Silk: भारत की विरासत का ‘Golden Fabric’ जो हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना,अर्थव्यवस्था का स्टाइलिश सपोर्ट सिस्टम

भारत में रेशम (Silk) का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि रेशम का जन्म चीन में हुआ, लेकिन भारत ने इसे अपनाकर एक नई पहचान दी। कुछ विद्वान मानते हैं कि ऋग्वेद में 'तृप' नामक वस्त्र का जिक्र रेशमी वस्त्र ही था।

Silk: भारत की विरासत का 'Golden Fabric' जो हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना,अर्थव्यवस्था का स्टाइलिश सपोर्ट सिस्टम

भारत का नाम आते ही दिमाग में रंग, गहराई और समृद्धि की एक तस्वीर उभरती है। और इस समृद्ध तस्वीर के केंद्र में बुनता है एक सुनहरा, मुलायम, लेकिन बेहद  मज़बूत धागा-रेशम। ये सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का एक जिंदा सूत्र है। Sericulture, यानी रेशम की खेती, भारत में एक कला, एक विज्ञान और एक परंपरा का अनूठा संगम है। आइए, डूबते हैं इस चमकदार दुनिया में।

प्राचीन गौरव: इतिहास में रेशम की डोर (Ancient Glory: The Silk Thread In History)

भारत में रेशम का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि रेशम का जन्म चीन में हुआ, लेकिन भारत ने इसे अपनाकर एक नई पहचान दी।

वैदिक काल (Vedic Period): कुछ विद्वान मानते हैं कि ऋग्वेद में ‘तृप’ नामक वस्त्र का जिक्र रेशमी वस्त्र ही था।

मौर्य और गुप्त काल (Mauryan and Gupta Period): इस दौरान रेशम उत्पादन और व्यापार खूब फला-फूला। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में रेशम के कीड़ों (Sericulture) के पालन और रेशमी कपड़ों के एक्सपोर्ट का Detailed description मिलता है। भारतीय रेशम, खडासकर ‘मगध’ का रेशम, दुनिया भर में फेमस था।

सिल्क रोड का भारतीय अध्याय (Indian chapter of the Silk Road): जब चीन से रेशम यूरोप जा रहा था, तो भारत उसका एक अहम पड़ाव था। भारत के पास अपना मूल रेशम भी था, जो ‘Commercial Silk Road’ के जरिए पश्चिमी देशों को एक्सपोर्ट किया जाता था।

भूगोल का रेशमी ताना-बाना: कहां और कैसे उगता है सुनहरा धागा? (The Silken Fabric Of Geography: Where And How Does The Golden Thread Grow?)

भारत का भूगोल रेशम उत्पादन के लिए अद्भुत रूप से अनुकूल है। यहां चार मुख्य प्रकार के रेशम उत्पादित होते हैं, और हर एक की अपनी भौगोलिक पहचान है:

मलबेरी रेशम-Mulberry Silk (Mulberry)

ये सबसे फेमस और हाई क्वालिटी वाला रेशम है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 70 फीसदी है। इसके लिए उपयुक्त जलवायु वाले प्रमुख राज्य हैं

:- कर्नाटक: भारत का रेशम राजधानी। बेंगलुरु, मैसूर, रामनगरम और कोलार जिले प्रमुख केंद्र हैं।

:- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: अनंतपुर, कुरनूल, और महबूबनगर जैसे ज़िले।

:- तमिलनाडु: कोयंबटूर, सलेम, और धर्मपुरी क्षेत्र।

:- पश्चिम बंगाल: मुर्शिदाबाद और मालदा ज़िले।

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तसर रेशम (Tasar Silk)

ये जंगली रेशम है, जो मुख्य रूप से आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में उत्पादित होता है। इसका रंग प्राकृतिक रूप से हल्का भूरा या तांबई होता है।
:-झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा: यहां के जंगल तसर रेशम उत्पादन के गढ़ हैं।

:-पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्व के राज्य (असम, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम)।

एरी रेशम (Non-violent silk)-

इसे ‘शांति रेशम’ भी कहा जाता है क्योंकि इसमें रेशम के कीड़े को कोकून के अंदर ही पूर्ण विकसित होने दिया जाता है और उसे मारा नहीं जाता। ये मुख्य रूप से उत्तर पूर्व भारत में पैदा होता है।
:-असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, बिहार।

:-झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से।

मूगा रेशम (Muga Silk)

ये एक दुर्लभ, चमकदार ‘Golden’ रेशम है, जो केवल असम में ही पैदा होता है। इसकी ख़ासियत के कारण इसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला हुआ है।

अर्थव्यवस्था का सुनहरा धागा (The Golden Thread Of The Economy)

रेशम उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था, की रीढ़ है।

रोजगार सृजन: यह क्षेत्र लगभग 9.5 मिलियन (95 लाख) लोगों को रोजगार देता है, जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान, खेतिहर मजदूर और आदिवासी हैं।

महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): सेरीकल्चर में लगभग 60% कार्यबल महिलाएं हैं। यह उद्योग उन्हें आर्थिक स्वावलंबन और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करता है।

निर्यात आय (Export earnings): भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे रेशम का उत्पादक (चीन के बाद) और रेशम का सबसे बड़ा Consumer है। CSB (Central Silk Board) के अनुसार, भारत का Annual silk production लगभग 35,000 मीट्रिक टन है। देश को रेशम यार्न, फैब्रिक, और रेडीमेड गारमेंट्स के export से लगभग 700-800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा मिलती है। ये संख्या हाल के वर्षों में लगातार बढ़ रही है।

कैस्केडिंग प्रभाव (Cascading Effects): रेशम उत्पादन एक लंबी Value Chain बनाता है- शहतूत की खेती-कोकून उत्पादन-रीलिंग- ट्विस्टिंग- बुनाई- डाईंग और प्रिंटिंग- Designing and manufacturing garments। ये Series कृषि, हथकरघा, पॉवरलूम और फैशन सेक्टर को जोड़ती है, जिससे एक Expanded economic ecosystem बनता है।

फैशन इंडस्ट्री: परंपरा से रनवे तक का सफ़र (Fashion industry: A Journey From Tradition To The Runway)

भारतीय फैशन उद्योग रेशम के बिना अधूरी है। सदियों से, रेशम ने भारतीय परिधानों को परिभाषित किया है।

पारंपरिक परिधान (Traditional Costumes)
शादी-विवाह और त्योहारों में साड़ी, सलवार सूट, शेरवानी और दुपट्टे की पहली पसंद रेशम ही है। बनारसी, कांचीपुरम, पैठणी, पटोला, मूगा और तसर सिल्क जैसे नाम अपने आप में एक ब्रांड हैं।

आधुनिक डिजाइनरों की पसंद (Choice of Modern Designers):
आज के फेमस डिजाइनर सब्यासाची मुखर्जी, मनीष मल्होत्रा, रितु कुमार, अनामिका खन्ना जैसे फैशन डिजाइनर्स रेशम को अपने कलेक्शन की शान बनाते हैं। वे इसे पारंपरिक ज़री और ब्रोकरी के साथ-साथ Contemporary Prints, कट और सिल्हूट के साथ पेश करके इसे ग्लोबल ऑडियंस के लिए रिलेवेंट बना रहे हैं।

सस्टेनेबल फैशन का हीरो (Hero of sustainable fashion):
दुनिया भर में ‘स्लो फैशन’ की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, भारतीय रेशम, ख़ासकर हैंडलूम और हैंडक्राफ्टेड, एक नई पहचान बना रहा है। ये न सिर्फ़ लक्ज़री, बल्कि जिम्मेदारी और टिकाऊपन का प्रतीक बन गया है।

ग्लोबल मार्केट: चुनौतियों के बीच भारत की ‘विरासत’ की ताकत (Global Market: The strength of India’s ‘heritage’ amidst challenges)

ग्लोबल रेशम बाज़ार लगभग 16-17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, और ये हर साल लगभग 4-5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।

चीन का वर्चस्व (China’s Dominance)

चीन वैश्विक रेशम उत्पादन का लगभग 80% हिस्सा किए हुए है। उसके पास बड़े पैमाने पर उत्पादन, बेहतर अवसंरचना, और उन्नत तकनीक का फायदा है। चीन से आने वाला सस्ता रेशम भारतीय घरेलू बाजार के लिए एक बड़ी चुनौती है।

भारत की अनूठी ताकत (India’s Unique Strength)

भारत एकमात्र ऐसा देश है जो रेशम की चारों प्रमुख किस्मों – मलबेरी, तसर, एरी और मूगा का उत्पादन करता है। यह ‘विविधता’ ही हमारा सबसे बड़ा हथियार है।

वैश्विक मांग में बदलाव (Changes In Global Demand)

आज का वैश्विक उपभोक्ता सिर्फ लक्जरी नहीं, बल्कि टिकाऊपन (Sustainability), नैतिक सोर्सिंग (Ethical Sourcing), और कहानी (Storytelling) चाहता है। भारतीय रेशम, जो हाथ से काता और हाथ से बुना जाता है, जो आदिवासी समुदायों की आजीविका से जुड़ा है, इस मांग के लिए एकदम सही उत्तर है।

भविष्य की रणनीति : वैल्यू एडिशन और ग्लोबल ब्रांडिंग

भारत के रेशम उद्योग का भविष्य केवल कच्चे माल के निर्यात पर निर्भर नहीं, बल्कि वैल्यू-एडेड उत्पादों (Value-Added Products) के निर्यात पर निर्भर करेगा। आगे का रास्ता इन बातों से गुजरता है:

ब्रांडिंग ‘इंडिया सिल्क’: ‘स्विस चॉकलेट’ या ‘फ्रेंच वाइन’ (‘Swiss Chocolate’ or ‘French Wine’) की तरह ‘इंडियन टसर’ या ‘असम मूगा’ (‘Indian Tussar’ or ‘Assam Muga’) को एक ग्लोबल ब्रांड के रूप में स्थापित करना।

टेक्नोलॉजी अपनाना: उत्पादकता बढ़ाने और बीमारियों पर कंट्रोल के लिए अनुसंधान को बढ़ावा देना।

सीधा बाज़ार उपलब्ध कराना: छोटे किसानों और बुनकरों को ग्लोबल कस्टमर से सीधे जोड़ने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना।

रेशम सिर्फ़ एक फैब्रिक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर, ग्रामीण समृद्धि का आधार और ग्लोबल फैशन अर्थव्यवस्था में उसकी चमकदार और टिकाऊ पहचान है। ये वो सुनहरा धागा है जो अतीत को वर्तमान से, गांवों को ग्लोबल रनवे से, और पारंपरिक कारीगरी को आधुनिक अर्थशास्त्र से जोड़ता है।

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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