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देश की कृषि व्यवस्था (agricultural system) में एक नए युग की शुरुआत का संकेत देते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) ने ICAR-IIMR, लुधियाना में नये प्रशासनिक भवन का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ पंजाब (Punjab) के बाढ़ पीड़ित किसानों के लिए बड़ी राहत राशि की घोषणा की, बल्कि देश के किसानों के लिए मक्का जैसी ऑप्शनल फसलों को बढ़ावा देने और एग्रीकल्चर रिसर्च (Agricultural Research) को खेतों तक पहुंचाने का ऐतिहासिक रोडमैप भी पेश किया।
पंजाब के बाढ़ पीड़ितों के लिए बड़ी मदद
केंद्रीय मंत्री ने घोषणा की कि पंजाब के बाढ़ से प्रभावित किसानों (Punjab flood-affected farmers) को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने 74 करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं। इस राशि से किसानों को मुआवजे के तौर पर मुफ्त में गेहूं के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अलावा, सरसों के बीज के लिए अतिरिक्त 3 करोड़ 24 लाख रुपये पंजाब सरकार को दिए गए हैं। ये कदम बाढ़ के बाद किसानों की अगली फसल की बुआई की दिशा में एक अहम पहल है।
लेकिन राहत सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है। कृषि मंत्री ने बताया कि बाढ़ में क्षतिग्रस्त हुए मकानों की मरम्मत के लिए भी भारी राशि जारी की गई है। पहले 14,000 क्षतिग्रस्त मकानों की सूची मिलने पर हर एक आवास की मरम्मत के लिए 1 लाख 20 हजार रुपये और मजदूरी और ट्येलेट बनाने के लिए एक्स्ट्रा 40 हजार रुपये दिए गए। हैरानी की बात ये है कि उद्घाटन समारोह के दौरान ही उन्हें 36,703 और आवासों के क्षतिग्रस्त होने की नई लिस्ट मिली, जिनके लिए फौरन ही समान राशि जारी कर दी गई। ये सरकार की संवेदनशीलता और क्विक वर्क स्टाइल को दिखाता है।
एग्रीकल्चर रीसर्च का नया मॉडल: ‘लैब से लैंड तक’
शिवराज सिंह चौहान ने एग्रीकल्चर लैंड के तरीके में बदलाव की बड़ी घोषणा की है। उन्होंने कहा कि अब रिसर्च केवल लैब में नहीं होगी, बल्कि लैंड पर होगी। उन्होंने सभी कृषि वैज्ञानिकों को सीधे खेतों में जाकर रीसर्च करने और किसानों से बातचीत करने का आदेश दिया है। ये फैसला देश की कृषि चुनौतियों के समाधान के लिए एक व्यावहारिक और ज़मीनी नज़रिया साबित हो सकता है।
मक्का: किसानों के लिए ‘Green Gold’
केंद्रीय मंत्री ने मक्के की खेती को बढ़ावा देने पर ख़ास जोर दिया। उन्होंने बताया कि देश में मक्के का औसत उत्पादन अभी 37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि बेहद कम है। लेकिन उन्होंने बिहार और वेस्ट बंगाल के उदाहरण देकर किसानों के लिए एक नई राह दिखाई। बिहार में मक्के का उत्पादन बढ़कर 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गया है। ये आंकड़े साबित करते हैं कि सही टेक्नोलॉजी और मैनेजमेंट से उत्पादन में क्रांतिकारी बढ़ोतरी संभव है।
धान की जगह मक्का
कृषि मंत्री ने किसानों से धान की जगह मक्का उगाने की अपील की। उन्होंने इसके पीछे की वजह साफ़ करते हुए कहा कि मक्के की खेती में पानी का खर्च बहुत कम होता है। ये सुझाव देश के उन एरिया के लिए ख़ासतौर से अहम है जहां भू-ज़मीन स्तर लगातार गिर रहा है। धान के पारंपरिक चक्र से बाहर निकलकर मक्का जैसी कम पानी वाली फसलों को अपनाना, न सिर्फ किसानों की आय बढ़ा सकता है बल्कि देश के जल संकट को हल करने में भी मददगार साबित हो सकता है।
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