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आज के समय में खेती सिर्फ़ घर चलाने का जरिया नहीं रही, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और अच्छी सेहत की कुंजी बन चुकी है। बदलते दौर में जब लोग रासायनिक खेती से होने वाले नुक़सान को समझने लगे हैं, तब प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ता जा रहा है।
इसी दिशा में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की महिला किसान शोभा देवी एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरी हैं। शोभा देवी ने यह साबित कर दिया है कि अगर मन में हिम्मत हो, मेहनत करने का जज़्बा हो और सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो प्राकृतिक खेती से न केवल अपने परिवार के लिए शुद्ध और पौष्टिक भोजन उगाया जा सकता है, बल्कि इससे अच्छी आमदनी भी की जा सकती है। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह दिखा दिया है कि खेती अब सिर्फ़ पुरुषों का क्षेत्र नहीं है – महिलाएं भी इसमें बराबरी से आगे आकर नई मिसाल कायम कर सकती हैं।
रासायनिक खेती छोड़कर अपनाई प्राकृतिक खेती
कुछ साल पहले तक शोभा देवी अपने खेतों में सब्ज़ियों और अन्य फ़सलों की पैदावार के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करती थीं। शुरुआत में फ़सल अच्छी होती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका असर उनके परिवार की सेहत पर दिखने लगा। पति की तबीयत बार-बार खराब रहने लगी और घर के बाकी सदस्य भी छोटी-बड़ी बीमारियों से घिरने लगे।
यह देखकर शोभा देवी बेहद चिंतित हो गईं। उन्होंने समझा कि जो खाना वे अपने खेतों से उगा रही हैं, वही अगर शुद्ध नहीं होगा तो परिवार स्वस्थ कैसे रह सकता है? यहीं से उनके सोचने का तरीका बदला। उन्होंने ठान लिया कि अब वे रासायनिक खेती नहीं करेंगी और पूरी तरह से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ेंगी। शुरुआत में यह रास्ता आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे एक नई राह पर कदम बढ़ा दिए।
प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण से मिली नई राह
साल 2018 शोभा देवी के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया। इसी साल उन्हें सुभाष पालेकर जी की प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी मिली। यह जानकारी उनके लिए जैसे एक नई उम्मीद की किरण थी। उन्होंने पंतनगर विश्वविद्यालय से इस तकनीक का बाकायदा प्रशिक्षण लिया, जहां उन्होंने जाना कि बिना रसायनों के भी अच्छी और सुरक्षित खेती की जा सकती है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें गाय आधारित जीरो बजट प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों, जैविक घोलों, जीवामृत, बीजामृत जैसी विधियों के बारे में विस्तार से समझाया गया। यह सीख उनके लिए बहुत उपयोगी साबित हुई।
प्रशिक्षण से लौटने के बाद शोभा देवी ने अपने खेतों में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। शुरुआत में थोड़ी कठिनाइयां आईं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इसके सकारात्मक परिणाम मिलने लगे। इस बदलाव ने न सिर्फ़ उनके भीतर नया आत्मविश्वास पैदा किया, बल्कि उनके परिवार के स्वास्थ्य में भी धीरे-धीरे सुधार आने लगा। अब उन्हें यह यकीन हो गया था कि सही रास्ता चुनकर बड़ी से बड़ी परेशानी को हल किया जा सकता है।
प्राकृतिक खेती के फ़ायदे
शोभा देवी बताती हैं कि प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद उनके उत्पादन में कोई ख़ास कमी नहीं आई। पहले जब वे रासायनिक खेती करती थीं, तो खाद, दवाइयों और अन्य संसाधनों पर काफी ख़र्च करना पड़ता था। लेकिन अब प्राकृतिक खेती में यह ख़र्च बहुत कम हो गया है।
उनका कहना है कि अब उन्हें खेत की ज़रूरतें अपने ही घर से पूरी हो जाती हैं — जैसे गाय के गोबर और गोमूत्र से बने जैविक घोल। इससे न केवल ज़मीन की उर्वरता बढ़ी है, बल्कि सब्ज़ियां और अनाज भी पहले से ज़्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक होने लगे हैं। शोभा देवी मानती हैं कि प्राकृतिक खेती न केवल परिवार की सेहत के लिए फ़ायदेमंद है, बल्कि यह किसानों के लिए एक आर्थिक रूप से भी टिकाऊ और समझदारी भरा विकल्प है। कम ख़र्च में बेहतर उत्पादन मिलना किसी भी किसान के लिए एक बड़ी राहत है।
फ़सलें और खेती का दायरा
शोभा देवी के पास कुल 23 कनाल (लगभग 11.5 बीघा) ज़मीन है। इनमें से 20 कनाल (10 बीघा) में उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई है। वे अपने खेतों में मटर, फूलगोभी, मूली, भिंडी, फ्रेंचबीन, धनिया, गेहूं, खीरा, गेंदा और आलू जैसी विविध फ़सलें उगाती हैं। ख़ास बात यह है कि उन्होंने पॉलीहाउस और नेट हाउस का भी इस्तेमाल करना शुरू किया है, जिससे सब्ज़ियों की गुणवत्ता और उत्पादन में काफी सुधार हुआ है।
पहचान और आत्मविश्वास
प्राकृतिक खेती से जुड़ने के बाद शोभा देवी ने न केवल अपनी आमदनी बढ़ाई बल्कि समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई। वे आज आत्मविश्वास के साथ दूसरे किसानों को भी इस खेती के फ़ायदे बताती हैं।
उनका कहना है –
“मैं किसानों ख़ासकर महिला किसानों को अपने खेतों में लाकर प्राकृतिक खेती का मॉडल दिखाती हूँ और इस खेती विधि से हुए लाभों के बारे में जानकारी देती हूँ।”
प्रेरणा का स्रोत बनीं शोभा देवी
आज शोभा देवी अपने क्षेत्र की कई महिलाओं और किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। वे अपने अनुभव बड़े–बड़े मंचों पर भी साझा करती हैं। उनका मॉडल देखकर आसपास के किसान भी प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।वे बताती हैं कि जब किसान अपने खेत में प्राकृतिक खेती से उगाई गई सब्ज़ियां और अनाज देखते हैं, तो उनमें भी आत्मविश्वास पैदा होता है। साथ ही, रसायनमुक्त उत्पाद की बाज़ार में अच्छी मांग रहती है।
स्वस्थ जीवन की राह
शोभा देवी की सफलता की कहानी इस बात की गवाही है कि प्राकृतिक खेती सिर्फ़ एक खेती पद्धति नहीं बल्कि जीवनशैली है। इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ती है, बल्कि परिवार और उपभोक्ताओं की सेहत भी सुरक्षित रहती है। आज जब किसान महंगे रसायनों और बढ़ते ख़र्च से परेशान हैं, शोभा देवी जैसी महिला किसान यह साबित कर रही हैं कि प्रकृति के साथ चलकर भी बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है।
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