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हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुल्लू (Kullu) में पहाड़ों की गोद में बसे शोरन गांव के रहने वाले विजय सिंह (Vijay Singh) आज प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के एक मिसाल हैं। एक ऐसा किसान जिसने न सिर्फ अपने खेतों को ज़हरमुक्त किया, बल्कि दूसरे किसानों के लिए एक राहदार बन गया। उनकी कहानी सुनकर आप भी प्रकृति की गोद में लौटने को मजबूर हो जाएंगे।
यूट्यूब से शुरू हुआ सफ़र
विजय सिंह बताते हैं कि उन्होंने प्राकृतिक खेती (Natural Farming) की शुरुआत यूट्यूब (YouTube) पर वीडियो देखकर की। राजीव दीक्षित के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने इस पर अमल करना शुरू किया और नतीजे हैरान करने वाले थे। साल 2019 में उन्होंने बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती अपनाई। आज वो 3 हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन पर सेब, अनाज, सब्जियों और मौसमी फसलों की organic खेती कर रहे हैं।
मल्टी-क्रॉपिंग है जादू की चाबी
विजय बताते हैं, ‘हम मल्टी-क्रॉपिंग (Multi-Cropping) करते हैं। इससे खेत में मधुमक्खियों जैसे फायदेमंद कीट बढ़ते हैं, जो परागण में मदद करते हैं। जीवामृत, गोमूत्र का छिड़काव करते हैं, कोई केमिकल नहीं। खर्चा कुछ नहीं, सिर्फ मुनाफ़ा है।’ उन्होंने मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए अपने खेतों में केंचुओं को भी Introduced किया है, जिससे मिट्टी और भी ज्यादा उपजाऊ हो गई है।
सरकारी सहायता और संसाधन भंडार
सरकारी मदद से विजय ने अपने गांव में एक ‘संसाधन भंडार’ स्थापित किया है। यहां से वो दूसरे किसानों को घनजीवामृत, जीवामृत, सप्तधान्य अर्क जैसे जरूरी inputs मुहैया कराते हैं। ATMA अधिकारियों के साथ मिलकर वो दूसरे किसानों के लिए इन inputs को तैयार करने की ट्रेनिंग और प्रदर्शन भी आयोजित करते हैं।
ब़ाजार की चुनौती, सरकार से अपील
विजय अपनी प्राकृतिक फसलों को बेचने में सबसे बड़ी चुनौती बाज़ार की कमी को मानते हैं। वो कहते हैं, ‘प्राकृतिक खेती से उगाई फसल सिर्फ अपने use के लिए करते हैं। कुल्लू में इसका बाजार नहीं है, कोई मंडी नहीं है। अगर सरकार की तरफ से कोई बाजार खुले या दुकान खुले जहां इन फसलों को बेचा जा सके, या फिर transportation की better facilities मिले, तो हम इसे बड़े पैमाने पर बेच सकते हैं।’ फिलहाल, वो अपनी बाकी 20 बीघा ज़मीन पर की गई conventional खेती (सेब, नाशपाती, टमाटर, गोभी) की फसलों को ही बाजार में बेच पाते हैं।
गाय का गोबर-मूत्र है रामबाण इलाज
विजय सिंह की success के पीछे उनकी देसी गायों का बहुत बड़ा योगदान है। वो बताते हैं कि उनके बाल झड़ने लगे थे, तो उन्होंने देसी गाय के गोबर और गोमूत्र (cow dung-urine) से नहाना शुरू किया। कुछ ही दिनों में नए बाल आने शुरू हो गए और बाल काले भी हुए। उन्होंने यह भी बताया कि उनके भाई की नाक की हड्डी की समस्या भी देसी गाय के घी के इस्तेमाल से ठीक हो गई। इन चमत्कारिक benefits ने ही उन्हें प्रकृति और देसी नस्लों की तरफ और आकर्षित किया।
मशीनीकरण पर सब्सिडी का फ़ायदा
विजय आधुनिक agriculture equipment के use में भी भरोसा रखते हैं। वो पावर टिलर, पावर स्प्रेयर, ब्रश कटर जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया कि इन उपकरणों पर government की तरफ से 70 से 80 प्रतिशत तक की subsidy मिल जाती है, जो किसानों के लिए एक बड़ी मदद है।
पिता के सपनों को दे रहे हैं नया जीवन
B.A तक पढ़े विजय सिंह ने सरकारी नौकरी की तैयारी भी की, लेकिन सफलता नहीं मिली। पिता के निधन के बाद खेती की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। उन्होंने इस जिम्मेदारी को न केवल संभाला बल्कि आधुनिक और प्राकृतिक तरीकों से इसे एक नई दिशा दी। आज वो सुभाष पालेकर जी जैसे experts से training ले चुके हैं और पूरे इलाके में प्राकृतिक खेती के एक जाने-माने चेहरे हैं।
विजय सिंह की कहानी साबित करती है कि अगर इरादे मज़बूत हों और प्रकृति का साथ हो, तो सफ़लता ज़रूर मिलती है। वो आज भी नई पीढ़ी को प्राकृतिक खेती के गुर सिखा रहे हैं और एक स्वस्थ भविष्य की नींव रख रहे हैं।
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