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भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ (The backbone of India’s economy) कही जाने वाली कृषि ने सदियों से देश को पोषित किया है। लेकिन इस क्षेत्र ने जिस एक सबसे बड़े बदलाव का सामना किया है, वो है खेती के तरीकों में आया Revolutionary Changes – मशीनीकरण (mechanization) यानी फार्म मैकेनाइजेशन। ये सफर पारंपरिक हल और बैल से शुरू होकर आज स्मार्ट ड्रोन और जीपीएस-युक्त ट्रैक्टरों (Smart drones and GPS-enabled tractors) तक पहुंचा है। आइए, इसी दिलचस्प सफ़र पर एक नजर डालते हैं।
शुरूआती दौर: पारंपरिक तरीकों का युग -Early Period: Era Of Traditional Methods (1900–1947)
आज़ादी से पहले का दौर भारतीय कृषि की पारंपरिक तस्वीर पेश करता था। खेती लगभग पूरी तरह से बैलों पर निर्भर थी। हल, हंसिया, खुरपी, कुल्हाड़ी और दरांती जैसे आम हाथ के औज़ार ही किसानों के सबसे भरोसेमंद साथी हुआ करते थे। ये औज़ार शारीरिक श्रम को बहुत बढ़ा देते थे और उत्पादन कम होता था।
1930 और 40 के दशक में ब्रिटिश शासन काल में कुछ इंपोर्ट किये ट्रैक्टर और थ्रेशिंग मशीनें भारत आईं, लेकिन ये इतनी महंगी थीं कि केवल बड़े जमींदार या अमीर किसान ही इन्हें ख़रीद पाते थे। आम किसान के लिए ये सपने जैसे थे। इस तरह, इस दौर में मशीनीकरण की शुरुआत तो हुई, लेकिन इसका फ़ायदा किसान समुदाय तक नहीं पहुंच पाया।
आज़ादी के बाद: धीमी शुरुआत-Post Independence: A Slow Start (1947–1960)
1947 में आजादी मिलने के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी खाद्यान्न संकट (food crisis) से निपटना। बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए खाद्यान्न उत्पादन (Food grain production) बढ़ाना ज़रूरी था। इस वक्त देश का ध्यान सिंचाई परियोजनाओं और बेहतर बीजों पर था। मशीनीकरण (mechanization) अभी भी सेकेंडरी थी।
हालांकि, इस दौरान धीरे-धीरे ट्रैक्टर और पंपसेट जैसे मशीनों की एंट्री खेतों में होने लगी। फिर भी, ये महंगे थे और इनका इस्तेमाल कम किसान ही कर पाते थे।
हरित क्रांति: मशीनीकरण की वास्तविक शुरुआत- Green Revolution: The Real Beginning Of Mechanization (1965–1985)
1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति (Green Revolution) ने न केवल भारत को खाद्यान्न (Food grain production) में आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि यही वो दौर था जहां से भारत में कृषि मशीनीकरण (Agricultural Mechanization) की वास्तविक शुरुआत हुई। उच्च उपज वाली किस्मों (HYV) के बीजों ने जहां उत्पादन बढ़ाया, वहीं उनकी कटाई, गहाई और सिंचाई के लिए मशीनों की ज़रूरत महसूस हुई।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इसके अगुआ बने। ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, पंपसेट, थ्रेशर और कम्बाइन हार्वेस्टर जैसी मशीनों ने खेती का चेहरा बदल दिया। मशीनों की मदद से समय पर जुताई, बुआई, सिंचाई और कटाई होने लगी, जिससे उत्पादन में शानदार बढ़ोत्तरी हुई।
इस दौर को ‘ट्रैक्टर क्रांति’ का नाम भी दिया गया। घरेलू स्तर पर ट्रैक्टर बनाने का कारोबार बढ़ा और भारत धीरे-धीरे ट्रैक्टर निर्माण में आत्मनिर्भर होता चला गया।
विस्तार का दौर: छोटे किसानों तक पहुंच- Expansion Phase: Reaching Small Farmers(1985–2000)
1980 और 90 का दशक मशीनीकरण (Agricultural Mechanization) के विस्तार का दौर था। अब छोटे और मीडियम लेवल के किसान भी मशीनों के लाभ से अवगत हो चुके थे। ट्रैक्टर अब स्टेटस सिंबल बन गया था।
सरकार ने भी किसानों को मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी देना शुरू किया, जिससे उनकी खरीदारी आसान हुई। पावर टिलर, रीपर, स्प्रेयर, पंपसेट (Power Tiller, Reaper, Sprayer, Pump Set) जैसे छोटे उपकरण गांव-गांव तक पहुंचे। इससे किसानों की मेहनत और टाइम दोनों की बचत हुई और खेती की प्रोडक्टिविटी बढ़ी।
आधुनिक युग: तकनीक और सटीक खेती का दौर-Modern Era: The Era Of Technology And Precision Farming (From 2000 Till Date)
21वीं सदी ने भारतीय कृषि (Indian Agriculture) में एक नई क्रांति ला दी है। अब मशीनीकरण सिर्फ ट्रैक्टर तक सीमित नहीं है। इस दौर में हार्वेस्टर, जीरो टिलेज मशीन, ड्रिप इरीगेशन, स्प्रिंकलर सिस्टम और लेजर लैंड लेवलर जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का तेज़ी से विस्तार हुआ है।
सबसे बड़ा बदलाव है प्रिसिजन फार्मिंग (Precision Farming) यानी सटीक खेती का आगमन। जीपीएस युक्त ट्रैक्टर, ड्रोन टेक्नोलॉजी, सेंसर बेस्ड उपकरणों (GPS enabled tractors, drone technology, sensor based devices) ने खेती को और भी वैज्ञानिक बना दिया है। ड्रोन से फसलों पर दवा का छिड़काव, मिट्टी और फसल की सेहत की निगरानी जैसे काम आसानी से होने लगे हैं।
एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) का है। छोटे किसानों के लिए अक्सर महंगी मशीनें खरीदना संभव नहीं होता। ऐसे में, ये सेंटर उन्हें मशीनें किराए पर उपलब्ध कराते हैं, जिससे वे भी आधुनिक तकनीक (modern technology) का फायदा उठा पाते हैं।
जीपीएस-युक्त ट्रैक्टर: Self स्टीयरिंग से खेत में ओवरलैपिंग खत्म होती है, जिससे ईंधन, बीज और खाद की बचत होती है।
ड्रोन टेक्नोलॉजी: Multi-spectral Cameras से फसल स्वास्थ्य की निगरानी, वैरिएबल रेट टेक्नोलॉजी (VRT) के साथ सटीक दवा छिड़काव और बीज बोनी करना। यs क्रांतिकारी साबित हो रहा है।
सेंसर और IoT: मिट्टी में नमी और पोषक तत्वों के स्तर को मापकर डेटा भेजते हैं, जिससे Irrigation and Fertilizers देने का फैसला वैज्ञानिक होता है।
आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता और उपभोक्ता है (India is the largest tractor manufacturer and consumer in the world), जो हमारे कृषि मशीनीकरण के सफर की सफलता की कहानी कहता है।
चुनौतियां और भविष्य- Challenges And The Future
भारत में कृषि मशीनीकरण का सफर बेहद शानदार रहा है। इसने न केवल उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि किसानों के जीवनस्तर (Quality of life) में भी सुधार लाया है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं। छोटे और सीमांत किसानों तक Advance मशीनों की पहुंच सीमित है। बिजली की उपलब्धता और मशीनों की देखभाल की जानकारी जैसे मुद्दे भी हैं।
फ्यूचर में, प्रिसिजन फार्मिंग, किराए पर मशीनों की उपलब्धता और सौर ऊर्जा (Solar Energy )से चलने वाले उपकरणों पर जोर दिए जाने की जरूरत है। सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलें कृषि मशीनीकरण (Agricultural Mechanization) को नई दिशा दे रही हैं।
बैलगाड़ी से चलने वाली कृषि अब ट्रैक्टर और ड्रोन तक पहुंच चुकी है। ये सफ़र लगातार जारी है, और नई टेक्नोलॉजी के साथ भारतीय कृषि का भविष्य और भी उज्ज्वल दिखाई देता है।
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