विदेश छोड़ गांव लौटे मोहन सिंह, प्राकृतिक खेती से कर रहे शानदार कमाई

मोहन सिंह ने विदेश नौकरी छोड़ प्राकृतिक खेती अपनाई। कम खर्च, ज़्यादा उत्पादन और लाखों की आमदनी से बने प्रेरणा।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

आज के समय में ज़्यादातर युवा बेहतर कमाई और भविष्य की उम्मीद में विदेशों की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि गांव या खेती में कोई खास अवसर नहीं है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर के एक छोटे से गांव गटोट के किसान मोहन सिंह ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया है और एक नई मिसाल कायम की है।

मोहन सिंह ने विदेश की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया। शुरू में लोगों को यह फैसला अजीब लगा, लेकिन आज वही लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। मेहनत और लगन से उन्होंने खेती को न सिर्फ़ फ़ायदे का सौदा बनाया, बल्कि अब वे इससे अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। उनकी कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो गांव में रहकर कुछ अलग करना चाहते हैं और खेती को एक मज़बूत और सम्मानजनक रोज़गार के रूप में देखना चाहते हैं।

विदेश की नौकरी छोड़ने का फैसला (Decision to quit foreign job)

मोहन सिंह ने कुछ सालों तक कतर और सऊदी अरब जैसे देशों में नौकरी की। वहां की नौकरी ठीक-ठाक थी, आमदनी भी अच्छी हो जाती थी, लेकिन वहां का माहौल, कठिन जीवन और सबसे बड़ी बात – परिवार से दूरी – उन्हें अंदर से खलने लगी। हर दिन यह सोच उन्हें परेशान करती थी कि क्या यही जीवन है, जिसमें अपने लोग साथ नहीं हों? ऐसे में उन्होंने एक बड़ा और साहसिक कदम उठाया – विदेश छोड़कर अपने गांव लौटने का फैसला।

गांव आकर शुरुआत में उन्होंने परंपरागत खेती शुरू की। लेकिन इसमें लागत बहुत ज़्यादा और मुनाफ़ा बहुत कम था। ऐसे में खेती भी धीरे-धीरे बोझ लगने लगी। इसी दौरान उन्हें प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने इस तकनीक को समझा और फिर ठान लिया कि अब खेती को इसी पद्धति से करेंगे।

प्राकृतिक खेती की ओर कदम (Step towards natural farming)

वर्ष 2018 में मोहन सिंह ने पूरी तरह से प्राकृतिक खेती को अपनाया। पहले जहां रासायनिक खेती में उन्हें हर साल लगभग 1.5 लाख रुपये का खर्च आता था, वहीं प्राकृतिक खेती में यह खर्च घटकर सिर्फ़ 50,000 रुपये रह गया। खर्च तो कम हुआ ही, साथ ही उनकी सालाना आमदनी भी बढ़ गई। यानी अब उन्हें कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा मिल रहा है, और सबसे बड़ी बात – वे अपने गांव, अपने परिवार और अपनी मिट्टी के साथ हैं।

कठिन परिस्थितियों में खेती (Farming in difficult conditions) 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और मौसम खेती के लिए आसान नहीं हैं। यहां सिंचाई के लिए पानी की कमी बनी रहती है, जिससे खेती करना काफी मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि इस इलाके के अधिकतर किसान केवल मौसमी सब्जियों की खेती तक ही सीमित रहते हैं।

लेकिन मोहन सिंह ने इन कठिन हालातों के आगे हार नहीं मानी। उन्होंने मेहनत और धैर्य के साथ प्राकृतिक खेती को अपनाया और धीरे-धीरे बेहतर परिणाम हासिल किए। जहां बाकी किसान सीमित फ़सलें उगा रहे थे, वहीं मोहन सिंह ने अपनी ज़मीन पर विविध फ़सलें उगाकर मिसाल कायम की। उनके प्रयासों से यह साबित होता है कि अगर लगन और सही तरीका हो, तो मुश्किल परिस्थितियों में भी सफल खेती की जा सकती है।

फ़सलें और उत्पादन (Crops and production)

मोहन सिंह लगभग 42 बीघा ज़मीन पर खेती करते हैं। इसमें से 20 बीघा ज़मीन पर उन्होंने प्राकृतिक खेती की शुरुआत की है। इस हिस्से में वे टमाटर, गोभी, मटर, मूली, शलजम, धनिया, पालक जैसी हरी सब्जियां उगाते हैं। इसके अलावा वे आम और संतरे जैसे फल भी उगाते हैं। मोहन सिंह बताते हैं कि उनकी फ़सलें अब पहले से ज़्यादा अच्छी होती हैं और रोगों से भी सुरक्षित रहती हैं। प्राकृतिक खेती के कारण ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है और पैदावार में भी सुधार आया है।

विदेश छोड़ गांव लौटे मोहन सिंह, प्राकृतिक खेती से कर रहे शानदार कमाई

प्राकृतिक खेती के फ़ायदे (advantages of natural farming)

मोहन सिंह का मानना है कि प्राकृतिक खेती से फ़सलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है। पहले जो बीमारियाँ और कीट बड़ी समस्या थे, अब वे आसानी से काबू में आ जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, मटर की फ़सल में लगने वाले पाउडरी मिल्ड्यू और सुंडी जैसे कीट अब प्राकृतिक उपायों से नियंत्रित हो जाते हैं।

वे बताते हैं कि प्राकृतिक तरीकों से उगी हुई सब्जियां न सिर्फ़ ज़्यादा समय तक ताज़ी रहती हैं, बल्कि उनका स्वाद भी पहले से कहीं बेहतर होता है। उनकी भिंडी, पालक और दूसरी सब्जियां लंबे समय तक खराब नहीं होतीं और बाजार में उन्हें अच्छी कीमत मिलती है। इससे उन्हें आर्थिक लाभ भी होता है और ग्राहकों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन भी मिलता है।

अन्य किसानों के लिए प्रेरणा (Inspiration for other farmers) 

मोहन सिंह आज अपने गांव के अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। उनकी सफलता देखकर आसपास के किसान भी प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। मोहन सिंह अब अपने आम और अन्य फलों के बगीचों में भी यही तरीका अपना रहे हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

मोहन सिंह की कहानी साबित करती है कि अगर लगन और मेहनत हो तो गांव में रहकर भी बेहतर रोज़गार पाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती न केवल लागत घटाती है बल्कि उत्पादन और लाभ भी बढ़ाती है। आज मोहन सिंह जैसे किसान उन युवाओं के लिए रोल मॉडल हैं जो गांव की मिट्टी से जुड़े रहकर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।

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