एक वक़्त बाद गायों की दूध देने की क्षमता कम होने लगती है या बंद हो जाती है। अक्सर देखा जाता है कि कुछ किसान गायों को तब तक ही पालते हैं, जब तक वो दूध देती हैं। दूध उत्पादन बंद होते ही गायों को छोड़ देते हैं। ऐसे में इन गायों के या आम लोगों के सड़क हादसों का शिकार होने की आशंका रहती है। महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के रहने वाले स्वप्निल कुंभार ऐसी ही भटकने के लिए छोड़ दी गयी देसी गायों को बचाने का काम कर रहे हैं।
गायें सिर्फ़ दूध उत्पादन तक ही सीमित नहीं है। इनके पशुधन से कई चीज़ें बनाई जा सकती हैं। स्वप्निल कुंभार गाय की इसी इकोनॉमिक्स को किसानों तक पहुंचा रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने उनके इस मिशन और कॉन्सेप्ट पर उनसे ख़ास बातचीत की।
क्या है स्वप्निल कुंभार का कॉन्सेप्ट?
स्वप्निल कुंभार का कॉन्सेप्ट देसी गायों के सरंक्षण और पशुधन पर आधारित है। गौपालन सिर्फ़ दूध के लिए नहीं होती, बल्कि देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं। स्वप्निल ने बताया कि साबुन, टूथपाउडर, धूप, अगरबती, गौमूत्र अर्क, औषधियां, शैम्पू, बाल के लिए तेल जैसे कई प्रॉडक्ट्स तैयार किये जा सकते हैं।
बूचड़खाने में बेचे जाने वाली गायों को करते हैं रेस्क्यू
स्वप्निल कुंभार सतारा ज़िले के फलटण में सतगुरु यशवंत बाबा गौपालन संस्था के नाम से गौशाला चलाते हैं। दो हेक्टेयर में बनी उनकी इस गौशाला में खिल्लारी नस्ल की करीबन 100 गायें हैं। दूध देने में असमर्थ गायों को जब सड़क पर छोड़ दिया जाता है या बूचड़खाने में बेच दिया जाता है, ऐसी गायों को रेस्क्यू करके गौशाला में लाया जाता है। स्वप्निल अपने इस मिशन पर 2016 से काम कर रहे हैं।
गौशाला में 100 से ऊपर गायें
खिल्लारी नस्ल महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में पाई जाती है। इस नस्ल की गाय का रंग क्रीम व्हाइट, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूंछ छोटी होती है। खिल्लारी नस्ल के बैल काफ़ी शकितशाली होते हैं, लेकिन गायों में दूध देने की क्षमता कम होती है। स्वप्निल कुंभार खिल्लारी नस्ल की देसी गायों के सरंक्षण पर काम कर रहे हैं। साथ ही इनके गोबर और गौमूत्र से वर्मीकम्पोस्ट, वर्मीवॉश और कंडे (उपले) तैयार कर बाज़ार में बेचते हैं।
गाय से प्राप्त पंचगव्य को लोगों तक पहुंचा रहे
स्वप्निल कुंभार ने पंचगव्य थेरेपी में मास्टर डिप्लोमा किया हुआ है। तमिलनाडु स्थित महर्षि वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केंद्र से मास्टर डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने पंचगव्य की अहमियत को लोगों तक पहुंचाने का काम किया। इसके अलावा, महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाए गए पशुपालन से संबंधित कई कोर्स भी किए। गाय से प्राप्त 5 तत्वों गौमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी को पंचगव्य कहा जाता है। स्वप्निल कहते हैं कि इन पांचों ही चीज़ों के अलग-अलग लाभ हैं। भूमि की उर्वरता बढ़ाने से लेकर कई स्वास्थ्य लाभ इसके हैं।
गोबर से तैयार करते हैं वर्मीकम्पोस्ट
स्वप्निल बताते हैं कि वो सूखे कचरे और गायों को दिए गए चारे में से जो चारा बच जाता है, उससे वर्मीकम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तैयार करते हैं। वर्मीकम्पोस्ट बनाने में देसी गाय के गोबर का ही इस्तेमाल करते हैं। उनका कहना है कि देसी गाय के गोबर में अधिक मात्रा में जीवाणु होते हैं, जो खेती के लिए लाभदायक होते हैं। देसी गाय के गोबर के इस्तेमाल से अच्छी गुणवत्ता वाला वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त होता है।
गोबर से ही वर्मीवॉश का भी उत्पादन
वर्मीकम्पोस्ट से निकलने वाले तरल पदार्थ को वर्मीवॉश कहा जाता है। इसका फर्श ढालदार बनाया जाता है। इसमें से एक नली बाहर की ओर निकाली जाती है। गड्ढे में सड़ा हुआ कचरा, गोबर भरकर केंचुए डाले जाते हैं। दो से चार दिन के अंतर में ऊपर से पानी का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद केंचुए अपने शरीर से लसलसा पदार्थ छोड़ने लगते हैं। ये लसलसा पदार्थ गोबर और कचरे के साथ पानी में घुलकर नली के रास्ते बाहर निकलता है। इस वर्मीवॉश को नली के आगे कोई बर्तन रखकर इकट्ठा कर लिया जाता है। वर्मीवॉश का प्रयोग करने के बाद किसानों को रासायनिक खाद के इस्तेमाल की ज़रूरत नहीं रह जाती। वर्मीवॉश से मिट्टी की सेहत भी अच्छी होती है क्योंकि इसका कोई भी अवशेष मिट्टी के लिए हानिकारक नहीं होता। ये सस्ता और सुरक्षित है।
गाय के गोबर से तैयार कंडों की बड़ी डिमांड
इसके अलावा, गाय के गोबर से कंडे भी तैयार करते हैं। इन कंडों की पूजा सामग्री के रूप में, मच्छर दूर भगाने और भी कई इको फ़्रेंडली गतिविधियों में बड़ी मांग रहती है।
स्वप्निल कहते हैं कि गोबर से जैविक खाद, बायोगैस और कंडे ही नहीं, बल्कि और भी कई अलग-अलग चीजें बनाई जा सकती है। गोबर से मूर्तियां, दीये और घर की सजावट के कई सामान तैयार किये जा सकते हैं। बहुत से लोग जिस गोबर को कचरा समझकर फेंक देते हैं, वो नहीं जानते कि ये कचरा नहीं, बल्कि बहुत बड़ा पशुधन है।
देसी गाय के घी से दवाइयां
देसी गाय के घी में कैल्शियम, विटामिन-ए, डी और ई पाया जाता है। स्वप्निल कहते हैं कि देसी गाय का घी शारीरिक विकास के लिए फ़ायदेमंद होता है। भोजन में इसके प्रयोग के अलावा, इसे आधार बनाकर कई दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। स्वप्निल खुद इस पर काम भी कर रहे हैं।
गौमूत्र में एंटीऑक्सीडेंट गुण
गौमूत्र से गौमूत्र अर्क तैयार किया जाता है। स्वप्निल ने बताया कि ये अर्क शरीर से जहर (टॉक्सिन) को साफ़ करने में मदद करता है। गौमूत्र अर्क में एंटीऑक्सीडेंट के गुण पाए जाते हैं। साथ ही इसे हैंड वॉश, शैंपू, फिनाइल सहित कई उत्पाद बनाने में प्रयोग किया जाता है।
पंचगव्य से कैसे मुनाफ़ा कमा सकते हैं किसान?
स्वप्निल कहते हैं कि एक गाय औसतन दिन में 10 किलो गोबर देती है। 10 किलो गोबर से 50 कंडे बन सकते हैं। किसान स्थानीय बाज़ार के अलावा, इसका मार्केट ऑनलाइन साइट्स पर भी खड़ा कर सकते हैं। अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कई ई-कॉमर्स साइट्स पर एक कंडे का ही दाम 10 से 20 रुपये का होता है। मान लीजिए एक कंडा कम से कम 5 रुपये में भी बिकता है, तो 250 रुपये की आमदनी किसान को होगी।
स्वप्निल ने बताया कि अगर कोई अपने क्षेत्र में गौमूत्र का मार्केट खड़ा करना चाहता है तो आज की तारीख में इसका दाम दूध से भी ज़्यादा है। कम से कम 20 रुपये प्रति लीटर से शुरू होकर 100 रुपये प्रति लीटर तक भी जाता है। एक गाय एक दिन में 10 से 12 लीटर गौमूत्र आराम से दे देती है।
स्वप्निल आगे कहते हैं कि मान लीजिए एक देसी गाय दिन का औसतन 10 लीटर भी दूध देती है तो उसका सीधा घी तैयार किया जा सकता है। 10 लीटर दूध से 350 से 400 ग्राम घी बनकर तैयार होता है। इसका दाम आप अपने क्षेत्र में देसी घी की उपलब्धता के आधार पर तय कर सकते हैं। 400 ग्राम देसी गाय का घी दो हज़ार रुपये में भी बिक सकता है।
वर्मीकम्पोस्ट का मार्केट देखकर दाम तय कर सकते हैं। स्वप्निल कहते हैं कि शहरों में टेरेस गार्डन और किचन गार्डन का चलन काफ़ी है। लोग फ्लैटों में रह रहे हैं। बालकनी में पौधे लगाते हैं। उनके लिए एक किलो वर्मीकम्पोस्ट की कीमत 50 रुपये तक रहती है। वहीं अगर किसी किसान को थोक में वर्मीकम्पोस्ट चाहिए तो वो 15 रुपये प्रति किलो की दर से भी बेच सकते हैं।
स्वप्निल अपनी 10 लोगों की टीम के साथ गौरक्षा, पशुधन और देसी गायों के सरंक्षण के मिशन पर काम कर रहे हैं। इन लोगों पर मार्केटिंग, प्रोडक्शन और पैकेजिंग की ज़िम्मेदारी है। उनकी संस्था चोटिल हुई गायों का इलाज भी करती है।
देश की इकॉनमी में देसी गाय की अहम भूमिका
स्वप्निल कहते हैं कि गाय आपको मरते दम तक कुछ न कुछ देकर जाती है। मरते दम तक वो गोबर और गौमूत्र की आपूर्ति करती है। इसलिए देश की इकॉनमी में देसी गाय की अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। स्वप्निल कहते हैं कि दो चार गायों से ही किसान लघु उद्योग भी खड़ा कर सकता है। गाय के गोबर और गौमूत्र से ही वो अच्छी कमाई कर सकता है। स्वप्निल कुंभार इसी कॉन्सेप्ट को किसानों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती में देसी गाय की अहम भूमिका
स्वप्निल कहते हैं कि जब भी हम खेत में कुछ बोते हैं, तो उस फसल की जड़ें मिट्टी से ज़रूरी पोषक तत्व लेती हैं। अगर मिट्टी में ज़रूरी पोषक तत्व नहीं होंगे तो उससे अच्छी गुणवत्ता नहीं मिलेगी। रासायनिक उर्वरक और खाद थोड़े समय के लिए बूस्टर डोज़ की तरह काम करते हैं, लेकिन वो धीरे-धीरे ज़मीन को खोखला बनाते हैं। केमिकल युक्त खेती से मिट्टी में मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जो पौधे के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से धरती की सतह कठोर और मुनष्य रोग ग्रस्त होता जा रहा है। इसे गौ-आधारित खेती से ही नियंत्रित किया जा सकता है। देसी गाय से ही प्राकृतिक खेती के लिए जरूरी जीवामृत तथा धनजीवामृत बनाए जा सकते हैं। पशुधन-आधारित खेती कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करती है। गाय के गोबर में मौजूद जीवाणु उपजाऊ क्षमता भी बढ़ाते हैं।
स्वप्निल कुंभार की सलाह
स्वप्निल कहते हैं कि आज का युवा जॉब की तलाश में महानगरों का रूख कर रहा है। वहाँ ज़रूरी नहीं कि मन चाहा जॉब मिल जाए। 50 हज़ार रुपये की सैलरी में भी महानगरों में रहना किफ़ायती नहीं होता। आधे से ज़्यादा सैलरी तो वहाँ रहने में ही खर्च हो जाती है। बचत का प्रतिशत काफ़ी कम होता है। युवा 5 से 10 गायों का पालन करके इनके पशुधन से कई प्रॉडक्ट्स तैयार कर के एक अच्छा बिज़नेस मॉडल अपने क्षेत्र में स्थापित कर सकते हैं। खेती-किसानी से जुड़ा ये व्यवसाय आपको अच्छी आमदनी देने का माद्दा रखता है।
स्वप्निल लोगों से देसी गाय पालन अपनाने की भी अपील करते हैं। डेयरी सेक्टर से जुड़े लोगों से अपील करते हुए स्वप्निल कहते हैं कि सिर्फ़ जर्सी या होल्स्टीन फ्राइज़ियन गाय के बजाय देसी गाय का पालन भी करें। गाय की कई देसी नस्लें ऐसी भी हैं, जिनकी दूध उत्पादन क्षमता अच्छी है। ऐसे में पशुपालकों को देसी गाय पालन को बड़े स्तर पर ले जाना चाहिए।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- जैविक खेती के लाभ: मनोज कुमार सिंह की सफल जैविक खेती का अनुभवउत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के हैदरगढ़ गांव के किसान मनोज कुमार सिंह ने जैविक खेती के लाभों को देखते हुए 2019 में जैविक खेती की शुरुआत की।
- आशीष कुमार राय के जैविक दृष्टिकोण से रासायनिक खेती के जाल से मिली मुक्ति, खेतों में आई हरियालीआशीष कुमार राय धान, गेहूं, चना, मटर, अरहर, तिल, और अलसी जैसी विविध फसलें उगाते हैं। वो अपनी फसलों के पोषण के लिए वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद और धैचा (हरी खाद) का उपयोग करते हैं।
- बरेली के युवा किसान आयुष गंगवार बने जैविक खेती में नई सोच: सफ़लता की कहानी और जानकारीबरेली के आयुष गंगवार ने अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने सरकारी योजनाओं और स्थानीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाया।
- Carrot Seeds: गाजर के साथ ही गाजर के बीज उत्पादन से होगा किसानों को डबल फ़ायदा?जसपाल हर साल गाजर की खेती करते हैं और आखिर में गाजर के बीज का उत्पादन भी कर लेते हैं जिससे लगभग 100 किलोग्राम बीज तैयार होता है।
- अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीजदेश के अलग-अलग कृषि संस्थाओं ने अपने आस पास के कृषि मौसम के मिज़ाज को देखते हुए किसान मेले (Kisan Mela) की डेट जारी कर दी हैं। संचार के अलग अलग माध्यमों से किसानों तक किसान मेले का निमंत्रण पहुंचा रहा है, ये इसलिए भी किया जा रहा है ताकी ज्यादा से ज्यादा किसान अपने… Read more: अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीज
- Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाईहिमालय की तलहटी में बसा है कलसी ब्लॉक जो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मौजूद है। ये पूरा इलाका लगभग 270 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां पर होने वाले अदरक प्रसंस्करण ने कलसी ब्लॉक दूसरे इलाकों से काफी आगे बढ़ा दिया है। जिससे यहां की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है। अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी… Read more: Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाई
- जानिए कैसे बनी पप्पामल अम्मा जैविक खेती की महागुरु,109 साल की उम्र में निधनपद्मश्री से सम्मानित तमिलनाडु की किसान पप्पामल (रंगम्मल) का 109 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
- गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांगभारत में एक बहुमूल्य फसल का उत्पादन होता है जो अपनी परम्परागत तरीके के लिए भी जानी जाती है। इसका नाम गहत (Horse gram Farming) है जो देव भूमि उत्तराखंड में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में गहत की फसल का इतिहास काफी पुराना है। दुनियाभर में कुल 240 प्रजातियों में से… Read more: गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांग
- मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानीहिमालय के दिल में बसा है सिक्किम और यहां के द्ज़ोंगू क्षेत्र के देसी लेप्चा समुदाय जो काफी लंबे वक्त से पारंपरिक जैविक खेती (Organic Farming) करता आ रहा है। ये लोग केमिकल फ्री, बारिश पर आधारित मिश्रित खेती को करते हैं जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को गहराई से दिखाता है। लेप्चा समुदाय इस क्षेत्र… Read more: मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानी
- Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांतिविजेंद्र सिंह का एक मामूली किसान से लेकर ज़िले में फेमस कृषि (Success Story of CFLD on Oilseed) में नयापन लाने का सफ़र किसी प्रेरणा से कम नहीं है। 1972 में फिरोजाबाद के टूंडला में टी.बी.बी सिंह इंटर कॉलेज से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने… Read more: Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांति
- गहत की खेती: उत्तराखंड की पौष्टिक दाल और इसके फ़ायदेजानें पहाड़ी इलाकों में गहत की खेती के फ़ायदे, पोषण मूल्य और इसके अनोखे गुण। गहत, एक पौष्टिक दाल है और सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद होती है।
- टिड्डी प्रबंधन: सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव?भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।
- रबी सीज़न 2024-25 के लिए फॉस्फेटिक और पोटैसिक उर्वरकों पर सब्सिडी, किसानों को क्या लाभ?केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि रबी सत्र में ₹24,475 करोड़ की उर्वरक सब्सिडी से किसानों की लागत कम होगी और आय बढ़ेगी।
- किसानों के लिए बनी ‘पीएम-आशा’ योजना में शामिल किए गए 4 मुख्य घटक‘पीएम-आशा’ योजना से मूल्य को नियंत्रित करने में मदद मिल पाएगी। इस मद में 15वें वित्त आयोग के दौरान 2025-26 तक कुल वित्तीय व्यय 35 हजार करोड़ रुपये होगा।
- National Bamboo Mission: देश के किसानों के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन, जानिए योजना, सब्सिडी और लाभों के बारें मेंभारत सरकार के राष्ट्रीय बांस मिशन योजना (National Bamboo Mission) के अंतर्गत किसानों को बांस की खेती के लिए 50 हजार रुपये की सब्सिडी मिलती है।
- World Food India 2024: वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 का काउंटडाउन शुरू, फ़ूड इनोवेशन का ग्लोबल मंचभारत में मेगा फ़ूड इवेंट- वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 (World Food India 2024) होने जा रहा है। ये इवेंट राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 19 से 22 सितंबर तक आयोजित किया जाएगा।
- कृषि में मकड़ियों का महत्व: कीट प्रबंधन और जैविक खेती में उनका योगदानमकड़ियां कभी भी फ़सलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है बल्कि कृषि में मकड़ियों का महत्व होता है। साथ ही मकड़ियां पर्यावरण के स्वास्थ्य के सूचक भी होती हैं।
- Uses Of Moringa In Fish Farming: मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग है फ़ायदेमंदमछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियों के लिए एक तरह का सुपरफूड है। यह मछलियों को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।
- Milky Mushroom Farming Success Story: दूधिया मशरूम की खेती में सफलता कैसे मिली इस किसान को, पढ़िए कहानीBCT कृषि विज्ञान केंद्र, हरिपुरम के STRY Program द्वारा कालापूरेड्डी गणेश को दूधिया मशरूम की खेती को अपनी आमदनी का मुख्य तरीका बनाने का हौसला मिला।
- Maize Cultivation Methods: जानिए मक्का की खेती के तरीकेवैज्ञानिकों ने मक्का की खेती के कई नए तरीके खोजे हैं जिनसे कम मेहनत में ज़्यादा फ़सल मिल सकती है और इन नए तरीकों से किसान कम ख़र्च में ज़्यादा मक्का उगा सकते हैं।