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खेती की बात आते ही अक्सर पुरुष किसानों की सफलता की कहानियां सामने आती हैं, लेकिन महिलाओं की मेहनत और योगदान भी किसी से कम नहीं होता। अक्सर खेतों में काम करती महिलाओं को सिर्फ़ सहयोगी के रूप में देखा जाता है, जबकि वे खेती-बाड़ी में बराबर की भागीदार होती हैं।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की परागपुर की महिला किसान रेणू बाला ने यह साबित कर दिया है कि अगर लगन, मेहनत और धैर्य हो तो महिलाएं भी खेती के क्षेत्र में एक नई पहचान बना सकती हैं। रेणू बाला ने न सिर्फ़ परंपरागत खेती को अपनाया, बल्कि समय के साथ नए तरीकों को भी अपनाया और आज कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। उनकी कहानी यह दिखाती है कि महिला किसान भी आत्मनिर्भर बन सकती हैं और दूसरों को भी आगे बढ़ने की राह दिखा सकती हैं।
शुरुआत और संघर्ष (Beginnings and struggles)
रेणू बाला ने साल 2019 में प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण लिया और अपने खेतों में इस विधि को अपनाने का मज़बूत निर्णय लिया। यह कोई आसान सफर नहीं था। शुरुआत में उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। परिवार और समाज के कुछ लोगों को उनके इस नए तरीके पर शक था, लेकिन रेणू का आत्मविश्वास बना रहा। परिवार ने उन्हें अलग से एक छोटी सी ज़मीन दी, जहाँ उन्होंने प्राकृतिक खेती की शुरुआत की।
उन्होंने देशी गाय का पालन शुरू किया और उसके गोबर और गौमूत्र से प्राकृतिक खाद, घनजीवामृत और जीवामृत तैयार किया। इनसे मिट्टी की सेहत सुधरी और खेती में रसायनों का इस्तेमाल बंद हो गया। पहले साल में फ़सल का थोड़ा नुकसान हुआ, क्योंकि मिट्टी को खुद को रासायनिक खेती से उबरने में समय लग रहा था। लेकिन रेणू ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने इसे सीखने का मौका समझा और मेहनत जारी रखी। आज वही ज़मीन हरी-भरी फ़सलों से लहलहा रही है और उनकी मेहनत रंग ला रही है।
सफलता की ओर कदम (Steps towards success)
दूसरे साल से ही रेणू बाला की मेहनत रंग लाने लगी। पहले जो रास्ता कठिन लग रहा था, अब वहीं से उम्मीद की नई किरणें नजर आने लगीं। फ़सलों की गुणवत्ता में सुधार हुआ और खेतों की मिट्टी भी पहले से ज़्यादा उपजाऊ हो गई। धीरे-धीरे रेणू बाला ने अपने प्राकृतिक खेती के क्षेत्र को बढ़ाकर 40 कनाल (यानी क़रीब 20 बीघा) कर लिया। यह किसी भी किसान के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
आज उनके खेतों में गेहूं, मटर, प्याज, लहसुन, गोभी, आलू और भिंडी जैसी कई तरह की फ़सलें लहलहा रही हैं। इन सभी फ़सलों को उन्होंने बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के उगाया है। रेणू की मेहनत का सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि न सिर्फ़ उपज में बढ़ोतरी हुई, बल्कि खेती की लागत भी पहले के मुकाबले आधी हो गई। कम ख़र्च में ज़्यादा और अच्छी फ़सल मिलना हर किसान का सपना होता है — और रेणू बाला ने यह सपना साकार कर दिखाया।
परिवार और समाज की प्रेरणा (Motivation from family and society)
रेणू बाला की प्राकृतिक खेती की राह सिर्फ़ खेतों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर उनके परिवार और समाज पर भी साफ दिखने लगा। रेणू बताती हैं कि उनकी सास कैंसर से पीड़ित थीं। डॉक्टरों ने इलाज से हाथ खड़े कर दिए थे और उन्हें घर भेज दिया गया था। पूरे परिवार पर दुःख और चिंता का माहौल था।
लेकिन रेणू ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी प्राकृतिक खेती से उगाई हुई सब्ज़ियां, अनाज घर पर तैयार किया और सास को देना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी सेहत में सुधार आने लगा। कुछ महीनों में उनकी तबीयत काफी बेहतर हो गई और आज वे पूरी तरह स्वस्थ हैं। यह बदलाव देखकर ना सिर्फ़ परिवार के लोगों का भरोसा बढ़ा, बल्कि आस-पास के गांवों में भी चर्चा होने लगी। लोग पूछने लगे कि रेणू बाला ऐसा क्या कर रही हैं जिससे इतना फ़र्क़ आ रहा है।
रेणू की मेहनत और सफलता ने पूरे गांव में एक नई सोच को जन्म दिया। आज उनकी प्रेरणा से 500 से भी ज़्यादा परिवार प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं। वह अब सिर्फ़ एक किसान नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक बन चुकी हैं जो दूसरों को भी अपने अनुभवों से आगे बढ़ने की राह दिखा रही हैं।
आर्थिक लाभ (Economic Benefits)
रेणू बाला के खेत का ब्यौरा यह है—
- कुल ज़मीन: 50 कनाल (25 बीघा)
- प्राकृतिक खेती के अंतर्गत: 40 कनाल (20 बीघा)
- फ़सलें: मकई, गेहूं, मटर, प्याज, लहसुन, गोभी, भिंडी, आलू
- रासायनिक खेती में ख़र्च: ख़र्च ₹40,000
- प्राकृतिक खेती में ख़र्च: ख़र्च ₹10,000
स्पष्ट है कि प्राकृतिक खेती ने उनकी लागत को चार गुना घटा दिया और मुनाफ़ा दोगुना कर दिया।
आगे की योजनाएं (Further plans)
रेणू बाला अब केवल अपने खेतों तक सीमित नहीं हैं। वे विभिन्न कृषि मेलों, कार्यशालाओं और सरकारी कार्यक्रमों में जाकर अपने अनुभव साझा कर रही हैं। जहाँ भी उन्हें मौका मिलता है, वे किसानों को प्राकृतिक खेती के फ़ायदे और इसके सही तरीकों के बारे में बताती हैं।
उनका मानना है कि अगर किसान रसायनों से दूर रहकर खेती करें, तो न सिर्फ़ ज़मीन की सेहत सुधरेगी, बल्कि लोगों की सेहत भी बेहतर होगी। रेणू बाला का सपना है कि ज़्यादा से ज़्यादा किसान इस विधि को अपनाएं, ताकि खेती का भविष्य सुरक्षित बन सके। वे चाहती हैं कि कोई भी किसान कर्ज़ के बोझ तले न दबे और हर किसान आत्मनिर्भर बने। उनकी यह सोच और कोशिश आज कई किसानों को नई दिशा दे रही है। रेणू मानती हैं कि छोटी-छोटी कोशिशें भी बड़े बदलाव ला सकती हैं — बस सच्ची लगन और विश्वास होना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
रेणू बाला का उदाहरण बताता है कि प्राकृतिक खेती न केवल ज़मीन और फ़सल के लिए लाभकारी है बल्कि किसानों के स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाती है। महिलाओं की भागीदारी इस क्षेत्र को और मज़बूत कर रही है।रेणू बाला की कहानी हर किसान परिवार को यह संदेश देती है कि अगर मन में दृढ़ संकल्प हो, तो प्राकृतिक खेती से न केवल सफलता बल्कि समाज में पहचान भी हासिल की जा सकती है।
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