हिमाचल की पहाड़ियों में प्राकृतिक खेती से रच रहे इतिहास प्रगतिशील किसान सुखजिंदर सिंह

प्राकृतिक खेती से हिमाचल प्रदेश के बलदोआ गांव के किसान सुखजिंदर सिंह ने कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया और किसानों के लिए प्रेरणा बने।

प्राकृतिक खेती Natural Farming

किसान का जीवन हमेशा चुनौतियों से भरा होता है, लेकिन जो किसान इन चुनौतियों से घबराने के बजाय उनसे कुछ सीखते हैं, वही सच में आगे बढ़ते हैं। खेती में कभी मौसम साथ नहीं देता तो कभी बाज़ार में दाम गिर जाते हैं, ऐसे में धैर्य और समझदारी ही किसान की सबसे बड़ी ताकत होती है। हिमाचल प्रदेश के नगरोटा सूरियां विकास खण्ड के बलदोआ गांव के किसान सुखजिंदर सिंह भी ऐसे ही मेहनती और समझदार किसानों में से एक हैं, जिन्होंने क़रीब दो साल पहले प्राकृतिक खेती की राह चुनी।

शुरू में उन्हें कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे इस नई पद्धति को अपनाते हुए खुद को उसके अनुरूप ढाल लिया। आज प्राकृतिक खेती ही उनकी पहचान बन गई है और उनकी मेहनत, लगन और सच्चे इरादों ने यह साबित कर दिया है कि सही दिशा में किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।

परिवार से मिली प्रेरणा (Inspiration from family)

सुखजिंदर सिंह को खेती की प्रेरणा अपने परिवार, ख़ासकर अपने पिता श्री प्रीतम सिंह से मिली, जिनके साथ उन्होंने लंबे समय तक पारंपरिक खेती में हाथ बंटाया। बचपन से ही खेतों से जुड़ाव और पिता का मार्गदर्शन उनके जीवन का अहम हिस्सा रहा है। लेकिन एक दिन कृषि विभाग द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के बाद उनकी सोच में बड़ा बदलाव आया। इस कार्यक्रम ने उन्हें रासायनिक खेती से हटकर प्राकृतिक खेती की ओर सोचने पर मज़बूर कर दिया। 

उन्होंने अपने पिता से इस विषय में चर्चा की, और दोनों ने मिलकर क़रीब 2 कनाल (यानि 1 बीघा) जमीन पर प्राकृतिक खेती का पहला प्रयोग शुरू किया। शुरुआत में कुछ समस्याएँ आईं, पैदावार भी उम्मीद से कम रही, जिससे थोड़ा नुकसान भी हुआ, लेकिन पिता जी का अनुभव, मार्गदर्शन और हमेशा सकारात्मक रहने की सीख ने सुखजिंदर को हिम्मत दी और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही पारिवारिक समर्थन और आपसी विश्वास उनकी सफलता की नींव बना।

मौसम और मिट्टी के अनुसार खेती (Farming according to weather and soil)

बलदोआ क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु गेहूं, सरसों, लहसुन और विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती के लिए बहुत अनुकूल मानी जाती है। सुखजिंदर सिंह ने भी अपनी प्राकृतिक खेती की शुरुआत इन्हीं पारंपरिक फ़सलों से की, क्योंकि वे जानते थे कि मौसम और मिट्टी की समझ के बिना खेती में सफलता मुश्किल है। 

उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद न सिर्फ उपज अच्छी मिलती है, बल्कि लागत भी बहुत कम आती है, जो किसी भी किसान के लिए बड़ी राहत की बात है। पहले वे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर हर सीजन में हजारों रुपये खर्च करते थे, लेकिन अब यह खर्च लगभग न के बराबर रह गया है। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती में मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है और फ़सलें ज़्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, जिससे बाज़ार में भी इनका अच्छा मूल्य मिलता है।

अनुभव से मिला आत्मविश्वास (confidence gained from experience)

सुखजिंदर बताते हैं –

“मैं पहले सड़क किनारे सब्जियां बेचता था लेकिन ग्राहक कम आते थे। जब से कृषि विभाग ने मुझे प्रमाणपत्र दिया है, तब से ग्राहक 50 प्रतिशत ज़्यादा बढ़ गए हैं।”
यह बदलाव उन्हें आत्मविश्वास देता है कि प्राकृतिक खेती न केवल सेहतमंद फ़सल देती है बल्कि अच्छी कमाई भी कराती है।

पिता का अनुभव और सलाह (Father’s experience and advice)

सुखजिंदर के पिता श्री प्रीतम सिंह कहते हैं –
“72 साल की उम्र में मैंने पहली बार ऐसी खेती देखी है, जिसमें लागत कम और परिणाम बेहतर हैं। हर किसान और बागवान को प्राकृतिक खेती अपनानी चाहिए।”
उनका यह अनुभव गांव के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

परिवार की अहम भूमिका (important role of family)

इस सफलता में सुखजिंदर की पत्नी का भी बड़ा योगदान है। वे घर के कामों के साथ-साथ खेती में भी सक्रिय रहती हैं। सुखजिंदर मानते हैं कि परिवार का सहयोग ही उन्हें मज़बूती देता है। आज यह परिवार मिलकर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है।

हिमाचल की पहाड़ियों में प्राकृतिक खेती से रच रहे इतिहास प्रगतिशील किसान सुखजिंदर सिंह

किसानों को मार्गदर्शन (Guidance to farmers)

सुखजिंदर सिंह ने अपनी खेती तक ही सीमित न रहते हुए अपने अनुभव और ज्ञान को दूसरों तक पहुँचाने का भी बीड़ा उठाया। जब उन्होंने देखा कि प्राकृतिक खेती से न केवल लागत घटती है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी फ़ायदा होता है, तो उन्होंने आसपास के किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करना शुरू किया। 

वे अपने गांव और आस-पास के क्षेत्रों में किसानों से मिलकर उन्हें इस पद्धति के फ़ायदे समझाते हैं और अपनी खुद की खेती का उदाहरण देकर भरोसा दिलाते हैं। कई किसान अब उनके मार्गदर्शन में प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, सुखजिंदर समय-समय पर कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते हैं और वहां जाकर अपने अनुभव साझा करते हैं। उनका उद्देश्य केवल खुद आगे बढ़ना नहीं, बल्कि पूरे किसान समुदाय को जागरूक और आत्मनिर्भर बनाना है।

आर्थिक स्थिति में सुधार (Improvement in economic condition)

सुखजिंदर सिंह बताते हैं कि पहले जब वे परंपरागत खेती करते थे, तो हर सीजन में काफी खर्चा आता था, लेकिन लाभ उतना नहीं होता था। उर्वरक, कीटनाशक और अन्य रासायनिक साधनों पर बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती थी, जिससे मेहनत के बावजूद हाथ में ज़्यादा कुछ नहीं बचता था।

लेकिन जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की है, तब से लागत में तो बड़ी कमी आई ही है, साथ ही फ़सल की गुणवत्ता और बाज़ार में मांग भी बेहतर हुई है। अब खेती करना उन्हें पहले से कहीं ज़्यादा संतोषजनक लगने लगा है, क्योंकि वे जानते हैं कि उनका तरीका न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फ़ायदेमंद है। यह बदलाव उनके जीवन में एक नई दिशा लेकर आया है।

भावी योजनाएं (Future Plans)

सुखजिंदर सिंह का सपना है कि उनके गांव का हर किसान प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाए और रासायनिक खेती से पूरी तरह मुक्ति पाए। वे चाहते हैं कि गांव का हर खेत जैविक हो, जहां बिना रसायन के शुद्ध और पौष्टिक अनाज व सब्जियां उगाई जाएं, ताकि उपभोक्ताओं तक भी स्वास्थ्यवर्धक और सुरक्षित उत्पाद पहुंच सकें। उनका मानना है कि अगर पूरा क्षेत्र प्राकृतिक खेती को अपनाता है, तो न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि मिट्टी, पानी और पर्यावरण भी लंबे समय तक सुरक्षित रहेंगे। 

निष्कर्ष (Conclusion)

सुखजिंदर इस दिशा में लगातार प्रयासरत हैं और अपने कार्यों से दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादे मज़बूत हों और दिल से कुछ अच्छा करने की चाह हो, तो कोई भी बदलाव लाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती से न केवल जमीन की ताकत लौटती है, बल्कि किसान की जेब और आत्मविश्वास दोनों भरते हैं। आज सुखजिंदर सिंह जैसे किसान पूरे देश के लिए एक सकारात्मक उदाहरण बन चुके हैं, जो यह दिखाते हैं कि सच्ची सफलता मेहनत, धैर्य और सही सोच से ही मिलती है।

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