोशिकाएं फट जाती हैं। इससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पर असर पड़ता है। पौधों के फल और फूल खराब हो जाते हैं। पाला रात के 2 बजे से सुबह के 4 बजे के बीच तक पड़ता है।
किन फसलों पर पाले का कितना असर?
पाला कई फसलों को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन कुछ फसलों पर प्रभाव ज्यादा पड़ता है। जैसे कि सरसों, मसूर, अरहर, मटर, आलू , मिर्ची, पपीता, टमाटर आम के पौधे वगैरह पर इसका असर ज्यादा होता है। सरसों, आलू और टमाटर की फसलों में पाले से किसान भाइयों को 50 फीसदी तक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इन पौधों के तने में पानी की मात्रा ज्यादा होती हैं, वे पौधे पाले से ज्यादा प्रभावित होते हैं। गेहूं और जौ को 15 प्रतिशत तक पाले से नुकसान होता है।
पाले से फसल का बचाव कैसे करें?
फसल को पाले से बचाव के लिए किसानों को तापमान पर नज़र रखनी बहुत जरूरी होती है। जब तापमान 4 डिग्री के आस-पास हो तो किसान भाई अलर्ट हो जाएं। पाले से बचने के लिए किसान अपने खेत में हल्की सी सिंचाई करें। इससे पौधे के तने और जड़ों के बीच तापमान स्थिर हो जाता है और तने में पाले की संभावना कम हो जाती है। पाले का प्रभाव नर्सरी पौधशाला में भी प्रभाव पड़ता है। नर्सरी पौधशाला साथ ही बग़ीचे को बचाने के लिए उस क्षेत्र के चारो तरफ धुंआ कर देना चाहिए। इससे तापमान में कमी आती है और पाला पड़ने की आशंका कम हो जाती है।
तीसरा तरीका ये है कि किसान सुबह खेत पर रस्सी या लकड़ी से पौधों को हिला दें, जिससे पौधे पर जमा पाले की बूंदे नीचे गिर जाती हैं। ये उपाय कम खर्चे में आसानी से किया जा सकता है।
अगर किसान बड़े स्तर पर पाले की समस्या का समाधान करना चाहता है तो किसान अपनी फसल पर थाई यूरिया का दो प्रतिशत तक का घोल बनाकर छिड़काव करें, इससे वो अपनी फसल को पाले से बचाव कर सकते हैं। इसके अलावा किसान फसल पर एक एमएल गंधक का अम्ल एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। इससे भी पाले का प्रभाव कम होता है। गंधक अम्ल का इस्तेमाल एक्सपर्ट की राय से करना चाहिए। ये पौधों का तापमान बढ़ाने में सहयोग करता है। अगर पाला लगातार 10 से 12 दिन के बाद भी पड़ता है तो इसका छिड़काव 10 से 12 दिन के बाद दोबारा भी कर सकते हैं।
पाले से बचाव के लिए छोटे क्षेत्र में नेट हाउस और पॉलीहाउस में खेती करके फसल को पाले से बचा सकते हैं। अगर प्राकृतिक या कृत्रिम से भी किसान पौधशाला को ढकने से 2 से 3 डिग्री तक पौधशाला का तापमान बढ़ जाता है। किसान भाई अगर इन सावधानियों का ध्यान रखते हैं तो वो अपनी फसल को पाले से बचा सकते हैं।
पाले से बचने के लिए पेड़ों का इस्तेमाल
जब उत्तरी पश्चिमी हवाएं चलती हैं तब इन हवाओं से फसल की सुरक्षा करने के लिए पेड़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं। हवा से बचने के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा में बड़े-बड़े वृक्षों को लगाना चाहिए।
किसान को शीतलहर से बचने के लिए उन पेड़-पौधों को लगाना चाहिए जो आय में भी बढ़ोतरी करें। किसान खेत में पश्चिम उत्तर दिशा में सागौन, पॉपुलर, बांस के पेड़ लगा सकते हैं। ये ऐसे पेड़ हैं जिनकी छाया फसल पर नहीं पड़ती। ये पेड़ हवा अवरोधक की तरह काम करते हैं, इसके साथ किसान को आमदनी भी बढ़ती है।
इन फसलों पर कम होता है पाले का असर
पाले का असर गेहूं और जौ पर कम पड़ता है, ये रबी मौसम की फसल हैं। किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए। सब्ज़ियो की खेती कर सकते हैं, जैसे कि पत्ता गोभी और सीज़नल सब्जियों की खेती कर सकते हैं। ये कम अवधि की फसलें होती हैं। इन फसलों की दिसंबर के आखिरी हार्वेस्टिंग में करना चाहिए। सरसों के स्थान पर तोरिया की बुवाई कर सकते हैं। इस फसल की बुवाई सितंबर महीने में हो जाती है। इस फसल की कटाई 15 दिसंबर तक हो जाती है।
पाले से बचने के लिए अन्य सावधानियां
किसान भाइयों को पाले से फसल को बचाने के लिए फसल चक्र को अपनाना चाहिए। किसान बहु-फसलों का उत्पादन करें, इसके साथ ही फसलों की बुवाई आठ से दस दिन के अंतराल से ही करनी चाहिए। इससे फसल को बचाया जा सकता है। इस तरह किसान भाईयों के फसलों की पाले से नुकसान की संभावना कम हो जाती है। किसान भाई हर दो तीन दिन में फसलों का अवलोकन करें।
दतिया केविक, किसानों को पाले के प्रति जागरूक कर रहे हैं। दतिया के किसानों को लगातार समाचार पत्रों से जागरूक किया जा रहा है। इसके साथ ही साथ किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम और सोशल मीडिया के जरिये भी जानकारी प्राप्त करते हैं। केविक फोन से भी किसानों को मौसम से जुड़ी जानकारी दी जाती है।
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