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खेती को अक्सर लोग केवल मेहनत का काम मानते हैं, लेकिन अगर सही तरीका अपनाया जाए तो यही मेहनत किसान के लिए समृद्धि, सम्मान और एक स्थायी जीवन का जरिया बन सकती है। आज के समय में जहां रासायनिक खेती से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है और लागत बढ़ती जा रही है, वहीं प्राकृतिक खेती एक उम्मीद की किरण बनकर उभरी है।
हिमाचल प्रदेश के सनेहड़ गांव के प्रगतिशील किसान संसार चंद ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर यह साबित कर दिया है कि कम ख़र्च में भी अच्छी आमदनी संभव है। उन्होंने न सिर्फ़ अपनी ज़मीन को ज़हरीले रसायनों से मुक्त किया, बल्कि अपने खेतों को उपजाऊ बनाकर परिवार की आर्थिक स्थिति भी बेहतर की। उनका अनुभव यह दिखाता है कि अगर लगन और समझदारी से खेती की जाए तो किसान आत्मनिर्भर बन सकता है।
चुनौतियों से जंग और नई शुरुआत
संसार चंद कई वर्षों से सब्जियों की पारंपरिक खेती कर रहे थे। लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि रसायनों का लगातार इस्तेमाल उनकी ज़मीन की ताकत कम कर रहा है। आमदनी भी स्थिर थी और परिवार की सेहत पर भी इसका असर दिखने लगा था। ये हालात उन्हें अंदर से परेशान कर रहे थे। आख़िरकार, वर्ष 2020 में उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया — अब से वे पूरी तरह प्राकृतिक खेती ही करेंगे। यह फैसला आसान नहीं था। शुरुआत में उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। परिवार के कुछ सदस्य और आसपास के लोग भी शक में थे। उनका मानना था कि बिना रसायनों के खेती सफल नहीं हो सकती।
लेकिन संसार चंद ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने 2.5 बीघा ज़मीन पर प्राकृतिक खेती का प्रयोग शुरू किया और पूरी निष्ठा से काम में लग गए। थोड़े ही समय में उन्हें सकारात्मक नतीजे मिलने लगे। फ़सल की गुणवत्ता भी बेहतर हुई और लागत में भी कमी आई। यही उनका पहला क़दम था एक नई दिशा की ओर।
प्रशिक्षण और सीख
प्राकृतिक खेती की राह पर आगे बढ़ने से पहले संसार चंद ने बाकायदा प्रशिक्षण लिया। उन्होंने विशेषज्ञों से इसकी बारीकियां समझीं और सीखा कि बिना रसायनों के भी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें यह भी पता चला कि ज़मीन की उर्वरता बनाए रखने के लिए देसी खाद, जीवामृत, गोमूत्र और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कितना फ़ायदेमंद होता है। जब उन्होंने खुद अपनी ज़मीन पर इस ज्ञान को आज़माया, तो उन्हें जल्द ही फर्क महसूस होने लगा।
रसायनमुक्त सब्ज़ियां न सिर्फ़ ज़्यादा स्वादिष्ट निकलीं, बल्कि पोषण से भरपूर और सेहत के लिए भी बेहतर थीं। ख़ास बात यह रही कि बाज़ार में इनकी मांग भी अच्छी मिली, क्योंकि आजकल लोग सेहत के प्रति जागरूक हो रहे हैं और जैविक उत्पादों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
प्राकृतिक खेती का विस्तार
पहले उन्होंने केवल 2.5 बीघा में प्राकृतिक खेती की, लेकिन अच्छे परिणाम देखकर अब 5 कनाल ज़मीन पर इसे बढ़ा दिया है। उनका लक्ष्य है कि आने वाले समय में पूरी ज़मीन पर प्राकृतिक खेती करेंगे। वे बताते हैं कि रासायनिक खेती के समय सब्जियों में बीमारियां अधिक आती थीं, लेकिन प्राकृतिक खेती से रोग और कीटों का असर काफी कम हो गया है।
फ़सलें और उत्पादन
संसार चंद के पास कुल 20 कनाल (लगभग 10 बीघा) ज़मीन है, जिसमें से 5 कनाल (यानि करीब 2.5 बीघा) पर वे पूरी तरह प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। यही ज़मीन उनके नए सफ़र की शुरुआत बनी, जहां उन्होंने रसायनों से मुक्त खेती का सफल प्रयोग किया। वे मौसमी और रोज़मर्रा की ज़रूरतों वाली कई तरह की फ़सलें उगाते हैं। इनमें खीरा, प्याज़, टमाटर, बैंगन, लहसुन, मटर जैसी सब्ज़ियां शामिल हैं, जो सीधे रसोई से जुड़ी होती हैं। इसके अलावा वे गेहूं, धान और मक्का जैसी अनाज की फ़सलें भी उगाते हैं।
सब्जियों के साथ-साथ वे गोभी, मूली, शलजम, धनिया और पालक जैसी हरी पत्तेदार सब्ज़ियां भी उगाते हैं, जिनकी मांग बाज़ार में लगातार बनी रहती है। इन फ़सलों के ज़रिए उन्हें न सिर्फ़ अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि लोगों को सेहतमंद विकल्प भी मिल रहे हैं।
ख़र्च और आमदनी
प्राकृतिक खेती ने न सिर्फ़ ज़मीन और सेहत को फ़ायदा पहुंचाया, बल्कि आर्थिक रूप से भी संसार चंद की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव लाया है। पहले जब वे रासायनिक खेती करते थे, तो उन्हें हर सीजन में ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता था — महंगे खाद, दवाइयां और कीटनाशक उनके बजट पर भारी पड़ते थे। वहीं जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई है, तब से उत्पादन लागत काफी कम हो गई है।
अब वे देसी खाद, गोबर, गोमूत्र और खेत में ही उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उन्हें बाहर से महंगी चीज़ें खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती। यानी कम ख़र्च में खेती करना संभव हुआ है — और यही है प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा लाभ। ख़र्च घटते ही मुनाफ़ा अपने आप बढ़ने लगता है, और किसान आर्थिक रूप से मज़बूत होने की ओर बढ़ता है।
पहचान और आत्मविश्वास
संसार चंद कहते हैं –
“मैंने अपने खेतों में मिश्रित खेती और आच्छादन से बहुत अच्छे परिणाम देखे हैं। मेरा मानना है कि सभी किसानों को इस खेती विधि को अपनाना चाहिए ताकि वे भी स्वस्थ और सुरक्षित फ़सलों का लाभ उठा सकें।”
आज वे न केवल अपने गांव के बल्कि आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा बन चुके हैं। लोग दूर-दूर से उनकी सब्ज़ियां खरीदने आते हैं और बाज़ार में इनके उत्पाद ऊँचे दामों पर बिकते हैं।
प्राकृतिक खेती – आने वाले समय की जरूरत
संसार चंद की कहानी साफ बताती है कि अगर किसान मेहनत और धैर्य के साथ प्राकृतिक खेती अपनाएँ तो न सिर्फ़ परिवार को स्वस्थ भोजन मिलेगा बल्कि आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी। वे अब एक रोल मॉडल की तरह अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, जिससे अधिक से अधिक किसान इस पद्धति से जुड़ें।
निष्कर्ष
प्राकृतिक खेती आज सिर्फ़ विकल्प नहीं बल्कि समय की ज़रूरत है। संसार चंद जैसे किसान यह साबित कर रहे हैं कि अगर प्रकृति के साथ चलें तो खेती से बड़ी सफलता पाई जा सकती है। कम लागत, ज़्यादा आमदनी और सुरक्षित जीवन – यही है प्राकृतिक खेती का असली संदेश।
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