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खेती सिर्फ़ पुरुषों का काम नहीं है, महिलाएं भी अब इस क्षेत्र में अपनी मेहनत और लगन से नई मिसालें कायम कर रही हैं। आज की महिलाएं न सिर्फ़ घर संभाल रही हैं, बल्कि खेतों में भी पूरी मेहनत से काम कर रही हैं और बेहतरीन परिणाम दे रही हैं। इसी की एक शानदार मिसाल हैं हिमाचल प्रदेश के बनवारा गांव की महिला किसान सिमरता देवी, जिन्होंने अपने जुनून, लगन और मेहनत से खेती की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाकर न केवल अपनी ज़मीन की सेहत सुधारी, बल्कि अपने खेतों की तस्वीर ही बदल दी।
आज उनके खेत हरियाली से लहलहा रहे हैं और उनके काम को देखकर आसपास के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं। सिमरता देवी साबित कर रही हैं कि अगर मन में ठान लिया जाए, तो महिलाएं भी खेती में पुरुषों से किसी भी मायने में पीछे नहीं हैं।
बदलते हालातों में अपनाई नई राह
आर्थिक, भौगोलिक और मौसम की चुनौतियों से जूझते हुए भी सिमरता देवी ने हिम्मत नहीं हारी। पहले वह रासायनिक खेती करती थीं, जिसमें ख़र्च तो बहुत था पर मुनाफ़ा कम मिलता था। खेत की मिट्टी की उर्वरता भी लगातार घटती जा रही थी। लेकिन जब उन्होंने प्राकृतिक खेती के बारे में सुना, तो उन्होंने इसे अपनाने का निर्णय लिया।
उन्होंने वर्ष 2019 में अपने खेत के छोटे हिस्से (2.5 बीघा) से प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। सब्ज़ियों के अच्छे परिणाम देखकर उन्होंने धीरे-धीरे अपनी पूरी 15 कनाल ज़मीन पर यह विधि अपनाई।
प्राकृतिक फ़सलें बनीं पहचान
सिमरता देवी की प्राकृतिक खेती में मुख्य रूप से जो फ़सलें होती हैं, उनमें मक्की, गेहूं, मटर, प्याज, लहसुन और गोभी शामिल हैं। ये सारी फ़सलें वह पूरी तरह जैविक तरीके से उगाती हैं, बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के। इस पद्धति से खेती करने का सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि अब उनकी लागत बहुत कम हो गई है और आमदनी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। पहले जब वह रासायनिक खेती करती थीं, तो करीब ₹40,000 तक का ख़र्च आता था, लेकिन मुनाफ़ा उतना नहीं होता था। अब जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई है, उनका ख़र्च घटकर सिर्फ़ ₹10,000 रह गया है और आमदनी दोगुनी हो गई है।
यह साफ दिखाता है कि प्राकृतिक खेती न सिर्फ़ किसानों के लिए लाभदायक है, बल्कि यह मिट्टी, पानी और पर्यावरण के लिए भी एक वरदान बनकर उभर रही है। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है और फ़सलें भी ज़्यादा पौष्टिक और सुरक्षित होती हैं।
सिमरता देवी का अनुभव
सिमरता देवी बताती हैं,
“हमारा परिवार दशकों से खेती कर रहा है, लेकिन यह पहली बार है जब खेती करते हुए किसान और खरीदार दोनों खुश हैं। जो ग्राहक एक बार खरीदता है, वह बार-बार लौटकर आता है। हम इस विधि से बेहद खुश हैं और अन्य किसानों को भी इसकी ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।”
उनका कहना है कि अब ग्राहक सीधे खेत से सब्जियां और अनाज खरीदने आते हैं।
“ग्राहक बाज़ार भाव से 5 रुपये प्रति किलो अधिक क़ीमत देकर भी मेरी फ़सल लेते हैं। इससे न तो बाज़ार जाने का ख़र्च होता है और न ही समय की बर्बादी।”
महिलाओं के लिए प्रेरणा
सिमरता देवी सिर्फ़ खुद के लिए नहीं, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल बन चुकी हैं। वे 20 महिला सदस्यों वाले शक्ति महिला समूह की सक्रिय सदस्य हैं। वे समूह की महिलाओं को भी प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रही हैं ताकि सभी महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें। उनके मार्गदर्शन में अब समूह की महिलाएं मिलकर 10 कनाल ज़मीन पर प्राकृतिक खेती कर रही हैं। सिमरता देवी का लक्ष्य है — अपनी पंचायत को पूरी तरह स्वाभाविक और केमिकल-फ्री खेती की दिशा में आगे बढ़ाना।
गांव में बदलाव की लहर
प्राकृतिक खेती से सिमरता देवी के खेतों की मिट्टी पहले से कहीं ज़्यादा उपजाऊ हो गई है। अब उन्हें फ़सल में कीट या बीमारी का डर नहीं रहता। उनके खेतों की सब्ज़ियों की खुशबू और स्वाद दोनों बेहतर हैं। गांव के अन्य किसान भी उनके खेतों को देखकर प्रेरित हो रहे हैं और धीरे-धीरे इस विधि को अपनाने लगे हैं।
निष्कर्ष
सिमरता देवी का उदाहरण यह साबित करता है कि यदि किसान सही दिशा में मेहनत करें, तो खेती से न सिर्फ़ अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है, बल्कि मिट्टी, पानी और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। प्राकृतिक खेती आज के समय की ज़रूरत है — यह खेती कम लागत, ज़्यादा लाभ और स्थायी भविष्य का रास्ता दिखाती है।
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