सत्या देवी ने रसायन खेती छोड़ प्राकृतिक खेती अपनाई, बनी क्षेत्र की मिसाल

हिमाचल की सत्या देवी ने प्राकृतिक खेती (Natural farming) से ख़र्च घटाकर मुनाफ़ा बढ़ाया और सेहत सुधारी, बन गईं क्षेत्र की प्रेरणा।

प्राकृतिक खेती Natural farming

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के लफुघाटी गांव की सत्या देवी कई सालों से सेब की खेती कर रही हैं। यह काम उन्होंने अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शुरू किया था। उनके पास 2 बीघा का एक सुंदर सा बाग है, जिसे वह बरसों तक रासायनिक दवाओं और खाद के सहारे संभालती रहीं। शुरुआत में तो यह तरीक़ा आसान और फ़ायदेमंद लगा, लेकिन कुछ साल बाद इसके दुष्प्रभाव सामने आने लगे। लगातार कीटनाशकों और रासायनिक दवाओं का बाग में छिड़काव करने से सत्या देवी की तबीयत धीरे-धीरे ख़राब होने लगी। सिरदर्द, सांस की दिक्कत और थकान जैसे लक्षण रोज़ के हिस्से बन गए।

ख़ासकर क्योंकि वह खुद बाग में दिनभर मेहनत करती थीं, इसीलिए रसायनों का असर उन पर और ज़्यादा पड़ रहा था। डॉक्टर से जांच करवाने पर उन्होंने साफ कहा कि अब रसायनों से दूर रहना जरूरी है। लेकिन उस वक्त सत्या देवी के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था। सत्या देवी बताती हैं, “सेब का बाग ही मेरा और मेरी बेटी का एकमात्र सहारा था। जब मेरी तबीयत बिगड़ी, तो मुझे यह डर भी सताने लगा कि इन रसायनों का असर सिर्फ मुझ तक ही नहीं, बल्कि उन लोगों तक भी पहुंच रहा होगा जो हमारे सेब खाते हैं। यह सोचकर बहुत चिंता हुई। मैं नहीं चाहती थी कि मेरी खेती किसी और की सेहत को नुक़सान पहुंचाए।”

प्राकृतिक खेती से नई उम्मीद (New hope from natural farming)

2018 में, जब सत्या देवी महिला मंडल प्रधान थीं, तब उन्हें कृषि विभाग से “सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती” (SPNF) के बारे में जानकारी मिली। पंचायत में आयोजित 2 दिन के प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने हिस्सा लिया। यह उनके लिए एक नया रास्ता था। वे कहती हैं, “प्राकृतिक खेती ने मुझे बाग को सुरक्षित तरीके से संभालने का रास्ता दिखाया। मैं तुरंत रासायनिक खेती छोड़कर इस पद्धति को अपनाने का निर्णय लिया।”

जैविक तरीकों से खेती की शुरुआत (Start of farming with organic methods)

जब सत्या देवी ने रासायनिक खेती से दूरी बनानी तय की, तो उन्होंने प्राकृतिक यानी जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने सेब के बाग में जीवामृत, घन जीवामृत और दशपर्णी अर्क जैसे पारंपरिक देसी तरीकों से बने घोलों का उपयोग शुरू किया। ये सभी घोल देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार किए जाते हैं, और फ़सलों को कीट और बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं, साथ ही मिट्टी की सेहत भी सुधारते हैं।

2019 में सत्या देवी ने पूरी तरह से प्राकृतिक खेती अपनाने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने सिर्फ सेब ही नहीं, बल्कि मटर, आलू, राजमा, धनिया और फ्रेंच बीन्स जैसी कई मौसमी सब्ज़ियां और फ़सलें भी उगाना शुरू कर दिया। खेती का तरीक़ा बदलने से उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा और ज़मीन की उपज भी।

ख़र्च में कमी और उत्पादन में बढ़ोतरी (Reducing costs and increasing production)

प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि सत्या देवी का ख़र्च काफ़ी कम हो गया। पहले जब वे रासायनिक खेती करती थीं, तो हर साल उन्हें लगभग 20,000 रुपये उर्वरकों और दवाओं पर ख़र्च करने पड़ते थे। लेकिन अब वही ख़र्च सिर्फ 2,000 रुपये के आसपास रह गया है। आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई यह उनके लिए एक बड़ी सफलता रही।

उत्पादन में भी बड़ा बदलाव आया है। पहले वे केवल 50 बॉक्स (प्रत्येक 20 किलो) सेब ही बेच पाती थीं, लेकिन अब उनका उत्पादन बढ़कर 180 बॉक्स तक पहुंच गया है। इसके अलावा, अब उनके सेब ज़्यादा चमकदार, स्वादिष्ट और कीट-मुक्त होते हैं क्योंकि प्राकृतिक खेती ने उन्हें रोगों और कीड़ों से काफ़ी हद तक सुरक्षित रखा है।

सत्या देवी ने रसायन खेती छोड़ प्राकृतिक खेती अपनाई, बनी क्षेत्र की मिसाल

लोगों के लिए प्रेरणा बनीं (became an inspiration for people)

आज सत्या देवी का सेब का बाग आसपास के किसानों, राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। यहां तक कि तहसील के एसडीएम भी उनके बाग को देखने आए। वे कहती हैं, “मुझे अच्छा लगता है जब लोग मेरे बाग को प्राकृतिक खेती का मॉडल कहते हैं। मैं चाहती हूं कि और किसान भी प्राकृतिक खेती के फ़ायदे समझें और अपनाएं, ताकि लोगों को सेहतमंद और सुरक्षित फल-सब्ज़ियां मिल सकें।”

खुद तैयार करती हैं जैविक घोल (Prepare organic solution yourself)

अब सत्या देवी अपने खेत के लिए सभी जैविक घोल खुद बनाती हैं। वे आगे चलकर यह घोल दूसरे किसानों को भी उपलब्ध कराने की योजना बना रही हैं। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती न केवल मिट्टी और फ़सल के लिए अच्छी है, बल्कि किसानों की जेब के लिए भी फ़ायदेमंद है।

प्राकृतिक खेती के फ़ायदे – सत्या देवी के अनुभव से (Benefits of natural farming – from Satya Devi’s experience)

  1. कम ख़र्च, ज़्यादा मुनाफ़ा – रासायनिक खेती की तुलना में ख़र्च बहुत कम होता है।
  2. स्वस्थ फ़सल – फलों और सब्जियों में रसायनों का कोई असर नहीं।
  3. मिट्टी की सेहत में सुधार – मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है।
  4. पर्यावरण संरक्षण – रसायनों का प्रयोग न होने से पानी और मिट्टी सुरक्षित रहती है।
  5. किसानों की सेहत सुरक्षित – खेती करते समय रसायनों का हानिकारक प्रभाव खत्म हो जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

सत्या देवी की कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादा मज़बूत हो तो किसान न केवल अपनी सेहत बचा सकता है, बल्कि खेती में भी अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता है। प्राकृतिक खेती एक ऐसा रास्ता है जो मिट्टी, फ़सल, किसान और उपभोक्ता—सभी के लिए फ़ायदेमंद है। सत्या देवी जैसे किसान आज देशभर में प्रेरणा के स्रोत हैं, जो दिखा रहे हैं कि प्राकृतिक खेती से न केवल जीवन बदला जा सकता है, बल्कि एक स्वस्थ समाज की नींव भी रखी जा सकती है।

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