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भारत की खेतिहर महिलाएं (Farm women of India) केवल किसान नहीं, बल्कि अन्नदात्री (Annadatari) हैं। वे देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ हैं, फिर भी अक्सर उन्हें ‘किसान’ के बजाय ‘किसान की पत्नी’ के रूप में देखा जाता है। राष्ट्रीय महिला किसान दिवस (National Women Farmers Day) जो 15 अक्टूबर को हर साल उन्हीं अनाम नायिकाओं के सम्मान और संघर्षों को समर्पित है।
उपलब्धियां: कृषि क्षेत्र की अनसुनी कहानी
भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान अतुलनीय है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 78 फीसदी महिलाएं कृषि में सीधे तौर पर शामिल हैं। वे बुवाई से लेकर कटाई, बीज संरक्षण, पशुपालन और जैविक खेती (From sowing to harvesting, seed preservation, animal husbandry and organic farming) जैसे ज़रूरी कामों में माहिर हैं। राज्यों जैसे, केरल और ओडिशा में, महिलाएं ‘समूह खेती’ (group farming) के ज़रीये से शानदार सफलता की कहानियां लिख रही हैं, जिससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ी है, बल्कि पूरे समुदाय की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। वे FPOs (Farmer Producer Organization) की लीडरशिप कर रही हैं। स्थानीय फसलों के संरक्षण (Protection of local crops) में अहम भूमिका निभा रही हैं।
समस्याएं: पारंपरिक बेड़ियां और आधुनिक चुनौतियां
महिला किसानों के सामने अनेक गंभीर चुनौतियां हैं-
1.ज़मीन पर अधिकार का अभाव
हैरानी की बात है कि भारत में केवल 13.96 फीसदी महिलाओं के पास ही कृषि भूमि पर मालिकाना हक (ownership rights over agricultural land) है। इसके कारण उन्हें बैंकों से लोन लेने, सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने और तकनीकी निवेश में भारी दिक्कतें आती हैं।
2.वित्तीय पहुंच की कमी
महिलाएं अक्सर ‘Credit-Worthy’ नहीं मानी जातीं, क्योंकि उनके पास ज़मानत के रूप में देने के लिए ज़मीन नहीं होती। इससे वे आधुनिक उपकरण, उन्नत बीज और जैविक खाद जैसी जरूरी चीजों में निवेश नहीं कर पातीं।
3.शिक्षा और ट्रेनिंग का अभाव
कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रम (Agricultural Training Program) अक्सर पुरुष के लिए तैयार किये जाते हैं। महिलाओं तक नई टेक्नोलॉजी की जानकारी, जलवायु परिवर्तन से संबंधित बातें और बाज़ार से जुड़ाव के तरीके नहीं पहुंच पाते।
4.दोहरा बोझ
महिला किसानों पर खेत का काम और घर की जिम्मेदारी, दोनों का दोहरा बोझ होता है, जिसकी वजह से वे अपना स्वास्थ्य और आराम नजरअंदाज कर देती हैं।
समाधान और योजनाएं
इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संस्थानों ने कई प्रयास किए हैं-
1.सरकारी योजनाएं
1.महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP)- यह योजना महिला किसानों को कृषि में तकनीकी जानकारी और संसाधन मुहैया कराकर उन्हें सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
2.प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)- इस योजना में लाभार्थी के रूप में महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में धनराशि भेजी जाती है।
3.राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)-इसमें महिलाओं के लिए विशेष परियोजनाएं शामिल हैं।
2.समाधान के रास्ते
1.ज़मीन पर सामूहिक अधिकार- महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को सामूहिक रूप से जमीन लीज पर देकर उनकी उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
2.महिला-केंद्रित प्रशिक्षण- कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) में महिलाओं की जरूरतों के अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
3.तकनीकी पहुंच- महिलाओं को स्मार्टफोन और इंटरनेट के माध्यम से मौसम पूर्वानुमान, बाजार भाव और कीट प्रबंधन की जानकारी से जोड़ा जाना चाहिए।
4.बाज़ार से सीधा जुड़ाव- महिला किसानों को e-NAM जैसे प्लेटफॉर्म से जोड़कर और उनके उत्पादों के लिए स्थानीय बाजार उपलब्ध कराकर उनकी आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
कृषि अर्थव्यवस्था में महिला किसानों को सेंटर प्लेस में रखना अहम
महिला किसान दिवस सिर्फ एक Symbolic day नहीं है, बल्कि एक आवाज़ है। ये हमें याद दिलाता है कि भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए महिला किसानों को सेंटर प्लेस में रखना कितना अहम है। उन्हें केवल श्रमशक्ति (labor force) नहीं, बल्कि decision-maker के तौर पर स्थापित करने की ज़रूरत है। जब एक महिला किसान मज़बूत होती है, तो वो न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे देश में सौभाग्य लाने की ताकत रखती है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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