मिट्टी के पोषक तत्वों से जुड़े पिछले लेख में आपने मिट्टी में पाये जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में पढ़ा है तो अब बारी इन मिट्टी के पोषक तत्वों का फ़सल के विकास और पैदावार पर क्या असर पड़ता है और इन तत्वों की कमी के लक्षण क्या-क्या होते हैं, ये जानने की है। पिछला लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं- Soil Properties: अच्छी होगी मिट्टी की सेहत तो फसल उत्पादन बेहतर, कैसे पोषक तत्वों का खज़ाना बनती है मिट्टी?
मिट्टी के पोषक तत्व:
1. नाइट्रोजन (N): पौधों के सभी जीवित ऊतकों जैसे जड़, तना, पत्तियों और फल-फूल की वृद्धि और विकास में नाइट्रोजन का अहम भूमिका होती है। यह क्लोरोफिल, प्रोटोप्लाज्मा, प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों के उत्पादन का भी एक महत्वपूर्ण कारक है। नाइट्रोजन की कमी से पौधों की पत्तियाँ अपनी नोंक की ओर से पीली पड़ने लगती हैं। यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर नज़र आता है, लेकिन बाद में नयी पत्तियाँ भी पीली पड़ने लगती हैं। पौधों का तना छोटा, पतला और कुपोषित दिखता है और उसका विकास रूक जाता है। फूल-फल कम या बिल्कुल नहीं लगते या जल्दी ही झड़ने लगते हैं। अनाज के दाने कम और छोटे बनते हैं। खेतों में छिड़काव या सीधे मिट्टी में डालकर नाइट्रोजन दिया जाता है। फ़सल पर नाइट्रोजन की कमी के लक्षण दिखाई देने पर खड़ी फ़सल में निराई-गुड़ाई के बाद यूरिया का 3-4 प्रतिशत का घोल बनाकर पत्तों पर छिड़काव भी लाभप्रद होता है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design.jpg)
2. फ़ॉस्फोरस (P): पौधों के फल-फूल और बीजों के विकास के लिए फ़ॉस्फोरस बहुत आवश्यक है। ये कोशिकाओं के विभाजन के लिए आवश्यक तत्व की भूमिका निभाता है और जड़ों के विकास में भी उपयोगी होता है। न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन, फास्फोलिपिड और अमीनो अम्लों के निर्माण का भी फ़ॉस्फोरस ज़रूरी अवयव है। फ़ॉस्फोरस पौधों को मौसम सम्बन्धी तनाव और कठोर गर्मी और सर्दियों का सामना करने में भी मदद करता है।
फ़ॉस्फोरस की कमी से पौधों की जड़ों का विकास रूक जाता है, पत्तियों का रंग गहरा हरा तथा किनारे कहरदार हो जाते हैं, पुरानी पत्तियाँ सिरों की ओर सूखने लगती हैं तथा उनका रंग ताँबे जैसा या बैंगनी-हरा हो जाता है, फ़सल में फल कम लगते हैं और अनाज के दानों की संख्या घट जाती है। फ़ॉस्फोरस की ज़्यादा कमी होने पर पौधों का तना पीला पड़ जाता है।
फ़ॉस्फोरस को किसान मुख्यतः DAP के नाम से जानते हैं। DAP में अन्य पोषक तत्व भी होते हैं। बुआई से पहले कम्पोस्ट के साथ DAP मिलाकर डालने से पौधों के लिए फ़ॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाती है। फ़ॉस्फोरस की आपूर्ति के लिए SSP, DAP और रॉक फ़ॉस्फेट को उपयोग में लाया जाता है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-1-1.jpg)
3. पोटेशियम (K): पोटेशियम मुख्यतः फ़सल के फलों के विकास में सहायक होता है। इससे फलों या दानों का आकार बड़ा और चमकदार बनता है और उनकी गुणवत्ता में वृद्धि होती है। ठंड और बादल छाये रहने वाले वाले कठोर मौसम में पौधों में प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया को बढ़ावा देने में भी पोटेशियम की अहम भूमिका होती है। ये पौधों की रोग प्रतिरोधकता या प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता तथा एंजाइम्स की क्रियाशीलता बढ़ाता है। इससे कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता क़ायम रखने में मदद मिलती है।
पोटेशियम की कमी से फल और बीज ढंग से विकसित नहीं होते तथा इनका आकार छोटा, सिकुड़ा हुआ और रंग हल्का हो जाता है। पत्तियाँ छोटी, पतली और सिरों की तरफ सूखकर भूरी पड़ जाती हैं और मुड़ जाती हैं। पुरानी पत्तियाँ किनारों और सिरों पर झुलसी हुई नज़र आती हैं तथा किनारे से सूखना प्रारम्भ कर देती है। तने कमज़ोर हो जाते हैं और पौधों पर रोगग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। पोटेशियम की कमी को बुआई से पहले मिट्टी की जाँच रिपोर्ट के आधार पर डालना चाहिए। खड़ी फ़सल में पोटैशियम सल्फेट का 2 से 4% वाले घोल के छिड़काव से भी फ़ायदा होता है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-2-1.jpg)
4. कैल्शियम (Ca): कोशिकाओं का भित्ति का एक प्रमुख अवयव कैल्शियम होता है। ये कोशिका विभाजन के लिए ज़रूरी होता है और कोशिकाओं की झिल्ली की स्थिरता प्रदान करता है।इससे एंजाइम्स की क्रियाशीलता बढ़ती है। कैल्शियम पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को ख़त्म करता है तथा कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है।
कैल्शियम की कमी से नये पौधों की नयी पत्तियाँ सबसे पहले प्रभावित होती हैं। ये प्राय: कुरूप, छोटी और असामान्य रूप से गहरे हरे रंग की हो जाती हैं। पत्तियों का अग्रभाग हुक के आकार का हो जाता है। इससे कैल्शियम की कमी को बहुत आसानी से पहचान सकते हैं। इसके अलावा जड़ों का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है और जड़ें सड़ने लगती हैं। मिट्टी में कैल्शियम की ज़्यादा कमी हो तो पौधों की शीर्ष कलियों का ऊपरी भाग सूख जाता है और कलियाँ तथा फूल तैयार होने से पहले ही गिर जाते हैं। साथ ही तने की संरचना कमज़ोर पड़ने लगती है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-3.jpg)
5. मैग्नीशियम या Magnesium (Mg): क्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है मैग्नीशियम। इसके बग़ैर पौधों में प्रकाश संश्लेषण या भोजन निर्माण सम्भव नहीं होता। ये कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइम्स की क्रियाशीलता बढ़ाता है और फ़ॉस्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में तेज़ी लाता है।
मैग्नीशियम की कमी से पुरानी पत्तियाँ किनारों से और शिराओं और मध्य भाग से पीली पड़ने लगती है तथा अधिक कमी की स्थिति से प्रभावित पत्तियाँ सूख जाती हैं और गिरने लगती हैं। सब्ज़ी वाली कुछ फसलों में नसों के बीच पीले धब्बे बन जाते हैं और अन्त में नारंगी, लाल और ग़ुलाबी रंग के चमकीले धब्बे बन जाते हैं। पत्तियाँ आमतौर पर आकार में छोटी और अन्तिम अवस्था में कड़ी होकर अन्दर की ओर मुड़ने लगती हैं तो टहनियाँ कमज़ोर होकर फफूँदीजनित रोगों को आकर्षित करने लगती हैं। नयी पत्तियाँ विकसित होने से पहले ही गिर जाती हैं।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-4.jpg)
6. सल्फ़र या गन्धक (SO4): पौधे को रोगों से बचाने और बढ़ने में मदद करने में सल्फ़र की बड़ी भूमिका होती है। ये अमीनो एसिड, प्रोटीन, एंजाइम, विटामिन और क्लोरोफिल के उत्पादन में भी सहायता करते हैं। विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है। दलहनी फसलों की जड़ वृद्धि, बीज निर्माण और जड़ ग्रन्थियों के विकास में भी गन्धक का अहम योगदान होता है।
सल्फ़र की कमी से पौधे पीले, हरे, पतले और आकर में छोटे हो जाते हैं तथा उनका तना पतला और कड़ा हो जाता है। सल्फ़र की कमी को दूर करने के लिए खेतों में बुआई से पहले SSP, फ़ॉस्फोरस जिप्सम और सल्फ़र मिश्रित उर्वरकों का प्रयोग लाभप्रद होता है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/sulfur-deficency-in-corn-750x430.jpg)
7. ज़िंक या जस्ता (Zn): पौधों में फ़ॉस्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में ज़िंक बहुत सहायक होता है। ये न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है,हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में योगदान देता है।अनेक खनिज एंजाइम्स का भी ज़िंक एक आवश्यक हिस्सा होता है। ज़िंक की कमी से तने की लम्बाई में कमी आती है और पत्तियाँ मुड़ जाती हैं। गाँठों के बीच की दूरी घटने लगती है, बालियाँ देर से निकलती हैं और फ़सल पकने में देरी होती है।
धान में खैरा रोग तथा मकई में सफ़ेद कली या चित्ती रोग के लिए ज़िंक की कमी ज़िम्मेदार होती है। अंकुरण के बाद मकई की पुरानी पत्तियाँ ज़िंक की कमी से सफ़ेद पड़ने लगती हैं तो धान की पत्तियों पर लाल या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। ज़िंक की कमी को दूर करने के लिए बुआई से पहले ज़िंक सल्फेट की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों को देना चाहिए या इसके 1.0 प्रतिशत घोल में 0.25 प्रतिशत चूना मिला करके छिड़काव करना चाहिए।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-5.jpg)
8. ताँबा (Cu): पौधों में विटामिन ए के निर्माण और वृद्धि में ताँबा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये अनेक एंजाइम्स का घटक है।
9. लोहा या आयरन (Fe): पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रखरखाव के लिए आयरन की ज़रूरत पड़ती है।न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में भी इसकी अहम भूमिका रहती है। आयरन भी अनेक एंजाइम्स का आवश्यक अवयव है। मिट्टी में लौह तत्व की कमी होने से पत्तियों के बीच की शिराओं और उसके पास हरा रंग उड़ने लगता है। इससे नयी पत्तियाँ सबसे पहले प्रभावित होती हैं। आयरन की ज़्यादा कमी होने का दशा में पूरी पत्ती और शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/800px-Tomate_Blatt_Kalimangel.jpg)
10. मैगनीज (Mn): प्रकाश और अन्धेरे की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को मैगनीज ही नियंत्रित करता है।ये नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइम्स की क्रियाशीलता बढ़ाता है और पौधों में अनेक महत्वपूर्ण एंजाइम तथा कोशिकीय प्रक्रिया के संचालन में मदद करता है। साथ ही कार्बोहाइट्रेड के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन ऑक्साइड और पानी का निर्माण करता है।
मैगनीज की कमी से नयी पत्तियों के शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है और प्रभावित पत्तियाँ मर जाती हैं। नयी पत्तियों के आधार के निकट का भाग धूसर रंग का हो जाता है, जो धीरे-धीरे पीला और फिर नारंगी रंग का हो जाता है। मैगनीज की कमी की वजह से अनाज वाली फसलों में ‘ग्रे स्प्रेक’, मटर में ‘मार्श स्पाट’ और गन्ने में ‘स्टीक’ आदि रोग लग जाते हैं।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-6.jpg)
11. बोरोन (B): प्रोटीन-संश्लेषण के लिए बोरोन एक आवश्यक तत्व है। ये कोशिका विभाजन को प्रभावित करता है और कार्बोहाइड्रेट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा इसके स्थानांतरण में योगदान देता है। कैल्शियम के अवशोषण और पौधों में उसके उपयोग को भी बोरोन प्रभावित करता है और एंजाइम्स की क्रियाशीलता में परिवर्तन लाता है। बोरोन की कमी से फ़सल की उपज बहुत कम हो जाती है।
बोरोन की कमी के लक्षण प्राय: नयी पत्तियों में नज़र आते हैं। ये पत्तियाँ मोटी और कड़ी होकर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं तथा तनों की फुनगी मर जाती है। धान में ऐसे ही लक्षण दिखते हैं तो फूलगोभी में भूरा रोग, लहसुन में पीली फुनगी रोग, तम्बाकू में शिखर रोग और नीम्बू के फलों में कठोरपन आ जाता है। चुकन्दर, गाजर, फूलगोभी के पौधों का शीर्ष भाग मर जाता है और बगल से कलियाँ निकलने लगती है। पत्तियों का तना मरने लगता है तथा पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं।
12. मोलिब्डेनम या Molybdenum (Mo): ये कई एंजाइमों का अवयव है तता नाइट्रोजन उपयोग और नाइट्रोजन यौगिकीकरण में मदद करता है। नाइट्रोजन यौगिकीकरण में राइजोबियम जीवाणु के लिए भी मोलिब्डेनम आवश्यक होता है।इसीलिए दलहनी फसलों में मोलिब्डेनम की कमी ख़ास तौर पर दिखायी देती है। मोलिब्डेनम की कमी से नीचे की पतियों की शिराओं के मध्य भाग में पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्तियों के किनारे सूखने लगते है और पत्तियाँ अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं। फूल गोभी की पत्तियाँ कट-फट जाती हैं। पूँछ जैसी दिखने वाली ऐसा पत्तियों को ‘हिप टेल’ कहते हैं।
![मिट्टी की सेहत मिट्टी के पोषक तत्व](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/12/Untitled-design-7.jpg)
13. क्लोरीन या Chlorine (Cl): क्लोरीन भी पादप हार्मोन्स का एक अनिवार्य अवयव है। पौधों की पत्तियों में पानी या नमी को रोकने की क्षमता बढ़ाने में क्लोरीन की अहम भूमिका होती है।यह बीजों में इंडोलएसिटक एसिड का स्थान लेता है औरएंजाइम्स की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है। कवकों और जीवाणुओं में पाये जाने वाले अनेक यौगिकों का क्लोरीन एक आवश्यक अवयव है। मिट्टी में क्लोरीन की कमी होने से पत्तियों का अग्रभाग मुर्झा जाता है और अन्ततः लाल रंग का होकर सूख जाता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
![मंडी भाव की जानकारी](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/05/mandi728.webp)
ये भी पढ़ें:
- Equipments For Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों के बारे मेंहाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों (Hydroponic Farming Equipments) में ग्रो लाइट्स, पंप, नली, पीएच मीटर, पोषक तत्व समाधान, ग्रो बेड्स, और कंटेनर शामिल होते हैं।
- Poultry Health Management: पोल्ट्री की देखभाल और प्रबंधन कैसे करें? जानिए कुछ प्रभावी टिप्सपोल्ट्री स्वास्थ्य प्रबंधन (Poultry Health Management) रोगों से बचाव, उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आर्थिक नुकसान कम करने के लिए ज़रूरी है।
- Budget 2024: Agriculture Sector में सरकार की मुख्य घोषणाएं, कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरीइस साल कृषि क्षेत्र के लिए बजट (Budget 2024) को बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। जानिए आम बजट 2024 में कृषि क्षेत्र के लिए मुख्य ऐलान।
- National Mango Day 2024: मल्लिका, आम्रपाली और प्रतिभा समेत पूसा की उन्नत आम की किस्मेंहमारे देश में लगभग 1500 से अधिक आम की किस्में (Mango Varieties) पाई जाती हैं, जो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं।
- Sheep Farming Tips: भेड़ों की देखभाल और प्रबंधन के उन्नत तरीकेभेड़ पालन में सफलता के लिए साफ-सुथरा और सुरक्षित आवास, पोषक आहार और नियमित टीकाकरण, ज़रूरी है। यहां हम भेड़ पालन के टिप्स (Sheep Farming Tips) शेयर कर रहे हैं।
- Tuber Crops Cultivation: जानिए कंद फसलों की खेती से जुड़ी जानकारी और कमाएं मुनाफ़ाकंद फसलों की खेती (Tuber Crops Cultivation), जैसे आलू और शकरकंद, किसानों के लिए लाभकारी है। ये पौष्टिक, उच्च मूल्य वाली और कम पानी की आवश्यकता वाली होती हैं।
- Nutritional Balance In Livestock Feed: पशुओं के लिए संतुलित आहार कैसा हो?पशुओं की खुराक में पोषण संतुलन (Nutritional Balance In Livestock Feed) उनकी सेहत, उत्पादकता, रोग प्रतिरोधकता और पशुपालकों के आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है।
- Millet Business Ideas: FPO OTLO के मिलेट्स व्यवसाय से जुड़े 4 हज़ार किसान और महिलाओं को रोज़गारबहुत से FPO और कंपनियां मिलेट्स व्यवसाय में उतरी हैं। प्रोसेसिंग कर मिलेट्स से ढेर सारी हेल्दी चीज़ें बना रही हैं, ऐसा ही एक FPO गुजरात के डांग ज़िले में काम कर रहा है।
- Balanced Diet For Livestock: जन्म से लेकर गर्भावस्था तक क्यों ज़रूरी पशुओं के लिए संतुलित आहार? जानिए हरविंदर सिंह सेपशुओं के लिए संतुलित आहार (Balanced Diet For Livestock) से पशुपालक न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि दूध का भी बंपर उत्पादन भी ले सकते हैं।
- Fish farming Practices: तालाब बनाने से लेकर मछलियों के बीज और बाज़ार भाव पर विनीत सिंह से बातमछली पालन में उन्नत प्रबंधन (Advanced Management in Fisheries) शामिल करता है: स्वच्छ जल और आहार प्रबंधन, रोग नियंत्रण, प्रौद्योगिकी उपयोग, और सरकारी योजनाएं।
- Live Fish Packing: भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट! वंदना का मंत्र, अच्छा दाना और भरपूर ऑक्सीजनलाइव फ़िश पैकिंग तकनीक (Live Fish Packing Technique) मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।
- जैविक खेती के तरीके: बागपत के इस किसान ने Multilayer Farming का बेहतरीन मॉडल अपनायाविनीत चौहान ने 5 साल पहले बागवानी की शुरुआत की। वो पूरी तरह से जैविक खेती के तरीके (Organic Farming Techniques) अपनाते हुए ऑर्गेनिक उत्पादन लेते हैं।
- Dragon Fruit Farming: ड्रैगन फ़्रूट फ़ार्मिंग में कितनी लागत और क्या है बाज़ार? जानें किसान सुनील सेड्रैगन फ़्रूट की खेती में लागत और लाभ की बात करें तो किसानों को पहला उत्पादन तीन से चार लाख रुपये का मिलता है। एक एकड़ से 4 से 5 टन का उत्पादन मिल जाता है।
- Vegetable Nursery Guide: सब्ज़ियों की नर्सरी कैसे तैयार कर सकते हैं? जानिए नसीर अहमद सेकिसान नसीर अहमद पिछले करीब 5-6 सालों से सब्ज़ियों की नर्सरी (Vegetable Nursery Business) का बिज़नेस कर रहे हैं। सब्ज़ियों की नर्सरी से जुड़ी कई अहम बातें उन्होंने बताईं।
- Barley Cultivation Variety: जौ की उपज दोगुनी करने वाली नयी किस्म है DWRB-219भारतीय गेहूं और जौ अनुसन्धान संस्थान ने जौ की उपज की DWRB-219 किस्म ईज़ाद की है, जिसकी पैदावार परम्परागत किस्मों के मुक़ाबले दोगुनी है।
- Allelochemical Weed Management: कपास की खेती में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली से खरपतवार नियंत्रणकपास की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली (Intercropping System) की तकनीक बेहद उपयोगी और किफ़ायती साबित होती है।
- यहां से लें Pearl Farming की ट्रेनिंग, आवेदन करने की ये है आखिरी तारीख़ICAR- Central Institute Of Freshwater Aquaculture, Bhubaneswar (CIFA) मीठे पानी में मोती पालन (Pearl Farming) के राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।
- Drip Irrigation Technique: पानी और पैसा दोनों बचाएं ड्रिप इरिगेशन से, जानें टपक सिंचाई तकनीक के फ़ायदेड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation System) एक अत्याधुनिक सिंचाई तकनीक है जो पानी की बचत और फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
- Crop Rotation In Agriculture: जानिए क्यों अहम है खरीफ़ मौसम में उन्नत फ़सल चक्रखरीफ़ मौसम के दौरान कृषि में फ़सल चक्र (Crop rotation in agriculture) अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की परेशानियों से बचाते हैं।
- खरीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) में कितनी हुई बढ़ोतरी?भारत सरकार अपने बफ़र स्टॉक या सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बनाए रखने के लिए लगभग 23 फसलों के उपज को MSP पर खरीद करती है।