प्राकृतिक खेती अपनाकर सुनील दत्त बने गांव के किसानों की मिसाल

प्राकृतिक खेती से किसान सुनील दत्त ने खरपतवार पर जीत हासिल की और कम लागत में अधिक मुनाफ़ा पाया जानिए उनकी पूरी कहानी।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

खेती में सबसे बड़ी चुनौती होती है खरपतवार। ये ऐसे अनचाहे पौधे होते हैं जो गेहूं और अन्य फ़सलों के बीच उग आते हैं। ये न केवल फ़सलों का पोषण छीन लेते हैं, बल्कि खेत की उपज यानी पैदावार को भी काफ़ी हद तक प्रभावित करते हैं। किसान की मेहनत पर पानी फिर सकता है अगर खरपतवारों को समय रहते न रोका जाए। यही समस्या इंदौरा ब्लॉक के गांव भलवाल पंचायत के किसान सुनील दत्त के सामने भी आई। पारंपरिक खेती करते हुए उन्हें बार-बार इस समस्या का सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने हार मानने की बजाय प्राकृतिक खेती की ओर रुख किया और धीरे-धीरे खरपतवारों से निपटने का एक नया तरीका ढूंढ निकाला।

सुनील दत्त बताते हैं कि आज से करीब तीन साल पहले जब उन्होंने प्राकृतिक खेती की शुरुआत की थी, तब यह बिल्कुल नया अनुभव था। शुरुआत में कई परेशानियाँ आईं – जैसे मिट्टी की समझ, जैविक विधियों की जानकारी, और सबसे बड़ी चुनौती – खरपतवार नियंत्रण। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे अनुभव और खुद के प्रयोगों से उन्हें समझ में आने लगा कि प्राकृतिक खेती से न केवल खेती की लागत को कम किया जा सकता है, बल्कि खेत में उगने वाले खरपतवारों को भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। 

प्राकृतिक खेती की ओर कदम (Step towards natural farming)

सुनील दत्त ने अपने दोस्त संजय कुमार के साथ मिलकर 35 कनाल ज़मीन पर प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। पहले जहां पारंपरिक खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशक और अन्य दवाइयों पर काफ़ी ज़्यादा ख़र्च आता था, वहीं प्राकृतिक खेती में यह लागत लगभग आधी रह गई। इससे न सिर्फ़ ख़र्च में कटौती हुई, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरने लगी।

उन्होंने गेहूं, धान और सब्जियों जैसी कई तरह की फ़सलें प्राकृतिक विधि से उगाईं। इस प्रक्रिया में उन्होंने गोबर की खाद, जीवामृत, घनजीवामृत और नीम जैसी देसी चीजों का इस्तेमाल किया। इन उपायों से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रही, बल्कि खरपतवार की समस्या भी धीरे-धीरे कम होती चली गई।

प्राकृतिक खेती अपनाकर सुनील दत्त बने गांव के किसानों की मिसाल

फ़सलों में बदलाव से आया फर्क (Change in crops made a difference)

सुनील दत्त बताते हैं कि यदि किसान खरपतवार की समस्या से बचना चाहता है, तो उसे हर मौसम में फ़सलों को बदलते रहना चाहिए, जिसे फ़सल चक्र (Crop Rotation) कहा जाता है। उदाहरण के लिए – जिस खेत में इस बार ज़्यादा खरपतवार उगे हैं, वहां अगली बार सरसों जैसी फ़सल बोई जा सकती है। इसके बाद अगर धान लगाया जाए, तो खरपतवार अपने आप कम हो जाते हैं क्योंकि हर फ़सल का मिट्टी पर अलग प्रभाव होता है।

फ़सलों की अदला-बदली से मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है, और खेत की ताकत भी बरकरार रहती है। इससे न केवल उत्पादन अच्छा होता है, बल्कि फ़सलों की गुणवत्ता में भी सुधार आता है।

गोबर और जीवामृत का उपयोग (Use of cow dung and Jeevamrut)

सुनील दत्त बताते हैं कि खेतों में खरपतवार की संख्या को कम करने और मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाने के लिए गोबर आधारित खाद और जीवामृत का उपयोग बहुत ही असरदार साबित हुआ है। यह देसी तरीका न केवल मिट्टी की ताकत बढ़ाता है, बल्कि फ़सलों को रोगों से भी सुरक्षित रखता है।

जीवामृत में गोमूत्र, गोबर, गुड़, बेसन और पानी का उपयोग करके एक जैविक घोल तैयार किया जाता है, जो मिट्टी में अच्छे जीवाणुओं की संख्या बढ़ाता है। इससे पौधों की जड़ें मज़बूत होती हैं और फ़सल की बढ़वार भी बेहतर होती है।उनके साथी किसान संजय कुमार भी कहते हैं कि जबसे उन्होंने रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती अपनाई है, तबसे खेतों की उर्वरता लगातार बढ़ रही है। फ़सलें पहले से ज़्यादा हरी-भरी, तंदरुस्त और पोषक दिखती हैं।

किसानों के लिए प्रेरणा (Inspiration for farmers) 

आज सुनील दत्त और संजय कुमार सिर्फ़ अपने खेतों में ही नहीं, बल्कि अपने अनुभव गांव के अन्य किसानों के साथ भी खुलकर साझा कर रहे हैं। वे बताते हैं कि खेती में बदलाव कैसे संभव है और कैसे बिना महंगे रसायनों के भी अच्छी खेती की जा सकती है।

अब तक गांव के 150 से भी ज़्यादा किसान उनकी बातों से प्रेरित होकर प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। इसका असर ये हुआ है कि किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे कम ख़र्च में अच्छी आमदनी हासिल कर रहे हैं। इससे न सिर्फ़ उनका जीवन सुधर रहा है, बल्कि खेत और पर्यावरण भी पहले से ज़्यादा स्वस्थ हो रहे हैं।

खेती का आर्थिक पहलू (Economic aspects of farming) 

सुनील के पास कुल 80 कनाल ज़मीन है, जिसमें से 35 कनाल (17.5 बीघा) पर वे प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

  • फ़सलें और फल – मूली, करेला, शलजम, धनिया, पालक, प्याज, लहसुन, मटर, गेहूं, धान, मक्की, गोभी और आम।
  • रासायनिक खेती – ख़र्च: ₹1,00,000 
  • प्राकृतिक खेती – ख़र्च: ₹15,000 

इन आंकड़ों से साफ है कि प्राकृतिक खेती अपनाने से किसानों की लागत कम होगी और मुनाफ़ा भी बढ़ेगा। 

भविष्य की ओर कदम (Step towards the future)

सुनील दत्त का मानना है कि अगर किसान धीरे-धीरे रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ेंगे, तो उन्हें कई फ़ायदे मिल सकते हैं। इससे न सिर्फ़ उत्पादन में सुधार होगा, बल्कि खेती की लागत भी कम होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी ज़मीन सालों तक उपजाऊ बनी रहेगी और मिट्टी की सेहत भी खराब नहीं होगी।

वह कहते हैं कि शुरुआत में थोड़ी मेहनत और धैर्य जरूर लगता है, लेकिन जब किसान प्राकृतिक तरीकों को समझ लेते हैं, तो खेती करना आसान और सस्टेनेबल हो जाता है। इससे न केवल किसान को फ़ायदा होता है, बल्कि पर्यावरण और उपभोक्ताओं को भी शुद्ध भोजन मिल पाता है। आज सुनील दत्त की यह जर्नी और अनुभव उन सभी किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं, जो खेती में बदलाव लाने का सोच रहे हैं। उनकी कहानी यह दिखाती है कि अगर मेहनत और सही तरीका अपनाया जाए, तो खेती में भी आत्मनिर्भरता और सफलता हासिल की जा सकती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

सुनील दत्त ने यह साबित कर दिया कि प्राकृतिक खेती न केवल लागत घटाती है, बल्कि खरपतवारों से छुटकारा पाने का स्थायी समाधान भी है। उनकी मेहनत और अनुभव बताता है कि अगर किसान हिम्मत और धैर्य से आगे बढ़ें तो खेती लाभ का सौदा बन सकती है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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